ज्योतिष में शोध की आवश्यकता

ज्योतिष में शोध की आवश्यकता  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 8735 | मई 2013

ज्योतिष शास्त्रों में परम सत्य ईश्वर की वाणी संगृहीत की गई है। हमारे ऋषि-मुनियों ने युगों तक गहन चिंतन कर इस ब्रह्मांड में उपस्थित ज्ञान के इन गूढ़ रहस्यों को संगृहीत किया और उपयोग किया। ज्योतिष के इन गूढ़ रहस्यों का अध्ययन कर न केवल मनुष्य मात्र अपितु संपूर्ण विश्व के विकास कार्यों में सहयोग लिया जा सकता है। चाहे वह अध्ययन, चिकित्सा, औषधि का क्षेत्र हो या खगोल शास्त्र का। ज्योतिष एक प्राचीनतम विज्ञान है जिसका उल्लेख वेदों में भी आता है। ज्योतिष को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है। प्रथम खगोल शास्त्र - जिसमें आकाश मंडल में विचरण करते हुए ग्रहों की स्थिति का शुद्ध आंकलन किया जाता है। द्वितीय - इन आकाशीय पिण्डों का प्रभाव पृथ्वी एवं मनुष्य जाति पर कैसा पड़ता है इसका अनुमान। खगोल शास्त्र को तो सभी वैज्ञानिक शुद्ध मानते हैं और इसकी शुद्धता को स्वीकार भी करते हैं और हो भी क्यों ना-आकाश में विचरण करते हुए ग्रह अद्वितीय समरूपता (एक समान गति और पथ) दर्शाते हैं। हजारों लाखों सालों में भी उनकी गति या मार्ग में परिवर्तन नहीं आता।

इन सभी ग्रह पिण्डों का प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर या भाग्य पर कैसा पड़ता है? यह दर्शाने में कोई यंत्र सक्षम नहीं है। केवल एक सांख्यिकी ही हमें यह विचार करने पर मजबूर करती है कि इन सभी का प्रभाव हमारे शरीर पर अवश्य पड़ता है, हो भी क्यों न क्योंकि पूर्ण ब्रह्मांड में अरबों पिण्डों में केवल एक शक्ति ‘‘गुरुत्वाकर्षण शक्ति’’ में इस प्रकार बंधे होते हैं मानो एक सूत्र में पिरोये गए हों और निरंतर अपने केंद्र बिंदु के चारों ओर भ्रमण करते रहते हैं। यही गुरुत्वाकर्षण शक्ति मनुष्य को भी भेदती है और इस प्रकार उनके जीवन को प्रभावित करती है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इस गुरुत्वाकर्षण शक्ति को हजारों-लाखों साल पहले पहचान लिया था और इस शक्ति का मनुष्य के जीवन पर पड़ने प्रभाव को ज्योतिष के माध्यम से दर्शाया भी था।

लेकिन आदिकाल में ज्ञान का आदान-प्रदान श्रुति द्वारा ही एक से दूसरे को किया जाता था। अतः इसमें बहुत संभावनाएं हैं कि एक से दूसरे तक श्रुति द्वारा जाने पर इसमें त्रुटि आ गई हों। दूसरे मध्यकाल में मुगल साम्राज्य रहा है, तदुपरांत अंग्रेजों का शासन रहा है इन दोनों कालों में इतिहास के अनुसार ज्योतिष के ग्रंथों का नाश हुआ। इस कारण अब जो ज्योतिष का ज्ञान उपलब्ध है वह केवल अंश मांत्र है। इसीलिए आज ज्योतिषीय फलादेश पूर्ण रूप से सटीक नहीं बैठत है। इसमें इतनी उथलता आ गई। कि वैज्ञानिकों ने इसको पूर्ण रूप से ढकौसला ही मानना शुरु कर दिया है। जिस प्रकार से आयुर्विज्ञान में निरंतर शोध कार्य हुए हैं और जनमानस का एक चिकित्सक पर विश्वास बढ़ा है। इसी प्रकार ज्योतिष में शोध किया जाये तो जनमानस का इस पर अवश्य ही विश्वास बढ़ेगा और इस महान् विज्ञान को मनुष्य के उद्धार के लिए उपयोग किया जा सकेगा।

कुछ विश्वविद्यालयों में ज्योतिष पर शोध कार्य कराया जाता रहा है। लेकिन अधिकांशत: वह केवल विभिन्न लेखकों का संकलन एवं आलोचनात्मक संकलन मात्र तक ही सीमित रह गया। कहीं भी इस प्रकार के शोधों का विवरण नहीं आता जिसमें कि विभिन्न ज्योतिषीय योगों की प्रमाणिकता पर कार्य किया गया हो। यहां तक कि ज्योतिष के आधार भूत नियमों को ज्यों का त्यों स्वीकार कर फलादेश कर दिया जाता है। जैसे- मंगल को मेष व वृश्चिक का स्वामित्व प्राप्त है, सप्तम भाव विवाह का भाव और पंचम भाव संतान आदि का भाव होता है। हमें चाहिए कि ज्योतिष के आधारभूत नियम, योग एवं उपायों पर शोध कर उनकी शुद्धता की परख कर लेनी चाहिए। जिससे कि आम जनता का विश्वास ज्योतिष पर से न उठे।

