माता दुर्गा दुर्गति दूर करने वाली सिंह वाहिनी हैं। दुर्गा शब्द का अर्थ है द अर्थात् दैत्यनाशक, उ- उत्पात नाशक, र- रोगनाशक, ग- गमन नाशक तथा आ- आमर्षनाशक। अर्थात मां दुर्गा की उपासना करने से सभी प्रकार के कष्टों एवं दुखों से मुक्ति मिलती है। देवी उपासना से परम पद मोक्ष की प्राप्ति होती है। ‘‘या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।’’ शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप शैलपुत्री कहलाया। नवरात्रि में प्रथम दिन इनकी पूजा की जाती है। इसका मूल मंत्र है- ‘ऊँ शं शैल पुत्रयै फट्’ यदि सूर्य कमजोर हो तो स्वास्थ्य के लिये शैल पुत्री की पूजा से लाभ मिलता है। दूसरा रूप है- ब्रह्मचारिणी, इसका मूलमंत्र है ‘ऊँ ब्रं ब्रह्मचारिण्यै नमः’, अक्षमाला व कमंडल धारण किये हुये हैं। राहु की महादशा या नीचस्थ राहु होने पर ब्रह्मचारिणी की पूजा से शक्ति मिलती है और राहु अशुभ फल नहीं देता। तृतीया नव रात्रि को चंद्रघण्टा माता की पूजा की जाती है। घण्टाकार चन्द्रमा मस्तक पर धारण करने से मां चंद्रघंटा कहलाती है। इनकी पूजा से इहलोक एवं परलोक में कल्याण होता है। इसका बीज मंत्र व मूल मंत्र ‘‘ऊँ चं चं चं चं चंद्रघंटाये हुँ। केतु के विपरीत प्रभाव को दूर करने के लिये चंद्रघंटा की साधना शुभ फल देती है। चतुर्थ नवरात्रि का स्वरूप कुष्मांडा है। इसका मूल मंत्र है: ऊँ क्रीं कुष्मांडायै नमः’ चन्द्रमा के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिये विधि विधान से नवरात्रि में पूजा करें। यह रोग-शोक का नाश करके आयु-यश और बल प्रदान करता है। पंचम नव रात्रि को स्कंदमाता की पूजा-अर्चना की जाती है। यह गोद में स्कंद देव को लिये रहती है इसका मूल मंत्र ‘ऊँ स्कंदायै देव्यै ऊँ’ सदा शुभ फल देने वाली है। मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव से बचने के लिये स्कंद माता का ध्यान शुभ फल देता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है। दुर्गा का छठा स्वरूप कात्यायनी माता हैं। इसका मूल मंत्र ऊँ क्रां क्रौं कात्ययन्यें क्रौं क्रौं फट्।’ इनकी पूजा के द्वारा बड़ी आसानी से साधक को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। बुध ग्रह की शान्ति और धन-धान्य के लिये शुभ है। सप्तम नवरात्रि को कालरात्रि की पूजा की जाती है। यह मां दुर्गा का सातवां स्वरूप है। इनकी पूजा का बीच मंत्र है: ‘ली क्रौं हुँ’ काल रात्रि माता का ध्यान करने वाले उपासक को अनेक शुभ फल प्राप्त होते हैं। शनि के कुप्रभाव को दूर कर और शुभ फल पाने के लिये साधना करना बहुत श्रेष्ठ है। कालरात्रि माता की भक्तों पर असीम कृपा रहती है। महागौरी, यह मां का अष्टम स्वरूप है। अष्टम नवरात्रि को महागौरी की पूजा की जाती है। इनका मूलमंत्र ‘ऊँ श्री महागौर्ये ऊँ’ इससे असंभव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। इसकी पूजा करने से गुरु ग्रह शुभ फल देते हैं। अष्ट सिद्धियां देने वाली माता का नवम स्वरूप सिद्धिदात्री कहलाता है। इसका मूल मंत्र ‘ ऊँ शं सिद्धिप्रदायै शं ऊँ’ इससे शुक्र ग्रह का कुप्रभाव समाप्त होता है। यह नवरात्रि का नवम और अन्तिम दिन है। इनकी अर्चना शान्तिदायक, अमृत पद की ओर ले जाने वाली होती है और सभी प्रकार की सिद्धियां साधक को प्राप्त होती हैं। इस प्रकार साधक त्रिशक्ति की उपासना प्रथम तीन दिन महाकाली की पूजा, मध्य के तीन दिन महालक्ष्मी की पूजा और अन्तिम तीन दिनों में महा सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। तीनों की साधना से मानसिक दुर्गुणों का नाश और सात्विक गुणों की वृद्धि होती है। नवरात्रि में मां दुर्गा के उपरोक्त नौ स्वरूपों की आराधना करने से अनेक शुभ फल प्राप्त होते हैं: 1. नवरात्रि में पूजा करने से कुमारी कन्याओं को मनोनुकूल पति की प्राप्ति होती है। 2. विवाहित स्त्रियों को सुखमय जीवन, पति की समृद्धि और दीर्घायु प्राप्त होती है। 3. संतान सुख एवं संतान का कल्याण प्राप्त होता है। 4. दुख-दारिद्रय का नाश, लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। 5. रोग के बचाव पारिवारिक कलह समाप्त होते हैं। 6. बुरे ग्रहों का प्रभाव नहीं होता।