सूर्य की प्रथम कक्षा का ग्रह : बुध

सूर्य की प्रथम कक्षा का ग्रह : बुध  

व्यूस : 10237 | अप्रैल 2008
सूर्य की प्रथम कक्षा का ग्रह: बुध खगोलीय दृष्टिकोण- सूर्य के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने वाले ग्रहों में बुध का स्थान प्रथम है क्योंकि बुध की कक्षा अन्य सभी ग्रहों की तुलना में सूर्य के सबसे अधिक निकट है। सूर्य से बुध की औसतन दूरी 36,000,000, अधिकतम 43,000,000 और न्यूनतम 28,000,000 मील है। अधिकतम और न्यूनतम दूरी में इतना अंतर बुध की कक्षा के अधिक उत्केंद्रक (मबबमदजतपब ) होने के कारण है। इसकी कक्षा क्रांतिवृत्त के दोनों और अधिकतम 70 का कोण बनाते झुकी रहती है। इसका व्यास लगभग 3000 मील है। बुध का एक नक्षत्र-परिभ्रमण काल 88 दिन है। पहले माना जाता था कि यह 88 दिनों में अपनी धुरी पर घूमता है जो कि इसके सूर्य की परिक्रमा करने का भी समय है। किंतु बाद में मालूम हुआ कि यह वास्तव में 58.65 दिनों में अपनी धुरी पर एक परिक्रमा पूरी करता है। बुध सूर्य के निकट है और सबसे छोटा है। यह भचक्र में सूर्य से 270 अंशों से अधिक दूरी पर कभी नहीं जाता। चंद्र की तरह ही बुध की भी कलाओं की क्षय-वृद्धि होती है और इससे भी सूर्य में छोटा सा बिंदु रूप ग्रहण लगता है। बुध 348 दिनों में छः बार उदित और छः बार अस्त होता है। उदित होने पर 21 से 43 दिनों तक दिखाई देता है और अस्त होने पर कभी 9 दिनों में तथा कभी 43 दिनों में उदित होता है। गणना के अनुसार पूर्वास्त के 32 दिनों बाद पश्चिम में उदित उसके 32 दिनों बाद वक्री, उसके 3 दिनों बाद पश्चिम में अस्त, उसके 16 दिनों बाद पूर्व में उदित उसके 3 दिनों बाद मार्गी और उसके 32 दिनों बाद पूर्व में अस्त होता है। इस प्रकार मध्यम मान से 118 दिनों में इसके उदयास्त का चक्र पूरा होता है। पौराणिक दृष्टिकोण- बुध के स्वरूप के बारे में कहा गया है कि वह पीले रंग की पुष्प माला तथा पीला वस्त्र धारण करते हैं। उनके शरीर की कांति कनेर के पुष्प की तरह है। वह अपने चारों हाथों में क्रमशः तलवार, ढाल, गदा और वरमुद्रा धारण किए हुए हैं। वह सोने का मुकुट तथा सुंदर माला धारण करते हैं। उनका वाहन सिंह है। अथर्ववेद के अनुसार बुध के पिता चंद्र और माता तारा हैं। ब्रह्मा जी ने उनका नाम बुध इसलिए रखा क्योंकि उनकी बुद्धि बड़ी गंभीर और तीव्र थी। वह श्रीमद्भागवत के अनुसार सभी शास्त्रांे में पारंगत तथा चंद्र के समान ही कांतिमान हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार इन्हें सर्वाधिक योग्य देखकर ब्रह्मा जी ने इन्हें भूतल का स्वामी तथा ग्रह बना दिया। बुध का रथ श्वेत और प्रकाश से दीप्त है। इसमें वायु के वेग के समान वेग वाले घोड़े जुते रहते हैं। इनके नाम श्वेत, पिसंग, सारंग, नीला, पीत, विलोहित, कृष्ण, हरित, पुष्प और पुष्णि हंै। महाभारत की एक कथा के अनुसार इनकी विद्या-बुद्धि से प्रभावित होकर महाराज मनु ने अपनी गुणवती कन्या इला का विवाह इनसे कर दिया। इला और बुध के संयोग से महाराज पुरूरवा की उत्पŸिा हुई। इस तरह चंद्रवंश का विस्तार होता चला गया। श्रीमद्भागवत के अनुसार बुध की स्थिति शुक्र से दो लाख