हस्त रेखाओं में रोजी-रोजगार

हस्त रेखाओं में रोजी-रोजगार  

दलीप कुमार
व्यूस : 20795 | जुलाई 2009

सुखस्थमूलं धर्मः धर्मस्य मूलं अर्थः। वृŸिा मूलं अर्थः अर्थ मूलो धर्म कामौ।। (चाणक्य) चाणक्य ने वृŸिा अर्थात् व्यवसाय/रोजगार एवं अर्थ की महŸाा को स्पष्ट करते हुए उपर्युक्त पंक्ति में कहा है- कि ‘‘धर्म से सुख प्राप्त होता है, अर्थ से धर्म प्राप्त होता है, वृŸिा से अर्थ प्राप्त होता है। धर्म काम का मूल ‘अर्थ’ ही है। ‘अर्थ’ विश्व का महानतम शक्तियों में से एक है और वृŸिा मनुष्य को पूर्णता प्राप्त कराता है। बगैर ‘वृŸिा’ का ‘अर्थ’ प्राप्ति संभव नहीं है। किस व्यक्ति को कौन सी वृŸिा प्राप्त होगी यह उसके संचित कर्मों अर्थात् भाग्य/प्रारब्ध पर आधारित है। जिस प्रकार जातक की जन्म कुंडली पूर्व जन्मों का लेखा-जोखा है। उसी प्रकार जातक का हस्त एवं उसमें रेखांकित चिह्न एवं रेखा उसके पूर्व जन्म का दस्तावेज है। व्यक्ति के जीवन में जो घटित हो रहा है। जो उसे प्राप्त हो रहा है, जो साधन उपलब्ध हो रहा है, जो कार्य-क्षेत्र मिल रहा है, वह प्रारब्ध द्वारा निर्धारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने उस प्रारब्ध को हस्त रेखाओं एवं चिह्नों में रोजी-रोजगार एवं अर्थ साधन के रूप में झांकने का प्रयास यह कहते हुए किया है कि- ‘‘यद ब्रह्मयं पुस्तकं हस्ते घृत बोधाय जन्मिनाम्’’ अर्थ व्यक्ति का हाथ ब्रह्मा जी द्वारा लिखित ऐसी पुस्तक है जो जीवन भर व्यक्ति का मार्ग दर्शन करती है। रोजी रोजगार: जीवन रेखा से अथवा मणिबंध से कोई रेखा निकलकर बुध पर्वत पर जाए, व्यवसाय के लिए यह योग अति आवश्यक है।

इस योग के साथ-

Û सूर्य क्षेत्र शुद्ध और उन्नत हो तो औषधि, चिकित्सा, सोना, गुड़, धान, कुट्टी, लौंदी और प्रशासन से धन प्राप्त होता है।

Û बृहस्पति क्षेत्र शुद्ध और उन्नत हो तो शिक्षा, न्यायालय, शिक्षण संस्थान, पूजा, पूजा सामग्री, धर्मानुष्ठान, पुस्तक, स्टेशनरी के व्यवसाय से लाभ होता है।

Û शुक्र क्षेत्र के उन्नत और शुद्ध होने पर खाद्य पदार्थ, होटल, हाॅस्टल, अलंकारिक और मनोरंजन, प्रसाधन, कला, क्लब, ब्यूटी पार्लर से लाभ होता है। Û बुध क्षेत्र उन्नत और शुद्ध होने पर कला, शिक्षण, लेखा, यंत्र, स्टेशनरी, डिटर्जेंट, खिलौने, द्रव, तरल पदार्थ, मछली पालन से लाभ होता है।

Û शनि और मंगल क्षेत्र उन्नत और शुद्ध होने पर लोहा, कोयला, वाहन, लकड़ी, मशीनरी, भूमि, मकान आदि के व्यवसाय में सफलता मिलती है।

Û चंद्र क्षेत्र शुभ और उन्नत रहने पर चमकीले धातु, शिक्षण, सौंदर्य प्रसाधन, कला, शराब वस्त्रादि के व्यवसाय से लाभ मिलता है।

Û यदि मस्तिष्क रेखा हाथ में सीधी जाकर उच्च मंगल क्षेत्र में कुछ ऊपर की ओर मुड़ जाए तो जातक विज्ञान और व्यवसाय के क्षेत्र में आशातीत सफलता प्राप्त करता है।

Û यदि मस्तिष्क रेखा की शाखा बुध और सूर्य के मध्य स्थान को जाए तो वैज्ञानिक अनुसंधान से लाभ होता है।

