एक और मीरा

एक और मीरा  

आभा बंसल
व्यूस : 1910 | जनवरी 2012

इस मीरा का जीवन उस रेशमी साड़ी की तरह है जो उसे समय पर मिली तो सही लेकिन वक्त से पहले ही वह साड़ी छिन्न-भिन्न होकर तार-तार हो गयी। और उसे जितना सहेजा उतना ही संभलने में न आई। आइए देखें इस दीन-दुखिया की ग्रह स्थितियों एवं दशाओं का ज्योतिषीय विश्लेषण। अभी हाल ही में मेरी मुलाकात दिव्या से हुई। दिव्या से बातचीत के दौरान बहुत सी पुरानी यादें ताजा हो गई। दिव्या ने अपनी सहेली मीरा के बारे में बहुत कुछ बताया और उसके भविष्य के बारे में पूछने लगी तो सब कुछ चलचित्र की तरह आंखों के सामने घूमने लगा।

दिव्या और मीरा बहुत ही घनिष्ठ सहेलियां थी जो हमारे पड़ोस में ही रहती थीं। मीरा का विवाह छोटी उम्र में ही कर दिया गया था। समय समय पर मुझे दिव्या से खबर मिलती रहती थी कि मीरा बहुत खुश है। उसका विवाह कानपुर में हुआ था और उसके ससुराल वाले काफी धनाढ्य व सुसंस्कृत परिवार से थे, मीरा का पति भी अत्यंत मेधावी था तथा अपने घर के बिजनेस में ही कार्यरत था। एक दिन शाम को अचानक दिव्या रोते हुए मेरे घर आई, उसकी आंखे रो रोकर सूजी हुई थी। मैं इससे पहले कि कुछ समझ पाती और उसे सान्तवना दे पाती, वह फूट फूट कर रोने लगी और बताया कि मीरा का पति ‘रोहित’ एक ट्रेन एक्सीडेंट में मारा गया है। सुन कर जबरदस्त धक्का लगा कि इतनी छोटी सी उम्र में इतना बड़ा हादसा कैसे सहन करेगी।

बाद में पता चला कि रोहित किसी काम से चंडीगढ़ गया था और वापिस आते हुए उसका पैर ट्रेन से फिसला और वह सीधा मृत्यु को प्राप्त हो गया। वाकई बड़ा ही दर्दनाक हादसा हुआ था मीरा के साथ। उस वक्त मीरा और रोहित की छः माह की बेटी भी थी। ससुराल वालों ने मीरा और उसकी बेटी स्नेहा को नजरों से बिल्कुल भी ओझल नहीं होने दिया और उनको पूरा प्यार व हर तरह से मानसिक सहयोग प्रदान किया।


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चूंकि मीरा के माता-पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी इसलिए ससुराल वालों ने उसे अपने मायके में भी ज्यादा दिन नहीं रहने दिया और मां-बेटी दोनों को अपने बच्चे से भी अधिक प्यार दिया और उसे अपनी बेटी की तरह रखने लगे। मीरा की आर्थिक स्थिति तो अच्छी थी पर इतनी छोटी उम्र में रोहित का अभाव बहुत खलता था तथा वह बहुत बुझी-बुझी सी रहती। उसका दुख उसके सास ससुर से छुपा हुआ नहीं था, वे भी इस बात से अत्यंत दुखी रहते थे कि उनके बाद मीरा का क्या होगा, उसके सामने तो पहाड़-सी जिंदगी है।

इसलिए उन्होंने मीरा का दूसरा विवाह करने का फैसला लिया। समाज में पहले तो इसका विरोध हुआ परंतु जब उन्होंने अपना पक्ष रखा तो सभी ने उनके विशाल हृदय की तारीफ की। काफी छानबीन के पश्चात मीरा का दूसरा विवाह संजय से किया गया। संजय की पहली पत्नी का निधन हो चुका था तथा उसका बारह-तेरह साल का एक बेटा था। मीरा की बेटी भी अब 8 वर्ष की हो चुकी थी। मीरा का कन्यादान उसके ससुर ने किया और बिल्कुल बेटी की तरह उसे विदा किया। मीरा और उसकी बेटी स्नेहा के लिए नये घर में सामन्जस्य बिठाना काफी कठिन था। यह घर उन्हें बिल्कुल अजनबी सा लगता था और संजय का बेटा उत्सव भी बहुत नकारात्मक सोच रखता था।

वह मीरा और स्नेहा को मां और बहन के रूप में बिल्कुल स्वीकार नहीं कर पा रहा था, न ही वह मीरा को अपने पिता संजय के साथ देख सकता था। वह रोज कोई न कोई बहाना बना कर संजय से मीरा की शिकायत करता और उनका झगड़ा करवाता। वैसे भी वह एक कुमार अवस्था का लड़का था तथा उसके दिल में नवयौवन के अंकुर जन्म ले रहे थे, ऐसे में किसी नवयुवती के घर में होने से उसके हाव-भाव भी बदल गये थे। मीरा को समझ नहीं आता था कि वह उत्सव को कैसे संभालें।

