बहु विवाह योग – एक परिचर्चा

बहु विवाह योग – एक परिचर्चा  

आभा बंसल
व्यूस : 9826 | जनवरी 2007

गत 3 दिसंबर 2006 को कानपुर में बहु संबंध एवं बहु विवाह पर एक दिवसीय ज्योतिषीय सम्मेलन संपन्न हुआ। ज्योतिष में बहु संबंध के लिए शुक्र को कारण माना गया है। जब भी शुक्र क्रूर या अशुभ ग्रहों से संबंधित होता है तो बहु संबंध योग बनते हैं। इसी प्रकार सप्तम भाव विवाह का भाव है और जब भी सप्तम भाव का संबंध अशुभ या क्रूर ग्रहों से अर्थात मंगल या सूर्य से होता है तो बहु विवाह योग बनता है।

कुछ मुख्य विवाह योग इस प्रकार हैं -

  • शनि की सप्तम भाव में स्थिति।
  • मंगल की सप्तम भाव में स्थिति व शनि की उस पर दृष्टि।
  • सप्तम भाव में शनि व चंद्र की स्थिति।
  • लग्न, द्वितीय या सप्तम भाव में पापी ग्रह हो तथा सप्तमेश निर्बल हो।
  • बलवान शुक्र की सप्तम में स्थिति।
  • अकेला अष्टमेश लग्न या सप्तम में स्थित हो।
  • मंगल लग्न में तथा सप्तमेश अष्ट में व अष्टमेश द्वादश में हो
  • सप्तमेश नीच शुभ ग्रहों के साथ हो।
  • सप्तम भाव में अधिक ग्रह हों और उन पर सप्तमेश की दृष्टि न हो।
  • सप्तम में मंगल, शुक्र या शनि हो तथा लग्नेश अष्टम भाव में हो।

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इस प्रकार अनेक योग बहु विवाह के सूचक हैं। लेकिन ये योग पूर्ण रूप से खरे नहीं उतरते। अनेक कुंडलियों में ऐसे योग होते हुए भी बहु विवाह नहीं होता है। सटीक विश्लेषण के बिना बहु विवाह का फल कथन ज्योतिष के प्रति लोगों के विश्वास को क्षीण करता है। केवल एक, दो या तीन योगों के आधार पर फल कथन कर देने से भूल होने की संभावनाएं बहुत अधिक रहती हैं। पश्चिमी देशों में बहु संबंध तो शायद शत प्रतिशत होते ही हैं, लेकिन बहु विवाह भी 25 प्रतिशत से अधिक होते हैं। भारत में भी बहु संबंधों का प्रतिशत अधिक है, लेकिन बहु विवाह अभी भी 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होते। यदि मेलापक पर पूर्णतया ध्यान रखा जाए और यह नवीन शोधों के अनुसार किया जाए तो शायद विवाह संबंधों के विच्छेद पर अंकुश लगाया जा सकता है और परिवार को टूटने से बचाया जा सकता है।

बहु विवाह पर शोध करने के लिए 275 जातकों का जन्म विवरण एकत्र किया गया। इनमें 100 जातकों की केवल एक शादी हुइ थी और वे कम से कम 40 वर्ष के थे। 100 जातकों के पुनर्विवाह हो चुके थे और 75 जातकों का एक बार भी विवाह नहीं हुआ था। सभी का विवरण एकत्र करके ग्रहों की स्थिति में समानता निकाली गई और निम्न फल देखे गए।

    • सबसे अधिक मेष लग्न के जातक विवाह नहीं करते हैं। सिंह लग्न के लोग अधिकांशतः एक विवाह में विश्वास करते हैं और वृश्चिक व मिथुन के लग्न लोगों में बहु विवाह अधिकतम होते हैं।
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  • सूर्य, बुध व गुरु कन्या में, चंद्र तुला में, मंगल सिंह व तुला में, शुक्र मीन में, शनि मेष व मीन में व राहु कुंभ, मीन, मेष व वृष में ब्रह्मचारी योग का सृजन करते हैं।
  • गुरु, शनि व राहु का ब्रह्मचारी योग में सबसे अधिक योगदान होता है। केवल इन तीन ग्रहों से लगभग 80 प्रतिशत तक इस योग की सटीक गणना हो सकती है।
  • सूर्य कन्या में, राहु व चंद्र मेष में, मंगल, बुध व शुक्र तुला में, गुरु कर्क में और शनि मीन में बहु विवाह के योग को प्रबल करते हैं।
  • चंद्र सप्तम में, बुध व शुक्र लग्न में, राहु छठे व बारहवें भावों में ब्रह्मचारी योग को प्रबल करते हैं।
  • सूर्य दशम में, चंद्र व शुक्र द्वादश में, मंगल द्वितीय में, बुध व गुरु एकादश में, शनि सप्तम में व राहु चैथे भाव में बहु विवाह को प्रबल करते हैं।
  • उपर्युक्त गणनाओं से पता चलता है कि मंगल, गुरु, शुक्र या राहु सप्तम भाव में बहु विवाह के प्रेरक नहीं है।
  • लग्न में कोई भी ग्रह नेष्ट नहीं है व द्वितीय भाव में मंगल को छोड़कर अन्य कोई भी ग्रह नेष्ट नहीं है।
  • अष्टम भाव में सूर्य के अतिरिक्त कोई ग्रह बहु विवाह योग को प्रबल नहीं करता।
  • द्वादश भाव में चंद्र व शुक्र के अतिरिक्त कोई ग्रह नेष्ट नहीं है।

उपर्युक्त शोध के परिणाम को देखते हुए निष्कर्ष निकलता है कि इस विषय पर और शोध की आवश्यकता है व ज्ञात नियम बहु विवाह पर फल कथन के लिए काफी नहीं हैं।


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