सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस  

शरद त्रिपाठी
व्यूस : 7778 | जून 2015

भारतवर्ष में एक से बढ़कर एक नेता हुए किंतु सुभाष चंद्र बोस की तुलना किसी से नहीं की जा सकती है। दूसरों को जबरन अपनी ओर आकर्षित करने वाला जोशीला व चुंबकीय व्यक्तित्व, जीनियस व दूरदर्शी। ब्रिटिश काल में अंग्रेजों को अपनी इंडियन सिविल सर्विसेज पर बहुत नाज था। इंग्लैंड के युवाओं के लिए इसे उत्तीर्ण करना हंसी खेल नहीं था जबकि भारतीय तो इसके विषय में सोचते भी नहीं थे। जब 1920 में मात्र 23 वर्ष की उम्र में नेताजी ने न केवल यह परीक्षा उत्तीर्ण की बल्कि मेरिट में चतुर्थ स्थान प्राप्त किया तो अंग्रेज स्तब्ध रह गये। किंतु जब नेता जी ने आईसी. एस को ठुकराया तब अंग्रेजों की शान पर ऐसी चोट लगी कि वे सुभाष चंद्र बोस दिनांक: 23/01/1897 समय: 11: 38: 00, स्थान: कटक विंशोत्तरी दशा सूर्य:


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1 व. 2 मा. 20 दिन सूर्य 15/04/2012 00/00/0000 सूर्य 03/08/2012 चंद्र 01/02/2013 मंगल 09/06/2013 राहु 04/05/2014 गुरु 20/02/2015 शनि 02/02/2016 बुध 09/12/2016 केतु 24/01/2017 शुक्र 00/00/0000 बिलबिलाकर रह गये। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जब वे कूदे तब उनकी उम्र मात्र 25 वर्ष थी। 30 साल की उम्र तक वे भारत के ऐसे लोकप्रिय नेता बन चुके थे जिसकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को भी पीछे छोड़ने वाली थी। 1938 में गांधी जी के न चाहने पर भी उन्होंने कांग्रेस का अध्यक्ष बनकर दिखाया। 21 अक्तूबर 1943 को उन्होंने आजाद हिंद फौज की स्थापना कर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। 1942 में जापान ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह जीतकर अगले साल नेता जी को दे दिया। यहां भारत का झंडा फहराया गया।

इस सरकार का काम रंगून से चल रहा था। यहीं से सुभाष ने कहा था- ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। खून भी एक दो बूंद नहीं, इतना कि एक महासागर बन जाए और इसमें मैं ब्रिटिश साम्राज्य को डुबो दूं।’’ किंतु नियति को कुछ और मंजूर था। 15 अगस्त 1945 को टोक्यो जाते हुए ताइवान के तोई होलू हवाई अड्डे के पास नेताजी का हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसमें नेता जी की असमय मृत्यु हो गई। कई लोग अब भी यही मानते हैं कि नेता जी की मृत्यु उस हादसे में हुई ही नहीं। किंतु पुख्ता प्रमाण न होने के कारण यह अभी तक रहस्य ही है कि नेता जी उस हादसे में मरे कि नहीं। आइये ग्रहों के माध्यम से जानते हैं जोशीले व चुंबकीय व्यक्तित्व के धनी बोस जी के जीवन को नेता जी की कुंडली मेष लग्न की है।

मेष लग्न के स्वामी मंगल द्वितीय भाव में शुक्र की राशि में चंद्रमा के नक्षत्र तथा बुध के उप नक्षत्र में विद्यमान हैं। मंगल स्वयं पृथ्वीपुत्र है, मंगल असीम साहस से युक्त होता है। कर्मेश व लाभेश शनि से दृष्ट मंगल ने नेता जी को अत्यधिक उत्साह व साहस से भरपूर बनाया। वाणी भाव में स्थित लग्नेश मंगल के कारण नेता जी की वाणी काफी प्रभावपूर्ण थी जिसके कारण देश में ही नहीं वरन् विदेश के युवा वर्ग को भी नेता जी ने अपना दीवाना बना लिया था। द्वितीयेश शुक्र लाभ भाव में बैठे हैं जिसके कारण नेता जी को कभी भी धन की कमी नहीं हुई। तृतीयेश बुध पंचमेश सूर्य के साथ कर्म क्षेत्र में स्थित है जिसपर कर्मेश व लाभेश शनि की पूर्ण दृष्टि है। नेताजी ने अपनी बुद्धि के बल पर अपने पराक्रमी स्वभाव के द्वारा आजाद हिंद फौज का गठन करके स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा प्रदान की। चतुर्थेश चंद्रमा के नक्षत्र में लग्नेश मंगल स्थित है। नेता जी की प्रारंभिक शिक्षा मिशनरी स्कूल में हुई। चतुर्थेश चंद्रमा पंचमेश सूर्य के नक्षत्र में छठे भाव में स्थित है।