Û यदि मस्तिष्क रेखा अपनी तीन शाखाओं में विभक्त होकर एक शाखा बुध क्षेत्र की ओर, दूसरी उच्च मंगल और तीसरी चंद्र क्षेत्र में प्रवेश करे तो जातक में पैसा कमाने की विलक्षण वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक क्षमता होती है।

Û यदि सूर्य रेखा से निकलने वाली कोई शाखा बुध क्षेत्र की ओर जाए तो वह जातक विज्ञान और व्यापार के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।

Û यदि सूर्य रेखा की कोई शाखा बुध रेखा से मिल जाए तो व्यापार व वाक्पटुता से संबंधित क्षेत्रों में सफलता मिलती है और जातक को सम्मान व धन की प्राप्ति होती है।

Û यदि शनि क्षेत्र से निकल कर कोई शक्तिशाली प्रभाव वाली रेखा स्वास्थ्य रेखा को सूर्य क्षेत्र के नीचे स्पर्श करे किंतु उसे काटे नहीं तो जातक चमत्कारिक ढंग से संयोगवश व अप्रत्याशित ढंग से धनवान होता है। यह लाॅटरी, शेयर-बाजार, लक्की-ड्राॅ तथा बाजी आदि क्षेत्रों से धन अर्जित करने में सक्षम होता है।

Û यदि स्वास्थ्य रेखा बुध क्षेत्र में स्थित नक्षत्र चिह्न से आरंभ हो तो जातक व्यापार, विज्ञान या वाक्पटुता के क्षेत्र में अप्रत्याशित ख्याति व सफलता प्राप्त करता है। हस्त रेखाओं में नौकरी योग आज हर युवा वर्ग के मन में चाहत होती है कि नौकरी करें। सरकारी नौकरी के लिए तो लोग किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं। आज के प्रतिस्पद्र्धा वाले युग में किस क्षेत्र में नौकरी की तलाश करें। सही नौकरी के लिए सही क्षेत्र में प्रयास करें तो सफलता में सहायक होती है।

Û बुध पर्वत या बुध ग्रह जिस जातक का उन्नत हो ऐसे जातक को बैंक की नौकरी में सफलता मिलती है। ऐसे सरकारी कार्यालयों में जहां लिखा-पढ़ी का, लेखन-टंकन का काम हो वहां नौकरी मिलती है।

Û सूर्य पर्वत या सूर्य ग्रह जिस जातक का उन्नत हो, ऐसे जातक को सूर्य से संबंधित नौकरी की तलाश करनी चाहिए। जैसे-विद्युत, दवा, चिकित्सा, इंजीनीयरिंग विभाग आदि। सूर्य शासकीय ग्रह है। इस ग्रह के उन्नत होने और भाग्य रेखा ठीक रहने से शासन के क्षेत्र, में नौकरी मिलती है।

Û शनि पर्वत या शनि ग्रह जिस जातक का उन्नत हो ऐसे जातक को नौकरी किसी कल-कारखाने में, कोयला खदानों में अथवा जहां लोहा का काम होता है। वहीं नौकरी लगती है।

Û गुरु पर्वत या गुरु ग्रह के उन्नत होने से किसी राजकीय सेवा आयोग के द्वारा नौकरी लगती है। विद्यालय अथवा महाविद्यालय में शिक्षक अथवा व्याख्याता के पद पर नौकरी मिलती है।

Û शुक्र पर्वत या शुक्र ग्रह के बली होने पर शुक्र से संबंधित नौकरी की तलाश करनी चाहिए। जैस-टी. वी. या इलेक्ट्राॅनिक कम्पनी, फिल्म उद्योग व काॅस्मैटिक उद्योग आदि।

Û चंद्र पर्वत या चंद्र ग्रह उन्नत हो तो ऐसे जातक की नौकरी जल सेना में या जल से संबंधित संस्थान में, मछली विभाग में, जहाज विभाग में होती है। हस्तरेखा एवं उच्चाधिकारी/राजनेता योग Û हाथ की बनावट सुडौल हो, सूर्य व गुरु पर्वत विकसित हों, भाग्य रेखा एवं सूर्य रेखा स्पष्ट एवं निर्दोष हों, शनि क्षेत्र निर्दोष हो तो ऐसा जातक सफल प्रशासनिक उच्चाधिकारी बनता है।

Û यदि सूर्य पर्वत पर मत्स्य रेखा हो तो ऐसा जातक किसी विभाग का उच्चाधिकारी बनता है।

Û यदि दोनों कनिष्ठा उंगली अनामिका उंगली के नाखून तक पहुंचती हो, प्रथम मंगल क्षेत्र विकसित हो तथा सूर्य रेखा एवं भाग्य रेखा स्पष्ट एवं निर्दोष हों तो ऐसे व्यक्ति उच्च पदाधिकारी होते हैं।

