विवाह का काल निर्धारण

विवाह का काल निर्धारण  

सुरेश आत्रेय
व्यूस : 12355 | जुलाई 2013

ज्योतिष शास्त्र में संभावित घटना का काल निर्धारण सर्वाधिक दुस्साध्य प्रक्रिया है क्योंकि काल को परमशक्ति का प्रतिरूप स्वीकारा गया है, अतएव रहस्यात्मकता के अतिगोपनीय विश्व के सूत्रों का सम्यक् उद्घाटन दुष्कर कर्म है। विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार का सटीक समय रेखांकित करना सर्वाधिक जटिल प्रक्रिया है। इस जटिल प्रक्रिया को सुलझाने के लिए जहां अनेकानेक सूत्र ज्योतिष शास्त्रों में उल्लिखित हैं वहीं अनेकों ज्योतिष विद्वानों दुण्ढिराज (जातकाभरणम्), नृसिंह (जातक सारदीप), कल्याण वर्मा (सारावली), वाराहमिहिर (बृहज्जातक), आचार्य मीन राज (वृद्धयवन जातकम्), कवि कालीदास (पूर्व कालामृत), श्री गणेश (जातकालंकार) ने इस विषय को छुआ तक नहीं। ज्योतिष के अनेक विद्वानों ने जो सूत्र शास्त्रों में दिये हैं उन सबको ध्यान में रख कर ग्रह-गणित तथा गोचर द्वारा विवाह का काल निर्धारण करने में जो शोध किया गया उनसे जहां अनेकों नये तथ्य प्राप्त हुए वहां अनेकों पुराने सूत्र धराशयी हुए हैं। बृहत्पाराशर होरा शास्त्र (टीकाकार पùनाभ)

1. सप्तमेश शुभ ग्रह की राशि में बैठा हो, शुक्र अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो तो जातक का विवाह 5 वर्ष से 9 वर्ष की आयु में होता है।

2. सप्तम भाव में सूर्य हो, सप्तमेश शुक्र से युक्त हो तो प्रायः 7 से 11 वर्ष की आयु में विवाह योग होता है।

3. शुक्र धन स्थान (द्वितीय) भाव में हो, सप्तमेश एकादश स्थान में हो तो 10 वर्ष से 16 वर्ष की आयु में विवाह योग होता है।

4. लग्न या केंद्र में शुक्र हो तथा लग्नेश शनि की राशि में स्थित हो तो 11 वर्ष की आयु में योग होता है।

5. लग्न से केंद्र में शुक्र हो और शुक्र से सप्तम भाव ें शनि हो तो प्रायः 19 से 22 वर्ष में विवाह होता है।

6. चंद्रमा से सप्तम में शुक्र हो और शुक्र से सप्तम भाव में शनि हो तो 18वें वर्ष में विवाह योग होता है।

7. धनेश लाभ स्थान में हो और लग्नेश दशम भाव में स्थित हो तो 25वें वर्ष में जातक का विवाह होता है।

8. धनेश लाभ स्थान में तथा लाभेश धन स्थान में हो तो जातक 13वें वर्ष में विवाह करता है।

9. अष्टम भाव से सप्तम भाव में शुक्र हो और अष्टमेश मंगल के साथ हो तो जातक 22 से 27 वर्ष की आयु में विवाह करता है।

10. लग्नाधिपति सप्तमेश के नवांश में हो और सप्तमेश द्वादश भाव में स्थित हो तो उस जातक का विवाह 23 से 26वें वर्ष में होता है।

11. अष्टमेश लग्न के नवमांश में होकर सप्तम भाव में शुक्र के साथ बैठा हो तो 25 या 33वें वर्ष में विवाह का योग बनता है।

12. भाग्य भाव से नवम में शुक्र हो या उन दोनों स्थानों में से किसी एक स्थान में राहु बैठा हो तो 31 या 33वें वर्ष में विवाह योग बनता है।

13. नवम भाव से सप्तम स्थान में शुक्र हो और शुक्र से सप्तम में सप्तमेश स्थित हो तो जातक के विवाह का योग 30 वर्ष या 27 वर्ष होता है। जातकादेश मार्ग (व्याख्याकार गोपेश कुमार ओझा) दशा / अंतर्दशा

1. सप्तम भाव स्थित ग्रह की दशा/अंतर्दशा

2. सप्तम भाव को देखने वाले ग्रह की दशा/अंतर्दशा

3. सप्तम भाव स्थित ग्रह या सप्तम भाव को देखने वाले ग्रह से सप्तम में स्थित ग्रह की दशा/अंतर्दशा

