सम्मोहन उपचार

सम्मोहन उपचार  

जे.पी.मलिक
व्यूस : 2449 | जुलाई 2012

प्रश्न: कोई बीमारी बिना दवा के किस प्रकार ठीक होना संभव है?

उŸार: दवाओं से भी सभी बीमारियां ठीक होना संभव नहीं है। अभी तक औषधि विज्ञान हर बीमारी के लिए दवा नहीं ढूंढ पाया है। जिस प्रकार दवाईयों से सभी बीमारियां ठीक नहीं हो सकतीं, इसी प्रकार सम्मोहन से भी सभी बीमारियां ठीक नहीं हो सकती। मनुष्य मन और शरीर का संयोजित रूप है। अधिकतर बीमारियों को सायकोसोमैटिक माना गया है अर्थात बीमारी से मन और शरीर दोनों का संबंध है। जब दवा देकर उपचार किया जाता है तब भी बीमार व्यक्ति को बोला जाता है कि खुश रहे, अच्छा सोचे, अपने आपको व्यस्त रखें इत्यादि। अगर यह मात्र दवा का कमाल होता, तो मन से संबंधित सुझाव क्यों दिये जाते। स्पष्ट है, कि इलाज में मन और शरीर दोनों का योगदान महत्वपूर्ण है। दवाईयों के सेवन से शरीर में रसायन दिये जाते हैं और मन में सुझावों के माध्यम से विचार दिये जाते हैं। ये दोनों मिलकर उपचार को सफल बनाते हैं। विचारों से हमारी भावना व संवेगों पर असर होता है जो कि हमारे व्यवहार को प्रभावित करते हैं। व्यवहार हमारे शरीर के माध्यम से प्रकट होता है। अतः शरीर का उपचार स्वयम् तय हो जाता है। हमारी अनेक आदतें व कुछ बीमारियां बिना दवाई के केवल निर्देशन व सम्मोहन से ठीक की जा सकती हैं।


जानिए आपकी कुंडली पर ग्रहों के गोचर की स्तिथि और उनका प्रभाव, अभी फ्यूचर पॉइंट के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्यो से परामर्श करें।


प्रश्न: मन और मस्तिष्क में क्या अंतर है?

उŸार: संसार की सभी क्रियाएं दो महत्वपूर्ण अवयव रखती हैं- भौतिक स्वरूप व ऊर्जा स्वरूप। भौतिक स्वरूप आकृति को दर्शाता है जबकि ऊर्जा शक्ति को दर्शाती है। जब ये दोनों मिल जाती हैं तो क्रियाएं होना प्रारंभ कर देती हैं। उदाहरण के तौर पर गाड़ी एक भौतिक पदार्थ है लेकिन जब इसको चालू किया जाता है तो उसके लिए ऊर्जा का होना आवश्यक है। ऊर्जा ईंधन में नहीं है बल्कि ईंधन की मदद से शुरु की गई प्रक्रिया से पैदा होती है। इसी प्रकार हम भी शरीर और आत्मा का मिला-जुला रूप हैं। शरीर एक भौतिक पदार्थ है जबकि आत्मा अभौतिक है। हमारा मस्तिष्क एक भौतिक पदार्थ है जो कि शरीर का अंग है। इसी प्रकार हमारा मन अभौतिक है जिसका संबंध आत्मा से है अर्थात मस्तिष्क कम्प्यूटर के हार्डवेयर की तरह है और मन साॅफ्टवेयर की तरह है।

प्रश्न: क्या सम्मोहन का प्रयोग करने के लिए मन और शरीर की पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है?