Û यदि भाग्य रेखा, बृहस्पति पर्वत पर पहंुचे एवं वहां पर त्रिशूल का चिह्न हो तो यह उŸाम श्रेणी का राजयोग होता है। ऐसा जातक बड़ा राजनीतिज्ञ या अधिकारी होता है।

Û यदि गुरु तथा सूर्य क्षेत्र उन्नत हों, गुरु क्षेत्र पर त्रिशूल का चिह्न हो तथा शनि व राहु क्षेत्र किसी भी प्रकार से दूषित न हो, साथ ही भाग्य रेखा व स्वास्थ्य रेखा निर्दोष एवं स्पष्ट हो तो ऐसे व्यक्ति राज्यपाल या समकक्ष पद पर आसीन होता है।

Û सूर्य रेखा यदि मस्तिष्क रेखा से प्रारंभ हो रही हो तथा मस्तिष्क रेखा का झुकाव गुरु क्षेत्र की ओर हो, साथ ही गुरु पर्वत पर चतुष्कोण का चिह्न हो तो ऐसे व्यक्ति राजनीति के उच्च पद पर पहंुचते हैं तथा प्रभावशाली राजनेता बनते हैं।

हस्त एवं गुप्तचरी: Û यदि मंगल, शुक्र तथा सूर्य पर्वत उन्नत हों तथा सूर्य तथा शनि रेखा निर्दोष व लंबी हो, इसके साथ ही बुध और शनि पर्वत सामान्य से अधिक उठे हों तथा कनिष्ठा उंगली के प्रथम पर्व पर त्रिकोण या जाल का चिह्न हो तो ऐसे जातक गुप्तचर सेवाओं में देखे जाते हैं। इसके अतिरिक्त मस्तिष्क रेखा की सहायता से भाग्य रेखा पर कोई त्रिकोण चिह्न बनता हो, तो ऐसा जातक कुशल गुप्तचर बनता है और सम्मानित होता है। हस्तरेखा एवं अभियंता: Û वर्गाकार हथेली तथा लंबी अंगुलियां हों, नांेक वर्गाकार हो, अंगुलियों के संधि, गांठ विकसित हो, तर्जनी का दूसरा पोर लंबा हो, लंबी मध्यमा अंगुली एवं मस्तिष्क रेखा तथा मजबूत बुध ग्रह वाले व्यक्ति गणित क्षेत्र में रुचि रखते हैं। इनमें अभियंता बनने की क्षमता होती है। Û यदि सभी अंगुलियां लंबी व सीधी हो, उनके प्रथम एवं द्वितीय पर्व सुदृढ़ हों, हथेली पतली हो, मस्तिष्क रेखा लंबी और सीधी हो। सूर्य, मंगल तथा शनि क्षेत्र उन्नत हों और अंगूठा सामान्य से कुछ छोटा हो तो ऐसा जातक अभियंता बनता है। इसके अतिरिक्त यदि किसी जातक के चंद्र तथा शुक्र क्षेत्र उभरा हो तो इलैक्ट्रिक या इलैक्ट्राॅनिक क्षेत्र में अभियंता होता है। हस्तरेखा एवं चिकित्सक: Û जातक का हाथ वर्गाकार हो, लंबी गांठ वाली अंगुलियां हो, उन्नत बुध पर्वत पर तीन चार खड़ी लाइनें हों तथा हाथ में अच्छी आभास रेखा हो तो वह चिकित्सा क्षेत्र में विशेष सफलता अर्जित करता है।

