विराट संस्कृति के परिचायक हैं भारतीय पर्व

विराट संस्कृति के परिचायक हैं भारतीय पर्व  

व्यूस : 12304 | दिसम्बर 2013
हम भारतीय, विश्व की प्राचीनतम संस्कृति के संवाहक हैं जो आदि से है और अंत तक रहेगी। सनातन संस्कृति में जहां धर्म और अध्यात्म बृहद रूप में विद्यमान है वहीं बिना पर्वों के हमारी संस्कृति पूर्ण नहीं होती है। भारतीय संस्कृति को विराट एवं विशेष रूप देने में और इसे जीवंत रखने में पर्वों की बहुत बड़ी भूमिका है। भारत के पर्व न केवल धर्म बल्कि हमारे सामाजिक जीवन का भी विशिष्ट अंग हैं। वर्ष भर में शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब यहां पर्व न हो। यहां तो प्रतिदिन पर्व हैं। ये पर्व हमारे आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा आदि को तो दिखाते ही हैं साथ ही इतने विशाल राष्ट्र में एक मत से मिलजुल कर पर्वों को मनाना भारत की एकता और अखंडता को भी दर्शाता है। हमारे पर्वों के उद्भव या विकास को यदि देखें तो प्रत्येक पर्व के पीछे एक पौराणिक आख्यान अवश्य होता है अर्थात यहां कोई भी पर्व मनगढं़त या किसी के मन की उत्पत्ति नहीं है। सतयुग से लेकर वर्तमान तक जो भी दैविक, धार्मिक या आध्यात्मिक घटनायें प्रत्यक्ष हुईं उन्हीं से हमारे पर्वों का जन्म हुआ है जिससे प्रत्येक पर्व में एक विशिष्टता छिपी होती है जैसे दीपावली के पीछे लक्ष्मी माता का प्राकट्य और श्रीराम का वनवास उपरांत लौटना, होली के पीछे हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का दहन, प्रह्लाद की जय, बसंत पंचमी को मां सरस्वती का प्राकट्य और दशहरा को विषय पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस प्रकार कुछ पर्व तो सर्वदेशिक हैं जो पूरे राष्ट्र में एक साथ मनाये जाते हैं और कुछ प्रादेशिक हैं जैसे लोहड़ी पंजाब में अधिक प्रचलित है पोंगल दक्षिण भारत में धूम-धाम से मनाया जाता है। वास्तव में भारत के पर्वों की सूची इतनी विराट है कि उनका एक साथ वर्णन नहीं किया जा सकता। अतः जो पर्व विशेष रूप से मनाये जाते हैं उन्हीं का वर्णन एवं महत्व यहां प्रस्तुत है। नव-सम्वत्सर यह दिवस भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व रखता है। वर्तमान में भले ही पाश्चात्य सभ्यता के कारण हम इस पर्व को भूल गये हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नव-संवत का आरंभ होता है और यही भारत का वास्तविक नया वर्ष होता है। इसके अलावा इस दिन का धार्मिक महत्व भी कम नहीं है क्योंकि इसी दिन ब्रह्माजी ने संपूर्ण सृष्टि की रचना की और भगवान का प्रथम अवतार मत्स्य अवतार भी इसी दिन हुआ था और इसी दिन से वासंतिक नवरात्र का आरंभ भी इसके महत्व को कई गुणा बढ़ा देता है। नवरात्र नवरात्र वर्ष भर में दो बार होते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक जिन्हें वासंतिक नवरात्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक जिन्हें शारदीय नवरात्र कहते हैं। नवरात्र हमारे लिये शक्ति पूजन, शक्ति संवर्धन एवं शक्ति संचय के दिन हैं। संपूर्ण ब्राह्मांड के संचालन के पीछे आदि शक्ति का ही वास्तविक स्वरूप है, यह नवरात्र हमें बताते हैं। रामनवमी सच्चिदानंद भगवान ने अपने सत स्वरूप में स्वयं को जिस दिन प्रकट किया वही दिन राम नवमी है। लाखों वर्ष पूर्व इसी दिन भगवान राम ने भारत भू पर अवतरित होकर अपनी आदर्श लीलाओं के द्वारा संसार के समक्ष सच्ची मानवता के आदर्शों को प्रस्तुत किया अतः इस पर्व का धार्मिक महत्व तो बड़ा है ही इसके अतिरिक्त भगवान राम के आदर्शों का स्मरण करते हुए नयी पीढ़ी तक पहुंचाने का भी यह विशेष पर्व है। रक्षा बंधन