दीपावली का आध्यात्मिक सामाजिक एवं ज्योतिषीय महत्व

दीपावली का आध्यात्मिक सामाजिक एवं ज्योतिषीय महत्व  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 3790 | अकतूबर 2009

दीपावली का आध्यात्मिक, सामाजिक एवं ज्योतिषीय महत्व पं. महेश चन्द्र भट्ट अमावस्या के दो दिन पहले धनतेरस होती है। इसे धन्वन्तरि त्रयोदशी भी कहते हैं। धनतेरस के दिन ही, जब देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन किया था, समुद्र से हाथ में अमृत का कलश लेकर वैद्यराज धन्वन्तरि प्रकट हुए थे। इसलिए इस त्योहार का नाम धन्वन्तरि त्रयोदशी पड़ा जो आगे चलकर धनतेरस कहलाया।

इस दिन नया बर्तन खरीदने का चलन है, इसलिए लोग कुछ न कुछ अवश्य खरीदते हैं। दूसरे दिन चैदस को छोटी दीपावली होती है। इसे नरक चैदस भी कहते हैं। नरक चैदस के विषय में एक प्राचीन कथा प्रसिद्ध है। द्वापर युग में नरकासुर नामक एक अत्यंत भयानक राक्षस था। उसने देवताआंे और मनुष्यों को बहुत तंग कर रखा था। सब उससे बहुत दुखी थे।

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भगवान श्रीकृष्ण ने उस क्रूर राक्षस का इसी दिन वध किया था, इसलिए इस त्योहार का नाम नरक चैदस पड़ा। उसके मरने की खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है। इस प्रसंग में एक कथा और है। राजा बलि अत्यंत पराक्रमी और महादानी था। देवराज इंद्र उससे डरते थे। उन्हें भय था कि कहीं वह उनका राज्य न ले ले। इसीलिए उन्होंने उससे रक्षा की भगवान विष्णु से गुहार लगाई। तब भगवान विष्णु ने वामन रूप धर कर राजा बलि से तीन पग भूमि मांग ली और उसे पाताल लोक का राजा बना कर पाताल भेज दिया।

दक्षिण भारत में मान्यता है कि ओणम के दिन हर वर्ष राजा बलि आकर अपने पुराने राज्य को देखता है। इसलिए इस पर्व के अवसर पर वहां के लोग भांति-भांति के भेजन बनाकर राजा उसे अर्पित करते हैं। विष्णु भगवान की पूजा के साथ-साथ राजा बलि की पूजा भी की जाती है। इसी दिन भगवान कृष्ण ने सोलह हजार एक सौ कन्याओं को राक्षसों के चंगुल से छुड़ाया था। इसलिए भी यह त्योहार मनाया जाता है। चैदस के दिन हनुमान जी का जन्म दिवस भी है।

दीपावली की शाम (प्रदोष काल) में स्नानादि के उपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण कर धर्म स्थल पर मंत्र का जप करते हुए दीपदान करना चाहिए और पूजास्थल पर श्री गणेश सहित महालक्ष्मी, कुबेर और महाकाली का पूजन करके अल्पाहार करना चाहिए। तदुपरांत निशीथ आदि शुभ मुहूर्तों के मंत्र-जप, यंत्र-सिद्धि आदि अनुष्ठान संपादित करने चाहिए। दीपावली पूजन के पश्चात घर में दीपकों का रात्रि भर प्रज्वलित रहना सौभाग्य एवं श्रीवृद्धि का द्योतक है।

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श्री महालक्ष्मी पूजन, मंत्र-जप, पाठ, तंत्रादि साधना के लिए प्रदोष, निशीथ, महानिशा आदि का अपना अपना महत्व होता है। दीपावली के अवसर पर तांत्रिक, ओझा आदि विशेष तंत्र साधना करते हैं। दीपावली के दिन स्थापित किया हुआ पारद शिवलिंग धन-समृद्धि कारक होता है।

वैसे तो कोई भी पारद प्रतिमा तांत्रिक गुण लिए हुए होती है, लेकिन शिव के सभी तांत्रिक शक्तियों के स्वामी होने के कारण पारद शिवलिंग की अपनी विशेष महिमा है। कहा भी गया है कि जिस घर में पारद शिवलिंग स्थापित हो वहां दरिद्रता का नामो-निशान नहीं रहता।

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