उŸार: सम्मोहन के प्रयोग के लिए मनोविज्ञान व जीवविज्ञान की पूर्ण जानकारी आवश्यक नहीं है, लेकिन मौलिक जानकारी के बिना सम्मोहन का प्रयोग करना उचित नहीं है। जिस प्रकार गाड़ी की पूर्ण जानकारी के बिना भी गाड़ी प्रभावकारी ढंग से चलाई जा सकती है, लेकिन मौलिक जानकारी के बिना नहीं चलाई जा सकती। यही बात सम्मोहन पर भी लागू होती है। यह एक चिकित्सा विज्ञान है, इसलिए मूलभूत जानकारी जिसमें हमारा मन, व्यवहार इत्यादि की यथोचित समझ हो, ऐसा आवश्यक है। हमें अपनी सीमाओं का ज्ञान होना चाहिए क्योंकि नीम, हकीम खतरा ए जान वाली कहावत बिल्कुल सही है।

प्रश्न: क्या आपसी संबंधों में आये मतभेद सम्मोहन या स्वयम् के प्रयोग से ठीक किये जा सकते हैं?

उŸार: जब हम संबंधों की बात करते हैं, तो जाहिर है एक से अधिक व्यक्तियों की बात कर रहे होते हैं। स्वयं सम्मोहन में आप खुद के विचारो और व्यवहारों को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन दूसरे व्यक्ति के नहीं। यह अलग बात है, कि किसी व्यक्ति के बदले हुए व्यवहार से दूसरे व्यक्ति का व्यवहार प्रभावित हो जाये। अगर संबंध सुधार की बात है, तो दोनों व्यक्तियों का उपचारक या निर्देशक से मिलना आवश्यक है। जब व्यक्ति संबंध-सुधार के लिए आता है, तो जाहिर है, कि वह संबंध को रखना चाहता है। इंसानी व्यवहार बहुत जटिल होता है जिस पर व्यक्ति व परिस्थितियों से जुड़े अनेकों कारण प्रभाव डालते हैं। इन कारणों में से कुछ पर हमारा नियंत्रण हो सकता है लेकिन सभी पर नहीं। हम केवल उन्हीं कारणों पर कार्य कर सकते हैं जिन पर व्यक्ति का प्रभाव या नियंत्रण हो तथा व्यक्ति के कारणों को हमें स्वीकार करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं है। आपसी संबंध दो व्यक्तियों के बीच की एक जिम्मेदारी है जिसमें दोनों की व्यक्तिगत एवं सामूहिक जिम्मेदारियां शामिल होती हैं। कुछ मुख्य कारण जो संबंधों को प्रभावित करते हैं जैसे- एक-दूसरे के बारे में जानकारी व समय का अभाव, आपसी संचार का अभाव, दूसरे को नजरंदाज करना और अव्यवहारिक अपेक्षा रखना इत्यािद। हमें अपने सहयोगी को उसकी कमियों और खूबियों के साथ स्वीकार करना चाहिए तथा सीधा और नियमित संचार भी रखना चाहिए। संबंध साझी जिम्मेदारी है। स्वयं सम्मोहन इसके उपचार के लिए पर्याप्त नहीं है। हमें इस प्रकार के हालात में प्रोफैशनल मदद ले लेनी चाहिए। सम्मोहन का प्रयोग प्रभावकारी है।

प्रश्न: इंसान जब अधिक खा-खा कर मोटा होता जाता है, तो इसमें मन की भूमिका कहां हुई?

