भविष्य कथन की पद्वतियां

भविष्य कथन की पद्वतियां  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 16115 | मई 2007

प्रश्न: भविष्य कथन की कौन-कौन सी पद्धतियां देखने या सुनने में आती हैं? संक्षेप में विभिन्न पद्धतियों का उल्लेख करें। कल क्या होगा अथवा भविष्य के गर्भ में क्या है यह जानने की मनुष्य की इच्छा स्वाभाविक है। प्राचीन काल में ऋषियों ने योग-बल से, शोध करके, संसार के लिए ग्रह-नक्षत्रों का ज्ञान सुलभ कर दिया। वे स्वयं तो त्रिकालज्ञ थे ही, संसार के लिए भी इस ज्ञान का प्रकाश फैलाया।

ज्योतिष द्वारा फल कथन वेद चक्षु होने के कारण ज्योतिष विज्ञान वेद के सभी अंगों में श्रेष्ठ माना जाता है। मानव भविष्य के प्रति सदैव उत्सुक रहता है। वह अपने एवं अपने परिजनों व आश्रितों के भावी जीवन के संबंध में ज्यादा से ज्यादा जानकारियां हासिल करना चाहता है।

ज्योतिष शास्त्र में जातक के सभी शुभाशुभ भविष्य फल को उसकी जन्म कुंडली के आधार पर निरूपित किया जाता है। इस हेतु जातक की जन्म तारीख, जन्म समय एवं जन्म स्थान का ज्ञान सही सही होना आवश्यक रहता है।

ज्योतिष शास्त्र के प्रमुख अंग हैं गणित संहिता तथा होरा। तृतीय अंग होरा फलित ज्योतिष से संबंधित है जिसके विविध रूप या भेद जातक, ताजिक, प्रश्न, स्वर, शकुन एवं सामुद्रिक शास्त्र हैं। जैमिनी पद्धति द्वारा भविष्य कथन महर्षि पराशर ने अपने ग्रंथ में जैमिनी पद्धति का भी जिक्र किया है।

संभवतः उनके ही जमाने में महर्षि जैमिनी ऋषि रहे होंगे जो संभवतः जैमिनी पद्धति के सूत्रधार हों, किंतु यह पद्धति अधिक प्रचलित नहीं है। दक्षिण भारत के जाने माने ज्योतिषी ही इस पद्धति का सफलतापूर्वक उपयोग अपने भविष्य कथन में करते रहे हैं। जैमिनी ज्योतिष पद्ध ति पाराशरी ज्योतिष पद्धति से भिन्न है। किंतु जो ज्योतिषी जैमिनी पद्धति के पहलुओं के उपयोग के अभ्यस्त हैं तथा पाराशरी और जैमिनी पद्धति के समन्वय से फलित करते हैं उन्हें आशातीत परिणाम प्राप्त होते हैं।

मेदिनीय ज्योतिष इस ज्योतिष में 27 नक्षत्रों को तीन सिंहासन त्रिभुजों में बांटा जाता है- अश्वपति चक्र, नरपति चक्र और गजपति चक्र। इस ज्योतिष द्वारा राजाओं के राज्य शासन की आयु गणना एवं जनता से संबंध की विस्तृत व्याख्या की जाती थी। अब इसका प्रयोग सरकार की आयु गणना आदि में किया जाता है। फलित ज्योतिष के स्वर विज्ञान भारतीय ज्योतिष के फलित निर्णय में अनेक पद्धतियां और दशा पद्धतियां प्रचलित होने तथा लघु पाराशरी सिद्धांत आदि के जटिल एवं पेचीदा होने के फलस्वरूप उत्पन्न कठिनाइयों को ध्यान में रख कर दैवज्ञों ने स्वर शास्त्र की रचना की जिसे ‘स्वर विज्ञान ज्योतिष’ कहते हैं।

यद्यपि स्वर शास्त्र की रचना युद्ध में राजाओं को विजय दिलाने के उद्देश्य से की गई थी किंतु सर्वसाधारण के लिए भी इसकी उपयोगिता निःसंदिग्ध है। स्वर विज्ञान की पद्धति इतनी सरल और सूक्ष्म है कि एक सामान्य व्यक्ति भी अपने जीवन की संपूर्ण समस्याओं का समाधान ढूंढ सकता है। जहां पाराशरी और जैमिनी आदि पद्धति किसी जातक के भविष्य कथन में असफल हो जाती हैं वहां स्वर शास्त्रीय ज्योतिष हमारे जीवन पथ को दीपशिखा की भांति आलोकित करने की क्षमता रखता है।

