दीपावली और लक्ष्मी साधना

दीपावली और लक्ष्मी साधना  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8058 | अकतूबर 2008

दीपावली और लक्ष्मी साधना गोपाल राजू दीपावली पर लक्ष्मी पूजन करके धन-समृद्धि पाने की कामना कई प्रकार से की जा सकती है। सबसे अच्छा यह है कि आप उस विधि को अपनाएं जिसे करने में आप को सुविधा हो। श्रद्धापूर्वक किसी भी विधि से पूजा करके श्रीलक्ष्मी को सहज ही प्रसन्न किया जा सकता है।

दीपावली में लक्ष्मी पूजन का महत्व तत्र शास्त्र तथा अनेक धार्मिक ग्रंथों में दीपावली पर्व पर लक्ष्मी साधना के अनेक उपाय बताए गए हैं। लक्ष्मी पूजन का इस पर्व पर विशेष महत्व है। साधक इस पर्व पर पूजादि करके लक्ष्मी जी की कृपा पाने का उपक्रम करते हैं। कार्तिक अमावस्या को भगवती महालक्ष्मी विश्व भ्रमण पर भगवान विष्णु के साथ निकलती हैं। उस दौरान वे जहां अपनी पूजा-उपासना होते देखती हैं, वहां निवास करने लगती हैं।

‘रुद्रयामल तंत्र’ में लिखा है कि जब सूर्य और चंद्र तुला राशि में गोचरवश भ्रमण करते हैं, तब लक्ष्मी साधना करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। ‘शक्ति संगम तंत्र’ के काली खंड में अनेक विशिष्ट कालों का वर्णन मिलता है, जब लक्ष्मी जी की कृपा पाने के उपाय किए जाते हैं, परंतु उनमें दीपावली की कालरात्रि को विशेष रूप से लक्ष्मी साधना के लिए प्रभावशाली बताया गया है।

श्रीविद्यार्णव तंत्र में काल रात्रि को एक महाशक्ति माना गया है। काल रात्रि मातृकाओं का भी इस ग्रंथ में उल्लेख मिलता है। कालरात्रि शक्ति को श्री विद्या का अंग कहा गया है। श्री विद्या की उपासना से सुख, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति स्वतः ही होने लगती है। मंत्र शास्त्र में इसे गणेश्वरी कहा गया है, जो ऋद्धि-सिद्धिदात्री है। ‘मंत्र महोदधि’ मंे इनका बखान इस प्रकार किया गया है, ‘उदीयमान सूर्य जैसी आभा वाली, बिखरे हुए बालों वाली, काले वस्त्रों वाली, त्रिनेत्री, चारों हाथों में दंड, लिंग, वर तथा भुवन को धारण करने वाली, आभूषणों से सुशोभित, प्रसन्न वदना, देव गणों से सेवित तथा कामवाण से विकसित शरीर वाली मायारात्रि कालरात्रि का ध्यान करता हूं।’

‘मुहूर्त चिंतामणि’ तथा अन्य ज्योतिष ग्रंथों में इस रात्रि के महत्व का वर्णन इस प्रकार है- ‘दीपावली की रात्रि को आधा महानिशा काल कहते हैं। उस काल में आराधना, साधना आदि करने से अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इस काल में सूर्य तथा चंद्र तुला राशि में होते हैं। इस राशि के स्वामी शुक्र को धन-धान्य तथा ऐश्वर्य का प्रतीक माना गया है।

कैसे करें लक्ष्मी पूजन आचमन और प्राणायाम करके दाएं हाथ में जल, कुंकुम, अक्षत तथा पुष्प लेकर इस प्रकार संकल्प करें, ‘आज परम मंगलकारी कार्तिक मास की अमावस्या को मैं (अपना नाम, उपनाम गोत्र बोलें) चिर लक्ष्मी की प्राप्ति, नीतिपूर्वक अर्थ उपार्जन, सभी कष्टों को दूर करने की अभिलाषा की पूर्ति तथा आयुष्य-आरोग्य की वृद्धि के साथ राज्य, व्यापार, उद्योग आदि में लाभ के लिए गणपति, नवग्रह, महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती का श्रद्धाभाव से पूजन करता हूं।’ इसके बाद हाथ में ली हुई सामग्री धरती पर छोड़ कर तिलक लगाएं तथा कलावा बांधें।

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अब गणपति भगवान का पूजन करें। उन्हें स्नान कराकर जनेऊ, वस्त्र, कलश, कुंकुम, केसर, अक्षत, पुष्प, गुलाल और अबीर चढ़ाकर गुड़ तथा लड्डू का नैवेद्य अर्पित करें। फिर निम्नोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए ध्यान करें- गणपतये नमः एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।। इसी प्रकार नवग्रह का ध्यान करें-

ब्रह्मामुररिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशि भूमि सुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनिराहु केतवः सर्वे ग्रहाः शान्ति करा भवन्तु।।

अब महालक्ष्मी पूजन के लिए चांदी का सिक्का थाली में रखें। आवाहन के लिए अक्षत अर्पित करें, जल से तीन बार अघ्र्य दें और स्नान कराएं। फिर दूध, दही, घी, शक्कर तथा शहद से स्नान कराकर पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं। कलावा, केसर, कुंकुम, अक्षत, पुष्प माला, गुलाल, अबीर, मेहंदी, हल्दी, कमलगट्टे तथा मिष्टान्न अर्पित करके एक सौ आठ बार एक-एक नाम बोलकर अक्षत चढ़ाएं।

