ज्योतिष में पूर्वजन्म व् पुनर्जन्म

ज्योतिष में पूर्वजन्म व् पुनर्जन्म  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 14581 | सितम्बर 2011

ज्योतिष के पास मानव जीवन की प्रत्यक्ष और ज्वलंत समस्याओं के समाधान तो हैं ही जीवन के पहले और बाद की रहस्यमय पहेलियों को सुलझाने की क्षमता भी विद्यमान है। जीवात्मा के इस अबूझ पक्ष का अन्वेषण और उसके परिणामों पर दृष्टिपात करने के लिए यह लेख उपयोगी साबित होगा।

भारतीय ज्योतिष एवं समाज पूर्ण रूप से पुनर्जन्म के सिद्धांत पर विश्वास करता है। यह माना जाता है कि हमारा यह जन्म हमारे पूर्व जन्मों में किये हुए कर्मों के आधार पर ही हमें मिलता है तथा इस जन्म में किये जाने वाले कर्मों के आधार पर ही हमें अगला जन्म अर्थात पुनर्जन्म मिलता है अथवा प्राप्त होता है।

महाभारत में कहा गया है कि जिस प्रकार सैकड़ों गायों के झुण्ड में भी बछड़ा अपनी मां को पहचान लेता है, उसी प्रकार पूर्व जन्म में किये गए कर्म अपने कर्ता को पहचान कर उसके पास पहुंच जाते हैं। हम पिछले जन्म में क्या थे? अगले जन्म में क्या होंगे, इसका जवाब जन्मकुंडली में ग्रह स्थिति के आधार पर जाना जा सकता है।

हमारे ज्योतिष शास्त्रों में पराशर जी ने ''बृहत पराशर होरा शास्त्र'' में इस विषय में लिखा है कि जन्मपत्री में सूर्य और चंद्र में से जो ग्रह बली हो उसे द्रेष्काण में देखें कि वह किस राशि में गया है उस राशि के स्वामी पति के आधार पर यह ज्ञात किया जा सकता है कि जातक किस लोक से धरती पर आया है यदि बली ग्रह सूर्य अथवा मंगल के द्रेष्काण में ही हो तो जातक ''पृथ्वी लोक'' (मृत्यु लोक) से, गुरु देष्क्रोण में हो तो ''देवलोक'' से बुध, शनि के द्रेष्काण में हो तो जातक ''नरक लोक'' से इस जन्म में आया है, ऐसा मानना चाहिए।

वराहमिहिर ''बृहतजातक'' में लिखते हैं कि बली ग्रह के द्रेष्काण पति की अवस्था को देखकर जातक के पूर्व लोक के स्थानादि का भी पता जाना जा सकता है। यदि देष्क्राण पति उच्च राशि में है तो जातक को उच्च स्थान प्राप्त रहा होगा, यदि नीच राशि में है तो जातक को नीच स्थान की प्राप्ति रही होगी, ऐसा समझना चाहिए।

जन्मकुंडली के पंचम भाव, पंचमेश, पंचम भाव स्थित राशि से भी पिछले जन्मों के बारे में जाना जा सकता है प्रस्तुत सारणी में पंचम भाव के आधार पर जातक के पूर्वजन्म के निवास, दिशा व जाति जानी जा सकती है। मंत्रेश्वर ने अपने ग्रंथ फल दीपिका में भी चौदहवें अध्याय में जातक के पूर्वजन्म की स्थिति व योनि के विषय में लिखा है।

यदि नवमेश लग्नेश की उच्च व स्वराशि में हो तो जातक पूर्वजन्म में मनुष्य होता है, यदि नवमेश लग्नेश की समराशि में हो तो पशु और यदि नीच राशि में हो तो पक्षी होता है। मृत्यूपरांत गन्तव्य स्थान के बारे में हमारे विद्वानों ने बहुत से ग्रंथों में जन्मकुंडली व मृत्यु समय की कुंडली के अनुसार बहुत कुछ लिखा है जिनमें से प्रमुख निम्न प्रकार से हैं।

पराशर जी लिखते हैं कि लग्न से 6, 7 या 8वें भाव में गुरु हो, तो जातक देवलोक, शुक्र-चंद्र हो तो पितृलोक, सूर्य-मंगल हो तो मृत्यु लोक और बुध-शनि हो तो नरक लोक को मृत्यूपरांत प्राप्त करता है। यदि 6, 7, 8वें भाव में कोई ग्रह न हो तो षष्ठम और अष्टम भाव के द्रेष्काण पति में जो बलवान हो, उस ग्रह के अनुसार उस लोक में जाता है।