योजन ऊपर है। बुध ग्रह प्रायः शुभ ही करते हैं। किंतु जब यह सूर्य की गति का उल्लंघन करते हैं, तब आंधी, अतिवृष्टि और सूखे का भय रहता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण- ज्योतिष के अनुसार बुध हास्य-विनोद का शौकीन हैं जिन्हें अनेक विषयों की जानकारी है और जो प्रतिभाशाली हैं। अपनी तीव्र बुद्धि के कारण वह हर विषय पर तर्क वितर्क कर सकते हैं। वह प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली हर क्रिया को गहराई से जानने का प्रयत्न करते हैं और अपनी कल्पनाओं से नए-नए सुखों के उपाय सोचते हैं। इसलिए बुध से प्रभावित जातक हंसमुख, कल्पनाशील, काव्य, संगीत और खेल में रुचि रखने वाले, शिक्षित, लेखन प्रतिभावान, गणितज्ञ, वाणिज्य में पटु और व्यापारी होते हैं। वे बहुत बोलने वाले और अच्छे वक्ता होते हंै। वे हास्य, काव्य और व्यंग्य प्रेमी भी होते हैं। इन्हीं प्रतिभाओं के कारण वे अच्छे सेल्समैन और मार्केटिंग में सफल होते हैं। इसी कारण वे अच्छे अध्यापक और सभी के प्रिय भी होते हैं और सभी से सम्मान पाते हैं। बुध बहुत संुदर हैं। इसलिए उन्हें आकाशीय ग्रहों मंे राजकुमार की उपाधि प्राप्त है। उनका शरीर अति सुंदर और छरहरा है। वह ऊंचे कद गोरे रंग के हैं। उनके सुंदर बाल आकर्षक हैं वह मधुरभाषी हैं। बुध, बुद्धि, वाणी, अभिव्यक्ति, शिक्षा, शिक्षण, गणित, तर्क, यांत्रिकी ज्योतिष, लेखाकार, आयुर्वेदिक ज्ञान, लेखन, प्रकाशन, नृत्य-नाटक, और निजी व्यवसाय का कारक है। बुध मामा और मातृकुल के संबंधियों का भी कारक है। कुंडली के द्वादश भावों में यह दशम भाव का कारक है। ं हरा चना, पन्ना, सीसा, तिलहन, खाद्य तेल, पीतल आदि बुध की वस्तुएं हैं। बुध मस्तिष्क, जिह्वा, स्नायु तंत्र, कंठ -ग्रंथि, त्वचा, वाक-शक्ति, गर्दन आदि का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्मरण शक्ति के क्षय, सिर दर्द, त्वचा के रोग, दौरे, चेचक, पिŸा, कफ और वायु प्रकृति के रोग, गूंगापन, उन्माद जैसे विभिन्न रोगों का कारक है। बुध वैश्य वर्ण, नपंुसक और उŸार दिशा का स्वामी है। यह मिथुन और कन्या राशियों और आश्लेषा, ज्येष्ठा तथा रेवती नक्षत्रों का स्वामी है। यह कन्या राशि में उच्च और मीन राशि में नीच होता है। इसकी परम उच्च और परम नीच स्थिति कन्या और मीन राशि के 150 अंशों पर होती है। कन्या राशि के 150 से 200 तक यह मूल त्रिकोणी कहलाता है। बुध प्रायः कुंडली में सूर्य के साथ या सूर्य से एक भाव आगे या पीछे दिखाई देता है। सूर्य और बुध की भचक्र में आपसी दूरी अधिक से अधिक 270 है अर्थात् बुध पर सूर्य का प्रभाव बना ही रहता है। बुध ग्रह की शक्ति के लिए प्रत्येक अमावस्या को व्रत करना चाहिए तथा पन्ना धारण करना चाहिए। ब्राह्मण को हाथी दांत, हरा वस्त्र, मंूगा, पन्ना, स्वर्ण, कपूर, शस्त्र, फल, षट्रस भोजन तथा घृत दान करने चाहिए। नवग्रह मंडल में इनकी पूजा ईशान कोण में की जाती है। इनका प्रतीक वाण तथा रंग हरा है। इनके जप का बीज मंत्र ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः तथा सामान्य मंत्र बुं बुधाय नमः है।



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