क्या करें कि हम पितृ दोष एवं पितृ ऋण से मुक्त हों

क्या करें कि हम पितृ दोष एवं पितृ ऋण से मुक्त हों  

अंजली गिरधर
व्यूस : 4605 | सितम्बर 2016

सर्वप्रथम परिजनों को घर में भागवत कथा, गीता पाठ करना चाहिए। ऐसा समय-समय पर होता रहे तो परिवार में शांति बनी रहती है। प्रत्येक अमावस्या को पितर लोक का मध्याह्न होता है जब सूर्य चंद्र एक साथ होते हैं अर्थात दोनों एक ही अंश पर होते हैं उस दिन अमावस्या होती है। अमावस्या वाले दिन ब्राह्मणों को विधि-विधान से आदर सहित भोजन व दक्षिणा देनी चाहिए। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देकर ही जाते हैं क्योंकि प्रत्येक अमावस्या को पितृ लोक से पितर पृथ्वी पर अपने घर परिजनों के पास एक आस लेकर आते हैं।

जब हम ब्राह्मण को कुछ देते हैं तो वो पितरों को समर्पित करने का मंत्र पढ़ता है उसके बाद ग्रहण करता है इस प्रकार हमारा दिया हुआ दान हमारे पूर्वजों तक पहुंच जाता है। जब भी श्राद्ध आये, वे वर्ष में दो बार आते हैं तब हमें अपने पितरों की शरीर त्यागने वाली तिथि पता करके विधिनुसार श्राद्ध कर्म, तर्पण, दान आदि अवश्य करना चाहिए अन्यथा पितर नाराज होकर श्राप देकर चले जाते हैं। पितृ दोष निवारण की एक अन्य विधि के अनुसार परिवार जन सब मिलकर श्रद्धापूर्वक नियमबद्ध होकर यदि विधि विधान से 90 दिन का पितृ दोष, पितृ ऋण निवारक उपाय करें तो उत्तम परिणाम प्राप्त होते हैं।


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यह अमावस्या या शनिवार की संध्या के पश्चात आरंभ किया जाता है। परिवार के सभी सदस्य मिलकर संध्या के पश्चात एक समय का नियम बनायंे। एक लकड़ी की चैकी पर काला वस्त्र बिछाकर उस पर काली उड़द की दाल की ढेरी बनायें। उस ढेरी पर पितृ दोष नाशक, कनकधारा यंत्र स्थापित करें। इस पर रोज लाल या पीले गुलाब चढ़ायें। परिवार के सभी सदस्य काली हकीक माला से एक या तीन माला रोज निम्न मंत्र का जाप करें। मंत्र: ऊँ वं श्रीं वं ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं कनक धारायै स्वाहा।’’ 90 दिन पश्चात सभी सामग्री काले वस्त्र में बांधकर माला सहित बहते जल में प्रवाहित करें।

जल प्रवाह संभव न हो तो गड्ढा खोदकर एकांत स्थान पर दबा दें। यदि यह भी संभव न हो तो मंदिर में सभी सामग्री रख आयें। 90 दिन में एक भी दिन न छोड़ें। सभी सदस्य न कर पायें तो एक सदस्य पुत्र या पुत्रवधू नियम से करे तभी शुभ फलों की प्राप्ति होगी। अनेक विधियों द्वारा पितरों की शांति की जाती है। पितरों को शांत करने के लिए पितरों का पिंड दान का सबसे बड़ा स्थान ‘गया जी’ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि गया जी में पितरों का पिंडदान करने से फिर प्रतिवर्ष पिंड दान की आवश्यकता नहीं पड़ती। पितरों के लिए जो भी कार्य करें पूर्ण श्रद्धा के साथ करें।


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