आखिरी पलों का हाले बयां एवं पुनर्जन्म पं. एम. सी. भट्ट देहावसान के बाद अंतिम क्रियाओं के विधि-विधान में बाहरी तौर पर चाहे कितना भी अंतर दिखाई दे लेकिन जीवन के अंतिम पलों में पहुंची हुई जीवात्मा के अनुभव सामान्य रूप से लगभग एक जैसे होते हैं इस स्थिति को विभिन्न वास्तविक दृष्टांतों से संपुष्ट किया गया है इस लेख में। मनुष्य अंतिम क्षण में क्या देखता है? क्या इन सब बातों को सुनकर भी हम मृत्यु को जीवन का अंत मान सकते हैं। इस विषय में जो सर्वेक्षण और अनुसंधान किये गये हैं उनसे सिद्ध होता है कि कोई ऐसी अलौकिक शक्ति अवश्य है जो मृत्यु की बेला में व्यक्ति के लिए ताना-बाना बुनती हैं जिससे उसकी प्रक्रिया ही बदल जाती है। जिस मृत्यु से वह कभी भय खाता था, उसका आलिंगन करने के लिए प्रसन्नतापूर्वक तैयार हो जाता है। पहले हम मृत्युकालीन विशिष्ट अनुभवों और उसके परिणाम को लें। कोई वृद्ध व्यक्ति कहता है कि कई वर्ष पहले मरी हुई उसकी पत्नी उससे मिलने आयी थी। वह बोली, अब मेरे साथ चलो, मेरा अकेले मन नहीं लगता और उसके थोड़ी देर बाद उसका देहांत हो जाता है। किसी स्त्री ने अपने दिवंगत पति को देखा और वह उसके साथ जाने को तैयार हो गई। और थोड़ी देर बाद उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय के अनुभव का सबसे महत्वपूर्ण भाग है एक अलौकिक तीव्र प्रकाश का दिखाई देना। प्रारंभ में यह प्रकाश धुंधला होता है, फिर शीघ्र उसमें एक अलौकिक शक्तिशाली तेज आ जाता है। भुक्तभोगी कहते हैं कि उसका रंग अत्यंत धवल या स्फटिक के समान पारदर्शक होता हैं। यह प्रकाश अत्यंत तीव्र होता है फिर भी इसमें नेत्रों के सामने चकाचौंध नहीं होती, उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता। दर्शकों की मान्यता है कि यह प्रकाश वास्तव में प्रकाशमय जीव होता है। कोई इसे देवदूत बताता है। ईसाई इसे ईसामसीह बताते हैं। प्रकाश-जीव से भेंट हो जाने के पश्चात् दिवंगत अपने शरीर में लौटना नहीं चाहता। वहां उसे अत्यंत सुख और शांति मिलती है। एक घटना के अनुसार एक रोगी के पेट की शल्य चिकित्सा की जा रही थी। तभी उसकी मृत्यु हो गई। और वह बीस मिनट तक इसी स्थिति में रहा। इसके बाद उसमें फिर से जीवन लौट आया। पुनजीर्वित होने के बाद उसने बताया कि जब उसकी मृत्यु हुई तो उसे लगा जैसे उसके सिर से भिनभिनाने की तेज आवाज निकल रही है। एक स्त्री ने भी मृत्यु के समय इसी प्रकार की ध्वनि का उल्लेख किया है। एक और व्यक्ति ने जिसे मृत्यु का अनुभव हो चुका था, बताया कि उसे लगा कि जैसे वह अचानक ही किसी गहरी अंधेरी खाई में चला गया है जिसमें एक मार्ग है और वह उस पर तेजी से चला जा रहा है। इसी प्रकार एक स्त्री ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व जब मैं हृदय रोग से पीड़ित होकर अस्पताल में दाखिल हुई थी तो मेरे हृदय में असहनीय पीड़ा हो रही थी। तभी मुझे लगा जैसे मेरी सांस रूक गई है, और हृदय ने धड़कना बंद कर दिया है। मैंने अनुभव किया कि मैं शरीर से निकलकर पलंग की पाटी पर आ गई हूं। इसके बाद फर्श पर चली गई हूं। फिर धीरे-धीरे उठना शुरू हुआ। मैं कागज के टुकड़े की तरह उड़कर ऊपर उठ रही थी, और छत की तरफ जा रही थी। वहां पहुंच कर मैं काफी समय तक डाक्टरों को कार्य करते देखती रही। मेरा शरीर बिस्तर पर सीधा पड़ा था और डॉक्टर उसके चारों ओर खड़े उसे जीवित करने का प्रयास कर रहे थे। तभी उन्होंने एक मशीन से मेरी छाती पर झटके देने शुरू किये। उन झटकों से मेरा शरीर उछल रहा था और मैं अपनी हडि्डयों की चटख साफ सुन रही थी। इसके बाद मैंने अपने शरीर में कैसे प्रवेश किया, इसका ज्ञान मुझे नहीं है। ऐसी बहुत सी घटनायें देखी गई हैं जब मरने वालों को मरने से पहले ही अजीब से अनुभव होने लगते हैं। कहा जाता है कि मरने वाले को पहले ही मृत्यु का आभास हो जाता है। एक घटनानुसार एक व्यक्ति