स्वर विज्ञान का आधार पांच स्वर (आ, इ, उ, ए, ओ) हैं एवं अवस्थाएं बाल, युवा, वृद्ध और मृत हैं। इन्हीं आधारों पर स्वर विज्ञान की विशाल इमारत खड़ी है। इसके अतिरिक्त स्वर विज्ञान में आठ स्वर चक्र प्रमुख हैं, जो स्वर ज्योतिष को गति प्रदान करते हैं।

वे स्वर चक्र हैं- मात्रा, वर्ण, ग्रह, जीव, राशि, नक्षत्र, पिंड और योग। इन आठ स्वर चक्रों के साथ आठ काल खंड (द्वादश संवत्सर, संवत्सर, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, तिथि और घटी) हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने वर्ण, मात्रा, जीव, पिंड आदि स्वरों के अनुसार शुभाशुभ फलों का निर्णय कर सकता है। स्वर विज्ञान न केवल दिनचर्या के लिए मार्ग दर्शक है वरन मुहूर्त ज्योतिष एवं प्रश्न ज्योतिष में भी इसकी उपादेयता निःसंदिग्ध है।

प्रश्न शास्त्र द्वारा भविष्य कथन अधिकांश लोगों को अपनी सही जन्म तारीख एवं जन्म समय की जानकारी नहीं रहती। ऐसे लोगों की उलझनों को सुलझाने में, समस्याओं को हल करने में और उनका भविष्य फल बताने में प्रश्न शास्त्र मददगार साबित हो सकता है। इस पद्धति म ंे प्रश्न पछू न े क े समय का े माध्यम बनाया जाता है।

प्रश्नकालिक लग्न निकालकर इस पद्धति में जातक विषयक पूर्ण शुभाशुभ फल विवेचन ठीक उसी प्रकार से किया जाता है जिस प्रकार ज्योतिष के जातक शास्त्र में। इसका स्पष्ट उल्लेख ‘प्रश्न-मार्ग’ में मिलता है जिसमें कहा गया है कि भविष्य फल कथन में उन्हीं शास्त्रीय सिद्धांतों का विचार प्रश्न शास्त्र में भी किया जाना चाहिए जिनका विचार जातक शास्त्र में किया जाता है।

जातक शास्त्र की गणितीय प्रक्रियाएं अत्यधिक लम्बी एवं श्रमसाध्य होती हैं, जिनमें अधिक समय लगता है- चाहे वे विंशोŸारी महादशाएं हों अथवा अंतर्दशाएं, प्रत्यंतर्दशाएं षडवर्ग या अष्टकवर्ग साधन आदि। प्रश्न शास्त्र में गणित ग्रह स्पष्ट एवं लग्न साधन करने के लिए ही करना पड़ता है, जिसमें समय और श्रम थोड़ा लगता है। प्रश्न शास्त्र में विषय विभाजन के आधार पर अल्प समय में ही शुभाशुभ फल विवेचन विभिन्न योगों का सहारा लेकर किया जाता है।

प्रश्न के माध्यम से क्रय-विक्रय, खोई या नष्ट वस्तु, चोर व चोरी गई वस्तु, विद्या में सफलता या असफलता, द्वंद्व, प्रवास, मूक-प्रश्न, देवादि दोष ज्ञान, कार्य की सिद्धि-असिद्धि, रोग-वृद्धि, रोग नाश, धन की प्राप्ति या अप्राप्ति, भूमि-आवास, संपŸिा, कृषि कार्यों से लाभालाभ आदि अनेक तात्कालिक व महत्वपूर्ण प्रश्नों के उŸार आसानी से दिए जा सकते हैं। केरलीय विधि में प्रश्न के आद्यक्षर के आधार पर प्रश्न फल का विचार किया जाता है।

