पद (आरूढ़) का विचार

पद (आरूढ़) का विचार  

व्यूस : 9004 | दिसम्बर 2013
महर्षि पाराशर जी के अनुसार:- लग्नाद्यावतिथे राशौ तिष्टेल्लग्नेश्वरः क्रमात। ततस्तवतिये राशे लग्नस्य पद मुच्यते। सर्वेषामपि भावनां ज्ञेयमेवं पदं द्विज। तनुभाव पदं तत्र वुधा मुख्यपदं बिंदुः। जन्म पत्रिका द्वारा भविष्य कथन करने में 12 भावों मं स्थित ग्रहों, लग्न राशि ग्रहों का बल मित्र/शत्रु राशि में है। स्वराशि, मूल त्रिकोण, उच्च अथवा नीच राशि है तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट है या अशुभ दशा अंतर्दशा पर विचार कर ही निर्णय लिया जाता है। यहां हम पद (आरूढ़) द्वारा जन्म कथन के संबंध में चर्चा करेंगे। सर्वप्रथम हमें समस्त 12 भावों के पद ज्ञात करने होंगे। पद ज्ञात करने की विधि महर्षि पाराशर जी के अनुसार लग्न से लग्नेश जितनी राशि आगे होगा, लग्नेश से उतनी ही राशि आगे लग्न का पद होगा। इस विधि से सब भावों के पद ज्ञात किये जा सकते हैं। पुनश्च लग्न के पद अर्थात् लग्नारूढ़ को ही मुख्य पद या पद कहते हैं। अर्थात अन्य भावों के पदों को धन पद, सहज पद, पुत्र पद आदि नामों से कहा जायेगा, लेकिन लग्न पद को केवल पद शब्द से अभिहित किया जाता है। उदाहरणार्थ:- कर्क लग्न है लग्नेश चंद्रमा द्वादश भाव में है अतः लग्न से द्वादश भाव में (एकादश भाव) में लग्न पद या मुख्य पद हुआ। धनेश सूर्य धन भाव से छठे भाव में है अतः सूर्य से षष्ठ भाव (द्वादश भाव में लग्न से) धनपद हुआ। दशमेश मंगल दशम भाव से अष्टम (08 भाव) में है अतः मंगल से अष्टम (12 भाव) में, दशम पद हुआ। इसी प्रकार सब भावों के पद ज्ञात किये जाते हैं। उक्त नियम का अपवाद स्वस्थान सप्तम नैव पदं भवितुमर्हति। तस्मिन पदत्वे सम्प्राप्ते महचंतुर्थक्रमात पदम्।। यदि किसी भाव का स्वामी उसी भाव में हो तो उक्त नियमानुसार स्व भाव अर्थात वही भाव पद होगा। लेकिन इसके स्थान पर दशम पद समझें। यदि भाव से सप्तम में हो तो भावेश से सप्तम में यह भाव ही स्वयं पद समझें। निष्कर्षतः स्वस्थान व सप्तम स्थान पद नहीं होते, इनके स्थान पर क्रमशः दशम व चतुर्थ को पद माना जाता है। यह भावारूढ़ का विचार बताया गया है। सभी पदों में लग्न पद सर्व मुख्य होता है। जिस प्रकार से राशियों के पद होते हैं उसी प्रकार ग्रहों के पद भी होते हैं। ग्रह के पद ग्रह से उसकी राशि जितनी आगे हो उससे उतना ही आगे उसका पद (आरूढ़) होता है। दो राशियों के विषय में बलवान राशि तक गणना करके पद का निर्णय करें। दो राशियों के स्वामी ग्रहों के ही पद होंगे। एक बलवान एवं एक निर्बल। बलवान से फल निर्णय होगा। बलवान राशि का निर्णय करते समय ध्यान रखें कि इस संदर्भ में ग्रह रहित राशि से ग्रहयुक्त राशि बली है। कम ग्रह वाली राशि से अधिक ग्रह वाली राशि बली है। समान ग्रह रहने पर जिसमें स्वोच्चादिगत ग्रह हो वह बली है। पद कुंडली फलादेश पदादेकादश्स्थाने ग्रहचुक्तेऽयषेक्षिते। धनवान जायते वालस्तथा सुख समन्यिताः।। शुभयोगत् सुमार्गेण धनाप्ति पापातोऽन्यया। मिश्रौर्मिश्रफलं ज्ञेयं स्वोच्चमित्रादि गेहगैः। वहुधा जायते लाभो बहुधा य सुखागम। पद अर्थात् लग्न पद से ग्यारह वं (11वें भाव) में कोई भी ग्रह हो या उसे कोई अन्य ग्रह देखे तो मनुष्य धनवान व सुखी होता है। यदि वहां शुभ ग्रह हो तो न्याय मार्ग से धनागम होता है तथा पाप ग्रह रहने से अन्याय बेईमानी से या कठोरतापूर्वक धनागम होता