मृत्यु से पुनरुत्थान तक के सिद्धांत

मृत्यु से पुनरुत्थान तक के सिद्धांत  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8610 | सितम्बर 2011

सनातन धर्म विशेष कर हिंदू धर्म के अनुसार जीवात्मा की इस जीवन के पश्चात किस प्रकार की यात्रा होती है वह तो सभी जानते हैं परंतु ईसाई, पारसी और इस्लाम धर्म में इस यात्रा का वर्णन किन शब्दों में किया गया है, जानने के लिए, पढ़िए यह लेख।

कब्रिस्तान से मुर्दों के पुनः उठने का नाम कयामत है। ईसाई तथा पारसी धर्म के तीन मुखय सिद्धांत हैं। मृत्यु से पुनरूत्थान, ईश्वर से न्याय प्राप्त करना तथा पुरस्कार अथवा दंड भुगतना। इस प्रकार का पुनरूत्थान केवल आत्मा का ही है।

परंतु इस विषय में सामान्य लोगों का विचार यह है कि कब्रिस्तान से आत्मा और शरीर दोनों ही उठ बैठते हैं। यहां पर यह प्रश्न उठता है कि यदि शरीर अलग-विलग हो गया हो तो वह शरीर क्योंकर उठ सकता है? परंतु मुहम्मद ने शरीर के एक अंग के रक्षण में बड़ी सावधानी बरतने की बात कही है। यह अंग भविष्य में ढांचे के आधार का अथवा उसमें उपयुक्त होने वाले पिंड का काम देता है। उनका ऐसा उपदेश है कि पृथ्वी के कारण मानव शरीर नष्ट हो जाता है। परंतु उसकी एक अस्थि नष्ट नहीं होती जिसे 'अल-अजीब' कहते हैं।

अल अजीब की गति : जिस प्रकार किसी वृक्ष के बीज का नाश नहीं होता और उससे नया वृक्ष उत्पन्न होता है, उसी तरह 'अल अजीब' अंतिम समय तक अविकृत ही रहती है। मुहम्मद साहब ने कहा था कि कयामत का जो दिन आने वाला है, उस दिन ईश्वर चालीस दिनों तक वृष्टि करेंगे, जिससे यह संपूर्ण पृथ्वी बारह हाथ ऊपर तक जलमग्न हो जायेगी और जिस प्रकार पौधे का अंकुर प्रस्फुटित होता है वैसे ही उससे संपूर्ण शरीर विकसित होकर उठेंगे।

यहूदियों का भी यही कहना है। कि वे मूल अस्थि को 'लज' नाम से पुकारते हैं। परंतु उनका कहना यह है कि पृथ्वी की रज से जो तुषार पैदा होगा, उस (अल-अजीब) से ही यह शरीर विकसित होगा। बुंदहेस के 31वें प्रकरण में ऐसा प्रश्न किया गया है कि जिसे पवन उड़ा ले गया है तथा जिसे तरंगों ने आत्मसात कर लिया है वह शरीर पुनः क्योंकर बन जायेगा? मृत व्यक्ति का पुनरूथान क्योंकर होगा?

इसका उत्तर आरमज्द ने दिया है कि ''जब पृथ्वी में वपन किया हुआ बीज मेरे द्वारा पुनः उगता है और फिर से नवजीवन प्राप्त करता है। जब मैंने वृक्षों को उनकी जाति के अनुसार जीवन दिया है, जब मैंने बालक को मां के उदर में रखा है, जब मैंने मेघ को बनाया है जो पृथ्वी के जल का शोषण कर लेता है और जहां मै इच्छा करता हूं वहां वह उसे वृष्टि करता है।

जब मैंने इस तरह प्रत्येक वस्तु की रचना की है तो फिर पुनरूत्थान के कार्य को संभव बनाना मेरे लिए दुष्कर नहीं है। स्मरण रखें कि इन सभी वस्तुओं की, मैंने एक बार रचना की है और जो वस्तुएं नष्ट हो गई हों, उनकी रचना क्या मैं पुनः नहीं कर सकता?

उदाहरण : अन्न के बीज की उपमा दी जाती है। उस बीज को पृथ्वी के उदर में समारोपित किया जाता है और तदुपरांत वह बीज असंखय अंकुरों के रूप में फूट निकलते हैं। यह उदाहरण पुनरावर्तन के लिए दिया जाता है। जब गेहूं का कोरा बीज पृथ्वी के अंदर दबा दिया जाता है तब वह संखयाबद्ध अंकुर परिधान के साथ प्रस्फुटित हो जाता है, तो जो सदाचारी व्यक्ति अपने परिधानों में दबा दिये गये हैं, वे कितने ही विविध रूपों में प्रकट होंगे?

परमात्मा के हाथ में जो तीन चाभियां हैं, वे किसी दूसरे प्रतिनिधि को नहीं दी गई हैं। वे हैं :-

(1) वर्षा की चाभी

(2) जन्म की चाभी तथा

(3) पुनरावर्तन की चाभी।

पुनरावर्तन के निशान (चिन्ह) : पुनरावर्तन के लिए जो दिवस सुनिश्चित किया गया है, उस दिन के आगमन के चिह्न स्वरूप कुछ बातें निश्चित की गयी हैं। वे हैं

(1) सूर्य का पश्चिम दिशा में उदय होना।

(2) दजाल का प्रकट होना, यह दजाल एक विकराल राक्षस है जो अरबी भाषा में इस्लाम धर्म के सत्य तथ्यों की शिक्षा देगा तथा