इसके अतिरिक्त पृच्छक के द्व ारा बताए गए फल या फूल अथवा किसी नदी या देवता के नाम से भी भविष्य फल निकाला जाता है। प्रश्न विद्या, प्रश्न चंडेश्वर, प्रश्न भूषण, प्रश्न शिरोमणि, आर्या सप्ततिः, भुवन दीपक, षट्पंचाशिका, त्रैलोक्य प्रकाश आदि प्रश्न फल विवेचन के महत्वपूर्ण एवं अनुपम ग्रंथ हैं। ‘दैवज्ञ-वल्लभा’ आचार्य वराह मिहिर का प्रश्न फल विषयक महत्पूर्ण ग्रंथ है जो अभूतपूर्व माना गया है इस ग्रंथ की रचना के बाद से ही प्रश्न शास्त्र का भारतीय फलित ज्योतिष की स्वतंत्र कड़ी या शाखा के रूप में विकास हुआ।

‘ताजिक-नीलकंठी’ ग्रंथ के अनुसार जो दैवज्ञ अर्थात भविष्य फल-कर्ता भक्त, दुखी, दीन-हीन पृच्छक के प्रश्न का उŸार नहीं देता उसका ज्ञान विफल हो जाता है। यह भी कहा गया है कि नीच प्रकृति वाले पाखंडी, अश्रद्ध ावान, धूर्त या ठग और उपहास करने वाले पृच्छकों के प्रश्न का उŸार कभी भी ठीक नहीं हो सकता चाहे बताने वाले स्वयं भगवान शंकर ही क्यों न हों।

सामुद्रिक शास्त्र द्वारा फल कथन भविष्य कथन पद्धति में हस्त-रेखा विद्या काफी महत्वपूण्र् ा है। भारतीय ज्योतिष पद्धति के अंतर्गत सामुद्रिक विद्या का आख्यान बृहद रूप में प्राप्त होता है। इस विद्या के आविष्कारक समुद्र ऋषि थे, अतः इसे सामुद्रिक शास्त्र कहते हैं। हस्त रेखा द्वारा भविष्य फल बतलाने वाली विद्या बहुत ही वैज्ञानिक एवं प्रामाणिक है। इस विद्या के सूक्ष्म और गंभीर अध्ययन करने वाले ही जातक के भविष्य का सही फल कथन करने में सफल होते हैं। सामुद्रिक शास्त्र में हथेली के ऊपर ग्रह स्थापित किए गए हैं।

राहु व केतु को छोड़ हर ग्रह का हथेली पर एक निश्चित स्थान रहता है जिसका उभार ग्रह पर्वत कहलाता है। इस सामुद्रिक विद्या में शरीर की ऊंचाई के मान का शरीर के वजन का कदम रखने के ढंग का, शारीरिक अवयवों का, कपालस्थ भेद, सप्त रसादि के सार का हाथ-पैरों का, नाखूनों की उन्नत-अवनत व दीप्त-अदीप्त स्थिति आदि को देखकर शुभाशुभ का आकलन किया जाता है।

इस विद्या को शारीरिक अंग लक्षण विज्ञान भी कहा जाता है। इसके सिद्धांत सूत्रों के आधार पर जातक के अंग-प्रत्यंग व हस्तावलोकन के जरिए उसके शुभाशुभ, लाभालाभ, सुख-दुखादि विभिन्न बातों का ज्ञान विदित हो जाता है। इन पर्वतों के बुरे भले गुणों से ग्रह के शुभाशुभ प्रभावों का पता भी चलता है और उसी के अनुसार भविष्य फल का विवेचन किया जाता है। हाथ में कई प्रकार के चिह्न भी पाए जाते हैं जिनका भविष्य फल कथन में बहुत महत्व होता है।

उंगली के ऊपरी पोर में शंख चिह्न हो, तो व्यक्ति पराक्रमी, दो शंख हों, तो संन्यासी, तीन हों, तो धूर्Ÿा, चार हों, तो फक्कड़ या दरिद्र और पांच हों, तो सम्माननीय होता है। तर्जनी में चक्र के चिह्न वाला जातक प्रतापी होता है। अन्य उंगलियों में चक्र के चिह्न वाला व्यक्ति भ्रमणशील होता है। चारों उंगलियों में एक एक शंख, चक्र, गदा और पद्म और अंगूठे में यव हो, तो जातक देवतुल्य पूजनीय होता है।