भारतीय पर्वों में रक्षाबंधन एक महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक पर्व माना जाता है परंतु इसका इतिहास कोई सौ, दो सौ या हजार वर्ष का नहीं है बल्कि लाखों करोड़ांे वर्ष पूर्व का है और वर्तमान में कम ही लोग इसकी प्राकट्य कथा से परिचित हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देव और दानवों का युद्ध हुआ जिसमें देव हारने लगे और देवराज इंद्र के प्राण संकट में आ गये तब कोई मार्ग न मिलने पर उनकी पत्नी महारानी शची ने वैदिक मंत्रों से अभिमंत्रित एक रक्षा सूत्र इंद्र की कलाई पर बांध दिया और इसी रक्षा सूत्र के बल पर इंद्र ने दानवों को परास्त किया। कालांतर में इस प्रथा का रूप बदलते हुए भाई और बहनों के पवित्र प्रेम का प्रतीक बन गया। वास्तव में मंत्रों से युक्त रक्षासूत्र व्यक्ति को पूर्ण आत्मविश्वास से भर देता है और वह भी अपने कर्तव्य के लिये सदैव तत्पर हो जाता है। जन्माष्टमी भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र अर्धरात्रि के समय परमात्मा ने अपने आनंद स्वरूप को भारत भूमि पर प्रकट किया। भारत के सभी प्रांतों में जिस श्रद्धा और उत्साह से लोग श्रीकृष्ण का जयंती उत्सव मनाते हैं वह सचमुच दर्शनीय है। भगवान श्रीकृष्ण ने संपूर्ण जीवन धर्म और सत्य की रक्षा की। दुष्टों का नाश किया और इस मानव-जीवन को चरम विकास व पूर्णता देने के लिये दो अमूल्य रत्न दिये गऊ और गीता। अतः यह विराट पर्व श्री कृष्ण के प्रेम और आनंद स्वरूप के साथ उनके आदर्शों को भी सदैव संचालित रखता है। होली भारत में होली का पर्व बहुत प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण है फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा व चैत्र कृष्ण प्रतिपदा का यह दो दिवसीय पर्व भले ही हंसी-खेल या विभिन्न रंगों का प्रतीक हो परंतु वास्तव में इसका महत्व कहीं अधिक है। इसके पौराणिक आख्यान होलिका और प्रह्लाद की कथा से सभी परिचित हैं। अतः यह अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक तो है ही साथ ही सामाजिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। वर्ष भर के मन मुटाव को भूलकर सभी मन की कालिखांे पर रंग-बिरंगे रंगों की बौछार कर देते हैं और समाज में बंधुत्व की वृद्धि होती है। साथ ही वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह ऋतु परिवर्तन का समय है। अतः अनेक स्थानों पर होलिका के दहन से आस-पास के जीवाणु-कीटाणु नष्ट होते हैं। दीपावली दीपावली भारत का सबसे प्रमुख एवं विराट स्वरूप वाला पर्व है। कार्तिक अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व वैसे तो पंच पर्व है। धनतेरस, छोटी दीपावली, गोवर्धन व भैयादूज परंतु विशेषतः बड़ी दीपावली ही प्रमुख है। मां लक्ष्मी के प्राकट्य से इस दिन को महत्व मिला है। साथ ही भगवान राम के अयोध्या आगमन का दिवस भी है। यह पर्व विशेषतः आध्यात्मिक जागृति का है। यह सिद्ध रात्रि है। दीपों को प्रज्ज्वलित करना भी एक नयी ऊर्जा, आशा व शांति प्रदायक है। दीपावली का स्वरूप भारत के पर्वों में सबसे विराट है। साथ ही आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह विशेष है क्योंकि विभिन्न साज-सज्जा और पटाखों, मिठाइयों में सभी व्यक्ति धन को संचालित करते हैं जिससे राष्ट्र में आर्थिक समृद्धि बढ़ती है। अतः भारत में पर्वों और उनके गूढ़ रहस्यों में अनमोल रत्न और ज्ञान का भंडार है। साथ ही ये पर्व हमारी धार्मिक और आध्यात्मिक चेतना को तो जागृत करते ही हैं, सामाजिक और वैज्ञानिक रूप से भी बहुत महत्व रखते हैं।



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