अब, मंगल की धरती पर

अब, मंगल की धरती पर  

व्यूस : 12324 | अकतूबर 2012
अब, मंगल की धरती पर कल्पना तिवारी शास्त्रों में कहा गया है कि सौर मंडल में स्थित सभी ग्रह सजीव हैं तथा पृथ्वी पर होने वाली घटनाओं एवं यहां स्थित मानव जीवन को प्रभावित करते हैं। सौर मंडल में स्थित विभिन्न ग्रहों में से मंगल ही वह पहला ग्रह है जहां पर वैज्ञानिकों ने खोज आरंभ की है तथा इस खोज से धीरे-धीरे यह पता चल रहा है कि मंगल ग्रह पर जीवन हो सकता है क्योंकि वहां पर जल होने के संकेत मिले हैं। शास्त्रों में मंगल को भूमि पुत्र कहा जाता है। पृथ्वी ग्रह की प्रमुख विशेषता यहां पर स्थित विभिन्न जीवन रूप हैं। प्रकृति के जिन पांच तत्वों के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है उन सभी तत्वों का भूमि पुत्र मंगल पर मिलना अधिक आश्चर्यजनक नहीं है। 6 अगस्त की शाम को अंतर्राष्ट्रीय मानक समय 5.31 बजे जो कि रेडियो सिगनल का मंगल ग्रह से पृथ्वी तक पहुंचने का वन वे लाईट समय है, नासा द्वारा भेजा गया रोवर नामक यान मंगल ग्रह पर सफलता से उतर गया। यह यान पृथ्वी से मंगल ग्रह के बीच की लगभग 3500 लाख किमी की दूरी 8 माह में पूरी करके मंगल ग्रह पर पहुंचा। यह मंगल ग्रह की सतह पर नासा द्वारा भेजा गया सातवां यान है। यह यान 26 नवंबर 2011 को अमेरिका के फ्लोरिडा शहर में स्थित केप केनेवरल एयर फोर्स स्टेशन के अंतरिक्ष प्रेक्षण विमान 41 से प्रक्षेपित किया गया था। यह यान लगभग 2.6 बिलियन डालर की लागत से बनकर तैयार हुआ है जो कि मंगल ग्रह पर 687 सौर-दिवस यानी लगभग 2 वर्ष तक कार्यरत रहेगा। नासा ने इस यान को क्यूरियोसिटी नाम दिया है। नासा द्वारा मंगल की सतह पर क्यूरियोसिटी यान को भेजे जाने वाले संपूर्ण मिशन को मार्स साइन्स लेब (एम एस एल) का नाम दिया गया है। इस यान की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हंै: इस यान का वजन लगभग 900 किलोग्राम है तथा इसका प्रमुख उ्देश्य मंगल की सतह पर जीवन के लिए आवश्यक तत्वों की खोज करना है। इससे पहले नासा ने ‘स्पिरिट’ एवं ‘अपारचुनिटी’ नामक दो यान मंगल ग्रह की सतह पर स्थापित किये थे जिनमें से ‘अपारचुनिटी’ अभी तक कार्यरत है। क्यूरियोसिटी यान इन दोनों यानों से दोगुना लंबा एवं पांच गुना भारी है तथा लगभग दस गुना अधिक वैज्ञानिक उपकरणों से युक्त हैं। यह एक छोटी कार के आकार का है जिसके छ पहिये हैं। इस यान में दस वैज्ञानिक उपकरण हैं जिनका वजन लगभग 75 किलो है जबकि पहले के यानों में केवल 5 वैज्ञानिक उपकरण थे जिनका वजन केवल पांच किलो था। वर्तमान यान में दो कंप्यूटर हैं। एक समय में एक ही कंप्यूटर कार्यरत रहेगा जबकि दूसरा कंप्यूटर अतिरिक्त कंप्यूटर के रूप में उपलब्ध रहेगा। इसमें अत्याधुनिक रेडियेशन डिटेक्टर भी लगाया गया है जो कि मंगल ग्रह पर विभिन्न विकिरणों जैसे कि सरफेस रेडियेशन, कास्मिक रेडियेशन, सोलर प्रोटोन इवेन्ट तथा सेकेन्डरी न्यूट्रान का पता लगाएगा। यह डिटेक्टर यान के अंदर तथा यान के बाहर पड़ने वाले इन रेडियेशनों के प्रभावों का भी विस्तृत अध्ययन करेगा। इससे प्राप्त होने वाली