शंख हैं: नादब्रह्मा एवं दिव्य मंत्र

शंख हैं: नादब्रह्मा एवं दिव्य मंत्र  

व्यूस : 9634 | जुलाई 2012
शंख हैः नादब्रह्म एवं दिव्य मंत्र ओम प्रकाश दार्शनिक शंख अपनी सर्पिल ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा विनाशन करने के साथ ही साथ आराधना और अनुष्ठानों में अनेक प्रकार से लाभदायक सिद्ध हुआ है। शंख अनेक घातक रोगों में औषधि का कार्य भी करता है। परंतु इसके प्रयोग में सावधानियां भी अनिवार्य है। इस लेख में जानें शंख की प्राचीनता, उपयोगिता और प्रयोग संबंधी सावधानियों के बारे में। ‘‘शंख की ध्वनि में रोगाणुओं को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता होती है। शंख की ध्वनि जहां तक पहुंचती है वहां के रोगाणु मर जाते हैं और वातावरण रोगमुक्त हो जाता है।’’ डाॅ. रिचड़े शंख, धार्मिक महत्व के साथ-साथ औषधि के रूप में भी उपयोग किया जाता है। इसकी भस्म के द्वारा दमा जैसे असाध्य रोगों का उपचार किया जाता है। विष्णु पुराण के अनुसार पावन शंख महालक्ष्मी का सहोदर भ्राता है। यह समुद्र मंथन के समय प्राप्त चैदह रत्नों में से एक है। इसमें भी वही अनुपम अद्भुत गुण विद्यमान हैं, जो अन्य तेरह रत्नों में हैं। शंख की उत्पŸिा के संदर्भ में एक कथा के अनुसार भगवान आशुतोष ने क्रोधित होकर अपने भक्त चंद्रचूड़ का त्रिशूल से बध कर दिया और उसकी अस्थियां सागर में प्रवाहित कर दी गई। उसी से शंख की उत्पŸिा हुई। इसके नाद से ‘ओइम्’ शब्द की पुनीत ध्वनि निकलती है, इसीलिए शंख बजाते समय ‘ओइम’ का नाद जहां तक जाता है, वहां तक की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। शंख दो प्रकार के होते हैं - 1. वामावर्ती अर्थात जिनका खुला हुआ भाग बायीं ओर होता है। 2. दक्षिणावर्ती अर्थात जिसका खुला भाग दायीं ओर होता है। दक्षिणावर्ती शंख शुभ और मंगलकारी माना गया है। तंत्रों के प्रयोग में इसका विशेष महत्व है। जीव विज्ञानियों के अनुसार शंख विश्व के समस्त गर्म समुद्रों में पाया जाने वाला प्राचीन जीव है। इसकी लगभग 50 जातियां हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार विष्णु के अस्त्रों में से एक शंख भी माना गया है। सनातन काल में युद्ध के समय शंख का विशेष महत्व होता था। महाभारत के युद्ध में शंख का अपना एक अनुपम स्थान था। गीता के अनुसार: महाभारत के आरंभ में श्रीकृष्ण महाराज ने पा´्चन्य नामक, अर्जुन ने देवदŸा नामक और भयानक कर्म वाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया। कुंती पुत्र युधिष्ठिर ने अनंत विजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणि पुष्पक नामक शंख बजाए। वास्तु के दृष्टिकोण से प्रातः और सांय के समय मंदिरों में शंख ध्वनि से चारो ओर की नकारात्मक शक्ति का हृास होता है। वास्तु-विद आरके. आनंद के विचारानुसार शंख घर में रखने तथा बजाने से निर्धनता आती है किंतु मंदिरों में शंख की पावन ध्वनि प्रभावकारी है। वास्तुविदों की इस विचारधारा से अधिकतर लोग सहमत नहीं हैं क्योंकि ऐसी आस्था एवं विश्वास है कि जहां शंख है, वहां लक्ष्मी जी का निवास होता है। इसके अतिरिक्त अनेक परंपराओं में तो निवास