4. उपरोक्त ग्रहों के राशि स्वामी या नवांश स्वामी की दशा/अंतर्दशा

5. शुक्र जिस नक्षत्र में हो उसके स्वामी की दशा/अंतर्दशा

6. लग्नेश जिस नवांश में हो उसके स्वामी की दशा/अंतर्दशा गोचर

1. जब शुक्र, लग्नेश, सप्तमेश गोचरवश सप्तम भाव में

2. उपरोक्त तीनों सप्तमेश जिस भाव में हो उस भाव में

3. उपरोक्त पंचम या नवम भाव में जायें।

4. बृहस्पति सप्तम भााव में जो राशि हो, सप्तम भावमध्य जिस नवांश में पड़ता हो वह नवांश राशि। उन दोनों की पंचम या नवांश राशि में गोचर करता हो। फलदीपिका (मंत्रेश्वर-कलत्र भाव) तनु भाव के स्वामी की राशि से अथवा उसकी नवांश राशि से पंचम या नवम राशि में गोचर का शुक्र या सप्तमेश आता है तब जातक का विवाह संभव है।

2. सप्तम भाव में स्थित ग्रह, सप्तम भाव के दृष्ट ग्रह और सप्तम भावाधिपति की दशा में सप्तम भावस्थ राशि में गोचरवश शुक्र के आने पर विवाह संभव होता है।

3. सप्तम भाव के स्वामी जिस राशि, जिस राशि के नवमांश में स्थित हों उनके स्वामियों में जो बलवान हो अथवा चंद्र और शुक्र में जो बलवान हो उस सर्वतो बलवान ग्रह की अंतर्दशा में जातक का विवाह होता है। उस कथित दशा में सप्तमेशाधिष्ठित से पांचवीं या नवमी राशि में जब गोचर का बृहस्पति आता है तो विवाह होता है। कुंडली विवेचन तथा फलित सिद्धांत विवाह काल (के. एन. राव)

1. लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश की दशा अंतर्दशा में

2. राहु और शुक्र की दशा। शीघ्र विवाह (21 वर्ष से पहले)

1. 1 से 7 भाव की परिधि में शुभ ग्रह।

2. 2 से 8 भाव की परिधि में कोई अशुभ ग्रह नहीं।

3. शुभ ग्रह वक्री नहीं।

4. शुक्र दग्ध न हो।

5. लग्नेश बलिष्ठ।

6. शुक्र बृहस्पति अत्धधिक समीपता युक्त तथा कोई अन्य ग्रह मतभेद न कर रहा हो।

7. अक्षांश के रूप में लग्नेश तथा सप्तमेश अत्यधिक समीप हो।

8. सप्तमेश सप्तम भाव में।

9. लग्नेश तथा सप्तमेश में समीपता।

10. लग्नेश तथा शुक्र में समीपता।

11. पंचम भाव में ग्रह सूर्य से पीड़ित न हों।

12. सूर्य दशम से सप्तम तथा चतुर्थ से प्रथम में हो तो विवाह शीघ्र अथवा युवा व्यक्ति से। बृहस्पति सप्तम भाव पर दृष्टि डाले तो विवाह 30 वर्ष की आयु से पहले। सामान्य आयु में विवाह (21 वर्ष से 24 वर्ष) 1, 7 तथा 2, 8 अक्षांश क्षीण तथा पीड़ित हो, इस युति अक्षांश से सूर्य राहु केतु का संबंध क्षीण हो।

2. शुभ ग्रह वक्री न हों।

3. शुक्र दग्ध न हो।

4. सप्तमेश अशुभ प्रभाव युक्त

5. 4ः1 अक्षांश में शुभ ग्रह

6. पुरुष कुंडलियों में पूर्ण चंद्र तथा स्त्री कुंडलियों में सूर्य प्रथम से तृतीय भाव अथवा सप्तम से नवम भाव के मध्य।

7. शुक्र तथा अन्य ग्रह जल तत्व राशियों में।

8. पूर्ण चंद्र सप्तम या पंचम भाव में। विवाह देर से 1. 1, 7 अथवा 2, 8 भावों में बलिष्ठ अशुभ ग्रह शनि मंगल आदि।

