पर्वों से जुड़ी शास्त्रोक्त लोक गाथाएं

पर्वों से जुड़ी शास्त्रोक्त लोक गाथाएं  

व्यूस : 5138 | दिसम्बर 2013
भारत में पर्वों की बरसात है। हर महीने किसी न किसी प्रांत में कोई न कोई पर्व होता रहता है। परंतु कुछ पर्व ऐसे होते हैं जो संपूर्ण भारत में भिन्न-भिन्न नामों से बड़े उत्साह के साथ मनाये जाते हैं। जैसे होली, दशहरा, दुर्गा पूजा, गणेश चतुर्थी, दीपावली , मकर संक्रांति, सूर्य षष्ठी आदि। होली यह हर वर्ष मार्च के महीने में आती है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है। पूण्र्मा को होली का पूजन व होलिका दहन होता है तथा फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा को लोग एक दूसरे को रंग-गुलाल आदि लगाते हैं। इस तिथि को भद्रा के मुख को त्यागकर निशा मुख में होली का पूजन शुभ होता है। होली के समय किसानों की फसल भी कट कर आ जाती है और किसान एक बड़ा अलावा जलाकर अपनी सुख-समृद्धि के लिये अग्नि देव को अपनी फसल का पहला हिस्सा अर्पित करते हैं। इसके विषय में अनेक गाथाएं है। सर्वाधिक प्रसिद्ध हिरण्यकशिपु की बहन होलिका का प्रह्लाद को मारने के लिये उसे गोद में लेकर आग में बैठना है। परंतु प्रह्लाद बच गये और होलिका का दहन हो गया। दूसरी कथा भगवान कृष्ण द्वारा पूतना का वध है। तीसरी कथा के अनुसार भगवान शिव ने कामदेव को इसी दिन श्राप देकर भस्म कर दिया था। दशहरा यह पर्व वर्षा ऋतु की समाप्ति तथा शरद ऋतु के आरंभ का संकेत है। श्रवण नक्षत्र तथा दशमी का आरंभ शुभ मुहूर्त माना जाता है। इस दिन शमी पूजन तथा नीलकंठ दर्शन शुभकारी माना गया है। इस दिन ब्राह्मण लोग सरस्वती पूजन और क्षत्रिय शास्त्र का पूजन करते हैं। इस दिन भगवान रामचंद्र जी ने रावण का वध किया था। इसलिये इसे विजय दशमी भी कहा जाता है। दशहरा की कथा एक बार पार्वती जी ने दशहरे के पर्व के फल के बारे में शिव जी से प्रश्न किया। तब शिव जी ने बताया कि शत्रु पर विजय पाने के लिये राजा को श्रवण नक्षत्र में प्रस्थान करना चाहिये। भगवान राम ने इसी विजय काल में लंका पर चढ़ाई की। इसी काल में शमी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष धारण किया था। इस पर पार्वती जी के यह पूछने पर कि शमी वृक्ष ने अर्जुन का धनुष कब धारण किया था? शिवजी ने उत्तर दिया जब दुर्योधन के पांड़वों को जुए में पराजित करके 12 वर्ष के साथ 13वें वर्ष में अज्ञातवास की शत्र्त रखी थी। यदि तेरहवें वर्ष में उनका पता लग जाये तो उन्हें फिर 12 वर्ष का बनवास भोगना पड़ेगा। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं बृहन्नला वेश में राजा विराट के पास नौकरी कर ली थी। जब गौ रक्षा के लिये विराट के पुत्र कुमार ने अपने साथ लिया तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने धनुषबाण उठाकर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। इसके अतिरिक्त एक कथा और भी है। एक बार श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि विजय दशमी वाले दिन राजा को शत्रु की मूर्ति बनाकर उसकी छाती में बाण मारना चाहिये फिर ब्राह्मणों से आशीर्वाद लेकर अपने महल में आना चाहिये। गणेश चतुर्थी भगवान शंकर ने गणपति जी को वरदान दिया था कि भाद्रपद शुक्ल चैथ में दिन के अनंत चतुर्दशी तक दस दिन का गणेश उत्सव जो मनायेगा व चतुर्थी को जो व्रत रखेगा उसके सभी मनोरथ पूरे होंगे और उसके घर सुख समृद्धि होगी। ऋद्धि सिद्धि भंडार भरपूर होंगे। उसके सब कार्य मंगलमय होगें। इसदिन गजानन की उत्पत्ति से पार्वती जी और शिवजी दोनांे प्रसन्न हो गये थे। देवताओं के संकट हट गये थे। जो भी यह पर्व मनायेगा घर में इसकी स्थापना करेगा उसके संकट, विघ्न दूर होंगे। दीपावली का पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस