तुलसी: पूजनीय एवं सदैव कल्याणकारी

तुलसी: पूजनीय एवं सदैव कल्याणकारी  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 4142 | अकतूबर 2013

हिंदु धर्म की पूजनीय वनस्पति तुलसी सदैव कल्याणकारी कही गई है। भारतवर्ष में ही नहीं संसार के लगभग अधिकांश देशों में इसे पवित्रता की दृष्टि से देखा जाता है।

अनेक औषधीय गुणों से भरपूर तुलसी का धार्मिक महत्व भी है। अनेक धार्मिक अनुष्ठानों व तांत्रिक प्रयोगों में इसका उपयोग होता है। इस्लाम में भी तुलसी की पत्तियां कब्र में रखने का प्रावधान है। दूसरे देशों में भी समाजिक उत्सवों, धार्मिक कार्यों में तुलसी का विभिन्न रूप से उपयोग और पूजा होती है।

तुलसी का नाम पद्म पुराण, शिव पुराण में वृंदा देकर जालंधर की पत्नी के रूप में बतलाया गया है। तुलसी को सुरसा अथवा श्रेष्ठ रस वाली कहा गया है। इसके रस को पीने से शरीर का सौंदर्य दिन-प्रतिदिन बढ़ता है।

पुराणों में तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी होने का गौरव मिला है। इसी कारण तुलसी जगज्जननी भी है। परमात्मा के अनेक दुर्लभ वरदानों में परिगणित तुलसी के बिरवें को अमृत का प्रतिरूप भी कहा गया है।

तुलसी का पौधा आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इसे हमेशा घर-आंगन में लगाना उपयोगी है। तुलसी के पत्तों से गंध निकल हवा में मिलती है वह वातावरण को शुद्ध करती है और निकट रहने वालों की कांति, ओज और शक्ति को बढ़ाती है।

इसकी जड़ तने, पत्ते, फूल, बीज सभी का औषधीय उपयोग है। यहां तक कि जिस स्थान पर तुलसी का पौधा रहता है उस स्थान की मिट्टी भी अनेक गुणों से युक्त हो जाती है।

युगों से ही तुलसी-पूजन की प्रथा रही है इसे देवता समान माना गया है क्योंकि यह जीवनदायनी सिद्ध है इसीलिए हमें ‘अमृत’ भी कहा गया है अपनी इन्हीं उपयोग गुणों के कारण इसे पूजा जाता है।

जिस स्थान पर तुलसी के कई पौधे होते हैं या जंगल होता है वहां कोसांे दूर तक का वायुमंडल गंगाजल की तरह पवित्र हो जाता है। इसीलिए घर में तुलसी का पौधा होने से घर के इर्द-गिर्द वातावरण शुद्ध रहता है। सांप, बिच्छू, मच्छर आदि जहरीले कीट, कीडे़-मकोड़े दूर हो जाते हैं।

यहां तक की यम के समान घातक रोगाणु वहां प्रवेश नहीं कर पाते। तुलसी की सुगंध, दुर्गंध नाशक होती है। यही कारण है कि मलय द्वीप के लोगों में कब्रों पर तुलसी-पूजन की प्रथा है जिससे मृत-शरीर के सड़ने की दुर्गंध न फैले।

भारत में मंदिरों में प्रसाद के रूप में चरणामृत लिया जाता है। उसमें तुलसी के पत्तों को अनिवार्य माना गया है क्योंकि तुलसी ही जल को अमृत बना सकती है।

प्रातःकाल तुलसी के बगीचे में घूमने से श्वांस नलिकाओं में स्थित रोगाणुओं का नाश होता है तथा श्वांस के साथ तुलसी की सुगंध शरीर में जाने से नेति क्रिया के समान क्रिया संपादित हो जाती है और शरीर स्वस्थ व निरोगी रहता है।

हमारे महर्षियों ने तुलसी के औषधीय गुणों को भली भांति समझा और उसके उपयोगों को जाना जिससे कई प्रकार के रोगों में तुलसी को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।

तुलसी की प्रमुख दो प्रजातियां- काली और सफेद। दोनों के गुण लगभग समान हंै। किंतु कुछ पश्चिमी विद्वानों का मानना है कि दो के गुणों में कुछ अंतर है।

उनके अनुसार सफेद तुलसी की तासीर गरम है जो पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और कफ रोग नाशक होती है जबकि काली तुलसी की तासीर ठंडी, स्निग्ध और कफ व ज्वरनाशक गुणों से भरपूर होती है।

तुलसी को संस्कृत में, सुरसा भी कहते हैं। अंग्रेजी में ठंेपस कहते हैं तुलसी मनुष्य की शारीरिक व्याधियों को तो दूर करती है आंतरिक विचार भी शुद्ध करती है। इसके बीजों को तुख्मरेहां कहते हैं।

इनका प्रयोग वीर्य को गाढ़ा बनाता है। तुलसी का प्रयोग करने से मानसिक तनाव कम किया जा सकता है। यह हृदय रोग व रक्तचाप की एक अचूक दवा है। कैंसर, किडनी, चर्मरोग सर्दी, जुकाम में भी यह लाभकारी हैं।

मानसिक रोग से पीड़ित बालकों को तुलसी रस देने से उनकी मानसिक स्थिति में अपूर्व सुधार एक माह में ही होने लगता है। तुलसी की माला पहनने से मानसिक शांति मिलती है, क्रोध शांत होता है, स्वर में मधुरता आती है।

