संयोग

संयोग  

आभा बंसल
व्यूस : 3810 | जुलाई 2012

जन्म जन्मांतरों की लंबी राहों में कोई बिरले ही होते हैं जो पूर्व कर्म बंधनों के कारण किसी जन्म में फिर से प्रेम विवाह की डोरी से जुड़ जाते हैं और दो शरीर - एक आत्मा जैसी कहावत को चरितार्थ करते हैं। ऐसे जोड़े के मेलापक में 36 गुण का मिलान भी ऐसा ही कुछ दर्शाता है। प्रत्येक युवा का एक सपना होता है कि उसे ऐसा जीवन साथी मिले जिससे उसके विचार मिलते हों। जीवन शैली समान हो, सामाजिक, बुद्धि व धार्मिक स्तर में मिलान हो तथा मानसिक रूप से भी दोनों के विचारों में समन्वय हो यही सच भी है

कि समान स्तर के विवाहित जोड़े को अपने नये जीवन में प्रवेश अधिक सहज हो जाता है। विवाह को लेकर पश्चिमी देशों की संस्कृति भारत की संस्कृति से काफी भिन्न है। जहां भारत में अभी भी माता-पिता अपने बच्चों के लिए भावी जीवन साथी का चयन करते हैं वही पश्चिम में सभी बच्चे स्वयं ही उनका चयन करते हैं। जहां भारत में आम तौर पर 20 से 30 वर्ष तक की आयु में लड़के- लड़कियांे का विवाह हो जाता है, विदेशो में यही उम्र 30 से 40 वर्ष तक जाती है क्योंकि वहां बच्चे अपना निर्णय ही नहीं ले पाते। पहले 5-6 साल तो वह साथ रह कर देखते हैं और उसके बाद ही अपना निर्णय लेते हैं और इस दौरान उनके साथी भी बदल जाते हैं क्योंकि आपस मंे कोई न कोई मन मुटाव आ ही जाता है।

भारत में भी लिव इन रिलेशनशिप का चलन बहुत बढ़ गया है और काफी लड़के लड़कियां अपनी पसंद से ही विवाह करने लगते हैं। लेकिन उसके साथ यहां तलाक की संख्या भी बढ़ गई है क्योंकि छोटी-छोटी सी बात पर पति-पत्नी अपना सामंजस्य नहीं कर पाते और आर्थिक रूप से स्वतंत्रता भी इसका एक कारण बनी है। इसे एक संयोग ही कहेंगे कि स्वयं चुनाव करते समय ऐसा जीवन साथी मिल जाए जो हर स्तर पर समानता रखता हो और ज्योतिष की परिभाषा में जिसे उत्तम कुंडली मिलान कहा जाता है। ऐसा ही संयोग मुझे हाल ही में देखने को मिला। श्रुति एक मेडिकल कालेज में होम्योपैथी डाॅक्टरी की पढ़ाई कर रही थी।


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उसकी क्लास में लगभग पचास विद्यार्थी थे। उनकी क्लास में टीचर ने आठ-आठ विद्यार्थियों के छह ग्रुप बना दिये थे ताकि वे लोग ग्रुप में काम कर सकें। श्रृति के ग्रुप में उसे वरुण बहुत अच्छा लगता। उनका काम करने का ढंग, सोचने का ढंग किसी भी प्रोजेक्ट को प्रस्तुत करने का तरीका बहुत मिलता और दोनों मिलकर काम को सरल बना देते। कहां तो वह अपने घर से दूर होकर होस्टल में बहुत दुखी थी पर वरुण से मिलने के बाद उसे काॅलेज में समय बिताना बहुत अच्छा लगता।

वह अधिक से अधिक समय वरूण के साथ काॅलेज में बिताती। पहला साल कैसे निकल गया, उसे पता ही नहीं चला। दूसरे साल वरुण को दूसरा ग्रुप मिल गया तो श्रुति का मन एक दम बुझ गया। जिसे क्लास में आना बहुत अच्छा लगता या वही अब उसे बोझिल लगने लगी। वह इंतजार करती रहती कि कब क्लास खत्म हो और वह वरूण से मिले। यही हाल बरूण का था। दोनों ने अन्य विद्यार्थियों से बात करके जब तक अपना ग्रुप नहीं बदलवाया उन्हें चैन नहीं आया। इसी तरह कब उनका कोर्स पूरा हो गया, उन्हें पता ही नहीं चला और दोनों अपने-अपने घर चले गये। चूकि अब श्रुति डाॅक्टर बन गई थी उसके माता-पिता उसके लिए वर की तलाश करने लगे।