केतु चतुर्थ भाव में विद्यमान है और सूर्य की पूर्ण दृष्टि चतुर्थ भाव में है। नेता जी की प्रारंभ से ही टाॅपर विद्यार्थियों में गिनती होती थी। मातृभाषा बांग्ला के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा पर भी उनका समान अधिकार था। डिग्री की पढ़ाई के लिए उन्होंन दर्शन शास्त्र में आॅनर्स विषय चुना। काॅलेज में कुछ विवाद के कारण उन्हें निष्कासित कर दिया गया। उनके निष्कासन के लिए पूरी तरह सूर्य व राहु के ग्रहण योग ने काम किया। पंचमेश सूर्य राहु से ग्रहण योग दशम भाव में बैठकर बना रहे हैं जिसके कारण लगभग एक साल निष्कासित रहने के बाद वे एक अन्य काॅलेज में प्रवेश लेकर काॅलेज की इंडिया डिफेंस फोर्स विश्वविद्यालय यूनिट में शामिल हुए। यहां उन्होंने युद्ध के तौर-तरीके सीखे। वे गोरिल्ला युद्ध से परिचित हुए और उन्होंने बंदूक चलाना भी सीखा। पराक्रमेश बुध व पंचमेश सूर्य की राहु से दशम भाव में युति तथा इस युति पर कर्मेश व लग्नेश शनि की दृष्टि के कारण नेता जी की शिक्षा का क्षेत्र पराक्रम से संबंधित हुआ। षष्ठ भाव में सुखेश चंद्रमा की स्थिति है जिसके कारण नेता जी घर के सुखों से वंचित थे वे अधिकतर बाहर ही रहे। षष्ठेश बुध कर्म भाव में स्थित है

उनके कार्यक्षेत्र में विरोधियों व शत्रुओं की कमी नहीं थी। किंतु अपने पराक्रम से उन्होंने सबको पराजित किया। बुध सूर्य के नक्षत्र व शुक्र के उप नक्षत्र में स्थित है। सूर्य पंचमेश अर्थात षष्ठेश के व्ययेश हैं। अतः नेता जी के शत्रु स्वतः ही परास्त हो जाते थे। सप्तम भाव मित्रों का व जीवनसाथी का भाव है। सप्तमेश शुक्र बृहस्पति के नक्षत्र व केतु के उपनक्षत्र में होकर एकादश भाव से पंचम को दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। लग्नेश मंगल की भी पंचम भाव पर पूर्ण दृष्टि है। शुक्र के नक्षत्रेश बृहस्पति पंचम भाव में बैठकर सप्तमेश शुक्र के साथ-साथ लग्न को भी दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। लग्न$पंचम व सप्तम का यह संबंध प्रेम संबंध एवं मित्रता का द्योतक है। यही कारण है कि नेता जी के असंख्य मित्र थे। इसके साथ ही नेता जी की पत्नी एमिली शेंकल पहले नेता जी की मित्र बनीं फिर उन दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया। अष्टम भाव पर लग्नेश व अष्टमेश मंगल की पूर्ण दृष्टि है। अष्टम भाव में शनि विराजमान है। अष्टमेश व लग्नेश मंगल का द्वितीय मारक भाव में होना शुभ स्थिति नहीं है।

