जीवन की विपरीत परिस्थितियों में जो व्यक्ति समस्याओं का सामना करने की प्रवृति रखता हैं उनका धीरे-धीरे समाधान निकालता हैं। वह व्यक्ति निश्चित रूप से जीवन में आगे बढ़ता हैं। इसके विपरीत जो व्यक्ति समस्याओं से भागने लगता है। वह अपने सर्वनाश को आमंत्रित करता हैं। ऐसे व्यक्ति को सत्संग में जाना शुरु करना चाहिए। सत्संग से अगला कदम साधना हैं। ऐसे व्यक्ति को साधना करनी चाहिए। जिस दिन हम समस्याओं में होने पर उनका समाधान निकालना शुरु करेंगे उस दिन हमारे मुख्य ग्रह शुभ होकर फल देने लगेंगे। तथा जिस दिन हम ऐसा न करके अपने दु:ख में डूबे रहेंगे उस दिन हमारे विशेष ग्रह अनुकूल फल नहीं दे पायेंगे। कर्म कमजोर होने पर भाग्य भी सहयोग नहीं करता हैं। जीवन की विभिन्न अवधियों में ऐसे योग बनते है जिसमें कर्मवादी बनना जीवन को विपरीत परिस्थितियों से निकालकर आगे लेकर जाता हैं। कुछ वर्ष ऐसे होते है जन्म भाग्य कर्म के अधीन हो जाता है। ऐसे वर्षों में कर्म को ही भाग्य मानना होगा। भाग्य कर्म का ही परिणाम हैं। इसीलिए तीनों प्रकार के कर्मों को हमें करते रहना चाहिए। कर्म सदैव से भाग्य से श्रेष्ठ रहा हैं। स्वयं को भाग्य के भरोसे छोड़ देना कर्महीनता हैं। अनुष्ठान और उपाय आपका भाग्योदय नहीं कर सकते। इसलिए कर्म करते रहना होगा। सेवा कार्य करने से व्यक्ति विनम्र होता है। कुंडली का मंगल ठिक करना हो तो धर्म स्थान पर साफ-सफाई करें। इससे व्यक्ति में विनम्रता आयेगी और मंगल शांत होगा। अशुभ ग्रह यदि अधिक शक्तिशाली हो जाएं तो राजयोग और अन्य शुभ योग अपनी पूर्ण फल नहीं दे पाते हैं। ग्रह योग का फल देखने के लिए नवांश कुंडली का भी बारीकी से अध्ययन करना चाहिए। नवांश में इन ग्रहों की स्थिति कैसी है। यह भी दशाओं में मिलने वाले फल पर निर्भर करता है।
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