जातक पारिजात नामक ग्रंथ में श्री वैद्यनाथ जी ने मृत्यु के समय के लग्नानुसार जातक को मिलने वाले लोक के विषय में कहा है। यदि मरण काल में लग्न में गुरु हो तो ''देवलोक'', सूर्य-मंगल हो तो ''मृत्युलोक'', चंद्र-शुक्र हो तो ''पितृ लोक'' तथा बुध-शनि हो तो ''नरक लोक'' को प्राप्त करता है।

फलदीपिका में मंत्रेश्वर लिखते हैं कि द्वादश भाव एवं द्वादशेश भी मनुष्य के मृत्यूपरांत ''लोक'' प्राप्ति के विषय में जानकारी देते हैं। यदि द्वादश भाव में सूर्य-चंद्र हो तो कैलाश, शुक्र हो तो स्वर्ग, मंगल हो तो पृथ्वी, बुध हो तो बैकुंठ, शनि हो तो यमलोक, गुरु हो तो ब्रह्मलोक, राहु हो तो दूसरे देश एवं केतु हो तो नरक लोक में जातक स्थान प्राप्त करता है।

इस प्रकार देखा जा सकता है कि जातक किस लोक से आया और किस लोक को जायेगा। परंतु इस विषय में कई विवाद भी पाए गये हैं। चूंकि प्रमाण ज्ञात नहीं किया जा सकता है अतः हमें शास्त्रों में लिखित इन बातों पर ही विश्वास करना पड़ता है।

अन्य कुछ शास्त्रों में स्वर्ग, नरक व मोक्ष प्राप्ति के विषय में निम्न बातें कही गयी हैं। स्वर्ग प्राप्ति के योग : सर्वार्थ चिंतामणि में कहा गया है कि यदि गुरु ग्रह दशमेश होकर बारहवें भाव में हो और शुभ ग्रह की उस पर दृष्टि हो तो जातक को मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

बारहवें भाव में शुभ ग्रह, शुभ होकर स्थित हों, शुभ ग्रह से दृष्ट हों, अच्छे वर्ग में हों तो जातक स्वर्ग प्राप्त करता है (जातक पारिजात) अष्टम भाव में शुभ ग्रह शुभ ग्रह द्वारा दृष्ट हो तो जातक स्वर्ग प्राप्त करता है (फलदीपिका) नरक प्राप्ति योग : बारहवें भाव का स्वामी पाप षष्ठयांश में पाप ग्रह द्वारा दृष्ट हो तो प्राणी नरक में जाता है।

(फलदीपिका) बारहवें भाव में सूर्य, मंगल, शनि हो अथवा द्वादशेश सूर्य साथ में हो तो मृत्यूपरांत नरक प्राप्ति होती है (बृ.प.हो.शा.) बारहवें भाव में यदि राहु, गुलिका और अष्टमेश हो तो जातक नरक प्राप्त करता है (जातक परिजात) बारहवें भाव में राहु और मांदी, षष्ठेश, अष्टमेश द्वारा दृष्ट हो तो जातक नरक में जाता है (सर्वार्थ चिंतामणि) बारहवें भाव में शनि, राहु या केतु अष्टमेश के साथ हो तो भी नरक प्राप्ति होती है

(जातक पारिजात) मोक्ष प्राप्ति योग : यदि गुरु ग्रह मीन लग्न व शुभ नवांश का हो और शेष ग्रह निर्बल हों तो जातक मोक्ष पाता है (जातक चंद्रिका) उच्च का गुरु छठे, आठवें अथवा केंद्रीय भाव में हो, शेष ग्रह निर्बल हों तो जातक मुक्ति पाता है।

गुरु कर्क लग्न में उच्चस्थ हो, धनु नवांश का हो और तीन-चार ग्रह केंद्र में हों तो जातक मोक्ष प्राप्त करता है (जातक पारिजात) गुरु धनु लग्न, मेष नवांश में हो, शुक्र सप्तम भाव में तथा चंद्र कन्या राशि में हो तो जातक मोक्ष पाता है। (जातक पारिजात) दशम भाव में मीन राशि का मंगल शुभ ग्रहों के संग हों तो व्यक्ति मोक्ष पाता है। (सर्वार्थ चिंतामणि)

बारहवें भाव का स्वामी पाप षष्ठयांश में पाप ग्रह द्वारा दृष्ट हो तो प्राणी नरक में जाता है। (फलदीपिका) बारहवें भाव में सूर्य, मंगल, शनि हो अथवा द्वादशेश सूर्य साथ में हो तो मृत्यूपरांत नरक प्राप्ति होती है। (बृ.प.हो.शा.) गुरु धनु लग्न, मेष नवांश में हो, शुक्र सप्तम भाव में तथा चंद्र कन्या राशि में हो तो जातक मोक्ष पाता है। (जातक पारिजात) दशम भाव में मीन राशि का मंगल शुभ ग्रहों के संग हों तो व्यक्ति मोक्ष पाता है। (सर्वार्थ चिंतामणि)

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