यदि बुध पर्वत पर त्रिकोण हो और मस्तिष्क रेखा पर सफेद धब्बे हों तो वे चिकित्सा के क्षेत्र में नई खोज करते हैं। हस्तरेखा एवं अधिवक्ता: Û लंबी अंगुलियां जिनसे कार्य के प्रति लगाव का संकेत मिलता है और वर्गाकार हथेली, अंगुलियों के सिरे वर्गाकार अथवा चमसाकार। Û हथेली का बाहरी भाग सपाट होगा, जिससे पता चलता है कि मस्तिष्क तार्किक बनाता है। Û मस्तिष्क रेखा सीधी और लंबी हो जिससे यह प्रकट होता है कि मस्तिष्क तार्किक और व्यवस्थित है और स्मरणशक्ति अच्छी है। Û बृहस्पति अंगुली सामान्यतया लंबी होती है। Û अंगूठे का पहला पोर सुदृढ़ होगा। दूसरा पोर, जो तर्क शक्ति को दर्शाता है, कुछ लंबा और सुविकसित होता है। हस्तरेखा एवं शिक्षक: Û यदि जीवन रेखा से कोई शाखा निकलकर बृहस्पति क्षेत्र पर स्थित वर्ग से मिलती है, तो वह व्यक्ति सफल शिक्षक होता है। Û जिनके हाथ में जीवन रेखा, भाग्य रेखा तथा सूर्य रेखा विकसित हो तथा गुरु पर्वत विकसित हो और उस पर क्राॅस का चिह्न हो तथा अनामिका से तर्जनी अंगुली लंबी हो तो वह शिक्षक (लेक्चरर) बनता है। हस्तरेखा एवं एकाउन्टेन्ट, इन्कमटैक्स अधिकारी बैंकिंग उच्चाधिकार: Û बुध एवं सूर्य पर्वत विकसित हो। सूर्य रेखा स्पष्ट हो। भाग्य रेखा बगैर बाधा का मध्यमा के मूल में जा रहा हो तो जातक सफल एकाउन्टेन्ट होता है। इसके अलावा चंद्र रेखा पूर्णतः विकसित हो ताथा भाग्य रेखा भी सहायक हो तो जातक चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट होता है।

हस्तरेखा एवं न्यायाधीश: Û तर्जनी अंगुली अनामिका से कुछ लंबाई लिए हो तथा कनिष्ठा अंगुली अनामिका के तीसरे पोर तक उठी हो, गुरु पर्वत विकसित हो, उस पर क्राॅस चिह्न हो, भाग्य रेखा निर्दोष हो, सूर्य पूर्ण प्रभायुक्त हो, अंगूठा लंबा तथा पीछे की तरफ झुका हुआ हो तो व्यक्ति सफल न्यायाधीश होता है। इसके साथ यदि भाग्य रेखा से कोई शाखा गुरु पर्वत पर पहुंचती हो, तो वह जातक मुख्य न्यायाधीश पद तक पहुंचता है। हस्तरेखा में सेना एवं पुलिस: सेना एवं पुलिस दोनों साहसिक कार्य से संबंधित है। मंगल ग्रह साहस और पराक्रम देता है अतः पुलिस एवं सेना के लिए मंगल ग्रह जिम्मेदार है। यदि मंगल पर्वत विकसित हों और उन पर त्रिभुज का चिह्न हो तथा भाग्य रेखा और सूर्य रेखा निर्दोष हो, तो ऐसा जातक सेना या पुलिस क्षेत्र में सफल होता है। हस्तरेखा एवं धर्मोपदेशक: यदि तर्जनी अनामिका से लंबी हो तथा गुरु पर्वत पूर्ण विकसित हो और उस पर क्राॅस का चिह्न हो तो जातक धार्मिक व्यक्ति होता है। इसके साथ सूर्य पर्वत और सूर्य रेखा बहुत विकसित हो तो जातक धर्मोपदेशक होता है। यदि उपर्युक्त के साथ जीवन रेखा कटी हुई हो तो जातक सन्यासी होता है। हस्त रेखाओं में कला: यदि हथेलियां पूरी लंबाई लिए हुए गांठ रहित हों और उसकी अंगुलियां ढलवी हों, अंगुली के ऊपर के सिरे नुकीले हांे तो व्यक्ति कला क्षेत्र से जुड़ा पाया जाता है। उपर्युक्त के साथ चंद्र पर्वत पूर्ण विकसित हो, तो वह व्यक्ति श्रेष्ठ चित्रकार होता है।

