हस्त रेखाएं व बोलने की कला

हस्त रेखाएं व बोलने की कला  

व्यूस : 5779 | जून 2008
हस्त रेखाएं व बोलने की कला भारती आनंद व्यक्ति के चलने फिरने, उठने बैठने, हंसने बोलने के ढंग से उसके व्यक्तित्व का पता चलता है। जिस प्रकार उठने बैठने, चलने फिरने में या किसी अन्य कार्य में शिष्टाचार आवश्यक है उसी प्रकार हंसने बोलने में मृदुलता जरूरी है। इससे व्यक्तित्व आकर्षक होता है, उसमें निखार आता है। बोलना वस्तुतः एक कला है और इस कला में निपुण व्यक्ति सुनने वाले को एक तरह से सम्मोहित कर लेता है। किंतु यह कला हर किसी में नहीं होती। बहुत से लोगों में आत्मविश्वास की कमी होती है और वे स्वयं को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्ति नहीं कर पाते, और आत्मविश्वास में यह कमी हस्त रेखाओं में व्याप्त दोष के फलस्वरूप हो सकती है। रेखाओं, चिह्नों उंगलियों आदि की किन स्थितियों में बोलने की कला में कमी आती है इसका संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है। मस्तिष्क रेखा दोषपूर्ण हो, उसमें जंजीरनुमा रेखा बनती हो, जीवन रेखा चाहे ठीक हो और बुध ग्रह उन्न्ात न हो तो व्यक्ति के व्यक्तित्व में आत्मविश्वास की कमी होती है और वह धारा प्रवाह नहीं बोल पाता। दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा को राहु रेखाएं काटती हों, भाग्य रेखा जीवन रेखा के पास हो, सूर्य की उंगली तिरछी हो और सूर्य पर कट फट हो तो व्यक्ति बोलने की कला में निपुण नहीं होता। हृदय व मस्तिष्क रेखा, दोषपूर्ण हों, हाथ में धब्बे हों, उंगलियां टेढ़ी हों, तो व्यक्ति भाषण देने या अपनी बात दूसरों के सामने सही ढंग से रखने में असमर्थ होते हैं। अंगूठा कम खुलता हो, मस्तिष्क व जीवन रेखाओं का जोड़ लंबा हो, हाथ सख्त और पतला हो, सभी ग्रह दबे हों, तो व्यक्ति की बोलने की कला से कोई भी प्रभावित नहीं होता। मस्तिष्क रेखा द्विभाजित न हो, गुरु की उंगली छोटी, सूर्य की टेढ़ी हो, हृदय रेखा में दोष हो और मस्तिष्क रेखा को बारीक रेखाएं काटती हों तो व्यक्ति बोलने की कला से वंचित रहता है। हृदय रेखा से मोटी शाखाएं नीचे की तरफ, मस्तिष्क रेखा को काटें, जीवन रेखा में दोष हो, चंद्र रेखा में द्वीप हो तो व्यक्ति किसी को भी अपनी वाकशैली से प्रभावित नहीं कर पाता है। जीवन व मस्तिष्क रेखाओं का जोड़ लंबा हो, सूर्य व बुध क्षेत्र कट फट हो और सूर्य की उंगली हथेली की तरफ हो और व्यक्ति के ग्रह सूर्य, बुध और शनि भी उŸाम न हांे तो उसकी बोली में कोई आकर्षण नहीं होता है। भाग्य रेखा में दोष हो, भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुके, मस्तिष्क रेखा में कोई शाखा न हो और उसमें दोष हो, हाथ का रंग काला हो और उसमें मोटी रेखाओं का जाल हो तो व्यक्ति दूसरों से तो प्रभावित हो जाता है पर खुद प्रभावित नहीं कर पाता। अंगूठा छोटा और मोटा हो और उंगलियां भी मोटी हांे तो व्यक्ति में बोलने की कला का अभाव होता है। सूर्य ग्रह दबा हो, शनि व बुध की स्थिति भी ठीक न हो तो व्यक्ति में आत्मविश्वास में कमी होती है और वह मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है। फलतः दूसरों के समक्ष अपने विचार प्रभावशाली ढंग से नहीं रख पाता। वाकपटु लोगों के हाथों के कुछ लक्षण सूर्य, बुध व शनि ग्रह उŸाम हों, सूर्य रेखा मस्तिष्क रेखा को चीरकर जाए, उंगलियां पतली व सीधी हों, मस्तिष्क रेखा द्विभाजित हो, भाग्य रेखा सीधे शनि क्षेत्र पर जाती हो, मस्तिष्क व जीवन रेखाओं में कोई बड़ा दोष न हो तो व्यक्ति की वाणी सम्मोहन का कार्य करती हैं और वह लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है। मस्तिष्क रेखा दोहरी हो, अंगूठा लंबा व पीछे की तरफ हो, उंगलियां पतली व छोटी हों, गुरु ग्रह व उसकी उंगली सूर्य की उंगली से लंबी हो, जीवन रेखा साफ हो तो व्यक्ति की भाषा पर पकड़ होती है और वह भाषण देने में माहिर होता है। हृदय और मस्तिष्क रेखाओं में कोई दोष न हो, बुध की उंगली थोड़ी टेढ़ी हो, सूर्य रेखा दोहरी या साफ सुथरी हो, मस्तिष्क रेखा मंगल तक जाती हो, जीवन रेखा में कोई जोड़ न हो, सूर्य व बुध ग्रह उन्न्ात हों तो ऐसे लोगों में बोलने की कला होती है। शनि और सूर्य की उंगलियों का आधार बराबर हो, जीवन रेखा के साथ मंगल रेखा हो, हाथ का रंग साफ हो, हाथ भारी हो, उंगलियां पतली हों, गुरु, सूर्य व बुध ग्रह ठीक हों, ऐसे लोग अपनी वाक्पटुता से सभी को प्रभावित करते हैं किंतु उनकी शैली घुमावदार होती है। अगंूठा लंबा हो, गुरु की उंगली सूर्य की उंगली से लंबी हो, हृदय रेखा साफ सुथरी हो, मस्तिष्क रेखा शुरू व अंत में द्विभाजित हो, चंद्र उठा हो, अन्य ग्रह भी ठीक हों, हाथ भारी हो तो ऐसे लोगों की वाणी सम्मोहन का कार्य करती है। इनके अतिरिक्त कई और लक्षण ऐसे हैं जो हमारी बोलने की कला को प्रभावित करते हैं। कुछ दोषों का निवारण करके हम बोलने की थोड़ी बहुत कमी को सफलता पूर्वक दूर कर सकते हैं।



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