नवरात्र में कुमारी पूजन

नवरात्र में कुमारी पूजन  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 5211 | अकतूबर 2013

प्रायः सभी साधक नवरात्रि में कुंवारी कन्याओं को जिमाते हैं। ऐसा करने से उनकी कामनाओं की सिद्धि होती है। कुंवारी कन्याएं देवी का स्वरूप होती हैं। अतः देवी रूप में उनका पूजन धर्म, अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। कुंवारी पूजन के बिना उपवास अधूरा माना जाता हे।

मां की कृपा प्राप्त करने के लिए कंजिका पूजन आवश्यक माना गया है। नाना प्रकार के फल, नारियल, केला, अनार, नारंगी, कटहल, बिल्व फल आदि भेंट करके फिर भक्ति भाव पूर्वक अन्न दान करें। नित्य प्रति पृथ्वी पर शयन करें। तदोपरान्त कुंवारी कन्याओं का पूजन करें। उन्हें वस्त्रालंकार प्रदान करते हुए, अमृतमय भोजन कराएं।

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प्रतिदिन एक कन्या का पूजन करें अथवा नित्य एक कन्या को बढ़ाते जायें अथवा नौ कन्याओं का नित्यप्रति पूजन करें। अपनी आर्थिक अवस्थानुसार श्रद्धापूर्वक माता भगवती की आराधना करें। धन होते हुए भी कृपणता नहीं करनी चाहिए। दो वर्ष की कन्या को ‘कुमारी’ कहा जाता है।

इनकी अर्चना करने से दुःख व दरिद्रता दूर होती है। शत्रु का नाश होता है। धन, आयु व बल की वृद्धि होती है। तीन वर्ष की कन्या को ‘त्रिमूर्ति कुमारी’ कहते हैं। त्रिमूर्ति के पूजन से धन, धान्य, पुत्र, पौत्रों,विद्या, बुद्धि की प्राप्ति होती है।

चार वर्ष की कन्याओं को ‘कल्याणी कुमारी’ कहते हैं। इनके पूजन से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। विद्या, विजय, राज्य सुख की प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होती है। पांच वर्ष की कन्याओं को ‘रोहिणी कुंवारी कहते हैं।

उनकी साधना से हमारे सर्व रोगों का नाश होता है। आरोग्यता की प्राप्ति होती है। छः वर्ष की कन्या को ‘माता कालिका’ का रूप माना जाता है। इससे शत्रुओं का नाश होता है। सात वर्ष की कन्या को ‘मां चण्डिका’ के रूप में पूजा जाता है।

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इससे धन की तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। आठ वर्ष की कन्या को ‘शाम्भवी कुंवारी’ के रूप में पूजा जाता है। इनका पूजन अर्चन करने से वेदना, आर्थिक संकट का समाधान तथा वाद-विवाद में विजय प्राप्त होती है। इनका पूजन समस्त सिद्धियां प्रदान करता है।

नौ वर्ष की कन्या को ‘दुर्गा’ कहा गया है। इससे कठिन से कठिन कार्य सिद्ध होते हैं, शत्रुओं का नाश होता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। दस वर्ष की कन्या को ‘सुभद्रा’ के नाम से जाना जाता है। मनोकामना की पूर्ति तथा इच्छाओं की सफलता प्राप्त होती है। अशुभ का विनाश होकर कल्याण होता है।

दस वर्ष से अधिक की कन्या का पूजन इसमें वर्जित माना गया है। कन्याओं के नाम-भेद जो उपर्युक्त दर्शाये गये हैं, उनकी ही कुंवारी पूजा करें। इनके पूजन व अर्चन से जो फल प्राप्त होते हैं, उनकी चर्चा निम्नवत है: कुमारी के पूजन से दुःख, दरिद्रता और शत्रुओं का नाश होता है। धन, आयु, बल की वृद्धि होती है।

त्रिमूर्ति के पूजन से धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति होकर धन-धान्य मिलता है तथा पुत्र-पौत्रादि की वृद्धि होती है। विद्या, राज्य तथा सुख की कामना वाले मनुष्य को नित्य-प्रति कल्याणी का पूजन करना चाहिए। धन व ऐश्वर्य की अभिलाषा करने वाले को चण्डिका का पूजन करना चाहिए। सम्मोहनार्थ, दुःख-दरिद्रता के नाशार्थ, युद्ध में विजयार्थ शाम्भवी संज्ञक कन्या को पूजें।

किसी उग्र कर्म की साधना के विचार से या स्वर्ग-प्राप्ति की कामना से माता दुर्गा की भक्ति आराधना करें।

1. कुमारस्य च तत्वानि या सृजत्यपि लीलया। कादानपि च देवांस्तां कुमारी पूजायाम्यहम्।।

2. सत्तयादिमि स्तिमूर्तियां तैहिं नानास्वरूपिणीं। तिकाल आपिनीं शक्तिस्त्रि मूर्ति पूजयाम्यहम्।।

3. कल्याण कारिणीं नित्यं भक्तानां सर्वकामदाम्। पूजयामि च तां भक्त्या कल्याणी सर्वकामदाम्।

4. रोहयति च बीजानि प्राग्जन्म संचितानि बै। या देवी र्सवभूतानां रोहणिं पूजयाम्यहम।।

