कुंडली में चतुर्थ भाव तथा मानसिक तनाव

कुंडली में चतुर्थ भाव तथा मानसिक तनाव  

व्यूस : 19032 | जनवरी 2014
मानसिक तनाव बहुत ही भयानक बीमारी है। मानसिक तनाव का रोगी कई स्तर पर जूझता है मानसिक शारीरिक व सामाजिक। प्रारम्भ में शरीर से तो व्यक्ति स्वस्थ दिखते हैं लेकिन अंतरिक स्थिति बहुत दयनीय होती है जो कि धीरे-धीरे शारीरिक व सामाजिक रूप से भी व्यक्ति को प्रभावित करती है। मानसिक तनाव का पता हम ज्योतिष के माध्यम से भी लगा सकते हैं। जन्मकुंडली में बारह भाव और नौ ग्रह होते हैं। ज्योतिष के अनुसार षष्टम भाव, अष्टम भाव तथा द्वादश भाव अशुभ होते हैं। इन भावों का सम्बंध शुभ भावों से होने पर उस भाव से सम्बंधित दोष उत्पन्न हो जाता है । चतुर्थ भाव माता, मातृभूमि, रिश्तेदार, जमीन, जायदाद, वाहन तथा वाहन सुख, मानसिक शान्ति, स्वयं की उन्नति, हृदय, औपचारिक शिक्षा, सामान्य सुख, घर तथा खुशी को प्रदर्शित करता है । चतुर्थ भाव का किसी भी जातक की कुंडली में विशेष महत्व होता है। यह भाव सुख, माता तथा वाहन का होता है। इससे मानसिक शान्ति को भी देखते हैं। साधारणतया चतुर्थ भाव को ज्योतिषी वाहन, माता, मकान के सुख के रुप में देखते हैं। पर मानसिक शान्ति (उमदजंस चमंबम) तथा व्यक्ति के स्वभाव (पददमत चनतपजल) पर भी चतुर्थ भाव का विशेष प्रभाव होता है। साधारणतया जब छठे भाव का स्वामी चतुर्थ भाव में हो तो व्यक्ति मन, वचन तथा कर्म से चोर प्रवृत्ति को धारण करता है। चतुर्थ भाव में जब पापी ग्रह हों तथा चतुर्थ भाव के स्वामी को पापी ग्र्रह देखते हां या उसके साथ युति सम्बंध बनाते हों तो व्यक्ति दुष्ट प्रकृति का तथा दूसरों को धोखा देने वाला होता है। इससे व्यक्ति की मानसिक शांति पूरी तरह नष्ट हो जाती है जो उस पर मानसिक दबाव बनाती है जो कि अन्ततः ब्लड प्रेशर, हदय सम्बंधी तथा अन्य रोगों को जन्म देती है। ज्योतिष में राहु और केतु को छाया ग्रह का नाम दिया गया है। जब राहु चतुर्थ भाव में और केतु दसवें भाव में होता है तो यह स्थिति माता, मन और मकान के लिए पीड़ादायक होती है, जातक को मानसिक रूप से भटकाव देती है। चतुर्थ भाव के स्वामी के अतिरिक्त चतुर्थ भाव के कारक ग्रह भी व्यक्ति की मानसिक स्थिति को प्रभावित करते हैं। चतुर्थ भाव के चार कारक ग्रह चंद्रमा, बुध, शुक्र तथा मंगल हैं। चतुर्थ भाव को समझने के लिए हमें चन्द्रमा, बुध, शुक्र तथा मंगल की स्थिति को समझना होगा। चंद्रमा मन का कारक है। चंद्रमा माता का भी कारक ग्रह है। जब कुंडली में चन्द्रमा नीच का या फिर दुष्ट प्रभाव में होता है साथ ही चतुर्थ भाव का स्वामी भी दुष्ट प्रभाव में हो तो व्यक्ति मातृ सुख से वंचित रहता है। जब चन्द्रमा दुष्ट प्रभाव में होता है तो जातक की माता से उसे किसी भी तरह का सुख नहीं मिलता तथा कभी-कभी माता ही उसकी दुश्मन बन जाती है जिसके कारण व्यक्ति में बचपन से ही मानसिक तनाव/विकार विकसित होने लगता है। यदि चन्द्रमा तथा बुध कुंडली में पूरी तरह से दुष्ट प्रभाव में हो तो व्यक्ति मानसिक रोगी भी हो सकता है। बुध बुद्धि के साथ कुछ संवेगों जैसे हास्य व्यंग्य का भी कारक होता है । मंगल भूमि का कारक होता है। यदि जातक की कुंडली में मंगल चतुर्थ भाव में दुष्ट प्रभाव में है तो भी व्यक्ति की जमीन जायदाद के कारण मानसिक शांति प्रभावित होती है। शुक्र को भी चतुर्थ भाव का कारक माना जाता है। शुक्र चतुर्थ भाव में वाहन सुख साधनों को प्रदर्शित करता है। यदि जातक की कुंडली में शुक्र पाप प्रभाव में हो तो व्यक्ति की मानसकि शांति वाहन तथा अन्य भौतिक सुख-सुविधा के साध् ानों के कारण प्रभावित होती है। शुक्र जीवन साथी का भी कारक है। संक्षेप में, जातक मानसिक शांति, भौतिक सुख-साधनों को तभी भोग सकता है जबकि उसका चतुर्थ भाव तथा चतुर्थ भाव का स्वामी तथा कारक ग्रह किसी भी दुष्ट प्रभाव में न हों। शुभ ग्रहों का प्रभाव चतुर्थ भाव में होने से व्यक्ति खुश मिजाज, मिलनसार और उत्साह से परिपूर्ण होता है तथा माता, वाहन, मकान तथा भौतिक सुखों की प्राप्ति करता है। व्यक्ति अच्छे चरित्र का तथा मानसिक रुप से संतुलित होता है ।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.