नाग पंचमी का महात्मय

नाग पंचमी का महात्मय  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 7628 | आगस्त 2014

भविष्य पुराण का मत है कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में पंचमी तिथि को दरवाजे के दोनों तरफ गोबर से विषधारी (विष को उगलने वाले) नागों की मूर्ति खींच कर, दुग्ध से स्नान करा कर, दधि, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, मोदक, मालपुआ आदि पदार्थों से पूजन करें, या ब्राह्मणों को बुला कर पूजन करावें तथा ब्राह्मणों को मिष्टान्नादि पदार्थों से तृप्त करें, द्रव्य दक्षिणा दें तथा एकभुक्त व्रत रखें, तो घर में सर्पों का भय नहीं होता है।

स्कंद पुराण के नागर खंड के अनुसार चमत्कारपुर में रहने वाले नागों का पूजन करने से मनोकामना पूर्ण होती है। नारद पुराण में सर्प के डसने से बचाव हेतु कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को नाग व्रत करने का विधान बताया गया है। पुनः सर्प दंश से सुरक्षित रहने के लिए भादो कृष्ण पंचमी को भी नागों को दूध पिलाने की बात कही गयी है। परंतु विचार कर देखा जाए, तो वर्षा ऋतु ही सर्पों के निकलने का समय होता है, क्योंकि बिलों में जल भर जाने के कारण नाग बाहर आ जाते हैं।

शरद ऋतु में नागों के दर्शन नहीं होते। गर्मी में भी यदाकदा नागों के दर्शन हो जाते हैं। इसी कारण सर्पों के नामानुरूप श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में ही नागों का पूजन विशेष लाभकारी है। इस दिन ‘¬ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा’ के अधिकाधिक जप करें, तो सर्प विष दूर होता है। जन्मकुंडली में बनने वाले ‘अनंत, कर्कोटक, वासुकी, शंखपाल, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलिक, शंखनाद, पातक, विषाक्त एवं शेषनाग नामक काल सर्प दोष की शांति भी इस तिथि में नागों के पूजन से होती है।

पूर्वी बंगाल, छोटा-नागपुर तथा अन्य प्रांतों में ‘सर्पराज्ञी’ मनसा देवी की पूजा की जाती है। मैसूर राज्य में कोमटि समुदाय की स्त्रियां पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा से नागों की मूर्ति की पूजा करती हैं। ‘दि सर्पेंट लोर’ नामक पुस्तक में बोगेल का कथन है कि पश्चिमी और दक्षिणी भारत में संतान प्राप्ति की कामना से विवाहित स्त्रियां सर्प पूजन करती हैं। गौरी पूजन के प्रसंग में हिंदू महिलाएं बांझपन दूर करने के लिए नागों को पूजती हैं। नाग पूजन से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और आयुष्य प्रदान करते हैं।

पंचमी नागों की तिथि है एवं, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। अग्नि पुराण में भी लिखा हैः शेषादीनां फनीशानां पंचम्यां पूजनं भवेत्’। सर्पराजों का पूजन पंचमी को होना चाहिए। जो नित निरंतर प्रत्येक मास की दोनों पक्षों की पंचमी को नागों का पूजन करते हैं, उन्हें नागों का भय तो होता ही नहीं, वरन् नाग लोक का संपूर्ण ऐश्वर्य भी प्राप्त होता है। इस तिथि में नागों को दूध भी पिलाना चाहिए, सुगंधित पुष्प समर्पित करने चाहिए।

सपेरे नागों का खेल भी दिखाते हैं, जिसके द्वारा वे जीवन यापन करते हैं। इससे बच्चों का मनोरंजन होता है। नाग पूजन के संबंध में एक प्राचीन दंत कथा है: प्राचीन काल में किसी ब्राह्मण की सात पुत्रवधुएं थीं। श्रावण मास लगते ही छह पुत्रवधुएं तो अपने-अपने भाइयों के साथ मायके चली गयीं, परंतु अभागी सातवीं का कोई भाई ही न था। अतः वह ससुराल में ही रह गयी। तब उस दुःखियारी ने करूणापूर्वक पृथ्वी को धारण करने वाले शेषनाग को भाई के रूप में याद किया। आर्त पुकार सुनकर शेषनाग वृद्ध ब्राह्मण के रूप में आये और उसे लिवा कर चल दिये।

थोड़ी दूर पहुंच कर ही उन्होंने अपना असली रूप धारण कर लिया एवं अपनी मुंह बोली धर्म बहन को फन पर बिठा कर नाग लोक (पाताल) ले गये। वहां वह निश्ंिचत होकर रहने लगी। पाताल लोक में जब वह निवास कर रही थी, उसी समय शेष जी की कुल परंपरा में नागों के बहुत से बच्चों ने जन्म लिया। उन नाग बच्चों को सर्वत्र विचरण करते देख शेष नाग की रानी ने उस देवी को पीतल का एक दीपक दिया तथा बताया कि इसके प्रकाश से तुम अंधेरे में भी सब कुछ देख सकोगी।

एक दिन अचानक टहलते हुए उसके हाथ से वह दीपक, विचरण करने वाले नाग बच्चों के ऊपर गिर गया। परिणामस्वरूप उन सब की थोड़ी-थोड़ी पंूछ कट गयी। उक्त घटनाचक्र के कुछ समय बाद वह बहन ससुराल भेज दी गयी। पुनः श्रावण मास आया, तो वह वधू दीवार पर नागों का चित्र खींच कर उनकी विधिव्त पूजा तथा मंगल कामना करने लगी। इधर क्रोधित नाग बालक, माताओं से अपनी पूंछ कटने का कारण जान कर इस वधू से बदला लेने के लिए आये हुए थे, परंतु आश्चर्य की बात कि अपनी ही पूजा में श्रद्धावान उसे देख कर नाग बालक बहुत प्रसन्न हुए और उनका क्रोध शांत हो गया।

बहन स्वरूप उस वधू के हाथ से प्रसाद रूप में उन नागों ने दूध पीया तथा चावल भी खाये। नागों ने उसे सर्प कुल से निर्भय होने का वरदान दिया तथा उपहार में मणियों की माला और बहुत सी वस्तुएं दीं। उन्होंने यह भी बताया कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी में जो हमें भाई रूप में पूजेगा, उसकी हम सदा रक्षा करते रहेंगे। स्वयं भगवान नारायण क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करते हैं। नाग काल का स्वरूप है और जो नागों का पूजन करता है, वह काल पर विजय प्राप्त करता है। अतः निष्कर्ष यही निकलता है कि नागों का पूजन लोक एवं परलोक दोनों के लिए कल्याणकारी एवं शुभ फलप्रदाता है।



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