मधुमेह रोग से संबद्ध मुख्य ग्रह एवं भाव नक्षत्रादि विवेचन

मधुमेह रोग से संबद्ध मुख्य ग्रह एवं भाव नक्षत्रादि विवेचन  

जय इंदर मलिक
व्यूस : 2988 | जून 2017

‘स्थूल प्रमेही बलवानहि एकः कृक्षरतथेव परिदुर्वलक्ष्य। संवृहणंतम कृशस्य कार्यम् संशोधन दोष बलाधिकस्य।। चरक के अनुसार मधुमेह रोग दो प्रकार का होता है- एक तगडे़ और बलवान लोगों पर असर करता है और दूसरे तरह वाली बीमारी से पतले एवं कमजोर लोग प्रभावित होते हैं। डायबिटीज शब्द ग्रीक भाषा के डायाबिटोज से निकला है जिसका अर्थ होता है सायफन यानी बहना। मेलीटस का अर्थ है मीठा। ये दो प्रकार के होते हैं - पहला इंसुलिन निर्भर मधुमेह और दूसरा बिना इंसुलिन निर्भर मधुमेह। अधिकांशतः दूसरे प्रकार के रोगी अधिक पाये जाते हैं।

इंसुलिन निर्भर मधुमेह के रोगी बच्चे 17 से 20 वर्ष की आयु में पाये जाते हैं। शरीर में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने के लिये टीके की जरूरत होती है। कहते हैं कि वायरस, बीमारियों या अन्य कारणों से पैंक्रियाज गं्रथि नष्ट हो जाती है या कार्य करना बंद कर देती है। बिना इंसुलिन निर्भर मधुमेह कम गम्भीर होते हैं। यह वयस्कांे में ही पाई जाती है। दो तिहाई रोगी बिना इंसुलिन निर्भर रोगी होते हैं। शरीर में इंसुलिन हार्मोन तो है परन्तु या तो कम मात्रा में है या जरूरत पड़ने पर उसकी मात्रा अधिक नहीं मिलती या इस हार्मोन का असर ही नहीं होता। ज्योतिषीय दृष्टिकोण:- पैंक्रियाज नाभि के ऊपर और हृदय से नीचे स्थित है। ऐसे में इसे 5वें भाव से देखा जाता है।


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छठे भाव का दूसरा द्रेष्काण नाभि को इंगित करता है। कमर और मूत्र जनन तंत्र के रोगांे के कारण सातवें भाव का भी अध्ययन करना होगा। आठवें भाव का दूसरा दे्रष्काण चूँकि छठे भाव के दूसरे द्रेष्काण में है अतः इस भाव को भी देखना होगा। कन्या और तुला राशियां काल पुरूष की छठी और 7वीं राशि है। सिंह राशि में पाचन तंत्र में गड़बड़ी और वृश्चिक राशि से मूत्रजनन अंगों का अध्ययन किया जायेगा। यदि ये भाव और राशियां पाप और पीड़ादायक ग्रहांे से युक्त हों तो मूत्र और इससे संबंधित अंगों में समस्याएं आने लगती हैं। ज्योतिष में शुक्र को प्रमेह का कारक माना गया है। इसके अतिरिक्त मूत्र संबन्धी रोग शुक्र से देखे जाते हैं।

सामान्य तौर पर मधुमेह के बिगड़ जाने पर किडनी को सबसे अधिक हानि पहुंचती है। बृहस्पति मिठाई का कारक है। ऐसे में गुरु भी मधुमेह को इंगित करता है। यदि गुरु 6-8-12 भावों में अस्त पड़ा हो तो मधुमेह होने की आशंका अधिक होती है। इस रोग में भूख और प्यास अधिक लगती है। इसमें चंद्रमा की भूमिका भी अधिक होती है। शनि मूत्र एवं अन्य उत्र्सजन अंगों का कारक है। कुल मिलाकर 5वें, 6ठे, 7वें और 8वें भावों के अतिरिक्त सिंह, कन्या, तुला और वृश्चिक राशि के दुष्प्रभाव में रहने पर मधुमेह और मूत्रजनन संबंधी रोगांे का फलादेश किया जा सकता है। इस प्रकार यदि शुक्र, चंद्रमा और बृहस्पति दुःस्थानांे में हांे तो भी रोग की सम्भावना अधिक रहती है। मूत्र संबंधी रोग शनि से भी होते हैं। जो ग्रह वर्गों में जल तत्व राशियांे में हों व मृत्युभाग में हों और खराब षष्ठमांश में हों तो मधुमेह रोग हो सकता है।

