कैसा रहेगा वर्ष 2010 भारत के लिए

कैसा रहेगा वर्ष 2010 भारत के लिए  

महेश चंद्र भट्ट
व्यूस : 3058 | जनवरी 2010

नव वर्ष 2010 उस समय शुरू हो रहा है जब अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर आतंकवाद चारों तरफ अपने पैर फैला रहा है, आतंकवादी संगठन सशक्त हो रहे हैं तथा हमारा देश चारों तरफ से इनसे घिरा हुआ है। विदेशी संगठनों के साथ-साथ देश के अंदर की सांप्रदायिक एवं आतंकी ताकतें सिर उठाने लगी हैं। इस वर्ष संवत् 2067 में 16 मार्च सन् 2010 ई. से शोभन नामक संवत्सर होगा, जो वर्षपर्यंत रहेगा। इस संवत्सर का स्वामी शुक्र है। वर्ष कुंडली में शुक्र प्रथम केंद्र स्थान में सूर्य व बुध के साथ है। इस ग्रहस्थिति के फलस्वरूप सभी अन्न महंगे होंगे। पृथ्वी पर अनावृष्ट का योग है। देश में भय की स्थिति उत्पन्न हेागी।

चैत्रादि छह महीने तक भूसी वाले सभी अन्न महंगे होंगे। इस वर्ष के राजा भौम तथा मंत्री बुध हैं। राजा भौम के शासन काल में मानव जाति को अग्नि भय, चोरों के उत्पात, देशों के बीच विग्रह, जनता को कष्ट तथा रोगादि की संभावना है। किंतु बुध के मंत्रित्व काल में उसके प्रथम केंद्र स्थान में सूर्य तथा शुक्र के साथ स्थित होने के फलस्वरूप अधिक मास वैशाख में अच्छी वर्षा होने की संभावना है।

भारत के विŸाीय कोष में वृद्धि होगी। कभी-कभी उच्च शासकों में सैद्धांतिक मतभेद भी सामने आएगा जो अल्पकालीन रहेगा। सुरक्षा की दृष्टि से भारत सृदृढ़ रहेगा। प्रक्षेपास्त्र के मार्ग में प्रगति होगी। भारत का अन्य देशों से संबंध मैत्रीपूर्ण रहेगास - विशेषकर पड़ौसी राष्ट्रों के साथ मैत्री बढ़ेगी। स्त्री वर्ग तथा बाल स्वास्थ्य के लिए सरकार के नए-नए कार्यक्रम बनेंगे। किंतु आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि, वाहन दुर्घटनाओं, अंतरिक्ष दुर्घटनाओं, भूकपों, ज्वालामुखी विस्फोटों आदि की संभावना भी है।

इस वर्ष लोगों का जीवन पूर्व की तुलना में अधिक संघर्षमय हो सकता है। धन-जन की हानि, आम जन के परिवारों में अलगाव और वियोग की स्थिति आदि के संकेत हैं। राजनीतिज्ञों में येन-केन-प्रकारेण सŸाा हथियाने की होड़ लगेगी एवं षड्यंत्र बढ़ेंगे। किंतु, वहीं बुध का मंत्री होना कुछ अच्छे संकेत भी देता है। बुध की इस स्थिति के फलस्वरूप मंत्रियों में सामंजस्य बढ़ेगा। वर्षा अधिक होगी, जिससे फसलों के अच्छे होने की संभावना प्रबल है।


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खासकर जौ, मसूर, चना आदि की पैदावार बढ़ेगी। इस वर्ष कन्या राशि में शनि की वक्र दृष्टि दक्षिण दिशा में रहेगी। शनि की इस दृष्टि के फलस्वरूप अमेरिका, कनाडा और इग्लैंड समेत यूरोपीय देशों में मंदी की मार वर्ष 2011 ई. तक जारी रह सकती है। इस वर्ष भारत का उसके किसी मित्र देश से युद्ध हो सकता है, परंतु उसमें भारत के विजयी होने की संभावना प्रबल है। अन्नादि का उत्पादन अच्छा होगा, किंतु पशुओं का नाश होगा। साथ ही नमक, तिल, कपास तथा रसकर पदार्थों की हानि की संभावना भी है। किंतु सस्येश श्ुाक्र के धनाधिपति होने के फलस्वरूप वांछित वर्षा के संकेत हैं। पशु धन की समृद्धि में वृद्धि होगी। इस वर्ष गुरु धान्येश है।