भविष्यवक्ता स्त्रियों के बायें एवं पुरुषों के दायें कर तल का अवलोकन करते हैं। आवश्यकता के अनुरूप हस्त रेखाविद् दोनों हाथों की रेखाओं को देखकर भविष्य फल सुनिश्चत करते हैं। अंक ज्योतिष से भविष्य कथन अंक ज्योतिष के आधार पर भी जातक का सटीक भविष्य फल बतलाया जा सकता है। भविष्य कथन में अंकों का अपना विशेष महत्व है। भविष्य कथन की इस पद्धति से कम समय में कम मेहनत से सटीक एवं जीवनोपयोगी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

अंक ज्योतिष में तीन अंकों का विशेष महत्व है- नामांक, मूलांक तथा और भाग्यांक। अंक ज्योतिष में 1 से 9 तक के मूलांक होते हैं। जातक का जन्म दिनांक उसका मूलांक होता है। यदि किसी की लाल किताब द्वारा भविष्य कथन लाल किताब पद्धति सुगम एवं सटीक ज्योतिषीय पद्धति है। इस पद्धति में फलित एवं उपायों को अधिक महत्व दिया जाता है। इस पद्धति में ग्रह शांति के प्रयास, उपाय आदि दिन में करने का विधान है, परंतु इसके लिए किसी विशेष दिन आदि का विचार नहीं किया जाता।

इस पद्धति में सत्यता, शुद्धता और सात्विक भोजन पर जोर दिया गया है। इसके सरल उपायों के कारण अत्यंत लोकप्रिय है। लाल किताब में वर्ष कुंडली का विशेष महत्व है, परंतु वर्ष कुंडली बनाने की प्रक्रिया बिल्कुल भिन्न होती है। इसमें विगत वर्ष के अनुसार ग्रहों को एक खाने से दूसरे खाने में दर्शा दिया जाता है।

वर्ष-पत्री के शुभाशुभ ग्रह वर्ष विशेष में समग्र रूप से असर डालते हैं। वर्ष-पत्री के अशुभ ग्रहों की शांति के उपाय जन्म तिथि से 43 दिनों के अंदर कर लेने चाहिए। लाल किताब की लोकप्रियता पंजाब में अधिक है। इस पद्धति में भावों को खाने का नाम दिया गया है, इसमें राशियों को नहीं लेते। सिर्फ लग्न चक्र बनाकर राशि के अंक मिटाकर बारह तक के खाना नंबर लिख दिए जाते हैं।

इस प्रकार यह मालूम पड़ जाता है कि ग्रह किस खाने या भाव में बैठा है। उसी के अनुसार भविष्य फलादेश कर सकते हैं। इस पद्धति में अशुभ ग्रहों की शांति एवं शुभ ग्रहों के शुभत्व में वृद्धि के उपायों को टोटकों की संज्ञा दी गई है। वर्तमान समय प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है क्योंकि ये काफी कारगर होते हैं, और सुगम एवं सस्ते होते हैं। ताश के पŸाों द्वारा भविष्य कथन ताश के पŸाों से भविष्य कथन एक अद्भुत पद्धति है। ताश के ये बावन पŸो अपने आप में कुछ रहस्यात्मक संदेश भी समेटे होते हैं यह जानकर साधारण जनों को आश्चर्य होता है।

हुकुम, लालपान, ईंट एवं चिड़ी के अलग-अलग अर्थ होते हैं, जिन्हें सेवन सिस्टर्स विधि और धन चिह्न विधि के द्वारा भविष्य कथन के संदर्भ में समझा जा सकता है। ताश की गड्डी को तीन बार फेंटकर उन्हें तीन बराबर समूहों में बांटकर तीन पŸाों के साथ समूह बनाकर उनसे भविष्य कथन किया जाता है।

रमल ज्योतिष के पासों से भविष्य कथन अरबी ज्योतिष की विद्या को रमल पद्धति के नाम से या रमल ज्योतिष के नाम से जाना जाता है। प्राचीन समय में अरब के लोग अपना भविष्य जानने के लिए रेत पर बिंदु तथा लकीरें बनाकर गणना किया करते थे। चूंकि इस विद्या का माध्यम बालू या रेत हुआ करता था इस कारण यह अरबी भाषा में रमल कहलाई। अरबी में रमल का अर्थ रेत होता है।