जानकारी भविष्य में मानव को मंगल ग्रह पर भेजने के निर्णय में बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। क्यूरियोसिटी में 17 कैमरे हैं तथा यह यान मौसम परिवर्तन के अध्ययन के अत्याधुनिक उपकरणों से युक्त है। इस यान में एक छोटी रासायनिक प्रयोगशाला भी है जिसका उद्देश्य मंगल ग्रह पर स्थित चट्टानों एवं मिट्टी के सैंपल लेकर उनका परीक्षण करना है। इस यान में एक लेजर गन भी है जो कि 23 फीट की दूरी से किसी भी चट्टान में लेजर किरणों की सहायता से स्पार्क या चिंगारी उत्पन्न कर सकती है। इस चिंगारी की ‘स्पैक्ट्रम इमेज’ जांचने के लिये इसमें एक विशिष्ट टेलिस्कोप भी है जिसकी सहायता से मंगल ग्रह पर स्थित चट्टानों की रासायनिक संरचना की जांच में महत्वपूर्ण सहयोग मिलेगा। इसमें एक रोबोटिक आर्म भी है जो कि चट्टान में ड्रिल या छेद कर सकता है तथा वहां से सैंपल ले सकता है। इसमें एक मैगनिफाईंग इमेजर भी है जो कि एक बाल से भी सूक्ष्म वस्तु का विश्लेषण कर सकता है। इसी ’मैगनिफाईंग इमेजर’ की सहायता से चट्टानों से लिए गये सैंपलों का सूक्ष्म विश्लेषण किया जाएगा। यान का परीक्षण क्षेत्र: यह नासा द्वारा मंगल ग्रह पर अब तक भेजे गए यानों में से सर्वाधिक वजन वाला यान है तथा सबसे अधिक लागत से बना है। यह यान मंगल ग्रह की भूमध्य रेखा के पास इससे लगभग 4.6 दक्षिण अक्षांश की दूरी पर उतारा गया है। इस स्थान पर एक गड्ढा है जिसे नासा ने ‘गेल क्रेटर का नाम दिया है। ‘क्यूरियोसिटी’ इसी ‘गेल क्रेटर’ में स्थित एक टीले के पास उतारा गया है। ‘यह टीला लगभग 18,000 फीट ऊंचा है तथा ‘क्यूरियोसिटी’ के उतरने के स्थान से लगभग 7.5 मील की दूरी पर है। इस टीले को नासा ने ‘बेस माउन्ट शार्प’ का नाम दिया है। इस रोवर यान के परीक्षण का प्रमुख केंद्र यही ‘माउन्ट शार्प है। नासा के वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्रेटर में कभी पानी रहा होगा तथा इस क्रेटर की दीवारों के पानी के कारण पिघलने से ही इस क्रेटर के मध्य में धीरे-धीरे एक टीले का निर्माण हो गया है। अतः इस टीले की विभिन्न सतहों का अध्ययन करके मंगल ग्रह के इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है। इस यान के मुख्य उद्देश्य मंगल ग्रह की सतह पर ‘मिनरोलोजिकल कम्पोजिशन’ एवं ‘जियोलोजिकल मैटिरियल’ का अध्ययन करना। जीवन के आवश्यक तत्वों का मंगल ग्रह पर पता लगाना। मंगल ग्रह पर स्थित चट्टानों के निर्माण एवं पुनः निर्माण की प्रक्रिया का अध्ययन करना। मंगल ग्रह के वर्तमान वातावरण एवं भूतकाल में इसमें हुए परिवर्तनों का अध्ययन करना। मंगल ग्रह पर होने वाले ‘सरफेस रेडियेशन’, कास्मिक रेडियेशन, सोलर प्रोटोन इवेन्ट एवं ‘सैकेन्डरी न्यूट्रान’ का पता लगाना। यान के अंदर एवं बाहर इन विकिरणों से होने वाले प्रभावों का अध्ययन करना जिसके आधार पर मंगल ग्रह पर मानव को भेजने का निर्णय लिया जायेगा। सेवन मिनिट्स टैरर: इस यान ने मंगल ग्रह के वातावरण में प्रवेश करने के पश्चात मंगल ग्रह की सतह पर उतरने में लगभग 7 मिनट का समय लगाया था। इस यान का मंगल ग्रह के वातावरण में प्रवेश, वहां से मंगल ग्रह की सतह की ओर नीचे जाना तथा मंगल ग्रह की सतह पर उतरना भी अत्यधिक रोमांचक था। नासा के वैज्ञानिकों ने इस पूरी प्रक्रिया को ‘सेवन मिनिट्स टैरर’ का नाम दिया था। मार्स साइन्स लैब के पृथ्वी से मंगल तक की यात्रा के 3 प्रमुख आयाम हैं। 