स्तन कैंसरः एक शोध

स्तन कैंसरः एक शोध  

किशोर घिल्डियाल
व्यूस : 5979 | जनवरी 2014

मानव शरीर के अंगों की रचना विज्ञान के अनुसार कोशिकाओं से होती है जो स्वयं बनती व नष्ट होती रहती हैं। जब किसी भी कारण से इन कोशिकाओं में कोई कमी आदि आती है तब ये कोशिकाएं सुचारु रूप से नष्ट न होकर असामान्य या अनियंत्रित होकर शरीर के किसी भी भाग में गाँठ का रूप ले लेती हैं। इन गाँठों में एक विशेष प्रोटीन के बनने से अन्य स्वस्थ कोशिकाएं अपना कार्य सुचारु रूप से नहीं कर पाती हैं जिससे ये गाँठे फैलने लगती हैं और कुछ ही समय में घातक रूप ले लेती हैं। इन गाँठों का होना ही कैंसर कहलाता है।

शरीर के जिस हिस्से में यह गाँठ होती है उसे उस हिस्से का कैंसर कहा जाता है जैसे यदि गाँठ मुख में होती है तो मुख का कैंसर, स्तन में हो तो स्तन कैंसर आदि। प्रस्तुत लेख में स्तन कैंसर के विषय में ज्योतिषीय दृष्टिकोण रखने का प्रयास किया गया है। स्तन कैंसर आज पूरे विश्व में महिलाओं में पाई जाने वाली गंभीर व खतरनाक बीमारियों में से एक बड़ी बीमारी का रूप लेता जा रहा है। इसके होने के कई कारण हो सकते हैं परन्तु लेख में सिर्फ ज्योतिषीय कारण ही समझाने का प्रयास किया गया है।


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इस ज्योतिषीय शोध में करीब 200 कुण्डलियों का अध्ययन किया गया जिसमें पाया गया कि कुण्डली में निम्न तत्वों के प्रभावी होने से स्तन कैंसर हो सकता है-

भाव:- लग्न, चतुर्थ, षष्ठ ग्रहः- गुरु, बुध, चंद्र, लग्नेश, षष्ठेश, चतुर्थेश

लग्न भावः- यह भाव स्वयं का अथवा जातक-जातिका विशेष का होता है।

जब तक यह भाव पीड़ित न हो (किसी भी प्रकार से) तब तक जातक को अथवा उसके शरीर को कुछ भी अच्छा या बुरा प्रभाव मिल नहीं सकता।

चतुर्थ भावः- यह भाव छाती अथवा वक्ष स्थल (महिलाओं) का प्रतिनिधित्व करता है चुंकि स्तन कैंसर को इसी भाव से देखा जाता है इसलिए इसका अध्ययन व इस भाव की स्थिति को अवश्य देखा जाना चाहिए। षष्ठ भावः- यह भाव रोग भाव भी कहलाता है।

बृहत पराशर होरा शास्त्र के 18 वें अध्याय के श्लोक 12,13 में कहा गया है कि इस भाव अर्थात रोग स्थान में पाप ग्रह हो तथा षष्ठेश पाप ग्रह युक्त हो तो जातक रोगी होगा और यदि इस भाव में शनि राहु हो तो दीर्घकालीन रोगी होगा।

ग्रहः- गुरु ग्रह का किसी भी रूप में पीड़ित बलहीन व अशुभ प्रभाव में होना इस रोग की कुण्डलियों में पाया गया। गुरु ग्रह पोषकता व वृद्धि का कारक माना जाता है तथा यह हमारे शरीर में मेटाबाॅलिज्म का कारक भी होता है जिससे हार्मोन्स प्रभावित होते हैं जिनके पूर्ण प्रभाव से कैंसर हो सकता है।

बुधः- चमड़ी का कारक यह ग्रह कोशिकाओं के विभिन्न आवरणों का नियन्त्रण करता है जिनके क्षतिग्रस्त होने से यह रोग होता है वही सबसे पहले चमड़ी पर इस रोग के लक्षण उभार अथवा गाँठ (विशेषकर स्तन अथवा वक्षस्थल पर) दिखायी देते हैं इसलिए यह ग्रह पूर्ण रूप से पाप प्रभाव, अशुभावस्था अथवा बलहीन होना चाहिए।


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चन्द्रः- चन्द्र ग्रह कालपुरुष की कुण्डली में चतुर्थ भाव का स्वामी व कारक दोनों होता है इस चन्द्रमा से हमारे मन, तरलता, शरीर में जलतत्व आदि का अध्ययन किया जाता है। महिलाओं में इसे उनके मासिक धर्म व वक्ष प्रदेश (दूध प्रदाता) के अनुसार भी देखा जाता है। इस चन्द्र का किसी भी प्रकार से पीड़ित, बलहीन व अशुभ होना इस रोग हेतु आवश्यक



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