दिन सूर्य तुला राशि में प्रवेश करता है। इसका स्वामी शुक्र सभी मनोकामनायें पूरी करने वाला ग्रह है। यह काल पुरूष की कुंडली में धन व सप्तम भाव का स्वामी भी है। अतः जब तुला राशि में सूर्य और चंद्रमा का मिलन होता है तब चतुर्थेश (चंद्रमा) व पंचमेश सूर्य का मिलन होने से लक्ष्मी योग का उदय होता है। यह योग कार्तिक अमावस्या में पड़ता है। धन वैभव की पूर्ति हेतु दीपावली का पर्व सर्वाधिक उपयुक्त अवसर होता है। इस दिन जब सिंह का आरंभ होता है। तब तृतीय स्थान में सूर्य और चंद्रमा की युति होती है। इस युति के समय उपासना करने से साधक के पराक्रम में वृद्धि होती है। आधी रात में पड़ने के कारण इसकी विशेषता और बढ़ जाती है क्योंकि अर्धरात्रि में ही लक्ष्मी का आगमन होता है। मकर संक्रांति सूर्यदेव प्रत्येक माह में एक राशि पर भ्रमण करते हं। 12 माह में सभी राशियों में भ्रमण कर लेते हैं। प्रत्येक माह की एक संक्रांति होती है। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तो इसे मकर संक्रांति कहते हैं। इसका महत्व इसलिये अधिक है। इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। मकर संक्रांति सूर्यदेव की अगुआनी का पर्व है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य का रथ उत्तर की ओर मुड़ जाता है अर्थात सूर्य का मुख हमारी ओर (पृथ्वी की तरफ) हो जाता है। अतः सूर्य देव हमारे अति निकट आने लगते हैं। मकर संक्रांति सूर्य उपासना का महत्वपूर्ण महापर्व है। मकर से मिथुन तक 6 राशियों में सूर्य उत्तरायण रहते हैं। कर्क से धनु तक की 6 राशियां 6 महीने तक सूर्य दक्षिणायन रहते हैं। उत्तरायण के 6 महीने को देवताओं का एक दिन और दक्षिणायन के 6 महीने को देवताओं की एक रात्रि मानी जाती है। महाभारत एवं भागवत पुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण आने पर ही भीष्म पितामह ने देह त्याग किया था। भगवान कृष्ण ने भी गीता में कहा है कि जो प्राणी सूर्य के उत्तरायण में देह त्याग करता है वह जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। गाथा राजा सागर के साठ हजार पुत्रों को कपिल मुनि ने किसी बात पर क्रोधित होकर भस्म कर दिया था। इन्हें मुक्ति दिलाने के लिये राजा भागीरथ ने अपनी तपस्या से गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया। स्वर्ग से उतरने में गंगा के तीव्र वेग को शिवजी ने अपनी जटाओं में धारण कर लिये फिर उन्होंने अपनी जटा से एक धारा को मुक्त किया। अब भागीरथ आगे-आगे और गंगा की एक धारा पीछे-पीछे चलने लगी। इस प्रकार गंगा गंगोत्री से शुरू होकर हरिद्वार, प्रयाग होते हुये कपिल मुनि के आश्रम में पहुंची। यहां आकर सागर पुत्रों का उद्धार किया। यही आश्रम अब गंगा सागर तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है। मकर संक्रांति के दिन ही राजा भागीरथ ने अपने पुरखों का तर्पण कर तीर्थ स्नान किया था। इस लिये मकर संक्रांति मोक्षदायक माना गया है। भारत के विभिन्न स्थानों में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। असम में बिहु या भोगली बिहु तमिलनाडु में पोंगल पंजाब में लोहड़ी। केरल में अयप्पा भगवान की पूजा की जाती है। उत्तर प्रदेश में इस पर्व को खिचड़ी कहते हैं। सूर्य षष्ठी यह पर्व विशेष रूप से बिहार प्रांत में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। यह कार्तिक मास के षष्ठी शुक्ल पक्ष में होता है। प्रातः काल में नदी, तालाब आदि जलाशयों के तट पर भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत, पूजन, दान आदि करने से सुख, आरोग्य धन आदि की प्राप्ति होती है। इसे डाला छठ भी कहते हैं।



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