कालांतर में रेत पर खींचे जाने वाले बिंदुओं और लकीरों के स्थान पर लकड़ी या पत्थरों के बने पासों का प्रयोग किया जाने लगा। अब पेंसिल, शलाका अथवा उंगली रखकर प्रश्न का हल ढूंढ लिया जाता है। रमल ज्योतिष में विविध बिंदुओं और रेखाओं के मेल-मिलाप से सोलह शक्लों का निर्माण होता है।

इन शक्लों के आधार पर सोलह वर्गों वाला नख्श तैयार कर स्नान आदि से निवृŸा होने के उपरांत अपने इष्टदेव का स्मरण करते हुए आंख बंद कर नख्श में उंगली रखकर प्रश्न फल का विचार किया जाता है। इस पद्धति में विवाह, पुत्र, कन्या बाबत प्रश्न, किस रोजगार से लाभ, परदेश गमन, में लाभ या हानि, मोहब्बत का इजहार, बंदी मुक्ति (कैदी की रिहाई), गड़े धन, मुकदमे आदि से संबंधित प्रश्नों के हल ढूंढे जाते हैं।

टैरो कार्ड पद्धति से भविष्य कथन आज के इस वैज्ञानिक युग में भारत सहित विश्व के कई देशों में टैरो कार्ड पद्धति से भविष्य फल जानने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। भारतीय ज्योतिष पद्धति, पाश्चात्य ज्योतिष प्रणाली, अंक ज्योतिष आदि की ही तरह इसके भी कुछ सिद्धांत हैं। इस पद्धति से भविष्य फल कथन कर्ता के लिए पूर्ण रूपेण अभ्यास की आवश्यकता होती है।

वैकल्पिक भविष्य पद्धति की इस विधा में कार्डों की सहायता से, जिनकी गिनती 78 होती है, भविष्य फल का विवेचन किया जा सकता है। टैरो पद्धति का कोई एक कार्ड अर्केनम कहलाता है तथा बहुतेरे कार्डों को अर्केना के नाम से जाना जाता है। लैटिन भाषा के अर्केनस शब्द से अर्केनम की उत्पŸिा हुई जिसका अर्थ है गुप्त भेद अर्थात छिपाकर रखी गई बात। इस तरह यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि टैरो कार्ड जातक के भविष्य के रहस्य को उजागर करने वाले कार्ड हैं।

टैरो विद्या का आरंभ कहां से हुआ यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है। किसी के अनुसार 15वीं शताब्दी में यह विद्या इटली में आरंभ हुई तो किसी और के अनुसार मिश्र और यूनान इसके उत्पत्ति स्थल हैं। वहीं कुछ लोग इसे चीन की ‘‘आई चिंग’’ नामक विद्या से हैं। बहरहाल माना जाता है कि बीसवीं सदी के आरंभ में ही टैरो विद्या के निश्चित सिद्धांत बन चुके थे।

टैरो कार्ड पद्धति द्वारा किसी भी जातक के स्वभाव, उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति, उसका अच्छा या बुरा समय, कार्य की सफलता-असफलता आदि बातों या प्रश्नों के समाधान की जानकारी प्राप्त हो सकती है। 0 से 21 नंबर तक के 22 कार्ड प्रधान टैरो कार्ड कहलाते हैं तथा 22 कार्ड से 77 नंबर तक के 56 कार्ड गौण या साधारण कार्ड कहलाते हैं।

भारत में जिन टैरो कार्डों का प्रचलन है उन्हें इंडियन टैरो कार्ड्स कहते हैं। वैसे तो सभी 78 कार्डों से भविष्य फल निकाला जा सकता है, परंतु प्रधान समूह के 0 से 21 तक के 22 कार्डों से भविष्य फल कथन की ही परिपाटी है। जातक के भविष्य पूछने के पहले कार्डों की गड्डी को ताश की तरह फेंट लिया जाता है और उस गड्डी में से एक, तीन, पांच या ग्यारह कार्ड जातक से निकलवाकर उन चयनित कार्डों के आधार पर टैरो कार्ड विशेषज्ञ भविष्य फल कथन करता है।

