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यंत्र एवं उपयोगिताएँ (1 व्यूस)

प्रत्येक ग्रह व देवी देवता की पूजा यंत्रों द्वारा भी की जाती है। यंत्र निर्माण इस विधि से किए होते हैं कि देवों से संबंधित शक्ति उनमें समाहित होती है। कलियुग में व्यक्ति हर काम यंत्रों से करना चाहता है जिससे कम से कम समय में अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। यंत्र एक प्रकार से मानव के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करते हैं। बिना विधि विधान द्वारा बनाए गये तथा बिना प्राण प्रतिष्ठा के यंत्रों का कोई अस्तित्व नहीं होता। यंत्र कागज पर, भोजपत्र पर, तांबे व सोना, चांदी पर बनाए जाते हैं। किसी योग्य व्यक्ति द्वारा शुद्ध व सिद्ध कराने पर आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त होते हैं। सभी यंत्रों को बनाने व शुद्ध करने के लिए मंत्रों का प्रयोग किया जाता है। मंत्र से यंत्र की शक्ति कई गुणा बढ़ जाती हैं यंत्रों को बनाने व शुद्ध करने में सही नक्षत्र, तिथि व योग का ध्यान रखना चाहिए। प्रश्न यह उठता है कि जातक किस यंत्र की पूजा करे? कुण्डली में जो ग्रह मारक या बाधक हो उस ग्रह की पूजा यंत्र द्वारा करे। विंशोत्तरी महादशा या अन्तर्दशा या प्रत्यंतर दशा जो अनिष्टकर हो उस ग्रह के यंत्र को उस समयावधि में जागृत करके पूजा स्थल में रखकर पूजन करने से जातक अनिष्टकारक समय में अनिष्ट से बच सकता है। सिद्ध यंत्र निर्दोष मशीन की तरह है। उसका प्रयोग सोच समझ कर केवल अपने कल्याण हेतु ही किया जाना चाहिए। यंत्र जागृत करने वाले साधक में साहस, धीरज, क्षमा व विवेक पर्याप्त मात्रा में होने चाहिए।


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