पंचम भाव में स्थित व्ययेश बृहस्पति की मारकेश शुक्र व लग्न पर पूर्ण दृष्टि है। व्ययेश बृहस्पति लग्नेश, अष्टमेश मंगल, मारकेश शुक्र व अष्टम में स्थित शनि द्वारा दृष्ट होने के कारण प्रबल मारक बन रहे हैं। यही कारण है कि नेताजी की मृत्यु बृहस्पति की महादशा व चंद्र की अंतर्दशा में हुई। चंद्रमा षष्ठ भाव में बैठकर बृहस्पति से द्विद्र्वादश का संबंध भी बना रहे हैं। शनि दशम के स्वामी हैं। दशम भाव ऊंचाई का प्रतीक है। सूर्य राहु भी दशम में स्थित हैं। तीनों ही ग्रह पृथकतावादी हैं। सूर्य पूर्व दिशा का स्वामी है और शनि वायु का प्रतीक है। नवमेश बृहस्पति द्वादशेश भी है जिसपर शुक्र का पूर्ण प्रभाव है। बृहस्पति की लग्न पर पूर्ण दृष्टि है। शुक्र पाश्चात्य शैली का कारक है। यही कारण है कि सुभाष के पिता पाश्चात्य सभ्यता व अंग्रेजी भाषा के प्रबल समर्थक थे और चाहते थे कि उनके बच्चे भी पाश्चात्य संस्कृति को ही अपनाएं। नवमेश बृहस्पति शुक्र के नक्षत्र व चंद्रमा के उपनक्षत्र में है

जिसके कारण नेता जी को अंग्रेजों के खिलाफ अपनी मुहिम शुरू करने के लिए विदेशों से सबसे अधिक सहायता मिली। 1933 से 1949 के मध्य बृहस्पति की महादशा चली। इसी बीच नेताजी ने विदेश यात्राएं कीं, राजनीति में पदार्पण किया, फाॅरवर्ड ब्लाॅक बनाया, 11 बार जेल गये, स्वतंत्रता संग्राम को नई क्रांति प्रदान की। ऐसा इसलिए संभव हुआ क्योंकि नवमेश, सप्तमेश, कर्मेश, लग्नेश, लाभेश, सभी का परस्पर मजबूत संबंध बना हुआ है। बृहस्पति शुक्र को, शुक्र बृहस्पति को मंगल व शनि बृहस्पति को, मंगल शनि को, शनि मंगल को तथा कर्मेश शनि कर्म भाव व उसमें स्थित पंचमेश सूर्य पराक्रमेश व षष्ठेश बुध को पूर्ण दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। निष्कर्ष: यद्यपि कि बचपन से ही नेता जी को धनाढ्य परिवार, शिक्षित व अनुशासित पिता, धार्मिक मां, सहयोगी भाई-बहन प्राप्त हुए। शिक्षा के क्षेत्र में वे सदैव अग्रणी होते थे। अपने कार्य क्षेत्र में भी नेताजी ने देश में ही नहीं विदेशों में भी प्रभुत्व स्थापित किया। किंतु अंततः नेताजी की असमय व दुर्दांत मृत्यु के लिये कर्म क्षेत्र के दशम भाव में स्थित सूर्य व राहु का ग्रहण योग उत्तरदायी है। इस ग्रहण योग का लग्न, चतुर्थ, सप्तम व दशम पर केंद्रीय प्रभाव था। लग्नेश मंगल व चंद्रमा पर पूर्ण दृष्टि थी। यद्यपि दशम भावस्थ राहु ने नेताजी को राजनीति में बुलंदियां दीं किंतु कर्म क्षेत्र में बने ग्रहण योग ने उनके आजादी के सपने को उनके सामने पूरा नहीं होने दिया। यद्यपि नेताजी की कुंडली में अष्टमस्थ शनि है


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 अष्टमस्थ शनि दीर्घायु के द्योतक हैं। असंख्य कुंडलियों के अध्ययन के बाद यह बात सिद्ध हो चुकी है कि जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में शनि स्थित हो वह दीर्घायु होता है। किंतु यदि विमान दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हुई तो यह असामयिक निधन था जो कि उपर्युक्त तथ्य को नकारता है। लेकिन यदि हम गहराई से अवलोकन करें तो यद्यपि शरीर से नेता जी हमारे बीच से असमय चले गये किंतु आज 117 साल बाद भी नेताजी अपने विचारों, कार्यों के द्वारा हमारी यादों में जीवित हैं। उनकी जयंती मनायी जाती है। विद्यालय की पुस्तकों में उनकी जीवनी के माध्यम से छात्रों को सीख दी जाती है और सदैव ही दी जाती रहेगी। मृत्यु उनके शरीर की हुई, उनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में आज भी जीवित है। शायद यह अष्टमस्थ शनि का ही प्रभाव है।



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