ज्योतिष को केवल मनुष्य ही नहीं अपितु प्राकृतिक आपदाओं व मौसम की जानकारी के लिए भी उपयोग में लाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कृषि में ज्योतिष का उपयोग कर मौसम की पूर्व जानकारी देकर विशेष लाभ प्राप्त किया जा सकता है। अखिल भारतीय ज्योतिष शिक्षा संघ ने ज्योतिष पर आधारित अनेकों शोध कार्य किये हैं। जिसके द्वारा कुंडली मिलान, स्वास्थ्य, व्यवसाय, शिक्षा व संतान पर सटीक फलादेश के नियमों को उल्लेखित किया है। वर्षा, शेयर-बाजार, सोना-चांदी (सर्राफा बाजार), गेहूं व तिलहन बाजार में उतार-चढ़ाव का विशेष साॅफ्टवेयर विकसित किया है। इसके द्वारा अग्रिम गणना सटीक रूप में की जा सकती हैं। हमारे द्वारा किये गये कुछ ज्योतिषीय शोधों के परिणाम कुछ इस प्रकार आये हैं। उदाहरण के लिए - क्र हमने 200 ऐसे परिवारों का कुंडली मिलान किया जिनका वैवाहिक जीवन सुखमय चल रहा है और 200 ऐसे परिवारों का कुंडली मिलान किया जिनके दाम्पत्य जीवन में परेशानियां, गृह कलेश की स्थिति बनी हुई है।

इन सभी 400 कुंडलियों पर गहन शोध करने के बाद यह पाया गया कि दोनों समूहों में औसतन गुण मिलान अंक साढ़े इक्कीस थे। क्र गृहस्थ सुख में मंगल का प्रभाव नगण्य रहता है यदि दोनों भावी वर-वधू गैर मांगलिक हैं तो विवाह के पश्चात् उनके अलगाव की संभावनाएं अधिक होती हैं। क्र जिन व्यक्तियों की कुंडली में बुध और शनि दशम भाव में होते हैं ऐसे व्यक्तियों को वैवाहिक जीवन में बाधाआंे का सामना करना पड़ता है। क्र इसी प्रकार सप्तम भाव में मंगल व शनि गृहस्थ सुख में कमी करते हैं। इसके विपरीत राहु-केतु इस भाव में अधिक कष्टकारी नहीं रहते हैं। क्र आजीविका क्षेत्र में किये गये शोध से हमने यह पाया कि डा. बनने के लिए बुध का दशम भाव से संबंध अवश्य होना चाहिए।

क्र जब गोचर में मंगल, शनि एक साथ आते हैं तो वर्षा होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। क्र मंगल, सूर्य के करीब आने पर भी वर्षा अधिक होती है। वर्षा पर की गयी शोध के अनुसार चंद्रमा का वर्षा पर कोई विशेष प्रभाव नहीं होता है। क्र व्यक्ति का जन्म जिस माह में होता है उसी माह में इसके देहांत की संभावनाएं 20 प्रतिशत के करीब होती हैं। क्र ज्योतिषीय योगों के अनुसार एक उम ज्योतिषी बनने के लिए गुरु नवम् भाव में या त्रिकोण में होना चाहिए। क्रयदि गुरु सूर्य से 8-10 अंश आगे हो तो जातक आई.ए.एस. बन सकता है। उपरोक्त शोधों से यह निष्कर्ष निकलता है कि जो योग हम ज्योतिष पुस्तकों में पढ़ते हैं वे योग पूर्णतया फलदायक नहीं होते। यदि इन योगों को आप आज के संदर्भ में बदलते हुए प्रयोग करें जो परिणाम अधिक संतोषजनक मिल सकते हैं।

अक्सर देखा गया है कि योगों को उनके वास्तविक रूप (नियम) में न लेकर, आंशिकरूप में प्रयोग कर लिया जाता है जैसे- गुरु का नवम भाव में होना एक अच्छा ज्योतिषी बनाता है। परंतु इस योग को ज्योतिषी नवम् भाव की जगह त्रिकोण भाव से देखें तो यह योग गलत हो जायेगा। योगों का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए उन्हें उनके वास्तविक (ज्यांे का त्यों) रूप में ही प्रयोग करना चाहिए। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए, संघ ने मेवाड़ विश्वविद्यालय के साथ सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर संविदा ;डव्न्ध्।हतममउमदजद्ध स्वीकार किये हं जिसके तहत संघ भारत व विदेशों में शोध केंद्र खोलेगा और ज्योतिष शोध कार्य करवायेगा।

इसके अंतर्गत ज्योतिष में चार वर्षीय स्नात्कोर (एम.ए.), पी.एच.डी. होगी। जो कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) से मान्य होगी। इसमें प्रवेश पाने के लिए किसी भी विषय में स्नातक होना आवश्यक होगा।



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