1. क्रूस स्टेज: जिसमें एम एस एल की पृथ्वी से मंगल ग्रह तक की अंतरिक्ष यात्रा को नियंत्रित किया गया। इस दौरान इस यान में स्थित क्यूरियोसिटी रोवर की सुरक्षा के लिए इस यान में स्थित थर्मोस्टेट सिस्टम के माध्यम से ‘हीटींग एवं कूलिंग’ सिस्टम को आवश्यकता के अनुसार चलाया एवं बंद किया गया। इस यान की अंतरिक्ष में चलने की दिशा इसमे लगे हुए स्टार स्कैनर सिस्टम’’ के माध्यम से नियंत्रित की गई। इस ‘स्टार स्कैनर सिस्टम के माध्यम से इस यान ने अंतरिक्ष में स्थित विभिन्न तारों की स्थिति के आधार पर अंतरिक्ष में अपना रास्ता बनाते हुए पृथ्वी से मंगल ग्रह के बीच की दूरी तय की। मंगल ग्रह के वातावरण के पास पहुंचने के पश्चात इस क्रूस स्टेजयान ने इसके अंदरस्थित ‘एरोशैल’ को जिसमें रोवर, क्यूरियोसिटी बंद था, एक केबल कटर के माध्यम से अलग कर दिया। 2. इस एयरोशैल ने जैसे ही मंगल ग्रह के वातावरण में प्रवेश किया इसकी गति 13,500 किमी प्रति घंटा हो गई जो कि ध्वनि की गति से भी 17 गुना अधिक है। ऐसा मंगल ग्रह के गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से हुआ था। तथा इसे मंगल ग्रह के वातावरण में प्रविष्ट होने के पश्चात अत्यधिक गर्मी का भी सामना करना पड़ा। इसकी गति को एयरोशैल से पहले से ही जुड़े सुपरसोनिक पैराशूट ने खुलकर नियंत्रित किया तथा अत्यधिक गर्मी से इसे इस ‘एयरोशैल’ के अग्रभाग में स्थित ‘हीट शील्ड’ ने बचाया। पैराशूट खुलने के पश्चात् इसकी गति 200 किमी प्रति घंटा हो गई तथा इसके पश्चात एरोशैल के अग्र भाग में स्थित ‘हीट शील्ड’ स्वतः ही अलग हो गया। 3. इसके पश्चात इस ‘एरोशैल’ में स्थित ‘स्काईक्रेन’ की सहायता से जिससे कि रोवर क्यूरियोसिटी तीन केबल की सहायता से जुड़ा हुआ था इस रोवर क्यूरिसिटी यान को मंगल ग्रह की सतह पर उतारा गया। इसे क्रेन से उतारते समय कुछ न्यूक्लियर पावर से युक्त राॅकेट भी स्काई क्रेन से छोड़े गये जिससे इसके समानान्तर बहने वाली हवा से इसकी रक्षा की जा सके तथा इसे पूर्व निर्धारित स्थान पर उतारा जा सके। क्यूरियोसिटी यान लगभग 2 वर्ष तक मंगल ग्रह की सतह पर कार्य करेगा। दी हिन्दु अखबार में 23 अगस्त 2012 के एक समाचार के अनुसार क्यूरियोसिटी यान द्वारा भेजे गए चित्रों में मंगल ग्रह की सतह पर एक विचित्र रोशनी देखी गई तथा कुछ चित्रों में मंगल ग्रह के आकाश में चार धुंधली आकृतियां भी देखी गई है। यद्यपि नासा की ओर से इस संबंध में और अधिक स्पष्टीकरण नहीं आया है। परंतु एलियन्स के बारे में शोध करने वाले लोगों का कहना है कि ये धुंधली आकृतियां एलियन्स के यान हैं तथा यह रोशनी इन ही यानों से आ रही है जिसके माध्यम से ये मंगल ग्रह की सतह पर रोवर क्यूरियोसिटी की गतिविधियों पर निगरानी रख रहे हैं।



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