को मरने से एक दो दिन पहले ही अपनी स्वर्गीय मां और बाप दिखने लगे थे, जो बार-बार उसके कमरे के दरवाजे पर आकर खड़े हो जाते और उसे बुलाते। कभी उसे दो सफेद घोड़े दिखाई देते जो उसे ले जाने के लिये आसमान से उड़ते हुए आ रहे थे। ऐसी अनेकानेक घटनायें देखने में आयी हैं जब मरने वालों को अजीब अनुभव होते हैं। बहुत से व्यक्तियों को मरते समय तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। कई बार यह ध्वनि असह्य हो जाती है। लोगों ने इस ध्वनि की तुलना सागर के गर्जन, हथौड़े से ठोक-पीट की आवाज, आरी से लकड़ी काटते समय होने वाली आवाज, तूफान की आवाज आदि से की है। ध्वनि सुनते समय बहुत से व्यक्तियों को ऐसा प्रतीत होता है मानो उन्हें अंधकारपूर्ण अंतरिक्ष में ले जाया जा रहा है। इस अंधकारमय स्थान के लिये उन्होंने अंतरिक्ष, सुरंग, गुफा, कुआं, खाई आदि शब्दों का प्रयोग किया है इसी प्रकार की अंतिम यात्रा करने वाले एक व्यक्ति का अनुभव इस प्रकार है। इस घटना के समय मैं नौ वर्ष का था, पर सत्ताईस साल बाद आज भी मुझे वह घटना पूरी तरह से याद है। उस समय मैं गंभीररूप से बीमार था इसलिये मुझे दोपहर को अस्पताल ले जाया गया। वहां डाक्टरों ने मुझे बेहोश करने का निर्णय लिया। इस काम के लिये उस समय ईथर का प्रयोग किया जाता था। मुझे बाद में पता चला कि ईथर का प्रयोग करते ही मेरे हृदय की गति रूक गई अर्थात् उस समय मुझे इसका ज्ञान नहीें था। परंतु उस समय मैं एक असाधारण अनुभव से गुजरा। मुझे 'व्रिडडग' 'व्रिडडग' इस प्रकार का लयबद्ध नाद सुनाई दिया और साथ ही मैं एक अंधेरे अंतरिक्ष में खिंचने लगा। जब व्यक्ति अपने अंतिम समय में होता है, तो एक क्षण ऐसा आता है जब वह तंद्रा में चला जाता है और चित्रगुप्त के द्वारा उसके जीवन का सारा लेखा-जोखा उसकी आंखों के सामने चलचित्र की भांति तैर जाता है। चित्रगुप्त यानि वे गोपनीय घटनायें भी, जो उसके सिवा किसी और को नहीं पता होती है, उस चित्र में स्पष्ट हो जाती है। और इन विभिन्न कर्मों में से वह अगले जीवन के लिये कर्म चयन करता है। व्यक्ति अधिकतर छल, झूठ, कपट, काम, भय, ईर्ष्या आदि से प्रभावित होता हुआ ही देह त्यागता है, उसे स्व-चिंतन, भगवत-चिंतन का ध्यान नहीं रहता। कहा गया है कि 'अन्त मतिः सा गतिः' अंत समय में जैसे विचार एवं चिंतन होते हैं, उसी हिसाब से व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है। जब व्यक्ति विभिन्न इच्छाओं के साथ मरता है तो कुछ देर तो उसे विश्वास ही नहीं होता कि वह मर गया, उसकी देह उसके समक्ष होती है और वह अचंभित-सा देखता रहता है, क्योंकि उसकी कई इच्छायें अपूर्ण होती हैं जिनकी पूर्ति के लिये उसे भौतिक शरीर की आवश्यकता होती है, इसलिये वह अपनी देह के आसपास ही मंडराता रहता है और जब देह जला दी जाती है, तो हताश हो जाता है और इच्छाओं की पूर्ति हेतु भटकता रहता है। अब या तो ऐसे समय में कोई सशक्त मागदर्शक होना चाहिए जो उस आत्मा का मार्गदर्शन कर उसे आगे की ओर बढ़ाये या फिर आप उसे प्रिय होने के नाते अपने आत्मीय के लिये कुछ ऐसा करें कि उसका सही मार्गदर्शन हो सके और वह आगे के कर्म क्षेत्रों में प्रवेश कर सके। मृत्यु के समय के अनुभव का सबसे महत्वपूर्ण भाग है एक अलौकिक तीव्र प्रकाश का दिखाई देना। प्रारंभ में यह प्रकाश धुंधला होता है, फिर शीघ्र उसमें एक अलौकिक शक्तिशाली तेज आ जाता है। कहा गया है कि 'अन्त मतिः सा गतिः' अंत समय में जैसे विचार एवं चिंतन होते हैं, उसी हिसाब से व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है। जब व्यक्ति विभिन्न इच्छाओं के साथ मरता है तो कुछ देर तो उसे विश्वास ही नहीं होता कि वह मर गया, उसकी देह उसके समक्ष होती है और वह अचंभित-सा देखता रहता है, क्योंकि उसकी कई इच्छायें अपूर्ण होती हैं जिनकी पूर्ति के लिये उसे भौतिक शरीर की आवश्यकता होती है।