संकष्ट चतुर्थी व्रत 18-01-2006

संकष्ट चतुर्थी व्रत 18-01-2006  

ब्रजकिशोर शर्मा ‘ब्रजवासी’
व्यूस : 4274 | जनवरी 2006

माघ कृष्ण चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को संकष्ट चतुर्थी या वक्रतुंड चतुर्थी कहते हैं। इस दिन प्रातः काल स्नानोपरांत देवाधिदेव वक्रतुंड की प्रसन्नता के लिए व्रतोपवास का विधिपूर्वक संकल्प करके दिन भर संयमित रहते हुए श्री गणेश का स्मरण, चिंतन, भजन एवं स्तोत्रादि पाठ करते रहना चाहिए। चंद्रोदय होने पर गणेश की मिट्टी की मूर्ति का निर्माण कर उसे दिव्य चैकी या पीढ़े पर स्थापित कर उनके आयुध और वाहन को भी साथ में रखें। सर्वप्रथम उक्त मृण्मयी मूर्ति में गणेश जी की प्रतिष्ठा करें; तदनंतर षोडशोपचार से उनका भक्तिपूर्वक पूजन करना चाहिए। मोदक तथा गुड़ में बने हुए तिल के लड्डू का नैवेद्य अर्पित करें। आचमन कराकर प्रदक्षिणा और नमस्कार करके पुष्पांजलि अर्पित करनी चाहिए। तदनंतर ‘¬ गं गणपतये नमः’ या ‘संकष्टहरण गणपतये नमः’ मंत्र का शांत चित्त से भक्तिपूर्वक 108 बार जप करें और फिर भगवान गणेश को निम्न मंत्र बोलकर अघ्र्य प्रदान करें।

अघ्र्य मंत्र: गणेशाय नमस्तुभ्यं सर्व सिद्धिप्रदायक। संकष्टहर मे देव गृहाणाघ्र्यं नमोऽस्तु ते।। कृष्णपक्षे चतुथ्र्यां तु सम्पूजित विधूदये। विधूदये। क्षिप्रं प्रसीद देवेश गृहाणाघ्र्यं नमोऽस्तु ते।। संकष्टहरणगणपतये नमः ’’ समस्त सिद्धियों के देने वाले गणेश ! आपको नमस्कार है। संकटों का हरण करने वाले देव ! आप अघ्र्य ग्रहण कीजिए; आपको नमस्कार है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को चन्द्रोदय होने पर पूजित देवेश ! आप अघ्र्य ग्रहण कीजिए; आपको नमस्कर है। संकष्टहरण गणपति के लिए नमस्कार है। ऐसा दो बार बोलकर दो बार अघ्र्य देना चाहिए। इसके उपरांत निम्नांकित मंत्र से चतुर्थी तिथि की अधिष्ठात्री देवी को अघ्र्य प्रदान करें। तिथीनामुत्तमे देवि गणेशप्रियवल्लभे। सर्वसंकटनाशाय गृहाणाघ्र्यं नमोऽस्तुते।। चतुथ्र्यै नमः द्वदमघ्र्यं समर्पयामि।। तिथियों में उत्तम गणेशजी की प्यारी देवि ! आपके लिए नमस्कार है। आप मेरे समस्त संकटों का नाश करने के लिए अघ्र्य ग्रहण करें। चतुर्थी तिथि की अधिष्ठात्री देवी के लिए नमस्कार है। मैं उन्हें यह अघ्र्य प्रदान करता हूं। (व्रतराज) तत्पश्चात चंद्रमा का गंध पुष्पादि से विधिवत पूजन करके तांबे के पात्र में लाल चंदन, कुशा, दूबघास, फूल, चावल, शमीपत्र, दूध, दधि और जल एकत्र करके निम्न मंत्र से अघ्र्य प्रदान करें।

गगनार्णवमाणिक्य चंद्र दाक्षायणीपते। गृहाणाघ्र्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक।। आकाश रूपी समुद्र के माणिक्य दक्ष कन्या रोहिणी के प्रियतम और गणेश के प्रतिरूप चंद्रमा ! आप मेरा दिया हुआ यह अघ्र्य स्वीकार कीजिए। फिर भगवान गणेश के श्री चरणों में प्रणाम कर यथा शक्ति उत्तम ब्राह्मणों को प्रेमपूर्वक भोजन करा तथा दक्षिणा से संतुष्ट कर उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर स्वयं प्रसन्नतापूर्वक भोजन करें। इस परम पवित्र कल्याणकारी ‘संकष्टव्रत’ के प्रभाव से व्रती के कष्टों का निवारण होता है तथा उपासक धन-धान्य से सम्पन्न हो जाता है। इस व्रत को माघ मास से प्रारंभ करके हर महीने करें तो संकट का नाश हो जाता है। व्रती को कथा श्रवण भी करनी चाहिए। लोकाचार में विभिन्न प्रकार के मिष्टान्न, पुआ, पूड़ी, मठरी, हलवा, तिल, ईख, अमरूद, गुड़, घी आदि का भोग भी गणेशादि देवताओं को अर्पण कर रात्रि भर डलिया इत्यादि से ढककर यथावत् रख दिया जाता है जिसे ‘पहार’ कहते हैं। पुत्रवती माताएं पुत्र तथा पति की सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उस ढके हुए ‘पहार’ को पुत्र ही खोलता है तथा भाई बंधुओं में बांटा भी जाता है, जिससे आपस में प्रेम भावना स्थायी होती है।

