सेप्टिक टैंक

सेप्टिक टैंक  

व्यूस : 79177 | अकतूबर 2013
सेप्टिक टैंक कहां होना चाहिए और क्यों? विभिन्न दिशाओं अथवा स्थानों पर सेप्टिक टैंक होने से कैसी समस्याएं उत्पन्न होंगी? बिना टैंक हटाए क्या उन समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है, यदि हां तो क्यों और यदि नहीं तो क्यों? उत्तर: आधुनिक गृह निर्माण में मल-मूत्र एवं अवशिष्ट पदार्थों के निष्कासन हेतु सेप्टिक टैंक का निर्माण भी एक आवश्यक अवयव है। सेप्टिक टैंक निर्माण लोग अपनी सुविधानुसार कहीं भी कर देते हैं जो वास्तु के सिद्धान्तों के अनुरूप नहीं होता। लोगों को पता नहीं चलता परन्तु गलत स्थान व दिशा में इसके निर्माण से अन्यान्य कष्टों एवं परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सेप्टिक टैंक के निर्माण की अवधारणा कुछ दशकों पूर्व ही अस्तित्व में आई है किन्तु आज यह हर घर की आवश्यकता बन गई है। सेप्टिक टैंक के लिए सामान्यतः जमीन के नीचे गड्ढा बनाया जाता है। वास्तु के सिद्धांतों को यदि मानें तो यह गड्ढा सावधानी पूर्वक बनाया जाना चाहिए क्योंकि इसमें किसी भी तरह की कमी तथा असंगतता अत्यधिक नकारात्मक ऊर्जा का सृजन करती है जो गृह निवासियों को अनेक प्रकार से पीड़ा पहुंचाती है साथ ही वायुमंडलीय प्रदूषण का कारण बनती है। वास्तु शास्त्र का मानना है कि सेप्टिक टैंक का निर्माण सावधानी पूर्वक करना चाहिए। वास्तुशास्त्र में सेप्टिक टैंक के निर्माण हेतु कुछ नियम एवं निर्देश प्रतिपादित हैं जिनका अनुपालन करके ही सेप्टिक टैंक का निर्माण किया जाना चाहिए। वास्तुनुकूल सेप्टिक टैंक बनाने हेतु आवश्यक निर्देशः- 1. सेप्टिक टैंक का प्रतिष्ठापन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि इसका मुख कभी भी दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम अथवा उत्तर-पूर्व दिशा की ओर न हो। 2. सेप्टिक टैंक के लिए सबसे आदर्श एवं उपयुक्त स्थिति उत्तर-पश्चिम दिशा है। 3. सेप्टिक टैंक का पृथक्करण इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे कि जल का निकास पूर्व दिशा की ओर हो तथा मल एवं अवशिष्ट पदार्थों का निष्कासन पश्चिम दिशा की ओर हो। 4. सेप्टिक टैंक की लम्बाई पूर्व-पश्चिम दिशा की ओर तथा चैड़ाई उत्तर-दक्षिण दिशा की ओर होनी चाहिए। 5. इसका निर्माण जमीन के लेवल में किया जाना चाहिए तथा इसे घर के मुख्य दीवार अथवा कम्पाउन्ड वाॅल से कुछ दूरी पर होना चाहिए। 6. ऐसी व्यवस्था बनाएं कि टाॅयलेट एवं स्नानागार की नाली के पाइप का निकास पश्चिम अथवा उत्तर-पश्चिम की ओर से हो। इसके विपरीत रसोईघर का जल-निकास पाइप पूर्व अथवा उत्तर की दिशा की ओर उन्मुख हो। 9. जल निकास पाइप किसी भी परिस्थिति में घर के दक्षिणी भाग में प्रतिष्ठापित नहीं होना चाहिए। यदि इस प्रकार का निर्माण अपरिहार्य कारणों से हो भी गया है तो यह अवश्य निश्चित करें कि कम से कम जल का निकास पूर्व अथवा उत्तर दिशा से हो। 10. मुख्य सीवेज (गन्दा जल/मल जल) उत्तर, पूर्व अथवा पश्चिम की ओर अवस्थित हो सकता है किन्त दक्षिण दिशा में इसकी अवस्थिति वास्तु के दृष्टिकोण से स्वीकार्य नहीं है। 11. यदि सम्पूर्ण उत्तरी भाग को 9 समान हिस्सों में विभाजित किया जाय तो सेप्टिक टैंक उत्तर-पश्चिम दिशा के तीसरे भाग में निर्मित की जानी चाहिए। 12. सेप्टिक टैंक को मुख्यतया सम्पूर्ण भूखण्ड को 9ग9 के कुल 81 ग्रिड में बांटकर सेप्टिक टैंक का स्थान निर्धारित करना चाहिए। संलग्न चित्र में इन 81 ग्रिड में किन दिशाओं में सेप्टिक टैंक शुभ अथवा अशुभ अथवा सम है, दर्शाया गया है। इसी चित्र के अनुरूप सेप्टिक टैंक हेतु स्थान का चयन कर निर्माण करवाना चाहिए। पूर्व पूर्व दिशा सबसे शुद्ध एवं दैव दिशा मानी जाती है। इधर से ही जीवनदायिनी रश्मियों एवं ऊर्जाओं का घर में प्रवेश एवं प्रवाह होता है। अतः इस दिशा को सेप्टिक टैंक के लिए निषिद्ध माना गया है क्योंकि इसकी नकारात्मक ऊर्जा के कारण इस दिशा से सकारात्मक ऊर्जा एवं लाभदायक किरणों एवं तरंगों का प्रवेश एवं प्रवाह अवरुद्ध एवं प्रभावित होगा। अतः वास्तु में इस