जन्म कुण्डली के विभिन्न भावों में शनि का परिणाम

जन्म कुण्डली के विभिन्न भावों में शनि का परिणाम  

व्यूस : 44921 | जनवरी 2014
प्रथम भाव प्रथम भाव में शनि जातक को आलसी, रोगी, अविष्वसनीय, स्वार्थी, निर्धन, तर्कषील, कपटी, वातरोग से ग्रस्त, कायर, प्रभावहीन तथा निकट संबन्धियों से अप्रसन्न रहने वाला बनाता है। यह प्रभाव और अधिक हो सकता है यदि शनि बाधित अथवा नीच का हो किन्तु शनि के उच्च का होने तथा मित्र ग्रहों के प्रभाव में होने पर लाभ भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। आयु के 5वें वर्ष में जातक दुर्भाग्य का भागी होता है। द्वितीय द्वितीय भाव में शनि जातक को कुषल वक्ता (वाक् पटु) तथा पिता की संपत्ति का भोग करने वाला बनाता है और यदि शनि उच्च का हो तो अनेक सुखों का दाता तथा यदा कदा दूसरों की आलोचना करने वाला बनाता है। वह बहुत बुद्धिमान, अति परिज्ञानी परन्तु उसके अनुरूप लाभ न पाने वाला, पराई सम्पत्ति का भोग करने वाला परन्तु अच्छा भोजन न पाने वाला हो सकता है। वह अच्छी आय वाला किन्तु असंतुष्ट, सम्बन्धियों से तालमेल न रखने वाला, औषधि अथवा धातु के व्यवसाय से लाभ पाने वाला, नेत्र रोग होने की संभावना, एक से अधिक जीवन साथी, अवज्ञाकारी संतान तथा छल-प्रपंच से काम निकालने वाला हो सकता है। आयु का 12वां वर्ष आर्थिक हानि दे सकता है। तृतीय भाव शनि के तृतीय भाव में होने पर व्यक्ति भाग्यषाली तथा अच्छे घर व संतान वाला होता है। कूटनीति से विरोधियों को परास्त करता है तथा शासन से लाभ पाता है। उच्च का शनि उसे शान्त, सभ्य, सुषील, विचारवान तथा छोटे भाई-बहनों से सुख प्राप्त करता है। वह दयावान तथा आश्रितों की सहायता करता है किन्तु बाधित शनि भाई-बहनों से दूरी, दुख, कान का रोगी तथा बहुधा भाग्य से हार पाने वाला होता है। आयु के 30वें वर्ष में संबंधियों से लाभ प्राप्त करता है। चतुर्थ भाव चतुर्थ भाव में शनि जातक को कपटी, अनैतिक, जीवन साथी के सुख की हानि, क्रोधी, क्रूर तथा माता को कष्ट का कारण बनता है। यदि शनि लाभकारी है तो पैतृक धन पाने वाला, वृद्धावस्था में सुखी तथा संन्यासी वृत्ति का हो सकता है। बाधित शनि माता - पिता के प्यार से वंचित, अषान्त, पैतृक धन नष्ट करने वाला तथा जीवन में विभिन्न कष्ट पाने वाला होता है। आयु का 8वां वर्ष परिवार के लिए कष्ट का कारण होता है। पंचम भाव पंचम भाव में शनि जातक को दीर्घायु, धार्मिक, नषे का आदि, चंचल, विरोधियों पर विजय प्राप्त कराता है। जोड़-तोड़ करने वाला, सृजक, संतान व जीवन साथी से दुख का भागी होता है। उच्च का शनि उसे शासन से लाभ तथा सामाजिक संस्था के उच्च अधिकारियों का कृपा पात्र बनाता है। यदि शनि अपने ही घर में उच्च का हो तो बुद्धि मान संतान, व्यवसाय में उन्नति, पत्नी से सुख या जीवन में सफलता देता है किन्तु बाधित या नीच का शनि असाध्य रोग, जल से भय तथा अपयष का भागी होता है। वह बुरे विचारों से पीड़ित तथा कामुक होता है। उसे आयु के छठे वर्ष में बिजली तथा आग से भय रहता है। षष्टम भाव षष्टम् भाव का शनि व्यक्ति को नषे का आदि, विरोधियों व शत्रुओं से सदा कष्ट पाने वाला परन्तु अच्छी आय वाला बनाता है। उसमें ऊंचे लोगों से मैत्री की योग्यता होती है तथा अपने विरोधियों को वह चतुराई से परास्त करता है। अपने धर्म में शान्ति प्राप्त करता है। उच्च का शनि दलित लोगों का मित्र, चतुराई से विरोध को कुचलने वाला किन्तु जीवन भर शत्रुओं से जूझने