पर्वों का धार्मिक महत्व

पर्वों का धार्मिक महत्व  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 31057 | दिसम्बर 2013

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जो कुछ सामाजिक बंधनों और रिश्तों की सुनहरी डोर से बंधा हुआ है। कोई भी व्यक्ति अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा ग्रहण करने में, व्यवसाय, घर परिवार एवं बच्चों के पालन-पोषण इत्यादि में ही व्यतीत कर देता है। इन सबमें वह इतना व्यस्त है कि उसे अपने लिये समय ही नहीं मिलता।

इन सबसे कुछ राहत पाने तथा कुछ समय हर्षोल्लास के साथ, बिना किसी तनाव के व्यतीत करने के लिये ही मुख्यतः पर्व एवं त्योहार मनाने का प्रचलन हुआ। इसीलिये समय-समय पर वर्षारंभ से वर्षांत तक वर्षपर्यन्त कोई न कोई त्योहार मनाये जाते हैं। जनवरी-फरवरी में वसंत पंचमी, मार्च में होली, अप्रैल में नवरात्र, जुलाई अगस्त में शिव पूजन, सितंबर में ऋषि पंचमी, हरतालिका तीज, अक्तूबर में शारदीय नवरात्र, करवाचैथ, दशहरा, नवंबर में दीपावली तथा दिसंबर में बड़ा दिन तथा नववर्ष भी आधुनिक समय में एक पर्व के रूप में ही मनाया जाने लगा है।

Book Shani Shanti Puja for Diwali

पर्वों को मनाने के कई कारण हैं जिनमें से एक मुख्य कारण यह भी है कि इन विभिन्न पर्व एवं त्योहारों के माध्यम से हमारी सांस्कृतिक एवं धार्मिक परंपरा की अविरल धारा निर्बाध गति से सदैव प्रवाहित होती रहे। हिंदुओं के मुख्य पर्व- होली, दीपावली, रक्षा बंधन, दशहरा, करवा चैथ नवरात्र इत्यादि सभी किसी न किसी धार्मिक मान्यताओं से जुड़े हैं।

धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रों के नौ दिनों में देवी की विधिवत उपासना करने से साधक अष्ट सिद्धि, धन-धान्य तथा मनोवांछित फलों को अवश्य ही प्राप्त करता है। इसी प्रकार दशहरा-मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के प्रति समर्पित श्रद्धा का ही एक रूप है जिसे बुराई पर अच्छाई एवं असत्य पर सत्य का प्रतीक पर्व माना जाता है।

‘करवा चैथ’ धार्मिक मान्यता के अनुसार एक पत्नी का अपने पति के प्रति प्रेम एवं समर्पण प्रदर्शित करता है। पर्वों में महापर्व ‘‘दीपावली’’ का तो कहना ही क्या? अत्यंत प्राचीन काल से दीपावली को ‘पंचपर्व’ के रूप में मनाने की प्रथा रही है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्री राम ने नवरात्रों में देवी शक्ति स्वरूपा भगवती की अटूट आराधना की और फिर रावण से युद्ध किया जिसमें उन्हें विजय श्री की प्राप्ति हुई, और तभी से दशमी तिथि को ‘दशहरा’ के रूप में मनाया जाने लगा और फिर जब भगवान श्री राम अयोध्या वापस आये तो उनके स्वागत में अयोध्या वासियों ने दीप प्रज्ज्वलित किये, जो आज दीपावली के रूप में हम मनाते आ रहे हैं।

दीपावली के पांचांे दिनों का अपना अलग-अलग धार्मिक एवं पौराणिक महत्व है। प्रथम दिवस को ‘धन तेरस’ के नाम से जाना जाता है। कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष, त्रयोदशी तिथि को ‘धन्वन्तरि जयंती’ एवं ‘धन त्रयोदशी’ दोनों ही पर्व मनाने का विधान है। इस दिन वैद्यराज धन्वन्तरि एवं यमराज के निमित्त दीपदान करने से रोग एवं अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।

दीपावली के दूसरे दिन - (कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी) को ‘नरक चतुर्दशी अथवा रूप चतुर्दशी’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन कुबेर की पूजा करने से धन, समृद्धि एवं खुशहाली प्राप्त होती है। कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष अमावस्या को दीपावली का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस रात्रि को त्योहार निशीथ काल’ महाकालरात्रि आदि भी कहा जाता है।

इस रात गणेश लक्ष्मी का पूजन करने से धन समृद्धि की वृद्धि तो होती है साथ ही ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस अर्धरात्रि में शक्ति पूजन करने से सभी तांत्रिक सिद्धियों की प्राप्ति भी बड़ी सहजता से हो जाती है।

दीपावली का चतुर्थ दिवस: गोवर्धन पूजा भी अपना विशेष धार्मिक महत्व रखता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को अन्नकूट अथवा गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन पशुधन की पूजा करने से तथा चित्रगुप्त जी की पूजा करने से विविध धन एवं आय की प्राप्ति होती है।

दीपावली के अंतिम दिन- कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को ‘यम द्धितीया’ अथवा ‘भाई दूज’ के रूप में मनाते हैं। भाई-बहन के प्यार का प्रतीक यह पर्व अपना अलग ही धार्मिक महत्व रखता है। धार्मिक मान्यता है कि यदि इस दिन भाई बहन एक साथ यमुना नदी में स्नान पूजन करें तो भाई को दीर्घायु तथा बहन को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

Book Laxmi Puja Online

धार्मिक मान्यता के अनुसार होली पर्व का भी अपना अलग ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस पर्व को भी ईश्वर के प्रति अटूट आस्था एवं विश्वास तथा बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इसी प्रकार अन्य सभी धर्मों के विभिन्न पर्व उन विशेष धर्मों की धार्मिक मान्यताओं को ही परिलक्षित करते हैं।

इन सभी पर्वों का धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी इनकी उपयोगिता कुछ कम नहीं है। विशेष पर्व अथवा त्योहारों पर अपना साफ सुथरा एवं सुसज्जित घर देखकर हमारा तन-मन भी पुलकित हो जाता है। स्वच्छ निर्मल मन से स्वस्थ एवं सुगंधित वातावरण में की गई पूजा-उपासना भी पूर्ण सफल होती है।

ऐसे निर्मल वातावरण में जब हम ईश्वर के साथ एकाकार होने का प्रयत्न करते हैं तो हमें अनुभव होता है कि किसी सीमा तक हम ईश्वर का दर्शन भी कर पा रहे हैं क्योंकि यदि हमारा तन-मन प्रफुल्लित एवं आनंदित है तो यह भी एक प्रकार से हम पर ईश्वर का आशीर्वाद ही है।

इन्हीं पर्व एवं त्योहारों के कारण हम अपने प्रिय जनों, मित्रों एवं रिश्तेदारों से मिलकर कुछ समय के लिये सभी तनावों को भुलकर अपना सुख-दुख बांट लेते हैं तथा अपनों के प्रेम एवं स्नेह जल से अभिषिक्त होकर आनंदित एवं आींादित हो जाते हैं और एक बार पुनः नव चेतना एवं शारीरिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं जो हमें वर्षपर्यन्त प्रसन्न व स्वस्थ बनाये रखते हैं।

अतः यह सुनिश्चित है कि विविध पर्व एवं विभिन्न त्योहार हमारे जीवन में सामाजिक, धार्मिक, वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक सभी दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और हमें हमारी धार्मिक परंपरा एवं संस्कृति से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.