यदि बुध पर्वत विकसित हो तथा बुध रेखा भी पूर्ण लंबी तथा निर्दोष रूप से बढ़ी हुई हो तो वह जातक संगीतज्ञ होता है। इसके साथ शुक्र क्षेत्र विकसित एवं फैलाव लिए हो तो वह नर्तक होता है। भाग्य रेखा एवं सूर्य रेखा जितना स्पष्ट एवं लालिमा लिए हुए होगा वह उतना ही प्रसिद्धि प्राप्त करेगा। हथेली में साहित्य, लेखक एवं कवि: हथेली में गुरु पर्वत तथा चंद्र पर्वत पूर्ण उभार लिए हुए हो तथा सूर्य की अंगुली तर्जनी से लंबी हो और अंगुलियां गांठ रहित हो, तो वह जातक साहित्य क्षेत्र से जुड़ा पाया जाता है। इसके साथ सूर्य रेखा लंबी व निर्दोष हो और सूर्य पर्वत यथास्थान हो तो वह लेखन के माध्यम से प्रसिद्धि प्राप्त करता है। यदि इसके साथ चंद्र रेखा धनुष रूप में होकर बुध पर्वत पर गई हो या जा रही हो तो जातक कवि होता है। यदि भाग्य रेखा एवं मस्तिष्क रेखा स्पष्ट एवं विकसित हो तो जातक अपने क्षेत्र में सम्मान तथा प्रसिद्धि पाता है। हथेली में अभिनेता-अभिनेत्री: यदि हाथ की सभी अंगुलियां कोमल तथा ढलवी हों, सूर्य की अंगुली विशेष लंबी हो और नोकदार हो तथा मस्तिष्क रेखा एवं भाग्य रेखा पूरी लंबी हो और नोकदार तथा मस्तिष्क रेखा एवं भाग्य रेखा पूरी लम्बाई लिए हुए हो तो वह व्यक्ति अभिनेता या अभिनेत्री होता है। सूर्य रेखा पर नक्षत्र चिह्न होने से उसे यश व सम्मान देता है। अंगुलियों के सिरे कड़े हों तो ऐसा जातक कलात्मक निर्देशन लेना पसंद नहीं करता और वह प्रोड्यूसर, डायरेक्टर इत्यादि के कैरियर के रूप में विचार करता है। हथेली में स्टाॅक ब्रोकर (शेयर दलाल): अंगुलियां लंबी, जोड़, गांठदार, तर्जनी का पहला पोर लंबा, मस्तिष्क रेखा सीधी लंबी, सफलता रेखा हुई। ऐसे जातक स्टाॅक का कार्य करते पाए जाते हैं। लंबी अंगुलियां कार्य के प्रति लगाव, जोड़दार गांठ चतुराई, तर्जनी का पहला पोर लंबा सोच-समझकर जोखिम उठाने की क्षमता तथा सीधी मस्तिष्क रेखा विश्लेषणात्मक क्षमता देता है। हस्तरेखा एवं फाइनांसर: वर्गाकार हथेली, अंगुलियों के सिरे गोलाई लिए हुए, हथेली का बाहरी सिरा हल्की गोलाई लिए हुए तथा बुध की अंगुली लंबी होने वाले जातक फाइनांसर के रूप में कार्य करते पाए जाते हैं। हथेली में ब्यूटीशियन: त्वचा की बनावट और अंगुलियों के सिरे मुलायम हाथ पहले जिनमें लंबी नुकीली अंगुलियां हो। मस्तिष्क रेखा कुछ ढलवा, हथेली का बाहरी भाग गोलाई लिए हुए तथा जीवन रेखा शुक्र पर्वत को विस्तार से घेरती हुई ब्यूटीशियन के हाथ में पायी जाती है। हथेली में ट्यूरिंग जाॅब: यदि जीवन रेखा से कोई शाखा निकलकर शुक्र क्षेत्र पर जाती हो तो ऐसे जातक ट्यूरिंग जाॅब करते पाए जाते हैं।

अन्य कर्म क्षेत्र: Û यदि जीवन रेखा की कोई सहायक रेखा शनि क्षेत्र पर जाती हो तो ऐसा जातक उद्योग कारखाने लगाते हैं। Û यदि जीवन रेखा से कोई शाखा बुध क्षेत्र पर जाती हो, तो ऐसे जातक वैज्ञानिक या विज्ञान से संबंधित कार्य करते हैं। Û यदि बुध क्षेत्र पर तीन से अधिक स्पष्ट छोटी रेखाएं हों तथा आपस में संबंध बनाए हुए हों, तो ऐसा जातक कुशल प्रबंधक होता है। Û यदि प्रथम मंगल क्षेत्र पर चतुष्कोण चिह्न हो तो ऐसे जातक का कर्म क्षेत्र में भूमि से संबंधित होता है। हस्त रेखाओं एवं चिह्नों में आर्थिक समृद्धि: हमारे ऋषि मुनियों की वाणी है- कराग्रे वसते लक्ष्मीः कर मध्ये सरस्वती। कर मूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम।। लक्षमी वास करने वाले एक समृद्ध हस्त लक्षणों के बारे में कहा गया है- शलाध्यं उष्णारुणोंऽछिन्द्रोऽस्वेदः स्ग्द्यिश्च मांसलः। श्लक्षणस्ताम्तनखो दीर्घागलिको विपुलः करः।। उपर्युक्त लक्षण के अतिरिक्त हाथ के रंग में समृद्धि खोने का प्रयास किया गया है। धनी पागितले श्क्ते नीले मद्यं पिबेन्नरः। अगम्यागमनः पीवे कश्मले धनः वर्जितः।। अर्थात् धनी व्यक्ति की हथेली का रंग लाल होता है। नीला हाथ वाला शराबी होता है। पीला रंग वाला अगम्यागमन करता है तथा कसैले, मटियाले रंग वाले धनहीन होते हैं। अंगूठे में चिह्न और समृद्धि: अंगूठे के जोड़ों में विद्यमान चिह्न यवों को अति श्रेष्ठ लक्षण माना गया है। अंग्रेजी में यव को स्टेंड कहा जाता है जो जौ के दाने की तरह होता है।