(3) सुर नामक दुन्दुमी (नक्कारे) की ध्वनि यह स्वर तीन बार बजेगा।

जिन जीवों का पुनरावर्तन होता है, उन्हें पुनरावर्तन के दिन के अनंतर तथा न्याय के दिन से पूर्व, अपने मस्तक से कुछ ही गज की ऊंचाई पर स्थित सूर्य के झुलसाने वाले ताप में दीर्घकाल तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

ईश्वर से न्याय प्राप्ति : शरीर से अलग हुए जीवात्मा को कुछ काल तक प्रतीक्षा करनी होगी। उसके अनंतर उसका न्याय करने के लिए परमात्मा प्रगट होंगे। वहां मुहम्मद साहब मध्यस्थ के रूप में कार्य करेंगे। उसके पश्चात प्रत्येक जीवात्मा की, उसके जीवन के कर्मों के आधार पर जांच होगी। शरीर के प्रत्येक अंग और अवयवों को अपने पाप कर्मों को स्वीकार करना पड़ेगा।

प्रत्येक मनुष्य को एक पुस्तक दी जायेगी, जिसमें उसके सभी अच्छे बुरे कर्मों का ब्योरा होगा। हिंदू धर्म के अनुसार भी यमराज के अधिकारी चित्रगुप्त की जो पुस्तक कही जाती है, उसमें सभी मनुष्यों के कर्म अंकित होते हैं। उसके साथ उसकी तुलना की जा सकती है। उस समय ईश्वर (परमात्मा) के हाथ में एक तुला (तराजू) होगी और वे पुस्तकें इस तुला में तौली जायेंगी।

जिनके बुरे कर्मों की तुलना में उनके भले कर्म भारी होंगे, वे स्वर्ग को भेजे जायेंगे और जिनके भले कर्मों की तुलना में बुरे कर्म भारी होंगे, वे नरक या चौरासी लाख योनियों में अवनत किये जायेंगे। अंतिम दिन पेश की जाने वाली इन पुस्तकों की (जिनमें मनुष्यों के कर्मों का हिसाब रहता है) तथा उनको तोलने वाली तुला की मान्यता मुसलमानों में प्राचीन यहूदियों से प्राप्त हुई है।

यहूदियों ने यह मान्यता पारसी धर्म के अनुयायियों से स्वीकार की है। पारसी लोगों की ऐसी मान्यता है कि मेहर तथा सरूश नामक दो देवदूत न्याय के दिन पुल से पार जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जांच करने के लिए पुल के ऊपर खड़े होंगे। मेहर दिव्य दया के प्रतिनिधि हैं। वे अपने हाथ में एक तुला रखेंगे और लोगों के कर्मों को तोलेंगे।

मेहर के दिये हुए विवरण के अनुसार प्रभुजी प्रत्येक व्यक्ति के दंड की घोषणा करेंगे। यदि व्यक्ति के सुकर्म की अधिकता हुई और यदि वे पलड़े को बालू बराबर भी झुका सकें, तो प्रभु उन लोगों को स्वर्ग में मिलेंगे, परंतु जिनके सुकर्मों का भार हल्का होगा, उनको दूसरा देवदूत सरूश पुल के ऊपर से नरक में धकेल देगा।

यह सरूश प्रभु के न्याय का प्रतिनिधि है। स्वर्ग के मार्ग मं एक ऐसा पुल होता है, जिसे मुहम्मद साहब 'अलसिरात' के नाम से पुकारते हैं। यह पुल नरक प्रदेश से होकर जाता है। यह बाल से भी पतला तथा तलवार की धार से भी तीक्ष्ण है। जो मुसलमान सुकर्म किये रहते हैं, वे इस क्षण को सुगमता से पार कर जायेंगे। मुहम्मद साहब उनका नेतृत्व करेंगे।

दुष्कर्म करने वाले इस पुल पर लड़खड़ा कर सिर के बल नीचे नरक में स्वयं जा गिरेंगे। यह नरक नीच व पापियों के लिए अपना भुख फैलाये रहता है। जो लोग नरक के पुल की बात करते हैं। वह पुल सूत के धागे से अधिक विस्तृत नहीं है। हिंदू लोग वैतरणी नदी की बात करते हैं। पारसी लोगों की मान्यता है कि अंतिम दिन सभी मनुष्यों को 'चिनवत' नामक पुल से पार होना है।

मृत्यु से प्रसन्नता व निर्भयता योग-साधना का एक लक्ष्य, मृत्यु का प्रसन्नता और निर्भयता से सामना करना है। एक योगी या ऋषि या एक सच्चे साधक को मृत्यु का भय नहीं रहता। मृत्यु उन लोगों से कांपती है जो जप, ध्यान एवं कीर्तन करते हैं। मृत्यु एवं उसके दूत उस तक पहुंचने का साहस तक नहीं कर सकते।

भगवान कृष्ण भगवद्गीता में कहते हैं, ''मेरी शरण में आने से ये महात्मा फिर जन्म को प्राप्त नहीं होते, जो दुख एवं मृत्यु का लोक है। वे परमानंद में मिल जाते हैं।'' मृत्यु एक मायावी सांसारिक व्यक्ति को दुखदायक हे। एक निष्काम व्यक्ति मरने के बाद कभी नहीं रोता। एक पूर्ण ज्ञान प्राप्त व्यक्ति कभी नहीं मरता। उसके प्राण कभी प्रस्थान नहीं करते। मृत्यु के भय पर विजय प्राप्त करो।

मृत्यु की विजय सभी आध्यात्मिक साधनाओं की उच्चतम उपयोगिता है। भगवान से प्रार्थना करो कि वह प्रत्येक जन्म में तुम्हें अपनी पूजा के योग्य बनायें। अगर तुम अनन्त आनंद चाहते हो तो इस जन्म-मृत्यु का नाश करो।

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