धार्मिक क्रिया-कलाप का वैज्ञानिक महत्व और ऊर्जा क्षेत्र बढ़ाने के साधन

धार्मिक क्रिया-कलाप का वैज्ञानिक महत्व और ऊर्जा क्षेत्र बढ़ाने के साधन  

व्यूस : 7871 | आगस्त 2013
हम आपको वैज्ञानिक रूप से रुद्राक्ष, रत्न, योग, धार्मिक क्रिया-कलाप आदि का हमारे जीवन में क्या महत्व है इस विषय से अवगत करायेंगे। पूरे ब्रह्माण्ड में सजीव व निर्जीव दोनों ही प्रकार की वस्तुयें नौ रंगों की कम्पन शक्तियों 400 हटर््ज से 700 हटर््ज के बीच में ही रहते हैं। इन कम्पन शक्तियों की किसी भी प्रकार की कमी या अधिकता से हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ते हैं इसलिए ब्रह्माण्ड की इस नवरंगों की कम्पन शक्तियों को संतुलन में होना बहुत ही आवश्यक है। इनकी कमी या अधिकता से हमारे शारीरिक व मानसिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है तथा आर्थिक व्यवस्था व पारिवारिक सम्बन्धों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। इसलिए हमें इस बात का बहुत ध्यान रखना है कि हर प्रकार की उन्नति के लिए इन नवरंगों की कम्पन्न शक्तियां हमें सही मात्रा में प्राप्त होती रहे। हमारे ऋषि मुनि जानते थे कि आने वाले समय में लोगों के पास ध्यान करने के लिए न तो समय होगा और न ही उनकी इतनी क्षमता होगी। तब उन्होंने सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कुछ धार्मिक क्रिया-कलापों को करने के लिए लोगों को प्रेरित किया जिसकी सहायता से वे नकारात्मक ऊर्जा से अपने आपको बचा कर रख सकें और पर्यावरण में भी सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा सकें। उन्होंने मन्दिरों, घरों आदि में हवन व यज्ञ करने के लिए बताया क्योंकि हम हवन या यज्ञ के अन्तर्गत अग्नि में जो सामग्री प्रज्ज्वलित करते हैं उसमें बहुत सी वस्तुएं नकारात्मक ऊर्जा को रोकते हुए सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती हैं तथा कई प्रकार के कीटाणु व विषाणुओं का भी विनाश होता है और हमारे पर्यावरण की शुद्धि होती है। सुबह-शाम घर में गाय के घी का दीपक जलाने से यह सकारात्मक ऊर्जा को रोकता है। पूजा करते समय सिन्दूर, हरी दूब, कलावा, पान का पत्ता व फूलों व फलों आदि का प्रयोग इसलिए किया जाता है कि ये सब नकारात्मक ऊर्जा को रोकते हैं। हमारे पूर्वजों ने स्त्रियों के लिए बहुत सारी वस्तुओं को धारण करने को कहा है जैसे कांच की चूड़ियां, पैरों में चांदी की पायल और बिछुए, कमरबन्ध, मंगलसूत्र, माथे पर बिन्दी, मांग में सिन्दूर आदि को धारण करने का अपना एक वैज्ञानिक महत्व है परन्तु लोगों ने इनका वैज्ञानिक महत्व न समझ कर इनको अंधविश्वास के रूप में प्रचलित कर दिया जिससे हमारे समाज से स्त्री का ये शृंगार धीरे-धीरे गायब होता जा रहा है। इन सब वस्तुओं के वैज्ञानिक महत्व का विस्तृत विवरण हमने अगस्त 2012 के अंक में दिया हुआ है। इसी प्रकार भारत में शादी भी एक उच्चतर वैज्ञानिक प्रक्रिया है। शादी से पहले लड़के-लड़की को हल्दी और बेसन का उबटन लगाया जाता है जिससे उनके शरीर की सारी नकारात्मक ऊर्जा निकल जायें व आने वाली नकारात्मक ऊर्जा से बच सकें। अग्नि के चारों तरफ सात फेरे या भांवर का भी अपना वैज्ञानिक महत्व है। हमारे पंच भूतों में अग्नि पवित्र मानी गयी है। इसलिए किसी भी वस्तु को शुद्ध करने के लिए अग्नि में ही तपाया जाता है। इसलिए जब वर और वधू एक-दूसरे का हाथ पकड़ करके चारों तरफ फेरे लेते हैं तब उन दोनों के बीच की नकारात्मक ऊर्जा भस्म हो जाती है तथा उनका एक नया रिश्ता आकार लेता है। पूजा स्थल जैसे मन्दिर आदि हमारे यहां सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा का स्थान माना जाता है यहां पर आकर लोगों को मानसिक शान्ति का भी अनुभव होता है क्योंकि मन्दिर में मूर्ति स्थापना के समय वहां