‘नारदीय संहिता’ में कहा गया है- ‘अमत्स्थत कुतो विद्या अयवस्य कुतो धनम’ अर्थात् मछली चिह्न के बिना व्यक्ति विद्वान कहां और यव चिह्न होने से व्यक्ति सदा यशस्वी और धनवान रहता है- ‘अंगुष्ठोध्र्य यवपूर्णः सदा पुंसा यशस्करः’’। अंगूठे के मध्य और मूल में यव का अलग-अलग फल बताया गया है। ‘हस्त संजीवन’ के अनुसार विद्या ख्यातिर्विभूति स्याद्यवे अंगुष्ठमध्ये’ अर्थात् अंगूठे के मध्य में यव होने से विद्या ख्याति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। ‘सामुद्रिक रहस्य’ के अनुसार अंगुष्ठोदर मध्यस्थे यवे भोगी सदा सुखी। सामुद्रिक तिलक और प्रयोग पारिजात का कहना है कि अंगूठे के मूल में यव या यव माला विपुल धन सम्पदा के स्वामी, राज्य मंत्री, राजपूजित व्यक्ति होने का लक्षण है। अंगुलियों की परस्पर लम्बाई, सटा होना और समृद्धि: यदि अनामिका के प्रथम पर्व से कनिष्ठा अंगुली लम्बी हो तो ऐसा व्यक्ति रात-दिन धन की वृद्धि करता है और उसका मातृपक्ष भी सबल होता है। यदि मध्यमा के अंतिम पर्व से तर्जनी अंगुली ऊपर हो तो ऐसा जातक विपुल धन सम्पŸिा प्राप्त करता है तथा उसका पितृ पक्ष सबल होता है। यदि कनिष्ठा अंगुली अनामिका के बराबर लंबी हो तो जातक ओजस्वी वक्ता, धनवान और प्रतिभावान होते हैं। ऐसे व्यक्ति सर्वगुण सम्पन्न व प्रतिभाशाली होते हैं। अंगुलियों के बीच छिद्र और आर्थिक समृद्धि: करलक्खन के मतानुसार (प्राकृति) बालŸार्णाम्य सुलह पएसिणी मंझ मंतर द्यणम्मि।

मंझिम अणमियाणं तरुणतणे सुक्ख।। पावई पच्छा सुक्खं कणिधिआणामि अंतर द्यणम्नि। सघंगुली द्यणम्मि अहोई सुही द्यण समिद्धो अ।। अर्थात् तर्जनी और मध्यमा के आपस में सटे रहने पर बचपन में सुख मिलता है। मध्यमा अनामिका के सघन होने पर युवावस्था में सुख मिलता है। कनिष्ठा अनामिका के सटे रहने पर वृद्धावस्था में सुख मिलता है। यदि सभी अंगुलियां आपस में सटी हुई हों तो जीवन में सदैव धन, सुख समृद्धि रहती है। उपर्युक्त मत की पुष्टि ‘विवेक विलास’ और ‘सामुद्रकि तिलक’ से भी होती है- तर्जनी मध्यमारन्ध्रे मध्यमानमिकांतरे। अनामिका कनिष्ठान्तः छिद्र सति यथाक्रमम्।। जन्मतः प्रथमेऽशे वा द्वितीये च तृतीयके। भोजनावसरे दुःखं केप्याहुः श्रीमतामपि।। (विवेक विलास) अर्थात् तर्जनी और मध्यमा के बीच छिद्र हो तो जवानी के समय तक बड़े-बड़े धनवानों को भी भोजन के समय मानसिक पीड़ा होती है। मध्यमा और अनामिका के बीच छिद्र हो तो मध्यावस्था तथा कनिष्ठा तथा अनामिका के बीच छिद्र हो तो बुढ़ापे में कष्ट होता है। उपर्युक्त तथ्य को ‘सामुद्रिक तिलक’ में इस प्रकार कहा गया है- छिद्रं मिथः कनिष्ठाऽनाम मध्या प्रदेशिनां स्यात्। वृद्धत्वे जारुणये बाल्ये क्रमशो नरस्य दुःखम।। इसी प्रकार भविष्य पुराण में विरल अंगुलियां दरिद्रता और सघन अंगुलियां धनवान होने की सूचक बतायी गई है- विरलांगुल्यो ये तु माम् दरिद्रान् प्रचक्षते। धन वस्तु महाबाद्ये ये धनंगुल्यो नराः।