5. काली कालयते सर्व ब्रह्माण्ड सचराचरम्। कल्पांत समयं तां कालिकां पूजयाम्यहम्।।

6. चण्डिका चझडरूपां च चण्डमुण्ड विनाशिनीम्। तां चण्ड पापहरिणी चण्डिका पूजयाम्यहम्।।

7. अकारणात्समुप्त त्तिर्यन्मयैः परिर्कीतिता। यस्यास्तं सुखदां देवी शांभवीं पूजयाम्यहम्।।

8. दुर्गात्त्रायति भक्तं यां सदा दुर्गति नाशनीं। दुज्र्ञेया सर्वदेवानां तां दुर्गा पूजंयाम्यहम्।।

9. सुमद्राणि च भक्तानं कुरूते पूजिता सदा। अभ्रदनाशिनी देवी सुभद्रां पूजयाम्यहम्।।

अपनी कामनाओं की पूर्ति चाहने वालों को सुभद्रा की उपासना करनी चाहिए। रोगनाश की अभिलाषा से रोहिणी का पूजन करें। ‘श्रीरस्तु’ इस मंत्र के द्वारा अथवा अन्य किसी भी देवी मंत्र द्वारा पूजन करते समय ‘श्री’ का संयोग करें और ऐ, बीजमंत्र से भक्ति में तत्पर होकर भगवती का पूजन करें, जो देवी कुमार कार्तिकेय के गूढ़ तत्वों को लीला पूर्वक रचती है और ब्रह्मादि देवताओं को उत्पन्न करती है, मैं उन ‘कुमारी’ देवी का पूजन करता हं।

इस मंत्र से कुमारियां का पूजन करना चाहिए। जो देवी तत्वादि गुणों की त्रिमूर्ति द्वारा नानारूपिणी जान पड़ती हैं और जो तीन कालों में व्याप्त रहने वाली शक्ति हैं, उन त्रिमूर्ति का पूजन करता हं जो अपने पूजक भक्तों का सदा कल्याण करने वाली हैं।

देवी सब प्राणियों के पूर्वजन्म के संचित कर्मों का बीजारोपण करती हैं, मं उन रोहिणी की आराधना करता हं। जो देवी चराचरम ब्रह्माण्ड को अंत काल में काल-कवलित करके संसार लीला करती हैं, चण्डरूपा जिस चण्डिका ने चण्ड-मुण्ड का विनाश किया उनका मैं पूजन करता हं। जिसकी उत्पत्ति का कोई कारण नहीं, उस सुख देने वाली शांभवी का, दुर्गम दुःखों से तारने वाली दुर्गतियों का नाश करने वाली दुर्गा का मैं पूजन करता हं।

जो पूजिता भगवती भक्तों का कल्याण करने वाली और अमंगल को नष्ट करने वाली हैं उस सुभद्रा का मैं पूजन करता हं। ज्ञानी जनों का सदा इन्हीं मंत्रों से वस्त्रालंकार,गन्ध, माल्यादि अर्पण करते हुए, कुमारी कन्याओं का पूजन करना चाहिए, परन्तु जो कन्या किसी अंग से हीन कुष्ठ वर्ण, दुर्गन्धयुक्त तथा कुलशील रहित व्यक्ति के यहां जन्मी हो उसका पूजन नहीं करना चाहिए।

जन्मांध, टेढ़ा देखने वाली, कानी, कुरूपा अधिक रोग वाली, रोगिणी या रजस्वला होने की चिह्न वाली, पर पुरुष की संतति कन्या पूजन में वर्जित है। स्वस्थ, सुडौल, ब्रजादि से रहित और एक ही वंश में उत्पन्न हुई कन्या सदा पूजने योग्य है। यदि कोई व्यक्ति नवरात्र के नौ दिन तक पूजन करने में असमर्थ हो, उसे विशेषकर अष्टमी के दिन ही पूजन करना चाहिए क्योंकि प्राचीन काल में दक्ष-यज्ञ विध्वंस करने वाली भद्रकाली अष्टमी को ही प्रकट हुईं थीं।

अतएव नवरात्र भर उपवास करने में असमर्थ मनुष्य तीन दिन उपवास करके, वैसा ही फल प्राप्त कर सकते हैं। भक्ति भाव पूर्वक सप्तमी, अष्टमी और नवमी की रात्रियों में भी भगवती के पूजन से सब अभीष्ट फल प्राप्त होते हैं। पूजन, हवन, कुमारियों का पूजन और ब्राह्मणों को भोजन से तृप्त करने पर नवरात्र व्रत सम्पन्न हो जाता है।

इस धरा पर जितने भी व्रत दानादि किए जाते हैं, वे सभी इस नवरात्र व्रत की तुलना नहीं कर सकते। यह व्रत धन, धान्य को देने वाला तथा नित्य सुख और सन्तानादि की वृद्धि करने वाला है। यह आयु, आरोग्य, स्वर्ग और मोक्ष सभी प्रदान करता है।

धन की अभिलाषा हो, विद्या प्राप्ति या पुत्र प्राप्ति की कामना हो तो इस सौभाग्य को देने वाले व्रत को विधि-विधान पूर्वक करें। इसी व्रत का साधन करने से विद्यार्थी को समस्त विद्याएं प्राप्त हो जाती हैं तथा राजा राज्य से च्युत हो गया हो तो उसे राज्य की पुनः प्राप्ति होती है।

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