वास्तु सीखें

वास्तु सीखें  

प्रमोद कुमार सिन्हा
व्यूस : 3789 | जनवरी 2012

प्रश्न- भवन में पूर्व दिशा का क्या महत्व है?

उ0- वास्तु शास्त्र का मुख्य आधार ज्योतिष शास्त्र है। जिस प्रकार ग्रहों के अनुकूल और प्रतिकूल प्रभाव मानव जीवन पर पड़ते हंै उसी प्रकार ग्रह अपने शुभ और अशुभ प्रभाव से वास्तु की दिशाओं को प्रभावित कर उस मकान में रहने वाले के तत्संबंधी प्रभाव में कमी या वृद्धि करते हैं। पूर्व दिषा का स्वामी इंद्र्र एवं प्रतिनिधि ग्रह सूर्य हैं। सृष्टि के सृजन में सूर्य का विशेष महत्व है। इनसे ही समस्त सृष्टि में प्राणियों और वनस्पतियों की उत्पत्ति, पोषण व प्रलय होते हैं। सूर्य ही ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की एकीकृत मूर्ति त्रिमूर्ति का प्रतीक है। जिस घर का मुख्य द्वार बड़ा हो, उसमें बड़ी-बड़ी खिड़कियों एवं झरोखांे से सूर्य का प्रकाश आता हो तथा पूर्व की दिशा में किसी प्रकार का दोष नहीं हो तो उसमें वास करने वाले को अच्छे स्वास्थ्य, पराक्रम, तेजस्विता, सुख-समृद्धि एवं गौरवपूर्ण जीवन की प्राप्ति होती है।

प्रश्न- भवन के पूर्व दिशा में दोष रहने पर क्या प्रभाव होता है?

उ0- घर के पूर्वी भाग में कूड़ा-कचरा पत्थर और मिट्टी के ढेर हांे तो संतान की हानि होती है। साथ ही इस दिषा मंे दोष होने पर व्यक्ति के सांसारिक एवं आध्यात्मिक विकास में कमी आ जाती है। पिता के सुख में कमी, पुत्र संतान की कमी, विकलांग संतान का जन्म एवं यश और प्रतिष्ठा में कमी आती है। इसके अतिरिक्त इस दिशा के दोषपूर्ण होने पर धन व संतान का अभाव, ऋण, मानसिक अषांति, नेत्र विकार, लकवा, रक्तचाप, सिर दर्द या सिर से संबंधित रोग, हड्डी के टूटने आदि रोग की संभावना बनती है।

प्रश्न- भवन की पूर्व दिशा में दोष रहने पर क्या उपाय करना चाहिए।

उ0- घर की पूर्व दिशा में दोष रहने पर निम्न उपाय करना लाभप्रद होता है।

1. दिषा दोष निवारणार्थ पूर्व दिशा में सूर्य यंत्र की स्थापना करें।

2. सूर्य को अघ्र्य दंे एवं उनकी उपासना करंे।

3. पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है। यह काल पुरुष का मुख है। अतः पूर्वी द्वार पर सूर्य यंत्र स्थापित करें और वास्तु मंगलकारी तोरण लगाएं।

4. आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।

5. पूर्व में पानी का जलकुंड बनाएं और उसमें लाल कमल लगायें।

प्रश्न- भवन में पश्चिम दिशा का क्या महत्व है?

उ0- पष्चिम दिषा का स्वामी वरुण, आयुध पाष एवं प्रतिनिधि ग्रह षनि है। शनि काल है, शनि अवधि है। शनि दुर्भाग्य एवं सौभाग्य दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। शनि को अपनी लक्ष्य प्राप्ति के लिए कोई व्यग्रता या घबराहट नहीं होती है। वह निश्चयपूर्वक निर्मोही की तरह कालचक्र मंे अपने शिष्यों को डाल कर उनके अहं, उनकी आसक्तियों तथा उनकी दुर्बलताओं को शनैः शनैः हटाकर उन्हें आध्यात्मिक विकास के लिए सक्षम बनाता है। कालपुरुष के अनुसार पष्चिम दिषा सप्तम स्थान सेे जुड़ी हुई है। पत्नी सुख, वैवाहिक सुख, व्यवसाय में प्रगति, साझेदारी का व्यवसाय, कोर्ट कचहरी के मामले, गुप्तांग एवं जननांग का विचार इसी स्थान से किया जाता हैं।े

प्रश्न- भवन के पश्चिम दिशा में दोष रहने पर क्या प्रभाव होता है?