अंगुलियांे में शंख और समृद्धि: जिस मनुष्य के हाथ के प्रथम पर्व में एक शंख हो वह अध्ययनशील दो शंख दरिद्र बनाता है। तीन शंख स्त्री के लिए रुदन तथा चार शंख राजा तुल्य बनाता है। पांच शंख हो तेा समुद्रपर्यंत प्रभुता का सूचक है। छः शंख होने पर प्रकाण्ड विद्वान, सात होने पर दरिद्र तथा आठ शंख होने पर सुख पूर्वक जीवन जीता है। यदि नौ शंख हो तो स्त्री प्रकृति वाला तथा दस शंख हो तो राजा या योगी होता है। अंगुलियों में चक्र और समृद्धि: अंगुलियों में एक चक्र हो तो चातुर्य युक्त, दो चक्र हो तो अति सुंदर, तीन चक्र हों तो विलासी, चार हों तो विलासी, पांच हों तो ज्ञानी, छः हों तो चतुर, सात हों तो विहार करने वाला तथा आठ हों तो दरिद्र होता है। नौ चक्र हों तो राजा, दस चक्र हों तो राज सेवक होता है। अंगुलियों में सीप और समृद्धि: सीप हो तो दरिद्र, अलग-अलग दो सीप हों तो धनी, तीन सीप हों तो योगी, चार हों तो दरिद्र, पांच हांे तो धनी, छः हों तो योगी, सात हों तो दरिद्र, आठ हों तो धनी, नौ हों तो योगी, दस हों तो दरिद्री होता है। Û अंगूठे के प्रथम पर्व पर धनुषाकार रेखा समृद्धि, वैभव और सुख का परिचायक है।

Û तर्जनी के प्रथम पर्व पर नक्षत्र होने पर अनेक यात्रा, सम्मान व धन प्राप्त करता है। यह चिह्न भाग्य और समृद्धि का परिचायक है। मध्यमा के प्रथम पर्व पर नक्षत्र होने से जीवन दुःखमय हो जाता है। Û मध्यमा के मूल से प्रथम पर्व तक जाती हुई सीधी रेखा विपुल धन सम्पŸिा और भाग्यशाली होने का संकेत है। ऐसे लोग बहुत समृद्ध होते हैं। नाखून और समृद्धि: ‘गर्ग संहिता’ में निर्मल ललाई युक्त नाखूनों को भाग्यशाली कहा गया है। जबकि विवर्ण, सूप की आकृति वाले आकार के भंगुर नाखून को दुर्भाग्य और दरिद्रता का प्रतीक माना गया है। हस्तरेखाओं में समृद्धि- प्राचीन हस्त सामुद्रिक प्रणालियों में जीवन रेखा के ग्यारह प्रकारों का वर्णन मिलता है। जिनमें समृद्धि कारक रेखाएं इस प्रकार हैं। संगूढ़ा: यह रेखा मोटी वर्तुलाकार आरंम्भ से अंत तक सम्पूर्ण और अखण्डित रहती हैं। यह रेखा हर प्रकार की समृद्धि का परिचायक है। गौरी: जीवन रेखा जब मध्य भाग में ऊपर उठकर मस्तिष्क रेखा की ओर का घेरती हुई नीचे चली जाती है और स्पष्ट सुंदर होती है। तो जातक धनवान और सौभाग्यशाली होता है। परगूढ़ा: संगूढ़ा मणिबंध के पास अन्य रेखाओं से जुड़ी हो तो सौभाग्यशाली सुख-सम्पŸिा और भोग का परिचायक है। निगूढ़ा: संगूढ़ा अपने उद्गम पर किसी अन्य रेखा से सम्बद्ध हो तो सम्पŸिा, पुत्र-पौत्र आदि का सुख मिलता है। अतिलक्ष्मी: संगूढ़ा और निगूढ़ा दोनों लक्ष्ण के साथ उद्गम पर वर्तुलाकार और मध्य में सीधी रेखा हो तो विपुल धन-सम्पŸिा प्राप्त होती है।