वाला, दीर्घायु तथा शारीरिक आक्रमण का भागी बनाता है। शनि के निम्न अथवा बाधित स्थिति में वह हृदय, गले अथवा मूत्र के विकार से पीड़ित बनाता है। सभी प्रकार के सुख होने पर भी समय पर भोजन नहीं कर पाता। आयु का 24वां वर्ष जातक के जीवन में परिवर्तनकारी होता है। सप्तम भाव सप्तम् भाव में शनि होने पर जातक अपनी ही मूर्खता का षिकार, गलत प्रकार के मित्रों से घिरा हुआ। जीवन साथी से दुखी तथा देर से विवाह करने वाला होता है। बाधित शनि उसे नषे का आदि, बुरी संगत वाला, वैवाहिक सुख से वंचित, निरर्थक विवादों में अदालतों के चक्कर काटने वाला, कभी - कभी बुरे काम करने वाला तथा मित्र के कारण कष्ट पाने वाला होता है। स्वार्थी, उत्साहहीन, सदा चिन्तित, झूठ तथा दूसरों के लिए काम करने वाला होता है किन्तु सषक्त शनि (उच्च का) विरोधियों पर विजय, जीवन साथी से लाभ तथा यष का भागी बनाता है। वह 27वें वर्ष में दुर्भाग्य का भागी होता है। अष्टम भाव अष्टम् भाव में शनि जातक को धन की कमीं, क्रोधी, भयभीत, लालची, बुरे लोगों की संगत तथा विद्वानों की संगत से वंचित करता है। वह बवासीर, शुगर, डाईबीटीज तथा नेत्रों का रोगी, नषेबाजों की संगत करने वाला हो सकता है। गलत कार्यों से आय करने वाला, धोखेबाज, रहस्यवाद में रूचि रखने वाला, दीर्घायु तथा भगवान से डरने वाला होता है। आयु के 25वें वर्ष में शारीरिक कष्ट का भागी होता है। नवम भाव नवम् भाव में शनि व्यक्ति को साहसी, धनी, रिष्वतखोर तथा दूसरों को धोखा देकर धन कमाने वाला बनाता है। धर्म में उसकी आस्था सदा नहीं रहती, उसे जल से भय तथा जीवन साथी से मतभेद रहता है। यदि शनि नीच अवस्था में है तो जातक कृपण (लालची), स्वार्थी, दूसरों की भावना को ठेस पहुंचाने वाला, बातूनी, वैवाहिक सुख से वंचित, चालाक, अच्छे मित्रों से रहित, भाग्यहीन तथा पिता के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला होता है। यदि शनि उच्च का हो तो महान आत्मा, ज्ञानवान, प्राचीन शास्त्रों में रूचि रखने वाला, शुद्ध, चरित्रवान, संन्यासी तथा पूर्व जन्म में पाप कर्मों का भागी रहा हो सकता है। आयु के 36वें वर्ष में भाग्योदय होता है। दशम भाव दषम् भाव में शनि जातक की षिक्षा में कमी किन्तु अति भाग्यवान बनाता है। अपने परिवार का नाम करने वाला तथा सरकार से बहुत अधिक लाभ पाने वाला होता है। विभिन्न कलाओं का ज्ञाता, बहुत से मित्रों वाला, बुद्धिमान, धनी, बहादुर, न्यायप्रिय, नेता तथा दूसरों पर अधिकार वाला आस्तिक, परिश्रमी, संगीत में रूचि, सौम्य तथा अपनी मेहनत के बल पर उन्नति करने वाला होता है। यदि शनि बाधित है तो अपने व्यवसाय में उन्नति से गिरने वाला होता है। यदि शनि अतिबाधित हो तो माता - पिता से सुख नहीं मिलता तथा उनके धन का लम्बे समय तक भोग नहीं कर पाता और यदि मंगल से बाधित हो तो विरोधियों से भय, मधुमेह आदि रोग तथा बहुत परिश्रम करने पर भी कम लाभ पाने वाला होता है। आयु के 26वें वर्ष में दुर्घटना का भय रहता है। एकादश भाव एकादष भाव में शनि जातक को राजा अथवा शासन से लाभ देता है। वह कामी, शत्रुओं पर विजयी, नीतिवान, संकट मुक्त, सुखी व आनन्दमय जीवन पाता है। यदि शनि कमजोर हो तो अति लोभी किन्तु वृद्धावस्था में सुखी होता है। वह धनी होता है परन्तु विपरीत लिंग वालों पर खर्च करने वाला होता है। वह तेजस्वी, स्थिर चरित्र, रोग मुक्त, वास्तुविद किन्तु संतान से सुख न पाने वाला होता है। यदि शनि बाधित हो तो विपरीत लिंग के