तुलसी अतिसार को दूर करती है। पीलिया व कुष्ठ रोगों में लाभकारी है। तुलसी के सेवन से रतौंधी ठीक हो जाती है। वक्ष शूल, स्तन-पीड़ा में भी उपयोगी है। मधुमेह पेशाब के मैलेपन व दुर्गंध को भी दूर करती है।

तुलसी पित्तकारक, वात कृमि और दुर्गंध नाशक है। यह पसली के दर्द श्वांस रोग, खांसी हिचकी आदि विकारों को दूर करती है। सिर दर्द भारीपन आधा सीसी, कृमि, मिरगी और नाक से संबंधित रोगों को दूर करने का गौरव भी हमें प्राप्त है।

मानव दैनिक जीवन में तुलसी का विशेष महत्व है। इसके निकट रहने से अनेक रोगों से राहत मिलती है। इसकी सुगंध रक्त विकार दूर कर मन में बुरे विचारों का नाश करती है। क्रोध और मन को शांत रखती है। कामुकता को नियंत्रित रखती है और नपुंसकता दूर करती है। तुलसी के पौधे की पूजा करने से मन में सात्विक गुणों की वृद्धि होती है, मानसिक शांति प्राप्त होती है।

 

आपकी कुंडली में है कोई दोष? जानने के लिए अभी खरीदें  सम्पूर्ण महा कुंडली रिपोर्ट

 

विभिन्न रोगों में तुलसी का उपयोग

गले का विकार: तुलसी की माला गले में पहनने से गले के विकार दूर होते हैं।

दंत रोग: तुलसी के पत्ते रोज चबाने से दांतों के रोगों से राहत मिलती है। कीड़े नहीं लगते और मुख व श्वांस की दुर्गंध दूर होती है।

कान का दर्द: तुलसी के रस को कान में डालने से कान दर्द में आराम मिलता है।

त्वचा रोग: तुलसी के तेल से त्वचा की मालिश करने से त्वचा के रोग जैसे खुजली, दाद, झुर्रियां आदि दूर हो जाती हं और त्वचा में निखार आता है।

अनिद्रा: जिस व्यक्ति को ठीक से नींद नहीं आती या सोते में नींद से बार-बार उठा जाता हो, वह एक तुलसी का पत्ता मुंह में रखके सो जाये नींद अच्छी आएगी। यदि हो सके तो कुछ पत्ते सिरहाने के दायें-बायें भी रख सकता है।

प्रोस्टेट ग्रंथि: प्रोस्टेट ग्रंथि में सूजन आने से पेशाब रूक जाता है जो कष्टकारी है। तुलसी के रस को पीने से प्रोस्टेट ग्रंथि ठीक रहती है और पेशाब भी बिना रूकावट के आता है। किडनी की पथरी: तुलसी का रस नियमित पीने से धीरे-धीरे किडनी की पथरी धुल कर निकल जाती है।

ब्लड कोलेस्ट्राल: तुलसी का रस, तुलसी की चाय, सब्जी आदि में तुलसी के पत्ते डालकर खाने से ब्लड कोलेस्ट्राल ठीक रहता है।

सर्दी जुकाम: सर्दी जुकाम में तुलसी की चाय व तुलसी का रस पीने से सर्दी जुकाम में आराम मिलता है। लकवा: तुलसी के पंचांग (पत्ते, फूल, बीज, जल, तना) लेकर उसका काढ़ा बना लें और जिस अंग में लकवा हो गया हो उसे गुनगुने काढ़े से धोएं। एक सप्ताह नियमपूर्वक करने से लाभ होगा। आंख

दुखना: तुलसी के रस को शहद में मिलाकर आंख में डालें तो आंख का दुखना व अन्य आंख के रोग में भी लाभ मिलता है। चक्कर आना: तुलसी के रस में शहद मिलाकर रोज चाटें। इससे चक्कर और दिमागी कमजोरी में लाभ होगा।

बहरापन: काली तुलसी का रस तेल को गुन गुना गर्म कर मिलाएं तथा रात को सोते समय कान में डाले। दस-पंद्रह दिनों में कानों के बहरेपन में आराम मिल जायेगा।

घाव में कीडे़: काली तुलसी के सूखे पत्तों के चूर्ण को घाव पर भर दें तो घाव के कीडे़ समाप्त होकर घाव भर जायेगा।

आंतों का मल: तुलसी के रस, अदरक का रस और नींबू का रस तीनों को मिलाकर थोड़ा काला नमक डालकर चाटने से आंतों का मल साफ हो जाता है।

हृदय रोग: तुलसी के पत्तों के रस 10 ग्राम सुबह शाम पीने से हृदय रोग में लाभ मिलता है।

नपुंसकता: प्रतिदिन तुलसी की पूजा करने, तुलसी रस सेवन करने और तुलसी के निकट बैठने से नपुंसकता दूर हो जाती है।

सावधानी: सूर्यास्त के पश्चात तुलसी के पत्ते आदि न तोड़े और न स्पर्श करें। दूध के साथ तुलसी के पत्तों का सेवन न करें। तुलसी के पत्ते, लकड़ी, छाल को अग्नि में न जलाएं। उपचार हेतु - उपचार हेतु उपरोक्त उपयोग विशेषज्ञ की देख रेख में करें अन्यथा हानि हो सकती है।

रोग मुक्ति एवं ग्रहों की युति से संबन्धित ऐसी तमाम समस्याओं के निवारण हेतु प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यो से परामर्श करें



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.