पहले तो उसकी हरकतों को उसने नजर अंदाज किया। पर जब उसे लगा कि पानी सिर से ऊपर जा रहा है और अब कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा तो उसने संजय से हल्के रूप से उत्सव के बारे में कहा। संजय अपने बेटे के बारे में कुछ भी सुनना नहीं चाहता था और उसे बेटे की बजाय मीरा में ही सारी गलती दिखाई दी। उसने उत्सव को डांटने की बजाय मीरा को ही उल्टा-सीधा सुना दिया जिससे उत्सव को और बढ़ावा मिल गया।

इतने में ही दीवाली का त्यौहार आ गया और संजय ने मीरा और स्नेहा को अपने मां-बाप के घर दीवाली मनाने भेज दिया। दीवाली के पश्चात् मीरा ने कई बार संजय को फोन किया और वापिस ले जाने के लिए कहा, लेकिन संजय ने उसे वापिस आने के लिए साफ मना कर दिया और कह दिया कि अब उनका साथ रहना संभव नहीं। यह मीरा के लिए एक बहुत बड़ा झटका था। पति का सुख दूसरी बार उससे छिन गया था। उसने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी, पर विधाता को शायद यह मंजूर नहीं था।


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स्नेहा भी वहां जाना नहीं चाहती थी। जैसे ही उसके सास-ससुर को पता चला, उन्होंने फौरन उन्हें अपने घर बुलवा लिया। अब मीरा और स्नेहा दोनों कानपुर में ही है। मीरा ने अपने ससुर की फैक्ट्री में थोड़ा समय देना शुरू किया है पर वह अब भी रोहित को याद करती है। उसे एक ऐसे साथी की तलाश है जिससे वह अपने दुख-दर्द बांट सके, अपने मन की बात कह सके और जिसके कंधे पर सिर रख कर अपने सारे गम भूल जाए। तीस साल की छोटी सी उम्र में उसने इतना कुछ देख लिया है कि वह अपनी असली उम्र ही भूल जाती है लेकिन वह जब भी अकेली होती है

उसका मन किसी अपने के लिए तड़पता है और वह यही जानना चाहती है कि क्या उसकी जिंदगी ऐसे ही बीतेगी या उसमें कुछ बदलाव आएगा। मीरा की कुंडली का अवलोकन करें तो उसकी कुंडली में सप्तमेश मंगल लाभेश गुरु के साथ चतुर्थ भाव में स्थित है तथा धनेश बुध से दृष्ट है। जिसके फलस्वरूप इसका विवाह एक धनाढ्य परिवार में हुआ। इसके अतिरिक्त चतुर्थेश सूर्य भी दशम भाव में है जो ससुराल की अच्छी सामाजिक स्थिति को भी दर्शाता है। दशमेश और भाग्येश शनि का पंचमेश एवं धनेश बुध से विनिमय संबंध है और यह बहु सुंदर राजयोग बना रहा है।

लग्नेश शुक्र लाभ भाव एकादश में अपनी उच्च राशि में बैठे हैं। इसीलिए मीरा को कभी भी धन का अभाव नहीं होगा और उसे अपनी मित्रों से भी पूर्ण सहयोग प्राप्त होता रहेगा। इस कुंडली में उच्चस्थ लग्नेश शुक्र तथा कर्मेश व भाग्येश शनि की एक दूसरे पर पूर्ण दृष्टि भी है जो एक अत्यंत शुभ राज योग बना रही है। यह राजयोग मीरा को अत्यंत भाग्यवान भी बना रहा है। क्योंकि यहां लग्नेश, पंचमेश, कर्मेश, भाग्येश व लाभेश सभी का आपसी संबंध बन रहा है।

इसीलिए मीरा का विवाह एक धनाढ्य परिवार में हुआ तथा उन्होंने उसे तथा उसकी संतान को अपना पूरा सहयोग प्रदान किया। वैवाहिक सुख की दृष्टि से मीरा की कुंडली में अनेक तरह से ग्रहों की स्थिति अशुभ बनती है जिसके कारण उसे वैवाहिक जीवन में कष्ट भोगने पड़े। मीरा की कुंडली में सप्तमेश, सप्तम स्थान तथा पतिकारक ग्रह गुरु सभी पाप पीड़ित स्थिति में है। सप्तम स्थान पर पाप ग्रह शनि और मंगल की पूर्ण दृष्टि पड़ रही है। ये दोनो ग्रह नैसर्गिक पाप एवं क्रूर ग्रह है। शनि, वृष लग्न के लिए योग कारक होने के साथ ही बाधक ग्रह भी है, इसलिए योगकारक शनि होने के बावजूद शनि और मंगल की दृष्टि अधिकांशतः अशुभ फल ही प्रदान कर रही है।