भावी ज्ञान अर्थात गुप्त विद्या पद्धति द्वारा भविष्य कथन गुप्त विद्या पद्धति में मूलतः 30 प्रश्नों का प्रावधान रहा है, किंतु आगे चल कर इसमें 8 नवीन प्रश्न जोड़ लिए गए। इस पद्धति में प्रश्न करने से पूर्व जातक को अपने मन को शांत और एकाग्र करना पड़ता है, उसे अपने मन एवं अंतरात्मा में ईश्वर का स्मरण करते हुए गद्गद् होकर आर्Ÿा स्वर में स्पष्ट शब्दों में उच्चारण करना पड़ता है।

इस पद्धति में एक ‘तीसा-यंत्र’ होता है, जो निम्नानुसार है। ‘तीसा-यंत्र’ के किसी कोष्ठक में उंगली रखें, ध्यान रहे उंगली ¬ के कोष्ठक में न पड़े। जिस कोष्ठक में उंगली पड़े उसके अंक में भाग्यांक को जोड़ देने से जो संख्या प्राप्त होगी उस संख्या से जुड़े प्रश्न का उŸार मिलेगा। भाग्यांक को प्रश्न की संख्या में जोड़ने से योगफल 30 से अधिक हो, तो उसमें से 30 घटाकर, शेष संख्या के प्रश्न की बायीं ओर लिखे चक्र के नीचे व भाग्यांक के सामने

अंक 4: संचित धन योजनाएं, लकड़ी तत्व, दक्षिण-पूर्व दिशा।

अंक 5: पृथ्वी तत्व, योजना, ब्रह्म स्थल (घर का मध्य भाग)

अंक 6: उŸार-पश्चिम दिशा, सुनहरी धातु, व्यापारिक अवसर, मददगार लोग, ईश्वरी शक्ति।

अंक 7: उŸार-पूर्व दिशा, स्मरण शक्ति, स्थिरता, पूर्णता, पृथ्वी।

अंक 9: दक्षिण दिशा, अग्नि तत्व, मान सम्मान आदि का प्रतीक है।

शुभाशुभ के ज्ञान द्वारा भविष्य कथन लोकमानस में शुभ एवं अशुभ मान्यताओं को लेकर अलग-अलग धारणाएं होती हैं। शकुन, अपशकुन, स्वप्न फल विचार, अंग-स्फुरण आदि को लेकर मन में अनेक शंकाएं उत्पन्न हो जाती हैं।

स्वप्न फल विचार स्वप्नों के विश्लेषण से जीवन में होने वाली घटनाओं के फलों की जानकारी मिलती है। शरीर में विभिन्न स्थानों पर तिल, यात्रा पर जाते समय शुभ-अशुभ शकुन, छिपकली के गिरने, अंग स्फुरण आदि के अलग-अलग फल होते हैं।

रामशलाका एवं अन्य प्रश्नावलियां श्री रामशलाका प्रश्नावली, श्री भैरव भविष्य ज्ञान प्रश्नावली, बŸाीसा यंत्र, गर्भिणी प्रश्न, नक्षत्र प्रश्नावली आदि विभिन्न प्रश्नावलियों के आधार पर भी भविष्य कथन की परंपरा रही है। ये प्रश्नावलियां हमारे ऋषि मुनियों से प्राप्त हमारी धरोहर हैं।

हस्तलिपियों एवं लेखन शैली द्वारा भविष्य ज्ञान जिस प्रकार एक व्यक्ति की हस्तरेखाएं किसी दूसरे व्यक्ति की हस्तरेखाओं से नहीं मिलती उसी प्रकार एक व्यक्ति की हस्तलिपि एवं भाषा शैली भी किसी दूसरे व्यक्ति की हस्तलिपि व भाषा शैली से नहीं मिलती। विभिन्न लग्न, राशियां और उन राशियों में स्थित ग्रह व्यक्ति की हस्तलिपियों एवं भाषा शैलियों को प्रभावित करते हैं।

जातक का तृतीय भाव एवं तृतीयेश की स्थिति दोनों जहां उसकी हस्तलिपि को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं वहीं पंचमेश एवं पंचम में स्थित ग्रहों का प्रभाव उसकी भाषा एवं लेखन शैली पर पड़ता है। इन स्थितियों और वह जिस स्याही का उपयोग करता है उसके आधार पर भविष्य कथन किया जाता है।

चीनी ज्योतिष और फेंगशुई द्वारा भविष्य कथन चीनी ज्योतिष के अनुसार 12 वर्षों का एक चक्र होता है। इस चक्र के अनुसार जातक का एक सांकेतिक चिह्न होता है। इसी चिह्न को आधार मानकर घर के उन हिस्सों का पता लगाया जा सकता है, जिनका प्रभाव जातक अथवा परिवार के किसी सदस्य पर रहता है। उनका उपाय करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