उ0- भवन में घर या वर्षा का जल पश्चिम से होकर बाहर जा रहा हो तो पुरुष लंबी बीमारियों के शिकार होते है। इस दिशा में दोष रहने पर नपुंसकता, पैरांे में तकलीफ, कुष्ठ रोग, रीढ़ की हड्डी में कष्ट, गठिया, स्नायु एवं वात संबंधी रोगों की संभावना रहती है। यदि घर की पष्चिम दिषा में दरारें हों तो गृहस्वामी को गुप्तांग में बीमारी होती है तथा आमदनी अव्यवस्थित रहती है। पश्चिम दिशा में अग्नि स्थान हो तो गर्मी, पिŸा और मस्से की शिकायतें होगीं।

प्रश्न- भवन मंे पश्चिम दिशा - दोष रहने पर क्या उपाय करना चाहिए।

उ0- घर की पश्चिम दिशा में दोष रहने पर निम्न उपाय करना लाभप्रद होता है। घर का प्रवेष द्वार पूर्व मंे हो और वह पूर्ण स्वच्छ और साफ हो तथा पष्चिम में मिट्टी, पत्थर, चट्टान आदि हो तो गृहस्वामी की आमदनी ठीक रहेगी। इसके अलावा निम्न उपाय करना लाभप्रद होता है -

1. पष्चिम दिषा जनित दोष निवारण हेतु घर में वरुण यंत्र की स्थापना करें।

2. यदि पश्चिम दिशा बढी हुई हो तो उसे काटकर वर्गाकार या आयताकार बनाएं।

3. षनिवार को खेजड़ी के वृक्ष को पानी से सींचे।

4. शनि व्रत करें तथा शनि यंत्र के समक्ष शनि स्तोत्र का पाठ करें।

5. पश्चिम की चारदीवारी को ऊंचा करें तथा पश्चिम में भारी वृक्ष लगायें।

प्रश्न- भवन में उत्तर दिशा का क्या महत्व है?

उ0- उत्तर दिषा का स्वामी कुबेर, आयुध गदा एवं प्रतिनिधि ग्रह बुध है। बुध उत्तर दिशा का स्वामी ग्रह माना गया है। बुध जिस ग्रह के साथ होता है उसी के अनुसार अपना फल देता है अर्थात शुभ ग्रहों के साथ हो तो शुभ और अशुभ ग्रहों के साथ हो तो अशुभ होता है। उत्तर दिषा से काल पुरुष के हृदय एवं सीने का विचार किया जाता है। जन्म कुंडली का चैथा भाव इसका कारक स्थान है। यह दिषा मां का स्थान है। इस दिषा में खाली जगह छोड़ने से ननिहाल पक्ष लाभान्वित होता है। यह दिशा शुभ होने पर व्यक्ति को विद्या तथा बुद्धि की प्राप्ति और उसमें कवित्व शक्ति तथा विभिन्न प्रकार के आविष्कारांे की क्षमता का विकास होता है। साथ ही नौकर-चाकर, मित्र, घर एवं विभिन्न प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।

प्रश्न-भवन की उत्तर दिशा में दोष रहने पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उ0- उत्तर दिषा दोषपूर्ण हो तो गृहस्वामी की कंुडली का चैथा भाव निष्चित रूप से बिगड़ा हुआ होगा। ऐसे जातक के मातृ सुख, नौकर-चाकर के सुख, भौतिक सुख आदि की कमी रहती है। साथ ही हर्निया, हृदय तथा चर्मरोग, गाॅल ब्लैडर की बीमारी ,पागलपन, हैजे, फेफड़े एवं रक्त से संबंधित बीमारियों की संभावना रहती है।

प्रश्न- भवन की उत्तर दिशा में दोष रहने पर क्या उपाय करना चाहिए?

उ0- उत्तर में दिशा दोष रहने पर निम्न उपाय करना लाभप्रद होता हैैः-

1. दिषा दोष निवारणार्थ पूजा में बुध यंत्र, कुबेर यंत्र के साथ लगाएं।

2. यदि उत्तर दिशा का भाग कटा हो तो उत्तरी दीवार पर एक बड़ा दर्पण लगाएं।

3. घर की दीवारों को हरा रंग करें। तथा घर की उत्तर दिशा की तरफ तोते का चित्र लगाए।

4. श्री यंत्र के समक्ष श्री सूक्त का नित्य पाठ करें।

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