पर भूमि पूजन करते हैं तथा नीचे नवरत्न, नव धान्य को गाड़ते हैं तथा मन्दिर में हमेशा मन्त्रोच्चारण होते रहते हैं तथा हवन व यज्ञ होते रहते हैं जिससे मन्दिर की सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है तथा भगवान को फूलों से अलंकृत किया जाता है क्योंकि प्रत्येक फूल का ऊर्जा क्षेत्र मनुष्य के ऊर्जा क्षेत्र से अधिक होता है इसलिए दक्षिण भारत की स्त्रियां अपने बालों में फूलों व गजरों का प्रयोग करती हं। पूजा के समय हाथ में कलावा बांधा जाता है। यह बाहरी नकारात्मक ऊर्जा को रोकता है तथा शरीर के अन्दर की नकारात्मक ऊर्जा को खींचता है। जब इसका रंग फीका पड़ने लगे तब या अधिक से अधिक नौ दिन में इसे हमें अपने हाथ से खोल देना चाहिए। वेद मंत्रों का उच्चारण तथा घी, गूगल व कर्पूर आदि जलाकर मन्दिर की सकारात्मक ऊर्जा इतनी बढ़ायी जाती है कि वहां पर जाकर हमें एक आत्मिक आनन्द का एहसास होता है। भारत में कई तीर्थ स्थल ऐसे हैं जिनका अपना एक विशेष महत्व है। ऐसे ऊर्जाग्रहित स्थान पर जाने से हमारी नकारात्मक ऊर्जा स्वतः ही खत्म हो जाती है। उदाहरण के लिए शनि सिगनापुर धाम जो शिरडी के पास है वहां पर जाने से शनि का प्रकोप कम हो जाता है। इसी प्रकार रत्न और रुद्राक्ष भी हमारी सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने में हमारी सहायता करते हैं। आजकल के वातावरण में केवल यही सकारात्मक ऊर्जा के स्रोत रह गये जो मनुष्य के ऊर्जा क्षेत्र को कुछ हद तक बढ़ा सकते हैं क्योंकि आज-कल पर्यावरण में इतनी नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित हो रही है जिसका मुख्य कारण है टावर, हाई टेंशन वायर, इलैक्ट्रिक गैजेट्स, मोबाइल, लैपटाप से निकलने वाली नेगेटिव अल्ट्रा वायलेट रेडियेशन। पुराने समय में एक मनुष्य का ऊर्जा क्षेत्र 10-15 मीटर होता था जो घटकर 2.4 से 2.8 मीटर तक रह गया है। इसका मुख्य कारण प्राकृतिक पर्यावरण की कमी होना है। शुद्ध वायु हमें ग्रहण नहीं कर पाते है हर स्थान इतना प्रदूषित है कि जब हम खेतों में अनाज उगाते हैं तो उस समय हम उसमें इतना खाद, उर्वरक व कीटनाशक का प्रयोग करते हैं कि खाद्य पदार्थों में भी सही ऊर्जा का संचार नहीं हो पाता है जिससे सम्बन्धित कम्पनशक्ति हमें नहीं मिल पाती है इसलिए कुछ हद तक रत्न या रुद्राक्ष ही हमें कुछ सकारात्मक ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं। परन्तु हम आजकल देखते हैं कि अधिकतर मनुष्य हाथ में चार-पांच बड़े-बड़े रत्न व गले में मोटे-मोटे रुद्राक्ष की माला पहने हुए है फिर भी उनको शारीरिक व मानसिक शान्ति का अनुभव नहीं होता। इतनी अधिक ऊर्जा प्रवाह करने वाले रत्न पहनने के बाद भी वह परेशान रहते हैं। इसका मुख्य कारण है कि सभी ऊर्जा प्रवाह करने वाले रत्न एक-दूसरे की ऊर्जा काटकर 100 प्रतिशत ऊर्जा का प्रवाह हम तक नहीं कर पाते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि व्यक्ति किसी भी ज्योतिषी के पास जाता है तो वह उसकी कुण्डली आदि देखकर उसके शारीरिक वजन के अनुसार पांच, सात या नौ रत्ती का रत्न पहनने की सलाह दे देता है लेकिन मनुष्य उसको पहनने के बाद भी कभी-कभी मानसिक शान्ति का अनुभव नहीं कर पाता है। इसका कारण यह है कि उस रत्न की कटाई ठीक से न होने के कारण वह 100 प्रतिशत सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह नहीं कर पाता या उस रत्न या रुद्राक्ष की ऊर्जा की मात्रा हमारी शारीरिक ऊर्जा के अनुरूप नहीं हो पाती। आजकल सात या नौ रत्ती का रत्न धारण करना उपयुक्त नहीं है। इसका कारण यह है कि 100 वर्ष पहले मनुष्य का ऊर्जा क्षेत्र 10 से 15 मीटर होता था क्योंकि वह प्राकृतिक वातावरण में रहता था और इतनी अधिक ऊर्जा को सहन करने की क्षमता रखता था। परन्तु आजकल मनुष्य ऊर्जा क्षेत्र घटने