फलस्वरूप ब्रह्म विद्या का प्रचार-प्रसार होा। ज्ञानी जन एक साथ इकट्ठा होकर संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए चिंतन-मनन एवं यज्ञादि कर्म करेंगे। देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयत्न होगा तथा उत्पादन में वृद्धि के लिए विशेष योजनाएं बनेंगी। किंतु मंगल का मेघेश होना अशुभ सूचक है। इस स्थिति के फलस्वरूप जनता में अशांति की संभावना है। पर्याप्त सुविधाएं मिलने के बावजूद लोग अनीतिपूर्ण कर्मों की ओर उन्मुख हो सकते हैं। सूर्य के रसेश होने के फलस्वरूप पृथ्वी भोग-विलास संबंधी पदार्थों के साथ-साथ दुग्धादि पदार्थों का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में होगा।

यह स्थित प्रचुर अन्नोत्पादन का संकेत भी देती है। नीरेश शुक्र के कारण सुगंधित दव पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि होगी। पूजा-पाठ, यज्ञादि कर्मों में लोगों की रुचि बढ़ेगी। चंद्रमा के फलेश होने के फलस्वरूप अन्न, शाक-सब्जी, फल आदि के उत्पादन में वृद्धि होगी। वहीं यज्ञादि कर्मों में लोगों की अभिरुचि बढ़ेगी। गुरु के धनेश होने से व्यापारी वर्ग खुशहाल होगा। देश की आर्थिक स्थिति और सुदृढ़ होगी। इस वर्ष चंद्र का दुर्गेश होना अशुभ सूचक है। इस स्थिति के फलस्वरूप सत्तासीनों के विलासी होने का भय है।

फलतः प्रजा में असंतोष फैलने की संभावना प्रबल है। ज्येष्ठ मास में शनिवारी, आषाढ़ में रविवारी, श्रावण में मंगलवारी, कार्तिक में शनिवारी एवं मार्गशीर्ष में रविवारी अमावस्या होने के फलस्वरूप उक्त मासों में दक्षिण, उŸार तथा पश्चिम के देशों में दुर्भिक्ष होगा। जनता में भय का वातावरण उत्पन्न होगा तथा सभी वस्तुएं महंगी होंगी। किंतु सिक्किम, भूटान, शिलांग, गोवा, सूरत, पंजाब, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश तथा पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा अच्छी होगी। पूर्वी प्रदेशों तथा उŸारांचल में तूफान के साथ साधारण वर्षा होने की संभावना है। माघ में शुक्रास्त होने के फलस्वरूप पश्चिमी व पूर्वी जिलों में अच्छी वर्षा की संभावना है। माघी पूर्णिमा का प्रतिपदायुक्त होना भी इन भागों में अच्छी वर्षा का सूचक है।


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किंतु पूर्णिमा से 15 दिन तक सभी अन्नों में भारी मंदी आएगी। अन्न का संग्रह करने से व्यापारियों को आगे चैगुना लाभ मिलेगा। फाल्गुन में मंगल व शनि के वक्री होने के कारण तृण का भाव तेज होगा। इस स्थिति के फलस्वरूप रोगादि में वृद्धि की संभावना है। कहीं-कहीं आंधी के साथ आकस्मिक वर्षा के संकेत भी हैं। वहीं गर्मी में उŸारोŸार वृद्धि होगी। चतुग्र्रही योग से पूर्वी प्रांतों में सुख-शांति का वातावरण बनेगा किंतु पश्चिमी देशों में उपद्रव तथा अन्नादि का घोर संकट उत्पन्न होगा। कुछ अन्य मतों से सŸाा परिवर्तन की संभावना भी है।

बुध के अस्त होने से पश्चिमी भागों में अच्छी वर्षा हो सकती है। किंतु गुरु व शुक्र के एक राशि में होने से कहीं-कहीं दुर्भिक्ष की संभावना है। इस स्थिति के फलस्वरूप आम जन को कष्ट का सामना करना पड़ेगा। फाल्गुन में शुक्रास्त होने से गुजरात में उपद्रव, राजस्थान में अन्न के संकट तथा तेलहन में तेजी की संभावना है। फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को कृत्तिका नक्षत्र की युति होने के कारण भाद्रपद की अमावस्या को भारी वर्षा हो सकती है। वर्ष प्रवेश की कुंडली का विश्लेषण करें, तो पाएंगे कि राहु लग्नस्थ है। यह योग अशुभ सूचक है।

इस योग के फलस्वरूप देश में अंदरूनी कलह, जनता में असंतोष, सŸाा और विपक्ष में तनाव, महत्वपूर्ण व्यक्तियों के निधन और सांप्रदायिक, आतंकी एवं नक्सली संगठनों की सक्रियता में वृद्धि की संभावना प्रबल है। नेतागण देश एवं जनता के उत्थान के बारे में सोचने की बजाय देश को जातिवाद एवं सांप्रदायिकता की आग में झोंक कर जनता का वोट और गद्दी हासिल करने का प्रयास करेंगे। इन नेताओं की करतूतों के फलस्वरूप आतंकी संगठनों का मार्ग प्रशस्त होगा। वहीं भ्रष्टाचार में चैगुनी वृद्धि होगी। द्वितीय भाव पर नीचस्थ पापी मंगल की दृष्टि होने से अर्थव्यवस्था पर दबाव संभव है।

