समाज चमत्कार देखना चाहता है। जिस चीज घटना के होने की कोई उम्मीद न हो और वह घटित हो जाए तो इसे चमत्कार कहा जाएगा। नित्य प्रति हमारे आसपास कुछ न कुछ ऐसा घटित होता रहता है जिसे हम चमत्कार का नाम देते हैं। ज्योतिषी ऐसी ही घटनाओं को सामने ला सकते हैं। परन्तु किसी भी स्थिति में ज्योतिषी को स्वयं पर अंहकार नहीं करना चाहिए। साथ ही ज्योतिषियों को स्वयं को महिमा मंड़ित करने से भी बचना चाहिए। इसके अलावा ज्योतिषी को स्वयं को ईश्वर समझने से बचना चाहिए। सूर्य नाड़ी व चंद्र नाड़ी दो नाड़िया हैं। ये दोनों हमारे शरीर में तथा ब्रह्मांड दोनों में स्थित है। इन दोनों नाड़ियों पर जिसने नियंत्रण करना सीख लिया हैं। वह अपने भाग्य का निर्माता जाता हैं। इन्हीं दो नाड़ियों पर अधिकार कर लेने वाला व्यक्ति अपने जीवन में मनचाहा बदलाव करने की योग्यता रखता हैं। यदि कोई व्यक्ति यह कार्य कर लेता है तो वह अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा लेता हैं। जैसे- ऊं शब्द का उच्चारण एक विशेष प्रकार से करने पर कैंसर जैसे रोग भी दूर हो सकते हैं। प्राण एक साथ शरीर नहीं छोड़ता। प्राणवायु धीरे धीरे शरीर से बाहर निकलती हैं। योग क्रियाओं से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैं। व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात यदि उस पर ८-१० बार (कार्डियो पालमन्री रीशेशीयेशन) CPR प्रणाली का प्रयोग किया जाता है तो ह्द्रय धड़कने लगता है। कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो आत्मबल कमजोर हो जाता है। जिसकी कुंडली में चंद्र कमजोर है वह अन्तर्मुखी होकर अपनी कल्पनाओं में खोया रहेगा। बुध बली हो तो विवेकशीलता देता है, वित्त विषयों को गहराई से सुलझाने की योग्यता देता है। यदि कोई व्यक्ति किसी पंतग की डोर को सुलझाने के लिए धैर्य, विवेक से काम लेता है वह एक संतुलित मस्तिष्क है इसके विपरीत जो डोर को जोर से ईधर-उधर खींच कर सुलझाने का प्रयास करेगा। वह एक भावुक मस्तिष्क हैं। ऐसा व्यक्ति जीवन में बार बार गलतियां करेगा। संवेदनशीलता की अधिकता व्यक्ति को भावुक बनाती हैं। ऐसा व्यक्ति अपने लिए और अपने पासपास के लोगों के लिए परेशानियां खड़ी करेगा। व्यर्थ का डर उस व्यक्ति में हो सकता हैं। योग के द्वारा व्यक्ति अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख सकता है और अपने व्यक्तित्व की कमियों को दूर कर सकता है।
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