व्रत पर्व निर्णय

व्रत पर्व निर्णय  

व्यूस : 4896 | अकतूबर 2013
हाल ही में 20 अगस्त 2013 को रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया गया। कुछ लोगों ने 21 अगस्त को यह पर्व मनाया। प्रायः हर वर्ष किसी न किसी पर्व में इस प्रकार के मतभेद आ जाते हैं। ऐसा केवल इसलिए हो जाता है कि विभिन्न पंचांगों में भिन्न-भिन्न मत दिखाई देते हैं। एक तो सभी पर्वों की गणनाएं बहुत सूक्ष्म है, दूसरे मान्यताओं में भी कुछ मतभेद हो जाते हैं। तीसरे सूर्योदय भिन्न-भिन्न होने के कारण अंतर हो जाता है और चैथे विभिन्न सम्प्रदायों में विभिन्न गणना के मत हैं। रक्षाबंधन अपराह्न व्यापिनी श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है। पूर्णिमा के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है और भद्रा में भी रक्षाबंधन सर्वथा वर्जित है। अतः पर्व पूर्णिमा के उत्तरार्द्ध में ही मनाया जाता है। जब पहले दिन अपराह्न में भद्रा हो, दूसरे दिन पूर्णिमा मुहूर्तत्रयव्यापिनी हो और भले ही वह अपराह्न से पूर्व ही समाप्त हो जाए, तब भी दूसरे दिन अपराह्न में रक्षाबंधन करना चाहिए। लेकिन उत्तरार्द्ध में चन्द्र ग्रहण या ग्रहणवेध (सूतक) हो सकता है। इस प्रकार रक्षाबंधन मनाने के लिए शुद्ध समय का अभाव हो सकता है। इसलिए विभिन्न मतों का सृजन हो जाता है। इस वर्ष 20 अगस्त को प्रातः 10: 22 पर पूर्णिमा प्रारंभ हुई। भद्रा 10: 22 पर प्रारम्भ होकर 20: 46 पर समाप्त हुई। तदुपरांत पूर्णिमा 21 अगस्त को प्रातः 7: 15 तक चली। क्योंकि 21 अगस्त को पूर्णिमा तीन मुहूर्त (दिनमान का पांचवां भाग- लगभग 6 घटी अर्थात 2 घंटे 24 मिनट) से पहले समाप्त हो गई अतः रक्षा बंधन 21 तारीख को नहीं हुई। 20 तारीख को सूर्यास्त तक भद्रा है अतः पर्व कब मनाएं। इस काल अभाव के कारण ही मतभेद व पर्व निर्णय में विभिन्नता आयी। कुछ के मतानुसार भद्रा नेष्ट है अतः सूर्योदय पर पूर्णिमा के होने के कारण 21 अगस्त को रक्षाबंधन मनाने का निर्णय लिया। कुछ ने केवल भद्रा के मुख को अनिष्टकारक मानकर केवल भद्रा मुख 18: 10 से 20: 10 तक समय छोड़कर विशेष रूप से भद्रा पंूछ में 16: 58 से 18: 10 तक रक्षाबंधन 20 अगस्त को ही मनानेे का निर्णय दिया। पूर्णिमा के त्यौहारों में अक्सर यह परेशानी आती है क्योंकि तिथि भद्रा व ग्रहण दोनों से युक्त होती है। इसी वर्ष होलिका दहन के समय भी यही परेशानी थी। होलिका दहन भद्रा रहित फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में किया जाता है। यदि पूर्णिमा दो दिन प्रदोष व्यापिनी हो तो पहले दिन भद्रा दोष होने के कारण होलिका दहन दूसरे दिन किया जाता है। दूसरे दिन प्रदोष को पूर्णिमा स्पर्श न करे और पहले दिन निशीथ से पहले भद्रा समाप्त हो जाए तो भद्रा समाप्ति पर होलिका दहन करना चाहिए। यदि भद्रा निशीथ के बाद समाप्त हो रही हो तो भद्रामुख को छोड़कर भद्रा में ही होलिका दहन करना चाहिए। यदि प्रदोष में भद्रामुख हो तो मुख के बाद होलिका दहन करना चाहिए। 26 मार्च 2013 को फाल्गुन पूर्णिमा 16: 25 घंटे पर प्रारंभ हुई और 27 मार्च को 14: 57 पर समाप्त हुई। अतः 26 मार्च को भद्रा 16: 25 से प्रारम्भ हो 27: 45 तक थी। निशीथ काल में भी भद्रा थी। अतः होलिका दहन भद्रा सहित पूर्णिमा में ही किया गया। भद्रामुख 24: 55 से 26: 55 तक था और भद्रा पूंछ 23: 43 से 24: 55 तक थी। क्योंकि प्रदोष में भद्रा मुख नहीं थी अतः भद्रा सहित पूर्णिमा के प्रदोष काल में ही 26 मार्च को होलिका दहन किया गया। अन्य मुख्य पर्वों के निर्णय के लिए निम्न तालिका दी जा रही है। इसके अनुरूप इनका निर्णय किया जा सकता है। यदि पर्वों की गणना के लिए भारत के केन्द्र उज्जैन के अक्षांश 230 11‘ व भारत के मध्य रेखांश 820 30‘ को लेकर गणना की जाए तो सभी पंचांगों का एकीकरण हो सकता है। जन्माष्टमी के लिए मथुरा को केन्द्र बिन्दु लिया जा सकता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.