क्रमानुसार 12 वर्षों के देवताओं को चुना गया है और उन्हीं के नाम पर इन वर्षों के नाम रखे गए हंै जो इस प्रकार हैं- चूहा वर्ष, बैल वर्ष, बाघ वर्ष, खरगोश वर्ष, ड्रेगन वर्ष, सर्प वर्ष, अश्व वर्ष, भेड़ वर्ष, बंदर वर्ष, मुर्गा वर्ष, श्वान वर्ष और शूकर वर्ष। डाउजिंग द्वारा भविष्य कथन अठारहवीं शताब्दी में अनेक देशों में डाउजिंग से भविष्य कथन करने का रिवाज था। डाउजिंग के आधार पर किसी व्यक्ति के रोग के बारे में जाना जा सकता है। आधुनिक युग में बहुत से चिकित्सक भी इसकी सहायता लेते हैं।

निकट भविष्य में होने वाली घटनाओं को विशेष प्रकार से रचित प्रश्नों और कार्डों के आधार पर डाउजिंग के माध्यम से जाना जा सकता है। स्वप्न ज्योतिष व्यक्ति का मन जब भी आत्मा से जुड़ जाता है तो उसे सूक्ष्म जगत के घटनाक्रम का बोध हो जाता है और ऐसे सपने सच होते हैं। सपनों का संबंध हमारे अंतर्मन से है, जो सूक्ष्म व स्थूल जगत से लगातार संपर्क रखता है।

यदि व्यक्ति यथासंभव नियमपूर्वक जीवन-यापन करे, तो उसे स्वप्न द्वारा ही भविष्य की कई गुत्थियां सुलझाने में मदद मिल सकती है। भृगु संहिता द्वारा भविष्य कथन भृगु संहिता एक अत्यंत लोकप्रिय आर्ष ग्रंथ है। कहा जाता है कि इसमें संसार के प्रत्येक मनुष्य की जन्मकुंडली निहित है। इसके आधार पर फल कथन करने में ज्योतिषी का कार्य जातक या जातका की जन्म-पत्री ढूंढकर पढ़ना मात्र है जो बहुत आसान है।

नंदी नाड़ी द्वारा भविष्य कथन नंदी नाड़ी ज्योतिष में पुरुष के दायें एवं महिला के बायें हाथ के अंगूठे की छाप लेकर नाड़ी रीडर चार-पांच ताड़पत्र की गड्डियां जातक के समक्ष रखता है और उसके नाम का प्रथम या अंतिम अक्षर पूछता है।

मिलान होने पर इसी ताड़पत्र से अगले प्रश्न पूछे जाते हैं अन्यथा दूसरे ताड़पत्र का प्रयोग किया जाता है। क्रिस्टल बाॅल द्वारा फल कथन क्रिस्टल बाॅल से भूत, वर्तमान और भविष्य देखने की विधि प्राचीन काल से ही चली आ रही है।

क्रिस्टल बाॅल पर ध्यान केंद्रित हो जाने से मस्तिष्क पर सभी प्रकार की घटनाओं के चित्र स्पष्ट होने लगते हैं। स्वर विज्ञान से भविष्य कथन प्राचीन काल में स्वर विज्ञान से भी फल कथन किया जाता था। इसका आधार श्वास-प्रवाह (स्वर) को बनाया जाता है।

मृत आत्मा आवाहन द्वारा भविष्य कथन मनुष्य के लिए कोई भी कार्य कठिन नहीं है। विदेशों में अधिसंख्य व्यक्ति मृतात्मा साधना करके उनका आवाहन कर भविष्य कथन करते हैं। व्यक्ति के आवाहन करने पर कई मृत आत्माएं उसे विलक्षण, भविष्य से अवगत कराती हैं।

न्यूयाॅर्क शहर के कैट्स केट्स किल माउंटेन क्षेत्र में रहने वाला डेनियल लोगेन एक अद्भुत प्रतिभा संपन्न व्यक्ति था जो मृतात्माओं से बात करके भविष्य की होने वाली घटनाओं से लोगों को अवगत कराता था।

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