बृहस्पति में पैदा हुआ रोग ठीक हो सकता है। सूर्य और मंगल से पैदा हुए रोग आंशिक रूप से दूर होते हैं परन्तु शनि से पैदा हुये मधुमेह रोग का कोई इलाज नहीं। ग्रहों, राशियों और भावों का मधुमेह से संबंध- शुक्र यदि सूर्य अथवा मंगल से पीड़ित होकर जल तत्व राशि में हो। गुरु अथवा शुक्र आठवें भाव में पीड़ित हो तो मधुमेह होता है। शुक्र किसी पापी ग्रह के साथ आठवें भाव में हो। शुक्र यदि दूसरे भाव में हो और लग्न भाव पीड़ित हो साथ में लग्नेश छठे भाव में षष्ठेश के साथ नीच का होकर बैठा हो। मन का कारक चन्द्रमा- चंद्रमा सूर्य अथवा मंगल से पीड़ित हो और जल तत्व राशि में स्थित हो। चंद्रमा यदि शनि से बुरी तरह पीड़ित हो।

चंद्रमा यदि जल तत्व राशि मंे स्थित हो और राशि का अधिपति छठे भाव में जल तत्वीय राशि में हो तो मधुमेह होता है। बृहस्पति और चंद्रमा पीड़ित हांे और पीड़ित करने वाला ग्रह 8वें भाव में हो। देवताओं के गुरु बृहस्पति- यदि गुरु शनि से बुरी तरह पीड़ित हो। यदि गुरु पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में हो। गुरु राहु के नक्षत्र में हो या इससे प्रभावित हो। सातवें भाव में कर्क अथवा तुला राशि हो। आठवें भाव को मंगल प्रभावित करे तो मधुमेह रोग होने की अधिक आशंका होती है। आठवंे भाव में बुध से मूत्र संबंधी रोग होते हैं। बुध यदि जल तत्व राशियों में हो तो मधुमेह होने की सम्भावना अधिक होती है।


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- रोग का छठा और मृत्यु का आठवां भाव- छठे भाव का स्वामी आठवें भाव में हो और आठवें भाव का स्वामी छठे भाव में हो। दो या दो से अधिक ग्रह छठे भाव में स्थित हांे। राहु आठवें भाव के स्वामी के साथ त्रिक भाव में हो।

- आठवें भाव में नकारात्मक ग्रह हों और गुरु और शुक्र पीड़ित हो तो मधुमेह रोग होता है। चैथे और सातवें भाव के स्वामी पीड़ित हों। तीसरे भाव का स्वामी बुध अथवा मंगल के साथ पीड़ित हो तो मधुमेह रोग होता है। बुध यदि बृहस्पति की राशि धनु अथवा मीन में हो।

- यदि शनि और मंगल की युति हो या दृष्टि हो तो मधुमेह होता है।

- यदि लग्न पीड़ित हो, लग्नाधिपति नीच का हो और 8वें भाव में शुक्र हो या शुक्र से प्रभावित हो तो मधुमेह होता है। यदि 8वें भाव को मंगल प्रभावित करे तो मधुमेह रोग होने की आशंका अधिक होती है। मधुमेह के कुछ अन्य महत्वपूर्ण कारक- लग्न-यह जातक की सामान्य प्रतिरोधक क्षमता के बारे में जानकारी देता है। शुक्र- यह लिवर की क्रियाविधि की जानकारी देता है।

चंद्रमा- यह पैंक्रियाज ग्रंथि की क्रिया और रस के प्रवाह के बारे में बताता है। गुरु- धमनियां, शिराएं और मधुमेह रोग इससे देखा जाता है। इसमें कर्क राशि, तुला राशि, धनु राशि और छठा भाव और पारिवारिक इतिहास का भी महत्व है।


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