परिवर्तनशील समाज

परिवर्तनशील समाज  

आभा बंसल
व्यूस : 4472 | मार्च 2016

प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों के विवाह के लिए रिश्ता करते हुए पहले यही देखते हैं कि परिवार संस्कारी हो, अच्छा खानदान हो, लड़का या लड़की भी सुशिक्षित हो, अच्छा चाल चलन हो। लड़का अच्छा कमाता हो जो उनकी बेटी का ख्याल रख सके और उसकी पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी ले सके। लेकिन अभी देखने में आया है बहुत से केस में माता-पिता द्वारा पसंद किये गये रिश्तों को बच्चे नकार देते हैं।

हमारे समाज में बेटियों ने बहुत तरक्की की है। जहां पहले लड़कियां सिर्फ घर की चारदीवारी तक सीमित थीं वहीं आज लगभग 80 प्रतिशत लड़कियां पढ़-लिख कर स्वावलंबी बन चुकी हैं और अच्छे काम कर रही हैं। जाहिर है उनके ख्वाब, उनकी उम्मीदें और उनकी अपने जीवन साथी से अपेक्षाएं भी बदल चुकी हैं। वे सिर्फ उनसे अच्छा घर ही नहीं चाहतीं बल्कि उनके अनुसार उनका जीवनसाथी सुंदर हो, स्मार्ट हो, अच्छा कमाता हो और सबसे महत्वपूर्ण बहुत सामाजिक हो, घूमने फिरने का शौक हो, कूकिंग में भी पसंद रखता हो और नृत्य करने में भी एक्सपर्ट हो।

इतना ही नहींे वह दब्बू तो बिल्कुल न हो। आजकल बहुत से घरों में मां-बाप रिश्ता तो कर देते हैं पर जब दोनों मिलते हैं तो लड़की को पता चलता है कि लड़का तो केवल पढ़ने-लिखने में रहा है। आई. आई. टी. से तो पास कर गये पर उसे न तो फिल्म का शौक है, न कोई सोशल सर्किल है और न ही कहीं घूमने फिरने के प्रोग्राम बनाने का शौक है तो ऐसी स्थिति में बहुत जगह शादी से पहले ही रिश्ते टूट जाते हैं। वैसे तो यह अच्छा ही है


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कि जो रिश्ता विवाह के बाद टूटता हो, वह पहले ही खत्म हो जाए तो अच्छा है पर आजकल के माता-पिता को भी चाहिए कि वे बच्चों के संपूर्ण विकास की ओर ध्यान दें और साथ ही अपने बच्चों के लिए रिश्ता तलाशते हुए अपने बच्चों की पसंद-नापसंद का विशेष ख्याल रखें ताकि आगे जाकर उन्हें अपनी पसंद पर पछताना न पड़े। हमारी इस कथा की नायिका कंचन के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है।

कंचन एक इंटरनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर काम कर रही है। उसके लिए परिवार वालों ने बहुत सारे लड़के देखे। सभी एक से बढ़कर एक थे और उन्होंने सौरभ को पसंद किया। वह आई. आईटी से इंजीनियरिंग कर एक बहुत अच्छी कंपनी में बहुत अच्छे पैकेज पर काम कर रहा है। कंचन को भी सौरभ काफी पसंद आया। रोका होने के पश्चात वह उससे मिलने लगी। सौरभ उसे बहुत ही नर्म दिल व सुशील लगा।

कंचन बहुत की आउटगोइंग, हरफनमौला, बहिर्मुखी और घूमने फिरने वाली लड़की है। जैसे-जैसे वह सौरभ से मिलती उसे वह खुशी नहीं मिलती थी जैसा वह चाहती थी। वह उसके साथ डांस क्लब जाना चाहती थी पर सौरभ को डांस पसंद नहीं था। वह जब अपने हनीमून के प्रोग्राम के बारे में पूछती तो सौरभ कोई खास इन्टरेस्ट नहीं दिखाता था और कहता था कि जल्दी क्या है बना लेंगे कहीं भी चले जाएंगे।