के कारण अपनी क्षमता से अधिक ऊर्जा को सहन नहीं कर सकता तथा मानसिक रूप से उसको परेशानियां होने लगती हैं। हम कोई भी रत्न या रुद्राक्ष पहनकर अपना ऊर्जा क्षेत्र नहीं बढ़ा सकते हैं क्योंकि प्रत्येक रत्न व रुद्राक्ष की अपनी एक कम्पनशक्ति होती है यदि उसमें तालमेल न हो तो सही परिणाम प्राप्त नहीं हो सकते हैं। हम सभी किसी न किसी माध्यम से रत्न आदि ग्रहण करते हैं जबकि कुछ लोग इनके प्रभावों को महसूस करते हैं तथा कुछ लोग इनके कुप्रभावों को भी महसूस करते हैं तथा अधिकतर पहनने के बाद भूल जाते हैं। रुद्राक्ष व रत्न ऊर्जा के स्रोत हं तथा यह आपको तभी 100 प्रतिशत सकारात्मक प्रभाव देगा जब इसका चुनाव सही हो। उसकी आंतरिक संरचना आपकी शारीरिक संरचना के अनुरूप हो तथा उससे मिलने वाली ऊर्जा आपके अनुकूल हो जैसे किसी दवाई का सही असर तभी देख सकते हैं जब वह सही जांच करने के बाद ली जाए। इसी प्रकार योग के द्वारा भी हम अपनी आन्तरिक ऊर्जा शक्ति को बढ़ा सकते हैं। आजकल हम बाहरी वस्तुओं के साथ इतना जुड़ गये हैं कि हमें अपने आपको समझने के लिए वक्त ही नहीं मिलता है। योगासन और ध्यान एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा आप अपना शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से अपने आप को समझ सकते हैं। योग में मुख्यतः आठ भाग होते हैं। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान व समाधि। मुख्यतः जब हम योग में आसन करते हैं तो उसमें हमें अपनी श्वसन प्रश्वास पर अपना ध्यान केन्द्रित करना होता है जिसके द्वारा हम आन्तरिक व मानसिक शान्ति का अनुभव करते हैं। योग का अर्थ है मन की अशुद्धियों में परिवर्तन करके उसे शुद्धिकरण की तरफ ले जाना। संस्कृत में एक योग का बहुत ही महत्वपूर्ण श्लोक है ‘‘योगः चित्त-वृत्तिनिरोधः’’ आजकल की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में केवल योग ही एकमात्र ऐसा अभ्यास है जिसके द्वारा आप अपने आपको शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक रूप से सन्तुलित रख सकते हैं। इसी प्रकार हम रेकी के द्वारा भी किसी व्यक्ति के ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ा सकते हैं। रेकी में कोई भी व्यक्ति अपने ब्रह्माण्ड के ऊर्जा को अपने चैनलों के द्वारा दूसरे व्यक्ति को ऊर्जा प्रदान करता है। एक व्यक्ति अपने द्वारा दूसरे व्यक्ति को कहां तक ऊर्जा प्रदान कर सकता है हम यूनीवर्सल थर्मो स्कैनर की सहायता से देख सकते हैं। यह रेकी देने से पहले व्यक्ति का ऊर्जा क्षेत्र कितना है तथा रेकी देने के बाद व्यक्ति का ऊर्जा क्षेत्र कितना बढ़ा यह देख सकते हैं। जियोपैथिक स्ट्रैस जैसे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर रेकी का प्रभाव अधिक नहीं पड़ता है क्योंकि जो रेकी की ऊर्जा व्यक्ति को प्रदान की गई है वह नकारात्मक ऊर्जा को ही खत्म करने में समाप्त हो जाती है। हम मनुष्यों को अपने ऊर्जा क्षेत्र बढ़ाने के लिए कोई न कोई कार्य अवश्य करना चाहिए क्योंकि आजकल पर्यावरण में इतनी अधिक नकारात्मक ऊर्जा है, उनसे लड़ने के लिए हमें अपना ऊर्जा क्षेत्र बढ़ाना ही पड़ेगा अन्यथा हम शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार हो जायेंगे। हर प्रकार की नकारात्मक व सकारात्मक ऊर्जा चाहे वह व्यक्ति, स्थान वस्तु, रत्न, रुद्राक्ष में हो हम अपने यूनीवर्सल थर्मो-स्कैनर के द्वारा ज्ञात कर सकते हैं। यह पूर्णरूप से वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है। इसकी सहायता से हम व्यक्ति में आने वाली बीमारी के बारे में भी बता सकते हैं कि भविष्य में उसको किस अंग में बीमारी आने की सम्भावना है जिससे समय रहते वह अपना इलाज कर सके और गम्भीर अवस्था से बच सके।



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