2. सप्तमेश बलिष्ठ अशुभ ग्रहों द्वारा दृष्ट, दग्ध।

3. शुभ ग्रह वक्री।

4. कुंडली में कुज अथवा मंगल दोष।

5. द्वादश भाव द्विपीड़ित।

6. चतुर्थ भाव त्रिपीड़ित। विलंब युक्त विवाह

1. सूर्य-चंद्र अत्यधिक समीप अथवा पीड़ित।

2. शनि कुंडली में अत्यधिक बलिष्ठ तो विवाह में विलंब।

3. पुरुष कुंडली में शुक्र तथा स्त्री कुंडली में मंगल पीड़ित

4. लग्नेश द्वादश में

5. सप्तमेश अष्टम में अथवा अष्टमेश सप्तम में। दाम्पत्य सुख (डाॅ. शुकदेव चतुर्वेदी) बाल विवाह योग

1. कुंडली में लग्नेश सप्तम स्थान में हो तथा शुक्र केंद्र में हो तो 11 वर्ष की आयु में विवाह होता है।

2. सप्तमेश शुभ ग्रह की राशि में हो तथा शुक्र स्वराशि या उच्च राशि में हो तो नवमें वर्ष में विवाह होता है।

3. सप्तम स्थान में सूर्य होने पर तथा सप्तमेश के साथ शुक्र होने पर 11वें वर्ष में विवाह होता है।

4. लग्न द्वितीय या सप्तम स्थान में शुभ ग्रह तथा शुभ ग्रहों का वर्ग होने पर बाल्यावस्था में विवाह होता है।

5. द्वितीयेश शुक्र हो तथा सप्तमेश जल संज्ञक (कर्क, मकर, कुंभ या मीन) राशि में हो 10 से 16 वर्ष की आयु में विवाह होता है।

6. लग्न से केंद्र में शुक्र तथा उससे सप्तम में चंद्रमा होने पर 12वें या 19वें वर्ष में विवाह होता है।

7. सप्तम स्थान में स्थित शुक्र पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो या सप्तम स्थान में स्थित सप्तमेश पर गुरु की दृष्टि हो तो 12 वर्ष की आयु में विवाह होता है।

8. द्वितीयेश एकादश स्थान में हो तथा सूर्य द्वितीय स्थान में हो तो 13 वष की आयु में विवाह होता है।

9. सप्तम स्थान का स्वामी लाभ स्थान में तथा लग्नेश दशम स्थान में 15 वर्ष के आसपास विवाह होता है।

10. चंद्रमा से सातवें स्थान में शुक्र तथा उससे 7वें स्थान में शनि होने पर 18वें वर्ष में विवाह योग होता है यदि योगकारक ग्रहों पर पाप ग्रहों की दृष्टि न हो।

11. सप्तमेश लाभ स्थान में हो तथा शुक्र धन स्थान में हो तो 10 या 16 वर्ष की आयु में विवाह होता है।

12. धनेश 11वें स्थान में हो तथा लग्नेश दसवें स्थान में हो तो 15 वर्ष की आयु में विवाह होता है।

13. धनेश लाभ स्थान में तथा लाभेश धन स्थान में हो तो 13 वर्ष की आयु में विवाह होता है। उक्त योगों का विचार करते समय उनका बल तथा पाप प्रभाव ध्यान में रखना आवश्यक है। उक्त योग मंगली योग की कुंडली में फल नहीं देते। उचित आयु में विवाह होने के योग (18 से 25 वर्ष)

1. जिस व्यक्ति की कुंडली में बलवान सप्तमेश किसी शुभ ग्रह के साथ लग्न, द्वितीय, सप्तम या एकादश स्थान में हो उसका विवाह उचित समय पर होता है।

2. जिस कुंडली में सप्तमेश बलवान हो तथा शुक्र केंद्र या त्रिकोण में हो तो विवाह उचित समय पर होता है।

3. जिसके जन्मकाल में शुक्र द्वितीय भाव में हो तथा लाभेश लाभ स्थान में हो तो शीघ्र विवाह हो।

4. जन्म के समय पाप प्रभाव रहित शुक्र चंद्रमा से 7वें स्थान में मित्र राशि में हो तो विवाह शीघ्र होता है।

5. कुंडली में शुक्र केंद्र या त्रिकोण में हो तथा उससे सप्तम में शनि हो तो कुछ रुकावटों के बावजूद भी यथा समय विवाह होता है।