स्थान में पूजा-स्थल पर शंख रखना अनिवार्य है, जो वैभव व सुख-समृद्धि का सूचक है। हैदराबाद के शंख पे्रमी डी. माघव रैड्डी के विचारानुसार समुद्र की गहराईयों में होने कारण शंख में जमीन की तरंगे रच-बस जाती हंै। ब्रह्मांड की सकारात्मक तरंगें शंख में निहित होती हैं कि नियमित बजाने पर ‘ओजोन लेअर’ पर उनका सकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है। वैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं कि शंख की पावन ध्वनि का प्रभाव मात्र घर और देवालयों में ही नहीं वरन संपूर्ण ब्रह्मांड पर होता है। यदि शंख को कान के पास रखकर सुना जाए जो समुद्र में चलने वाली हवाओं तथा लहरों की ध्वनि सुनने को मिलती है। वास्तव में यह पृथ्वी परालौकिक पावन ध्वनि/नाद है। इस संदर्भ में एक पुरानी कहावत है ‘‘शंख बाजे, भूत भागे।’’ अर्थात् शंख के बजते ही बुरी आत्माएं सरपट दौड़ लगाकर भाग जाती हैं। आराधना-अनुष्ठानों में उपयोगिता: पूजा तथा पारंपरिक अनुष्ठानों में शंख की विशेष गरिमा एवं महत्व है। आवास में देव-अभिषेक करने के लिए दूध अथवा जल, अर्पण करने के लिए शंख एक सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। चाहे भगवान सत्यनारायण की कथा हो, दीवाली पूजन हो या प्रत्येक उपासना के पूर्व शंख के पावन नाद से वातावरण को शुद्ध व निर्मल किया जाता है। इतना ही नहीं शिशु के नाम करण के समय शिशु के कान में शंख लगाकर नाम बोलने की भी परंपरा है। बंगाल, उड़ीसा व असम मंे विवाह संस्कार की अवधि में शंख की पवित्र ध्वनि आवश्यक एवं महत्वपूर्ण मानी जाती है। फेरे, विदाई, ससुराल में नई-नवेली दुल्हन के प्रथम कदम पर ही पावन शंख-नाद किया जाता है। आशय है कि शंख के बगैर पूजन-अर्चन तथा पवित्र पारंपरिक संस्कार अपूर्ण हैं। वैदिक मान्यता के अनुसार शंख-घोष विजय का प्रतीक माना जाता है। जहां तक भी शंख की ध्वनि जाती है, श्रोताओं को ईश्वर का स्मरण हो जाता है। स्वास्थ्य और ऊर्जा: वैज्ञानिकों की एक राय है कि शंख नाद से वायु मण्डल के वे अति सूक्ष्म विषाण् ाु नष्ट हो जाते हैं, जो मानव-जाति के लिए अति घातक होते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा में शंख का विशेष स्थान है। नेचुरोपैथ डाॅसतीश कपूर का कथन है- ‘‘साधारण तौर पर सांस लेने में तथा प्राणायाम की अवधि में सांस लेने में अंतर होता है। सामान्यतः हमारे सांस लेने का समय अधिक और सांस छोड़ने का समय कम होता है। जबकि प्राण् ाायाम में सांस लेने की प्रक्रिया लंबी होती है। शंख तभी ध्वनि करता है जब हम सांस छोड़ते हैं। शंख बजाने से हमको प्राणायाम जैसे लाभ प्राप्त होते हैं। शंख बजाने की प्रक्रिया को दिल का योग कह सकते हैं क्योंकि योग में शरीर के प्रत्येक भाग का विशेष आयाम है किंतु दिल के लिए कहीं किसी योग की चर्चा नहीं है। शंख बजाने से दिल की मांसपेशियां सुदृढ़ होती हैं, मस्तिष्क प्रखर होता है और फेफड़ों की कसरत होती है। इस क्रिया को किसी निपुण व्यक्ति से सीखना चाहिए। शिकागो के डाॅक्टर डी. ब्राइन के अनुसार शंख -ध्वनि के माध्यम से बधिर रोगियों को ठीक किया जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में