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भावों की संज्ञा (1 व्यूस)

किसी भी कुंडली में कुल 12 भाव होते हैं लेकिन प्रत्येक भावों के समूंह विशेष को एक नाम दिया जाता है जिसके आधार पर यह पता चल पाता है कि यह समूह शुभ है या अशुभ। केन्द्र भाव इस प्रकार होते हैं जैसे कि किसी टेन्ट के चार स्तंभ तथा त्रिकोण भावों का महत्व इस प्रकार समझें जैसे कि इन टेन्टों को संभालने वाली रस्सियां। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस कुंडली में केंद्र और त्रिकोण भाव जितने शुभ और बली अर्थात शुभ ग्रहों से युक्त और शुभ ग्रहों से दृष्ट होंगे वह जन्मकुंडली उतनी ही अधिक शुभ मानी जाएगी। केन्द्र भाव इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि केंद्र भाव से जीवन के महत्वपूर्ण पहलूओं को देखा जाता है। जैसे पहले भाव से जातक का स्वास्थ्य, आयु, मान-सम्मान देखा जाता है जबकि चैथे भाव से जातक की मानसिक शांति, जमापूंजी, धन संपदा के बारे में देखते हैं। सप्तम भाव जातक के वैवाहिक जीवन को दर्शाता है। जबकि दशम भाव जातक के कार्य क्षेत्र को बताता है। इसी प्रकार अन्य भावों का भी अपना-अपना महत्व है।


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