6. बलवान सप्तमेश पारावत आदि शुभ वर्ग में हो तथा शुक्र लग्न, द्वितीय, सप्तम या एकादश स्थान में हो तो विवाह में बाधा नहीं आती, उचित समय पर विवाह होता है।

7. विवाह में विलंब कारक योग न हो, शुभ ग्रह लग्न या सप्तम के समीप हों तो यथा समय विवाह होता है।

8. विवाह में विलंब कारक योग न हो तथा सप्तमेश सप्तम स्थान के समीप हो तो भी विवाह यथा समय पर होता है। वृद्धावस्था में विवाह होने के योग (36 से 60 वर्ष)

1. यदि लग्नेश, सप्तमेश एवं शुक्र निर्बल हों तथा स्थिर राशि में हो, किंतु चंद्रमा चर राशि में हो तो वृद्धावस्था में विवाह होता है।

2. लग्न एवं सप्तम में राहु तथा शनि हों और शुक्र निर्बल हो तो वृद्धावस्था में विवाह होता है।

3. सप्तम, सप्तमेश एवं शुक्र बलहीन हों तथा इनपर राहु एवं शनि का प्रभाव हो तो विवाह 50 वर्ष के आसपास होता है।

4. उक्त योगों में गुलिक का प्रभाव हो तो 60 वर्ष की आयु में विवाह होता है।

5. सप्तमेश नीच राशि में हो तथा शुक्र अष्टम में हो तो विवाह वृद्धावस्था में होता है। यदि यथा समय विवाह हो तो पत्नी की मृत्यु संभव है। पूर्वोक्त योगों के आधार पर विवाह आयु जान कर विवाहकारक दशा तथा गोचरीय परिभ्रमण का विचार कर विवाह काल की निश्चितता का निर्णय करें। विवाह कारक दशा

1. सप्तमेश की दशा या अंतर्दशा में विवाह होता है।

2. शुक्र से युक्त लग्नेश, द्वितीयेश या एकादशेश की दशा अंतर्दशा में विवाह होता है।

3. शुक्र की दशा/अंतर्दशा में विवाह होता है।

4. द्वितीयेश जिस राशि में हो उस राशि के स्वामी की दशा/अंतर्दशा में विवाह होता है।

5. शुक्र जिस राशि में स्थित हो यदि उस राशि का स्वामी त्रिकेश न हो तो उसकी दशा/अंतर्दशा में विवाह होता है।

6. दशमेश एवं अष्टमेश की दशा/अंतर्दशा में विवाह होता है।

7. सप्तमेश के साथ कोई ग्रह हो तो उसकी दशा/अंतर्दशा में विवाह होता है।

8. सप्तम स्थान में स्थित ग्रह की दशा/अंतर्दशा में विवाह होता है। विवाह कारक गोचरीय परिभ्रमण गोचर क्रम से राशि चक्र में भ्रमणशील ग्रह जब निम्नलिखित स्थितियों में हो तो विवाह होता है:

1. लग्नेश एवं सप्तमेश इन दोनों ग्रहों को स्पष्ट कर इनके राशि, अंश एवं कला आदि का योग कर लेना चाहिए। इस योग तुल्य राशि पर जब गोचरीय क्रम से बृहस्पति आता है तब विवाह होता है।

2. चंद्रमा एवं सप्तमेश इन दोनों को स्पष्ट कर इनके राश्यादि का योग कर लेना चाहिए। इस योग तुल्य राशि अंश पर गोचरीय बृहस्पति के आने पर विवाह होता है।

3. शुक्र से त्रिकोण में या लग्न अथवा सप्तम भाव में गोचरीय बृहस्पति के जाने पर विवाह होता है। शोध प्रस्तुत शोध ‘विवाह का काल निर्धारण’ विषय को पूर्णतया उद्घाटित करता है। अभीतक ग्रंथों में दिये गये सूत्रों से व्यावहारिक जीवन में विवाह के समय का निर्धारण करना दुष्कर कार्य तथा अस्पष्ट या समुद्र में मोती ढंूढ़ने जैसा था।