सात चक्र होते हैं जब हमारे शरीर का कोई भाग कार्य न कर रहा हो, तो स्पष्ट है कि उस भाग में ऊर्जा का प्रवाह नहीं हो रहा है। जब हम शंख बजाते हैं, तो वह शरीर के चक्र को संतुलित करता है। इसके अतिरिक्त शंख बजाने से हकलाहट धीरे-धीरे दूर होती है, सर्दी-जुकाम की परेशानी नहीं होती है, सांस लेने की समस्या का निराकरण हो जाता है, आंखों की मांस पेशियों में कसावट आती है, श्रवण तथा स्मरण-शक्ति तीव्र होती है, नेत्र-ज्योति दीर्घ आयु तक स्थिर रहती है। वर्तमान समय का सबसे घातक रोग हृदयाघात, रक्त-चाप, सांस से संबंधित बीमारियां, मंदाग्नि आदि शंख बजाने से ठीक हो जाती हैं, जो लोग बचपन से ही नियमित रूप से शंख बजाते रहते हैं तथा जिनका भोजन, आचार-विचार और आचरण सात्विक होता है, उन्हें उपरोक्त बीमारियां नहीं होती हैं। यही नहीं घर मंे शंख रखने से प्रातः व सांयकाल बजाने से वास्तु-दोष स्वतः समाप्त हो जाता है। सवेरे और शाम को शंख बजाने के भिन्न-भिन्न कारण हैं। प्रातः जब हम उठते हैं तो हमारे शरीर में भरपूर ऊर्जा होती है तथा सोच भी सकारात्मक होती है। अतः प्रातः शंख बजाते समय शरीर में सकारात्मक तरंगों का अधिक प्रवाह होता है और सम्पूर्ण दिवस ऊर्जा बनी रहती है। संध्या काल में शंख बजाने से दिनभर की थकान् क्रोध, उकताहट, चिड़चिड़ापन जैसी नकारात्मक तरंगें समाप्त हो जाती हैं, शरीर शांत रहता है और नींद अच्छी आती है। किंतु कुछ सावधान भी रहें: शंख बजाने से फेफड़ों पर अधिक जोर पड़ता है, अतएव क्षय, श्वांस-दमा-अस्थमा तथा हृदय रोगियों को शंख बजाना वर्जित है। इसके अतिरिक्त छोटे बच्चों को भी शंख बजाना वर्जित है, किंतु गुरुकुल में किसी विशेषज्ञ की देख-रेख में बच्चे शंख बजाना प्रारंभ कर देते हैं। 13-14 वर्ष के बच्चे शंख बजा सकते हैं, किंतु बहुत अधिक जोर देने की मनाही होती है। किशोरावस्था के उपरांत लड़का हो या लड़की, कोई भी शंख बजा सकता है। लिखते-लिखते: एक विशेष बात यह है कि हस्तरेखा विज्ञान में भी शंख का विशेष महत्व है। दाहिने हाथ की चार अंगुलियों में शंख के चिह्न वाला व्यक्ति भाग्यवान होता है। पुनः शंख की गरिमा के विषय में कहना है। घर तथा कार्यालयों में इसकी स्थापना से समृद्धि बढ़ती है। परिवार में अन्न, धन और वस्त्र का कभी अभाव नहीं होता है। सुख-शांति रहती है। शयन कक्ष में रखने पर दम्पति के मध्य सदैव सौहार्द बना रहता है। धार्मिक समारोहों में शंख नाद से ज्ञान-वृद्धि होती है। अध्ययन कक्ष में रखने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। पूजन के पश्चात् शंख में रखे गंगाजल को घर में छिड़कने से सभी प्रकार की बुरी शक्तियों व बैक्टीरियों का नाश होता है। देवी भागवत के अनुसार उपासना करते समय रविवार छोड़कर शंख पर नवीन तुलसी दल अर्पित करने से पति-पत्नी में दाम्पत्य प्रेम तथा आयुष्यवर्द्धन होता है। पूजा स्थल पर कभी दो शंख न रखें तथा भूमि पर शंख न रखें। घर के ईशान कोण (पूर्व-उŸार) में गंगाजल से भरे पात्र पर शंख की स्थापना तथा उŸार दिशा में उसके धारा- मुख को रखने से समृद्धि बढ़ती है।



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