किंतु द्वितीयेश शनि के दशम भाव में मित्र राशि में दशमेश बुध, शुक्र और चंद्र से पूर्ण दृष्टि संबंध के कारण अर्थव्यवस्था में सुधार, भारतीय उद्योग के विस्तार तथा देश-विदेश में व्यापारिक संगठनों के अधिग्रहण से विश्व में भारत की साख के पुनः बढ़ने के संकेत हैं। तृतीय भाव में शुभग्रह बृहस्पति के कुंभ राशि में पापी मंगल से संतुष्ट होने के कारण पड़ोसी राज्यों - विशेष रूप से पश्चिमी सीमावर्ती राष्ट्र - से संबंधों में कटुता आ सकती है। वहीं, आतंकी संगठनों के सक्रिय होने की संभावना भी प्रबल है। फिर भी संबंधों में सुधार के प्रयास होंगे।


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चतुर्थ भाव में स्थित सूर्य, चंद्र, बुध और शुक्र के शनि से संतुष्ट होने कारण इस वर्ष मौसम प्रतिकूल रह सकता है। कहीं सूखा तो कहीं अधिक वर्षा के कारण बाढ़, मकानों के ढहने, भूकंप के झटके तथा शहरों में जल भरने की संभावना है। पंचमेश मंगल के अष्टम भाव में नीचस्थ होने के फलस्वरूप शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव और यहां तक कि गिरावट की स्थिति भी बन सकती है। वहीं किसी बड़े घोटाले के कारण धन-नाश की संभावना भी है। सप्तम भाव में गुप्त ग्रह केतु के दशमस्थ शनि से संतुष्ट होने के कारण भारत के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं। किंतु वहीं संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलना संभव है।

अष्टम भाव में मंगल के नीचस्थ होने से इस वर्ष मृत्यु-दर में बढ़ोतरी की संभावना प्रबल है। आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि होगी। वाहन दुर्घटनाओं, महामारियों आदि के कारण भी मृत्यु दर में वृद्धि संभव है। नवमेश सूर्य के चतुर्थ भाव में चंद्र, बुध और शुक्र से युक्त होने के कारण न्यायपालिका के द्वारा कुछ महत्वपूर्ण निर्णय से आम जनता का न्यायिक प्रक्रिया के प्रति विश्वास बढ़ेगा। इसके अतिरिक्त देश में कुछ विशेष बदलाव भी संभव है। दशम भाव में शनि के कन्या राशि में सूर्य, चंद्र, बुध और शुक्र से संतुष्ट होने के फलस्वरूप भारत की राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा, यश और सम्मान में वृद्धि होगी।

भारत की स्वतंत्रता कुंडली के अनुसार तारीख 16.10.2009 से 04.08.2010 तक सूर्य की महादशा मंे बृहस्पति की अंतर्दशा हर दृष्टि से लाभप्रद सिद्ध होगी। जनजीवन में सुख-समृद्धि की वृद्धि होगी। विकास की गति तेज और आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। उसके शत्रु देश संकट तो खड़ा करेंगे, किंतु विजय उसी की होगी। कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक व्यक्तियों का मणिपुर वास होना संभव है। नये राजनीतिक समीकरण अथवा नई सरकार का गठन भी संभी है। प्रतिकूल वातावरण में भी देश की एकता, अखंडता और सुख-शांति बनी रहेगी। तारीख 04.08.2010 से 16.07.2011 तक सूर्य की महादशा में शनि की अंतर्दशा हर दृष्टि से उन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगी।

विरोधों के होते हुए भी इस अंतर्दशाकाल में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की साख और प्रभुता बढ़ेगी। इस तरह, विक्रम संवत् 2067 की समूची ग्रहस्थिति का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि भारत की प्रभावराशि का स्वामी शनि अक्तूबर में मीन के बृहस्पति की दृष्टि में आएगा। आगामी 06 दिसंबर 2010 ई. से संवत् के अंत तक बृहस्पति की दृष्टि भारत की प्रभाव राशि पर रहेगी। अतः भारत अनेकविध समस्याओं से जूझते हुए भी हर क्षेत्र में प्रगति करेगा तथा और अणुशक्ति संपन्न होकर विश्व की महाशक्तियों में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए अग्रसर रहेगा। युवाशक्ति का प्रभुत्व बढ़ेगा और युवानेतृत्व में भारत उत्तरोत्तर तरक्की करेगा।


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