है। मिश्रित ग्रह रहने पर मिला-जुला फल समझना चाहिए। यदि एकादश में स्थित ग्रह शुभ हो या पाप लेकिन स्वोच्च या स्वक्षेत्र में हो तो अनेक प्रकार से अनेक तरह का धन व सुख मिलता है। पद से राज योग पदाल्लाभगृहं यस्थ पश्यन्ति सकलाग्रहाः। राजा व राज तुलयो वा स जातो नात्र संशय।। पद से एकादश स्थान को सब ग्रह देखते हांे तो मनुष्य राजा या राजा के तुल्य होता है, इसमें संशय नहीं है। अतिलाभ योग (1) पद से 11वें भाव को ग्रह देखें एवं द्वादश भाव को न देखें तो सरलता से लाभ होता है। (2) पद से एकादश में बहुत ग्रहों का योग एवं दृष्टि हो तो बहुत लाभ अर्थात अधिक ग्रहों के दृष्योग से अधिकाधिक लाभ के योग हैं। इसके अतिरिक्त यदि 11वां भाव अर्गला युक्त भी हो तो और अधिक लाभ होगा। (3) शुभ ग्रह की अर्गला से अधिक उच्च ग्रह की अर्गला से, उससे अधिक एकादशेश शुभ ग्रह हो तो तथा एकादशेश को देखे या योग करे तो अधिक लाभ होगा। (4) यदि पद से एकादश को लग्नेश व भाग्येश देखें तो और अधिक अर्थात उक्त क्रम में उत्तरोत्तर अधिक प्रबल लाभ योग होता है। अर्गला विचारणीय भाव से 2,4,5,11 भाव में ग्रह होने पर भाव, अर्गला युक्त होता है। 3, 10, 9, 12 में भी ग्रह रहने पर अर्गला बाधित हो जाती है। पद से द्वादश भाव विचार यदि पद से 12वें स्थान पर किसी भी ग्रह की दृष्टि या योग हो तो व्यय अधिक होता है। जिस प्रकार लाभ भाव (11वें) का विचार किया गया था उसी प्रकार व्यय भाव (12वें) पर शुभ ग्रहों की दृष्टि योग होने से न्यायोचित कार्यों मंे एवं अशुभ दृष्टि होने पर अन्याय कार्यों में धन व्यय होता है। मिश्रित ग्रह होने पर मिश्रित फल होता है। पद से सप्तम भाव विचार आरूढ़ात सप्तमे राहुरयवा संस्थितः शिखी। कुक्षिष्ंयथायुतो वालः शिखिना पीडितोष्थवा।। आरूढ़ात सप्तमे केतुं पापखेटचतुक्षितः साहसी खेतकेशी च वृदघलिंगी भवेन्नरः। पद लग्न से सप्तम भाव (07 भाव) या द्वितीय में राहु या केतु हो तो जातक को पेट की बीमारी होती है अथवा वह कीट संक्रमण से पीड़ित होता है। पद से 2, 7 भाव में केतु पाप ग्रह से युत या दृष्ट हो तो जातक के शरीर पर बुढ़ापे के चिह्न जल्दी-जल्दी दिखाई देते हैं। उसके बाल सफेद होते हैं तथा वह साहसी होता है। पद से 2,7 में गुरु या शुक्र या चंद्र हो तो या इनमें से 2,3 ग्रह हो तो धनी होता है। यदि 2,7 भाव में 2,7 उच्चगत कोई भी ग्रह हो तो भी मनुष्य विख्यात तथा धनी होता है। जो योग अभी पद से सप्तम स्थान के कहे हैं उनका विचार यथावत पद से द्वितीय स्थान में भी करना चाहिए। सप्तम भाव का पद यदि लग्न से केंद्र त्रिकोण में पड़े अथवा दोनों भाव या कोई एक पद बलवान ग्रह से युक्त हो तो मनुष्य प्रसिद्ध व सम्मानित होता है। यदि सप्तम भाव का पद 6.8.12 (पद से) में पड़े तो मनुष्य निर्धन होता है। यदि पद से या उससे सप्तम में या पद से केंद्र त्रिकोण में या उपचय में बलवान ग्रह हो तो स्त्री को पति का व पति को स्त्री का सुख होता है। इसी तरह से पद लग्न से जिस पुत्र, मित्र आदि के पद केंद्र या त्रिकोण में हैं, उनमें मैत्री अन्यथा शत्रुता होती है। मैत्री योग होने से उन संबंधियों से लाभ अन्यथा हानि होती है। लग्न व स्त्री पद यदि परस्पर केंद्र, त्रिकोण में हो या 3,11 में हो तो जातक राजा होता है। इसी प्रकार लग्न पद से अन्य सभी भावों के पदों का विचार करना चाहिए।



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