दिशा को काफी महत्व प्रदान किया गया है तथा इसे दोषमुक्त रखने की वकालत की गई है। इस कारण से इस दिशा में सेप्टिक टैंक होना बहुत बड़ा दोष दक्षिण-पश्चिम दक्षिण-पश्चिम घर का सर्वाधिक शान्त क्षेत्र होता है। गृहस्वामी के शयन कक्ष के लिए यह क्षेत्र सर्वथा उपयुक्त है क्योंकि दिनभर के कार्य से थकान के उपरान्त यहां आराम एवं मानसिक शान्ति की अनुभूति होती है। इस दिशा में सेप्टिक टैंक का निर्माण होने से अत्यधिक नकारात्मक ऊर्जा का सृजन होता है जिसके कारण गृहस्वामी एवं उनकी पत्नी को घबराहट, बेचैनी, सिरदर्द एवं माइग्रेन के साथ-साथ अन्य कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस दिशा में सेप्टिक टैंक होने से निम्नलिखित परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं: 1. सिरदर्द, घबराहट, बेचैनी आदि की समस्या। 2. घर के सदस्यों का स्वास्थ्य अक्सर खराब। 3. दुर्घटना का भय। 4. घर के सदस्यों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति विकसित होना। 5. पति-पत्नी के बीच लड़ाई-झगड़े, मार-पीट, मुकदमेबाजी। 6. व्यापार में नुकसान। ब्रह्मस्थान जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ब्रह्मस्थान देवताओं का स्थान है जहां हर प्रकार के देवी-देवताओं का वास माना जाता है। यहां पर वास्तुपुरुष की नाभि मानी जाती है जो कि शरीर का सर्वाधिक मर्म स्थान है। अतः यहां पर पूजा-पाठ के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की गतिविधि वर्जित है। वास्तु शास्त्र के अनुसार 81 ग्रिड में से एकदम मध्य के 9 ग्रिड में किसी भी प्रकार का निर्माण सर्वथा वर्जित है। अतः यहां पर सेप्टिक टैंक का निर्माण निवासियों की पूर्ण बर्बादी का द्योतक है। ब्रह्मस्थान में सेप्टिक टैंक होने से घर के लोगों को निम्नलिखित परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है: 1. घर में सुख, शान्ति एवं समृद्धि का पूर्ण अभाव। 2. अकारण लड़ाई-झगडे़। 3. पड़ोसियों से मुकदमेबाजी। 4. घर के किसी सदस्य की हत्या अथवा अपहरण होने की संभावना। 5. घर के लोगों के स्वास्थ्य में असामान्य उतार-चढ़ाव। 6. अकारण अपमान तथा मान-प्रतिष्ठा में कमी। 7. संतानहीनता। गलत स्थान पर सेप्टिक टैंक के दोष के उपाय:- 1. घर के उत्तर-पूर्व में फाउण्टेन अथवा फिश एक्वेरियम लगाएं। 2. घर के द्वार के बाहर बड़ा स्वास्तिक चिह्न बनाएं अथवा स्वास्तिक पिरामिड लगाएं। 3. द्वार पर ओम त्रिशूल लगाएं। 4. द्वार के बाहर एवं अन्दर गणेश जी के दो फोटो इस प्रकार लगाएं कि दोनों के पृष्ठ भाग एक-दूसरे से जुड़े हों। 5. घर के हर कमरे में पिरामिड रखें। 6. घर के उत्तर-पश्चिम भाग में बांस का पौधा लगाएं। 7. बीच-बीच में घर में पूजा-पाठ तथा हवन कराएं। 8. घर के उत्तरी क्षेत्र में मनी प्लान्ट लगाएं। 9. घर के उत्तरी एवं उत्तर-पश्चिमी दिशा में विन्ड चाइम लगाएं। 10. गलत स्थान में सेप्टिक टैंक हो तो उसके चारों तरफ तांबे का तार परगोला बनाकर दबा दें। तीन भागों में विभाजित किया जाता है। आदर्श रूप में जल पूर्व भाग में तथा मल एवं अवशिष्ट पश्चिमी भाग में जमा होना चाहिए। 13. यदि जगह की कमी है तथा आदर्श स्थान पर सेप्टिक टैंक का निर्माण संभव नहीं है तो सेप्टिक टैंक पश्चिमी भाग के उत्तरी कोने पर बनवाया जाना वास्तु सम्मत है। किन्तु सेप्टिक टैंक की घर के मुख्य दीवार (कम्पाउण्ड वाॅल) से दूरी कम से कम 2 फीट अवश्य होनी चाहिए। 14. सेप्टिक टैंक का निर्माण भवन में प्लिंथ लेवल से ऊपर नहीं होना चाहिए। इसका निर्माण ग्राउण्ड लेवल में करना सर्वोत्तम है। 15. भवन का गटर उत्तर, पूर्व अथवा पश्चिम में होना वास्तु सम्मत है। दक्षिण दिशा में इसकी स्थिति कदापि स्वीकार्य नहीं है। 16. वैसे लोग जो भवन के ऊपरी तलों पर रहते हैं, वे इस बात का ख्याल अवश्य रखें कि जल निकास पाइप दक्षिण-पश्चिम के कोने पर कदापि न हो। यदि अपरिहार्य कारणों से हो भी तो उससे जल का रिसाव तो बिल्कुल न हो। 17. ऊपर के तलों से आने वाले पाइप दक्षिण-पश्चिम कोने पर नहीं होना चाहिए।



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