व्यक्ति से जाल में फंसने वाला, मित्रों से छला जाता है तथा नुकसान उठाता है। यदि वह जुए का आदी हो जाये तो अपयष का भागी व धन की हानि पाता है किन्तु आयु के 24वें वर्ष में विषेष अर्थ लाभ पाता है। द्वादश भाव यदि द्वादष भाव में शनि होता है तो जातक अपनां से खुषी में कमी, धूर्त, गरीब, उदास, आलसी, कठोर, ऋणी, संन्यासी वृत्ति वाला, पैसा बहाने वाला तथा दूसरों को लाभ देने वाला होता है। अपनी ही प्रगति में बाधा उत्पन्न करने वाला तथा अपनों से ही विरोध प्राप्त होगा। यदि शनि उच्च का हो तो धार्मिक, सामाजिक कार्य करने वाला, सहायता करने वाला, नेक चलन तथा धन संग्रह में दूरदृष्टि वाला होता है। आयु के 45वें वर्ष में अर्थ हानि हो सकती है। शनि का विभिन्न राशियों में परिणाम: मेष मेष राषि में शनि जातक को कमजोर, मानसिक चिन्ता अथवा रक्त विकार का रोगी कर सकता है। शारीरिक कष्ट, अपच और जीवन में अनेक दुख का भागी होता है। वृष वृष राषि में शनि व्यक्ति को बुद्धिमान, साहसी, निर्भीक, उपक्रमों में कुषल, विवादों व संकटों पर विजयी बनाता है। वह सम्पत्ति से लाभ तथा विपरीत लिंग वालों से मैत्री लाभ लेने वाला होता है। मिथुन मिथुन राषि का शनि जातक को विपरीत लिंग वालों से लाभ, जीवन साथी से सुख तथा सुखों में आनन्द पाने वाला होता है। वह बुरे लोगो की संगत पाने वाला किन्तु अपनी बुद्धि से लोगों को प्रभावित करने वाला होता है। कर्क कर्क राषि में शनि जातक का कमजोर (षारीरिक) काया, अस्वस्थ, संकट ग्रस्त तथा नेत्र रोग से पीड़ित करता है। स्वार्थी, संयमी, सभी का मित्र, चंचल तथा जीवन साथी और संतान से सुख पाता है। सिंह सिंह राषि में शनि होने पर जातक का जीवन साथी व संतान से मतभेद रहता है। दूसरों से अकारण विवाद, विरोध, अपयष, मानसिक संताप तथा जीवन में विभिन्न कष्टों का भागी होता है। कन्या कन्या राषि में शनि जातक को व्यवसाय तथा रचनात्मक कार्यों से अच्छा धन कमाने वाला बनाता है। वह अचल संपत्तियों का स्वामी अनेक मित्रों वाला तथा रंगकर्मी होता है। तुला तुला राषि में शनि होने पर जातक शासन द्वारा सम्मानित तथा जीवन में बहुत धन कमाने वाला होता है। वह अच्छी सम्पत्ति, अनेक सेवक तथा उत्तम वाहन का भागी होता है। वृश्चिक वृष्चिक राषि में शनि जातक को जीवन में बहुत यात्रा करने वाला बनाता है तथा वह प्रारम्भिक कष्टों से गुजर कर स्थिरता पाता है। अधिकांष इच्छाओं को पाने वाला परन्तु निचले दर्जे के लोगों से मित्रता रखने वाला होता है। धनु धनु राषि में शनि जातक को विरोधियों को नष्ट करने की क्षमता प्रदान करता है। वह विवाद और युद्ध में सदा विजयी होता है। धैर्यवान जीवन में अच्छी प्रवृत्ति रखने वाला किन्तु अति व्ययी होता है। मकर मकर राषि में शनि हो तो जातक बहुत कष्ट उठाने पर भी अधिक नहीं कमा पाता। वह धोखे का षिकार होता है। विपरीत लिंग वालों से मैत्री, विषय वासना में लिप्त, आर्थिक कष्ट पाने वाला, जीवन में आर्थिक हानि तथा कलेषों का भागी होता है। कुंभ कुम्भ राषि में शनि व्यक्ति को बहुत यष, सम्मान और ख्याति प्रदान करता है। वह अच्छा पद, उत्तम मित्रों वाला, ज्ञानवान तथा बहुत धन कमाने वाला होता है। मीन यदि शनि मीन राषि में स्थित हो तो जातक अधिकारी तथा अचल सम्पत्तियों का स्वामी होता है। अपनी बुद्धि के बल पर बहुत लाभ कमाने वाला तथा सभी प्रकार की सुख सुविधापूर्ण जीवनयापन करने वाला होता है।



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