इस शोध में 507 जातकों के विवाह की तिथि लेकर उनपर ग्रह गोचर के प्रभाव से शोध किया गया उसका परिणाम प्रस्तुत किया जा रहा है। विवाह का निर्धारण महादशा: राहु की महादशा में सर्वाधिक विवाह संपन्न हुए जिसका प्रतिशत 20 प्रतिशत प्रति वर्ष से अधिक था। सबसे कम विवाह केतु की दशा में 6 प्रतिशत प्रतिवर्ष से कम रहा। अंतर्दशा राहु की महादशा में शनि के अंतर में सर्वाधिक विवाह संपन्न हुए तथा राहु में राहु के अंतर में सबसे कम विवाह संपन्न हुए। सूर्य की महादशा में मंगल की अंतर्दशा में सर्वाधिक विवाह प्रतिवर्ष तथा राहु की अंतर्दशा में सबसे कम 0 प्रतिशत विवाह हुए।

सूर्य में शनि के अंतर में भी विवाह बहुत कम हुए। चंद्र की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा में सर्वाधिक तथा चंद्र में केतु के अंतर में सबसे कम विवाह संपन्न हुए। मंगल की महादशा में मंगल के अंतर में 0 प्रतिशत तथा मंगल में शुक्र की अंतरदशा में सर्वाधिक विवाह देखे गए। मंगल की महादशा में केतु तथा सूर्य की अंतर्दशा में पुरुषों के विवाह 0 प्रतिशत रहे। केतु में केतु तथा केतु में चंद्रमा की अंतर्दशा में विवाह 0 प्रतिशत रहा तथा केतु में शुक्र की अंतर्दशा सर्वाधिक उपयोगी रही। केतु की महादशा में सूर्य, चंद्र व मंगल की अंतर्दशा में पुरुषों के विवाह बहुत कम हुए। शुक्र में बुध की अंतर्दशा में सर्वाधिक विवाह हुए तथा शुक्र की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा में 0 प्रतिशत। बृहस्पति की महादशा में बृहस्पति का अंतर सर्वाधिक विवाह संपन्न करता है जबकि बृहस्पति में सूर्य 0 प्रतिशत। बुध में चंद्र सर्वाधिक और बुध में बुध बहुत कम तथा पुरुषों की कुंडली में बुध में बुध 0 प्रतिशत। शनि की महादशा में राहु की अंतर्दशा में सर्वाधिक तथा शनि में केतु की अंतर्दशा में बहुत कम। महिलाओं की कुंडली में शनि की महादशा में चंद्र व सूर्य की अंतर्दशा में विवाह बहुत कम हुए।

चैथे भाव के स्वामी की दशा हो या अंतर्दशा के स्वामी छठे भाव में बैठे हों तो उस ग्रह की अंतर्दशा में सर्वाध् िाक विवाह। महादशा का स्वामी छठे भाव में स्थित हो तो उसकी अंतर्दशा में भी विवाह अधिक मात्रा में हुए। प्रत्यंतर्दशा चतुर्थ, अष्टम व एकादश में स्थित ग्रह की प्रत्यंतर्दशा में विवाह अधिक हुए। गोचर (लग्न से) सूर्य चतुर्थ भाव में मंगल चतुर्थ भाव में तथा बुध चतुर्थ भाव में सर्वाधिक विवाह योग बनाता है। गुरु लग्न से तृतीय, सप्तम, एकादश भाव में भ्रमण कर रहा हो तो विवाह सर्वाधिक होते हैं। शनि द्वादश भाव में विवाह देता है तथा राहु और शुक्र के द्वितीय भाव में आने पर विवाह अधिक होते हैं। गोचर (सप्तमेश से) सूर्य सप्तम भाव में, बुध सप्तम में तथा गुरु पंचम में विवाह अधिक देता है।

शनि प्रथम में या सप्तमेश से एकादश में, मंगल सप्तमेश से सप्तम या दशम में विवाह अधिक देता है। गोचर (चंद्रमा से) चंद्र से गुरु द्वादश या नवम में, शनि पंचम में, मंगल दशम में, राहु सातवें या चंद्रमा के साथ अधिक विवाह देता है। गुरु से गुरु पंचम भाव में अधिक विवाह तथा 12वें, प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और पंचम में विवाह देता है व सप्तम अष्टम, नवम, दशम तथा एकादश में विवाह संपन्न नहीं होता। शनि से शनि द्वादश सर्वाधिक विवाह, दशम एकादश तथा शनि जब शनि पर गोचर करे तो विवाह होता है। शनि द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ, सप्तम, अष्टम व नवम भाव में विवाह बहुत कम होते हैं। राहु से राहु जब सप्तम, अष्टम, नवम, दशम में हों तो पुरुषों का विवाह अधिक तथा अष्टम, नवम, दशम, एकादश में हो तो महिलाओं का विवाह अधिक होता है।



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