जब खाने के लिए अच्छे होटल जाने की बात आती तो सौरभ उसे फैंसी और हाई-फाई होटल में ले जाने की बजाय हल्के होटल में ले जाता। यही सब बातें उसे बहुत चुभती थीं। जब कपड़े खरीदने हों तो सौरभ को हाई ब्रान्डेड कपड़ांे में कोई खास पसंद नहीं या वह अनब्रांडेड कपड़े खरीदना पसंद करता था। उसे फालतू के पैसे खर्च करना फिजूल खर्ची लगती थी। अब यही सब बातें कंचन को बहुत परेशान करने लगी। अपने माता-पिता से जब उसने यह सब बताया तो उन्होंने यही कहा कि लड़का सीधा-सादा है

तुम उसे अपने अनुसार ढाल लेना और शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा। पर कंचन को सब कुछ ठीक नहीं लग रहा था। वह सौरभ के साथ बहुत घुटन महसूस कर रही थी और चाहती थी कि कैसे भी उसका रिश्ता उससे टूट जाए ताकि वह अपनी मनपसंद का लड़का तलाश सके जबकि मां-बाप नही चाहते थे कि सौरभ जैसे लड़के से विवाह से कुछ दिन पहले ही बिना किसी ठोस कारण के रिश्ता तोड़ दिया जाए।

आइये देखें सौरभ और कंचन की कुंडलियां क्या कहती हैं: सौरभ का सौम्य लग्न तथा लग्न पर सौम्य ग्रह की दृष्टि एवं लग्नेश शुक्र सौम्य ग्रह चंद्रमा के साथ होने से इनके स्वभाव में सौम्यता तथा भोलापन है जिसके कारण यह अपने संस्कारों तथ सिद्धांतों को नहीं छोड़ना चाहता है। इसे अपने भोलेपन में रहना ही पसंद है। पंचमेश ग्रह पराक्रम भाव में होने से तथा उस पर गुरु तथा भाग्येश शनि की पूर्ण दृष्टि होने से यह जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सफल हुआ। दशमेश शनि छठे भाव में उच्च के होकर बलवान हैं


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जिसके फलस्वरूप इन्हें अच्छी कंपनी में नौकरी प्राप्त हुई। धनेश और लाभेश का परस्पर दृष्टि संबंध इनके जीवन में आर्थिक संपन्नता को दर्शा रहा है। इनके वैवाहिक जीवन की स्थिति के बारे में विचार करंे तो नवमांश लग्न सिंह राशि का होने से तथा सप्तमेश ग्रह मंगल नवमांश में अग्नि तत्व राशि में होने से इसकी पत्नी तेजस्वी स्वभाव की महिला होंगी जिसके कारण इनके विचारों तथा परस्पर अभिरूचियों में भिन्नता हो सकती है।

सप्तमेश मंगल नीच राशि में होकर अस्त है, जिसके कारण इन्हें अपनी जीवनसाथी से सुख सहयोग मिलने की संभावना कम है। कुंडली के चारों केंद्रों में ग्रह न होने से इनकी महत्त्वाकांक्षा एवं अभिरूचि अपने सीमित कार्यों तक ही केंद्रित है। इसलिए इन्हें अपनी होने वाली पत्नी की अभिरूचि वाले कार्यों में रूचि नहीं है। कंचन का लग्न पाप कत्र्तरी योग से ग्रसित है जिसके फलस्वरूप यह अपने सुख के लिए दूसरों को अपनी तरह ढालना चाहती है। ऐसे लोगों को दूसरांे से छोटी-छोटी बातों को लेकर शिकायत बनी रहती है।