सप्तमेश ग्रह मंगल की स्थिति भी अशुभ ग्रह राहु के साथ होने से पाप पीड़ित है और बृहस्पति भी अष्टमेश होने के कारण मंगल को कोई शुभत्व प्रदान नहीं कर रहा है। स्त्री जातक में चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह का होना अत्यंत आवश्यक है तभी उसे घर का सुख प्र्राप्त होता है। परंतु मीरा की कुंडली में अकारक ग्रह गुरु पाप ग्रह मंगल और राहु के साथ पिसा हुआ है। परंतु चतुर्थ भाव के स्वामी सूर्य एवं बुध की दृष्टि से मीरा का दो बार विवाह हुआ। सप्तम के कारक गुरु की स्थिति का आकलन करें तो वह भी दो अशुभ ग्रह राहु और मंगल के साथ स्थित है अर्थात् गुरु भी पाप पीड़ित है।


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और इसके साथ-साथ मंगल अलगाववादी ग्रह केतु के नक्षत्र में स्थित है। कुंडली के नवांश में भी सप्तमेश मंगल अपनी नीच राशि में उच्चस्थ गुरु के साथ है और नवांश में सप्तमेश सूर्य बारहवें भाव में अपने शत्रु ग्रह शनि के साथ शनि की राशि में बैठे हैं। सप्तम भाव से अष्टमस्थ चंद्रमा को शनि की दृष्टि भी वैवाहिक सुख में एक बड़ी अड़चन पैदा कर रही है। इन सभी कारणों से मीरा को स्थायी विवाह का तथा अपने पति का सच्चा सुख प्राप्त नहीं हुआ। मीरा का प्रथम विवाह मई 2001 में हुआ जब शनि में शुक्र की अंतर्दशा प्रारंभ ही हुई थी। मीरा की जन्मकुंडली में शुक्र अपनी उच्च राशि में बैठे हैं और गोचर में भी उस समय शुक्र मीन राशि में गोचर कर रहे थे और शनि वृषभ राशि से सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहे थे।

विवाह कारक गुरु भी गोचर में सप्तम भाव को पूर्ण दृष्टि दे रहे थे तथा जन्मकालीन गुरु भावेश मंगल को पूर्ण दृष्टि से प्रभावित कर रहे थे। अर्थात भाव, भावेश तथा भावकारक तीनों शुभ स्थिति में थे। इसलिए मीरा का विवाह 21 वर्ष की आयु में ही संपन्न हो गया। रोहित की मृत्यु के समय मीरा की शनि में शुक्र की अंतर्दशा व शनि की प्रत्यंतर दशा चल रही थी और शनि की साढ़ेसाती चरम सीमा पर थी। गोचरस्थ शनि जन्मस्थ मंगल (सप्तमेश) को दृष्टि दे रहे थे और मंगल पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि भी नहीं थी इसीलिए मीरा को पति-मृत्यु की वेदना से गुजरना पड़ा।

दूसरे विवाह के समय शनि में राहु की अंतर्दशा व राहु की ही प्रत्यंतर्दशा चल रही थी। जन्मकुंडली में राहु सप्तमेश मंगल के साथ स्थित है तथा गोचरस्थ राहु मंगल को पूर्ण दृष्टि दे रहे थे शनि भी गोचर में मंगल पर गोचर कर रहे थे। इसलिए राहु की अंतर्दशा में विवाह तो हुआ पर उसमें मीरा भ्रमित ही रही और उसका विवाह सफल नहीं हुआ और शनि में राहु में शनि की प्रत्यंतर दशा शुरू होते ही मीरा अपने मायके वापिस आ गई और फिर लौटकर वापिस ससुराल नहीं जा पायी।

अर्थात् शनि ने बाधक और वक्री होकर अपनी दशा में मीरा के वैवाहिक जीवन को तहस-नहस कर दिया और अपनी जन्मस्थ व गोचरस्थ दोनों स्थितियों से उसके जीवन में गहन उथल-पुथल मचा दी। आजकल शनि में गुरु की अंतर्दशा का अंतिम दौर चल रहा है। चूंकि गुरु चंद्र लग्न से सप्तमेश होकर अपने घर को देख रहे हैं। इसलिए इस अवधि तक मीरा के जीवन का खालीपन भरने के लिए शायद कोई दोस्त भी उसके जीवन में दस्तक दे सकता है।

मई 2013 में बुध की महादशा आरंभ हो जाएगी। बुध की दशा मीरा के लिए अत्यंत शुभ रहेगी क्योंकि बुध पंचमेश व धनेश होकर दशम भाव में वक्री होकर बैठे हैं। इस दशा में मीरा अवश्य ही कोई बिजनेस कर सकती है और स्वतंत्र रूप से उसे एक विस्तृत रूप भी दे सकती है



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