वह जातक लक्ष्मी पुत्र होता है। सुख-भोगढ़ा: आरंभ और अंत में अन्य रेखाओं से संबंध जीवन रेखा सुख भोग व धन सम्पŸिा की परिचायक है। गज: जीवन रेखा के उद्गम या समाप्ति या दोनों स्थान पर काला तिल हो तो गज रेखा कहलाती है। यह रेखा धन व वाहन आदि सुखों की परिचायक है- Û शास्त्रों के अनुसार मणिबंध से हथेली की ओर मुंह किए हुए मछली हो तो धन, सफलता, पुत्र व स्त्रियों की प्राप्ति होती है। यदि मुंह विपरीत दिशा की ओर हो तो बुढ़ापे में फल प्राप्ति होती है। विपरीत मुंह वाले मछली होने ‘कालसर्प योग’ का भी लक्षण बताया गया है। Û जीवन रेखा से ऊपर की ओर उठती हुई रेखाएं जातक के उŸाम स्वास्थ्य, समृद्ध जीवन, मनोकामनाओं की सिद्धि और सौभाग्य की परिचायक है। Û यदि चंद्र क्षेत्र के नीचे, मणिबंध तक जाने वाली मस्तिष्क रेखा के अंत में नक्षत्र या क्राॅस हो तो भाग्य और उत्कृष्ट सफलता का प्रतीक है। Û यदि बुध क्षेत्र से निकलकर कोई रेखा हृदय रेखा से मिल जाए तो जातक का जन्म या तो समृद्ध परिवार में होता है या उसके जन्म के बाद से परिवार की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार होना आरंभ होता है।

Û मणिबंध की प्रथम रेखा से आरंभ होकर सीधी शनि क्षेत्र तक जाने वाली भाग्य रेखा अत्यंत सौभाग्य और सफलता का सूचक होती है। इससे यह भी पता चलता है कि जातक का जन्म समृद्ध और प्रतिष्ठापूर्ण स्थिति में हुआ है। Û यदि बृहस्पति क्षेत्र तक जाने वाली भाग्य रेखा के अंत में त्रिशूल हो तो बहुत शक्तिशाली राजयोग बनता है और जातक अति विशिष्ट श्रेणी का होता है। Û यदि भाग्य रेखा शनि क्षेत्र में जाकर तीन शाखाओं में विभक्त हो जाए, पहली गुरु, दूसरी शनि, तीसरी सूर्य की ओर जाए तो समृद्धि, सुख और यश की प्राप्ति होती है। Û यदि सूर्य रेखा का आरंभ नेप्च्यून क्षेत्र से हो तो बौद्धिक योग्यता, ख्याति और समृद्धि प्रदान करती है। Û यदि सूर्य रेखा सूर्य क्षेत्र में त्रिशूल की आकृति की तरह समाप्त हो तो धन, यश व मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। Û यदि सूर्य क्षेत्र पर समाप्त होने वाली सूर्य रेखा के अंत में नक्षत्र चिह्न हो तो जातक को धन, यश व मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। Û यदि सूर्य रेखा में ऊपर की ओर उठती हुई कई शाखाएं हों जिससे वह वृक्ष की भांति बन जाए तो वह असाधारण सफलता का चिह्न है। Û यदि सूर्य रेखा की कोई शाखा भाग्य रेखा से मिल जाए तो यह अत्यंत भाग्यवर्द्धक योग माना जाता है। ऐसी स्थिति में जातक को अप्रत्याशित सफलता के साथ-साथ विशिष्ट सम्मान मिलता है। Û यदि बुध क्षेत्र पर विवाह रेखा पुष्टता से अंकित हो और कोई प्रभाव रेखा चंद्र क्षेत्र से आकर भाग्य रेखा से मिले तो जातक विवाह के बाद धनवान होता है। ‘हस्त संजीवन’ नामक गं्रथ में परम भाग्यशाली मनुष्यों के बŸाीस सामुद्रिक चिह्नों का वर्णन मिलता है। छत्रं तामरसं धनूरथवरो दम्भोति कुर्माश्कुशा। वापिस्वस्तिक तोरणानि च सरः पंचाननः पादयः।।

चक्रं शंखगजौ समुद्रकलशौ प्रसादमत्स्यौ यवाः। भूस्तू पकमण्डलून्यव निभृत्सच्चामसे दर्पणः।। अर्थात् राजयोगी, परमातेजस्वी, भाग्यवान व्यक्तियों के हाथों में छत्र, कमल, धनुष, रथ, वज्र, कछुआ, अंकुश, काबड़ी, स्वस्तिक, तोरणद्वार, तीर, शेर, पेड़, चक्र, शंख, हाथी, समुद्र, घड़ा, महल, मछली, यव, खम्भा, मठ, कमण्डल, पहाड़, चांवर, शीशा, बैल, झंडा, लक्ष्मी, फूलमाला तथा मोर के चिह्न विद्यमान रहते हैं। विद्वानों का मत है कि दोषरहित एक भी चिह्न मौजूद हो, तो वह धन-धान्य, पुत्र-पौत्र, सुख, मंगल और यश प्रदान करता है।



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