कथा: एक बार असुरों ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर उनके स्वर्गादि निवास स्थानों को छीन लिया; तब विपदापन्न देवतागण आशुतोष भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं ने भोलेनाथ की स्तुति एवं नमस्कार के साथ असुरों द्वारा हुए अत्याचार का करुण वृत्तांत कहकर अपनी रक्षा हेतु प्रार्थना की। उस समय भगवान शिव के समीप स्वामी कार्तिकेय तथा गणेश भी विराजमान थे। शिवजी ने दोनों बालकों से पूछा, ‘तुममें से कौन ऐसा वीर है जो देवताओं का कष्ट निवारण करे, तब कार्तिकेय ने अपने को देवताओं का सेनापति प्रमाणित करते हुए देव रक्षा योग्य तथा सर्वोच्च देवपद मिलने का अधिकारी सिद्ध किया। यह बात सुनकर शिवजी ने गणेश की इच्छा जाननी चाही। तब गणेश जी ने विनम्र भाव से कहा कि ‘पिताजी ! आपकी आज्ञा हो तो मैं बिना सेनापति बने ही सब संकट दूर कर सकता हूं। बड़ा देवता बनावें या न बनावें, इस बात का मुझे कोई लोभ नहीं है।’ यह सुनकर विहंसते हुए भगवान पशुपति नाथ ने दोनों बालकों को पृथ्वी की परिक्रमा करने को कहा तथा यह शर्त रखी कि जो सर्व प्रथम पृथ्वी की पूर्ण परिक्रमा लगाकर आ जाएगा वही अद्वितीय वीर तथा सर्वश्रेष्ठ देवता घोषित किया जाएगा। इतना सुनकर स्वामी कार्तिकेय बड़े गर्व से अपने वाहन मयूर पर सवार हो पृथ्वी की परिक्रमा हेतु चल पड़े ।

गणेश जी विचार करने लगे कि चूहे के बल पर तो संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा लगाना सहज नहीं है और मार्ग में मोदक भी कौन खिलाएगा? अतः उन्होंने एक युक्ति सोची। गणेश ने ‘राम’ नाम को पृथ्वी पर लिखा, उसकी प्रदक्षिणा की तथा माता-पिता की विधिवत पूजाकर उनकी प्रदक्षिणा कर बैठ गए। इस प्रकार संपूर्ण भूमंडल की परिक्रमा पूर्ण हो गई। रास्ते में कार्तिकेय को संपूर्ण पृथ्वी मंडल में उनके आगे चूहे के पदचिह्न दिखायी दिए। परिक्रमा करके लौटने पर निर्णय का अवसर आया। कार्तिकेय ने गणेश का उपहास उड़ाते हुए अपने आप को पूरे भूमंडल का एक मात्र पर्यटक बताया। इस पर गणेश ने शिवजी से कहा कि माता-पिता (मातृदेवो भव-पितृ देवो भव) में ही समस्त तीर्थ एवं देव निहित हैं, इसलिए मैंने आपकी सात बार परिक्रमाएं की हैं तथा कोटि-कोटि अखिल ब्रह्मांडों के एक मात्र स्वामी ‘राम’ की भी परिक्रमा की है। गणेश की युक्ति संगत वाणी को सुनकर समस्त देवता तथा कार्तिकेय नतमस्तक हो गए। तब शंकर जी ने प्रसन्नतापूर्वक गणेश की प्रशंसा की तथा आशीर्वाद दिया कि त्रिलोक में सर्वप्रथम तुम्हारी मकर संक्रांति (14 जनवरी ) यह पर्व दक्षिणायन के समाप्त होने और उत्तरायण के प्रारंभ होने पर मनाया जाता है। दक्षिणायन देवताओं की रात्रि तथा उत्तरायण दिन माना जाता है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के कारण इस संक्रांति को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह पर्व बड़ा पुनीत पर्व है। इस दिन पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान, दान, देव कार्य एवं मंगल कार्य करने से विशेष पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

पुत्रदा एकादशी (10 जनवरी): शास्त्रों के अनुसार यह एकादशी तिथि पुत्रदा एकादशी के नाम से विख्यात है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से भगवान नारायण की कृपा से पुत्र की प्राप्ति होती है। ब्राह्मण भोजन कराना और यथाशक्ति अन्न और वस्त्र का दान करना पुण्यवर्द्धक होता है। साथ ही नित्य ¬ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्रा का जप करने से फल शीघ्र प्राप्त होता है। संकट चैथ (18 जनवरी) यह व्रत माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। श्री गणेश जी के निमित्त यह व्रत पूरे दिन नियम संयम के साथ करना चाहिए। रात्रि में गणेश जी का तिल के लड्डुओं के साथ पूजन करके चंद्रोदय हो जाने पर चंद्रमा को ¬ सोम् सोमाय नमः मंत्र से अघ्र्य देना चाहिए। यह व्रत करने से शारीरिक तथा मानसिक बल में वृद्धि होती है एवं मनोवांछित कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। जनवरी मास के प्रमुख व्रत त्योहार पूजा होगी। तुम्हारी पूजा के बिना संपूर्ण पूजाएं निष्फल होंगी। तब गणेश जी ने पिता की आज्ञानुसार जाकर देवताओं का संकट दूर किया। यह शुभ समाचार जानकर भगवान शंकर ने गणेश को यह बताया कि चैथ के दिन उदय होने वाला चंद्रमा ही तुम्हारे मस्तक का ताज (शेहरा) बनकर पूरे विश्व को अपनी किरणों से शीतलता प्रदान करेगा। जो स्त्री या पुरुष इस तिथि पर तुम्हारा पूजन कर चंद्र को अघ्र्यदान देगा उसके विविध ताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) दूर होंगे और ऐश्वर्य, पुत्र एवं सौभाग्यादि की प्राप्ति होगी। यह सुनकर देवगण हर्षातिरेक में प्रणाम कर अंतर्धान हो गए। गणेश प्रार्थना: गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थजम्बूफलचारूभक्षणम्। उमासुतं शोकविनाश कारकम्, नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।



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