उŸार: आपने देखा होगा, कि कुछ व्यक्ति बहुत अधिक खाकर भी मोटे नहीं होते तथा कुछ बहुत जल्दी मोटे हो जाते हैं। कुछ व्यक्ति इस प्रकार खाने पर टूट पड़ते हैं, जैसे बड़ी मुश्किल से मिला है और कल शायद न भी मिले तथा कुछ लोग थोड़ा सा खाकर तृप्त लगते हैं। व्यवहारिक पहलू पर नजर डालें तो हम पायेंगे कि कुछ लोग हर चीज को स्टोर रखते हैं, जबकि कुछ लोग मात्र अपने प्रयोग की चीजों के अलावा चीजें रखना पसंद नहीं करते। इन सभी बातों में केवल एक ही बात सांची है और वह मनोवृत्ति। मोटापा क्या है। मात्र अतिरिक्त चर्बी का भण्डार। हमारे शरीर की चर्बी हमारे लिए बीमारी या कमजोरी या भुखमरी में बड़ी लाभदायक रहती है अर्थात हमारे मन में हो सकता है, कोई असुरक्षा कहीं अवचेतन मन में किसी न किसी रूप में बैठ गई हो और हमारा मन शरीर को उसी समस्या का सामना करने के लिए तैयार कर रहा हो। तभी तो कुछ लोग डिप्रैशन का शिकार होने पर मोटापे से भी ग्रसित हो जाते हैं। अतः मोटापे पर नियंत्रण करने के लिए मात्र खाने की आदतों में व दिनचर्या में सुधार करना काफी नहीं होता, बल्कि विचारों को प्रभावित करना भी अनिवार्य है। हमारा व्यवहार बहुत जटिल है, कोई एक समस्या या हर बार वही कारण हो, अनिवार्य नहीं है।

प्रश्न: क्या सम्मोहन से मानसिक विकलांगों व मानसिक रोगियों का उपचार संभव है?

उŸार: मानसिक विकलांगता, मानसिक क्षीणता होती है अर्थात् व्यक्ति की मस्तिष्क शक्ति इसकी आयु के अनुरूप विकसित नहीं होती। ये व्यक्ति के विशेष प्रशिक्षण से पढ़ाये जाते हैं या सिखाये जाते हैं। सम्मोहन का प्रयोग अधिक प्रभावशाली नहीं रहता है। यह प्रभाव विकलांगता की स्थिति पर निर्भर करता है। जितनी विकलांगता (मानसिक) अधिक होगी इतना कम प्रभाव होगा। मानसिक रोगी भी सम्मोहन से अधिक लाभ नहीं उठा पाते हैं। सायको निरोसिस के रोगी सम्मोहन से प्रभावित होकर ठीक हो सकते हैं। जबकि सायकोसिस पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है। हां, सम्मोहन इनके उपचार को और अधिक प्रभावकारी कर सकता है। सम्मोहन का प्रयोग मानसिक रूप से सामान्य व्यक्तियों के साथ ही अधिक प्रभावकारी होता है। अन्य रोगी को उचित उपचार कराने की राय देनी चाहिए।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


प्रश्न: क्या पांच वर्ष के बच्चे की बिस्तर गीला करने की आदत सम्मोहन से छुड़ाई जा सकती है।

उŸार: 8-10 वर्ष की आयु से कम बच्चों पर सम्मोहन नहीं करना चाहिए क्योंकि ये बच्चे इतने नादान होते हैं कि सम्मोहक द्वारा दिये गये सुझावों को ठीक से समझ नहीं पाते हैं और उनका अनुसरण भी ठीक से नहीं कर पाते हैं। इस आयु तक हमारी चिंतन की शक्ति अपूर्ण व अल्प विकसित होती है। सोते समय हमारे अधिकतर भौतिक/शारीरिक अंगों की कार्य-कुशलता बंद हो जाती है। जैसे अगर हम सपने में जागते हैं, तो भी हम बिस्तर पर ही रहते हैं इत्यादि। बिस्तर में पेशाब करना भी इसी प्रकार की क्रिया है, जिसका प्रभाव सपने के साथ भौतिक रूप से नहीं होना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से इस मानसिक प्रोग्राम में त्रुटि आ जाती है जैसे बच्चा माॅ-बाप का ध्यान चाहता हो, अंधेरे से डरता हो, असुरक्षा की भावना से ग्रसित हो इत्यादि कुछ भी या अन्य कोई और कारण भी हो सकता है। अगर यह शारीरिक दोष के कारण हैं जैसे अविकसित ब्लैडर, तो सम्मोहन कार्य नहीं करेगा। अन्यथा यह सम्मोहन से भलीभांति ठीक हो जाता है। इस उपचार में मां-बाप की भूमिका भी अहम् होती है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.