अणिम्ने नमः। लघिम्ने नमः। गरिम्ने नमः। प्राकाम्ये नमः। प्राकाम्ये नमः। इशितायै नमः । वशितायै नमः । इसके बाद प्रसाद स्वरूप मिष्टान्न वितरण करके पान, सुपारी, इलायची फल चढ़ाएं और प्रार्थना करें-

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुर पूजिते।

शंख, चक्र, गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तुते।।

अपने घर, कार्यस्थल आदि में नित्य प्रयोग में आने वाले उपकरणों, बहीखाते, डायरी, कलम आदि में कलावा बांधें तथा उन्हें पुष्प, अक्षत और कुंकुम अर्पित करके ‘ महाकाल्यै नमः। मंत्रा का उच्चारण करें। फिर अंत में आरती, पुष्पांजलि अर्पित करके अपने परिजनों को प्रणाम करें, उनका आशीर्वाद लें। पूजा में प्रयुक्त चांदी के सिक्के को लाल कपड़े में लपेटकर पूजा स्थल पर रख दें।

लक्ष्मी प्राप्ति के सरलतम उपाय: महानिशा काल में अपने घर, दुकान, फैक्ट्री या उत्तर-पूरब दिशा में कोई ऐसा पवित्र स्थान चुन लें, जहां अन्य कोई सामान न रखा हो। हल्दी से वहां स्वस्तिक अथवा गणपति यंत्र बनाकर जल से भरा एक पात्र स्थापित कर दें। धरती से यह थोड़ा ऊपर रहे तो शुद्धता की दृष्टि से और भी अधिक अच्छा रहेगा।

कलश पर लाल कपड़ा लपेटकर पूजा वाला एक नारियल सीधा करके स्थापित कर दें और इसे अक्षत, रोली, चावल पुष्पादि से अलंकृत करें। निम्न मंत्र की ग्यारह माला जप करें। हर बार जप से पूर्व कलश का जल बदलकर नारियल पुनः स्थापित कर दिया करें।

नमो मणि भद्राय आयुध धराय मम लक्ष्मी वांछितं पूरय पूरय ऐं ह्रीं क्लीं ह्यौं मणि भद्राय नमः ।। 

धन तेरस को बड़हल (इस फल को खड़ल बड़ल भी कहते हैं) खरीदकर घर ले आएं। यह फल यदि उपलब्ध न हो तो केले के किसी सघन वृक्ष को चुन लें। इसी दिन शुक्र की होरा में उक्त फल अथवा केले के वृक्ष के तने में चाकू से चीरकर उसमें थोड़ी सी चांदी दबा दें। दीवाली के दिन किसी सुनार से इस चांदी का अपनी अनामिका या कनिष्ठिका की नाप का छल्ला बनवा लें। फिर इसे कच्चे दूध तथा गंगाजल से धोकर दीवाली में अपने घर में होने वाली पूजा में रख दें।

लक्ष्मी-गणेश पूजन के साथ-साथ इस छल्ले की भी यथा भाव पूजा अर्चना कर लें और उंगली में धारण कर लें। इसके बाद प्रत्येक पूर्णिमा को इसे गंगाजल तथा कच्चे दूध से पवित्र करके पुनः धारण कर लिया करें। लक्ष्मी जी की कृपा पाने का यह एक अच्छा उपक्रम सिद्ध होगा। 

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छोटे-छोटे दक्षिणावर्ती शंख सस्ते और सरलता से मिल जाते हैं। ऐसे 18 शंख दीपावली से पहले जुटा लें। फिर लक्ष्मी पूजन काल में उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं। गीता का निम्न लक्ष्मी प्रदायक मंत्र श्रद्धा से 18 बार जपें -

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।

तत्र श्रीर्विजयो भुर्तिध्र्रुवा नितिर्मतिर्मम्।।

दीपावली के बाद वाले सोमवार से प्रत्येक सोमवार को इसी प्रकार 18 बार यह मंत्र जप किया करें। प्रत्येक बार एक शंख में हवन में दी जाने वाली आहुति की तरह चावल छोड़ दें। इसी दिन चावल से भरे इस शंख को किसी कुएं, तालाब अथवा नदी में कच्चा सूत बांधकर लटका दें। ध्यान रखें शंख को जल में लटकाना है, विसर्जित नहीं करना है।

कुछ समय में सूत स्वयं गल जाएगा और शंख पानी में समा जाएगा। यह विशेष रूप से ध्यान रखना है कि दीवाली से पड़ने वाले अगले 18 सोमवार में ही यह क्रम समाप्त हो। उपाय काल में यदि बाहर जाना भी पड़े तो भी यह उपाय कर सकते हैं। यदि वैसे भी नित्य 18 बार यह मंत्र जपने का नियम बना लें तो परिणाम और भी अच्छे मिलने लगेंगे।

दीपावली के दिन एक श्रीफल अथवा एक साबुत सुपारी, 5 पीली व बड़ी कौड़ियां, हल्दी की पांच अखंडित गांठें, एक मुट्ठी नागकेसर, गेहूं, और डली वाला नमक- इन सभी चीजों को एक पीले कपड़े में बांध लें। दीवाली में सिद्ध किया हुआ अपना कोई सिक्का, विग्रह या हल्दी भी इसमें रख सकते हैं। कपड़े को अपने भवन, दुकान, फैक्ट्री अथवा कार्य स्थल के उत्तर-पूर्वी कोने में कहीं टांग सकते हैं। इसे पूरे वर्ष यूं ही रहने दें।

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