सप्तमेश और लग्नेश की परस्पर दृष्टि इस बात का संकेत है कि यह अपने जीवनसाथी के प्रति अधिक संवेदनशील है तथा उससे बहुत अपेक्षाएं रखती है। परंतु इनका जीवनसाथी इनकी अपेक्षाओं के अनुरूप खरा न उतरने से यह उसे छोड़ना चाहती है। सूर्य ग्रह आत्मा और चंद्रमा मन का कारक दोनांे ही ग्रह कमजोर हैं जिसके कारण इनमें धैर्य की कमी तथा प्राचीन परंपराओं के प्रति कोई अभिरूचि नहीं है।

यह अपना जीवन स्वच्छंदता पूर्वक जीने में विश्वास रखती है। सप्तम भाव में सौम्य ग्रह बृहस्पति होने से तथा सप्तमेश शुक्र की सौम्य ग्रह बुध के साथ सौम्य राशि में युति होने से इनका विवाह सीधे-साधे भोले-भाले व्यक्ति से तय हुआ है। इसलिए कंचन को जो भी जीवन साथी मिलेगा वह सरल स्वभाव का ही होना चाहिए और अपने पापकत्र्तरी लग्न के कारण उसका स्वभाव तेज ही रहेगा और वह अपने जीवन साथी पर अधिक अधिकार रखना चाहेगी और उसे अपनी इच्छानुसार ही चलाने की कोशिश करेगी।

यह विवाह होगा या नहीं अभी कुछ नहीं कहा जा सकता परंतु यह केस केवल कंचन का नहीं है। ऐसे ही अनेक केस आजकल देखने को मिल रहे हैं जिससे छोटी -छोटी बातों पर या तो विवाह से पहले या विवाह के तुंरत बाद लड़का-लड़की आपस में सामंजस्य नहीं बिठा पाते और अलग हो जाने का फैसला कर लेते हैं। शायद ये परिवर्तन आज के माता-पिता को समझना होगा और समाज में आ रहे परिवर्तन को स्वीकारना होगा।

प्रत्येक माता-पिता यही चाहते हैं कि इनके बच्चे बहुत खुश रहें। एक-दूसरे के लिए पूर्ण रूप से समर्पित हों तथा उन्हें आपसी विश्वास भी हो। चूंकि आजकल बेटा हो या बेटी सभी इतने पढ़ लिख गये हैं कि उनके तर्क के आगे सभी तर्क बेमानी से लगते हैं इसीलिए माता-पिता का भी फर्ज बनता है कि वे उन्हें सही शिक्षा दें और उन्हें यह भी समझाएं कि उन्हंे दूर दृष्टि से भी देखना चाहिए। कमियां हर इंसान में होती हैं।


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दोनों एक दूसरे की अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरे नहीं उतर सकते इसलिए जरूरी यह है कि दोनों को अपनी कमियों को समयानुसार बदलने की क्षमता रखनी चाहिए तभी जीवन की इस गाड़ी को ठीक से चला सकते हैं अन्यथा गाड़ी को पटरी से उतरने में कुछ समय नहीं लगता। और हां यदि संतान नहीं समझती तो फिर उनकी इच्छानुसार ही चलने दें। समय बहुत बलवान है सब कुछ अपने आप सिखा देता है।

कंचन की जन्मपत्री में सप्तम भाव में गुरु है जो यह दर्शाता है कि उसका पति गुरु ग्रह से प्रभावित होना चाहिए और ऐसा होने पर ही उसका अपने पति से बेहतर तालमेल भी होगा परंतु सौरभ की जन्मपत्री में इसके ठीक विपरीत गुरु नीच राशिस्थ है

जिसके परिणामस्वरूप उसके व्यक्तित्व में अपेक्षित गुरु के प्रभाव की कमी के कारण शायद लड़की उसके साथ सामंजस्य नहीं बैठा पा रही है और उसे लगने लगा है कि दोनों के आचार-विचार व व्यवहार में समरूपता नहीं है जिससे उसको वैवाहिक जीवन में सुख की संभावना नहीं लग रही।



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