उन्हें जन्मकुंडली के मिलान पर अटूट विश्वास था और वे श्रुति का विवाह कुंडली मिलान के पश्चात् ही करना चाहते थे। श्रुति चाह कर भी अपने मन की बात उनसे नहीं कह पाई। श्रुति के लिए अनेक रिश्ते आए लेकिन कहीं भी उसकी कुंडली नहीं मिली और इसीलिए उसका विवाह टलता रहा। तभी एक दिन श्रुति ने हमारे संस्थान से वरुण की कुंडली से अपनी कुंडली मैच कराई तो वह हैरान रह गई। दोनों के 36 गुण मिल रहे थे। वह तो खुशी से उछल पड़ी तभी तो हम दूसरे के इतने करीब हैं और हमारे विचार इतने मिलते हैं।

अब उसे विश्वास था कि उसके पापा वरुण के लिए जरूर मान जाएंगे। उसने अपने माता-पिता से इस विषय में बातचीत की तो वे उसकी विभिन्न जाति को लेकर पशोपेश में पड़ गये लेकिन श्रुति के प्रेम के आगे उनकी एक न चली और उन्होंने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी। आज श्रुति और बरुण की शादी को लगभग पांच वर्ष हो गये हैं और उनका एक बेटा भी उनके परिवार में शामिल हो गया है। यह ईश्वरीय संयोग ही था जिसने उन्हें एक दूसरे के पास लाकर, मिलाकर हमेशा के लिए एक कर दिया।

आइये, करते हैं इन दोनों का ज्योतिषीय विश्लेषण इन दोनों जातकों की लग्न कुंडलियां एक हैं, तथा यहां तक कि दोनों की राशि भी एक हैं, दोनों की कुंडलियों में बारह भावों में एक समान ग्रह स्थित है। ऐसा ग्रह संयोग बहुत कम पति-पत्नियों को परस्पर देखने को मिलता है। इन्हीं समान ग्रह, लग्न राशि के होने से इन दोनों का एक दूसरे के प्रति इतना अत्यंत अटूट प्रेम बना जिसके फलस्वरूप दोनों शीघ्र ही एक दूसरे के करीब हो गये।


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इन दोनों की कुंडलियों में सूक्ष्मता से गौर करें तो पंचम स्थान जो कि पूर्व जन्म से संबंध रखता है, अर्थात् पंचम भाव का स्वामी बुध अष्टम स्थान में सप्तमेश सूर्य, लग्नेश शनि, लाभेश व कुटम्बेश बृहस्पति के साथ अपने ही घर में स्थित हैं। इस ग्रह युति संयोग से यह स्पष्ट संकेत हैं कि, इनके विवाह संयोग का पूर्व जन्म से कोई गहरा संबंध था, जिसके कारण इनके माता-पिता द्वारा बहुत प्रयास करने पर भी अन्यत्र इनका विवाह-संबंध नहीं बन पाया और यह दोनों मनपसंद प्रेम विवाह करने में सफल हुए।

दोनों की लग्न कुंडलियों में सप्तमेश और पंचमेश की युति होने से प्रेम विवाह होने का प्रबल संयोग भी बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र, एवं पौराणिक ग्रंथों के कथनानुसार मृगशिरा नक्षत्र में जन्में पुरूषों एवं रोहिणी नक्षत्र में जन्मी स्त्रियों का विवाह के संबंध में पूर्व जन्म का कोई बड़ा संयोग होता है। इन जातकों का जन्म भी ठीक इन्हीं नक्षत्रों में हुआ है। मृगशिरा नक्षत्र में वरुण का तथा रोहिणी नक्षत्र में श्रुति का जन्म हुआ है।

इन दोनों की कुंडली में केमद्रुम योग विद्यमान है। इस योग के फलस्वरूप इनको धन की वचत करने की कोशिश करनी चाहिए तथा धन का सही तरीके से उपयोग करने की आदत डालनी चाहिए। अन्यथा ऐसे में आर्थिक रूप से परेशानियां आ सकती हैं तथा भविष्य में जब भी इनके जीवन में आर्थिक असमानता आयेगी, अर्थात जैसे एक व्यक्ति अधिक कमाएगा तथा दूसरा कम कमाएगा तो ऐसी स्थिति में दोनों के मध्य कुछ मतभेद भी बढ सकते हैं।

भाग्य भाव में मूल त्रिकोण स्वराशि में योगकारक शुक्र के होने से भाग्यशाली योग बन रहा है जिसके प्रभाव से जीवन में धन, संपत्ति, वाहन आदि सुख की उत्तम प्राप्ति रहेगी। आगे भविष्य में वैवाहिक जीवन के अनुसार दोनों जातकों को 2014 तक अधिक तालमेल बनाने की आवश्यकता रहेगी, जिससे वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि बनी रहे।



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