उदर संबंधी रोगों हेतु योगासन

उदर संबंधी रोगों हेतु योगासन  

व्यूस : 4785 | अप्रैल 2007
उदर संबंधी रोगों हेतु योगासन विनीता गोगिया जब मन, बुद्धि और चित्त की सम-वृत्ति हो जाती है, तो उसे समाधि कहते हैं। इंद्रियों की समपुष्टता को भी समत्व कहते हैं। शरीर से लेकर आत्मा तक समत्व साध् ान करना योग का अभीष्ट है। छह वर्ष की आयु से सत्तर-अस्सी वर्ष की आयु तक के व्यक्ति योगाभ्यास कर सकते हैं। समता प्राप्त करना ही योग का उद्देश्य है। जिन लोगों ने योगाभ्यास को जीवन में नियमित रूप से सम्मिलित किया है, वे इसके लाभ भली-भांति जानते हैं। अर्थात बालक, तरुण, वृद्ध, व्याधिग्रस्त अथवा दुर्बल स्त्री-पुरुष सभी योगासनों द्वारा स्वास्थ्य लाभ अर्जित कर सकते हैं। पेट से संबंधित रोगों के कारण जिनको बड़ी कमजोरी हो गई हो, वे यदि धीरे-धीरे आसनों का अभ्यास करें तो उनका पेट, यकृत, प्लीहा तथा आंतें अच्छी प्रकार अपना कार्य करने लगती हैं, जिससे रोगी शीघ्र ही स्वस्थ हो जाते हैं। उदर संबंधी रोगों से निजात दिलाने में सहायक योगासनों में से मुख्य आसन हंै-हलासन एवं कर्णपीड़ासन। हलासन करने की विधि सबसे पहले भूमि पर सीधे लेट जाएं। इसके पश्चात पांवों को उठाते हुए अपने सिर के पीछे वाले भाग को जमीन पर लगायें। ध्यान रहे, केवल पांव के अंगूठे और उंगलियां ही भूमि को स्पर्श करें और घुटने समेत पांव सीधे सरल सम सूत्र में रहें। हाथ भूमि पर रखे रहें। प्रारंभ में पांवों को पीछे तक ले जाने के लिए हाथों से कमर को सहारा दे सकते हैं। अभ्यास होने पर हाथों को जमीन पर ही रखें, अधिक लाभ मिलेगा। इस आसन को जितनी देर तक आप सुगमतापूर्वक कर सकते हैं, करें।



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