पितृ दोष: समस्या और समाधान

पितृ दोष: समस्या और समाधान  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 6249 | सितम्बर 2016

जन्मपत्री का नवम भाव भाग्य भाव कहलाता है। इसके अतिरिक्त इस भाव से पिता और पूर्वजों का विचार भी किया जाता है। धर्म शास्त्रों में यह मान्यता है कि पूर्व जन्म के पापों के कारण पितृ दोष का निर्माण होता है। व्यक्ति का जीवन सुख-दुःख से मिलकर बना होता है। किसी न किसी रुप में दुःख व्यक्ति के सदैव साथ बने रहते हैं। इस संसार में कोई भी व्यक्ति पूर्णतः सुखी नहीं है। कभी संतानहीनता, कभी नौकरी में असफलता, धन हानि, परिवारिक तनाव और कभी उन्नति न होने के कारण व्यक्ति को दुःख अपने प्रभाव में लिए रहते हैं। पितरों से अभिप्राय व्यक्ति के पूर्वजों से है। ऐसे पितर जो आज हमारे मध्य नहीं हंै। अपनी अधूरी इच्छाओं, मोहवश या असमय मृ्त्यु को प्राप्त होने के कारण प्रेत लोक में भटक रहे हैं अर्थात जिन्हें किन्हीं कारणों से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई है, उन सभी आत्माओं की शान्ति के लिए पितृ दोष शान्ति के उपाय किए जाते हैं। पितृ दोष के ज्योतिषीय योग जन्म कुंडली से पितृ दोष की पहचान कैसे कि जाये? जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव पर सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का योग हो तो जातक पितृ दोष से पीड़ित होता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके ही अशुभ फल घटित होते हैं।

प्रथम भाव में सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि आदि अशुभ योग हों तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से पीड़ित होता है। दूसरे भाव में यह योग बने तो परिवार में वैमनस्य व आर्थिक उलझनें बनी रहती हैं। चतुर्थ भाव में पितृ दोष के कारण भूमि, मकान, माता-पिता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं। पंचम भाव में उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत हैं। सप्तम भाव में यह योग वैवाहिक सुख में, नवम में भाग्योन्नति में बाधाएँ देता है। दशम भाव में पितृ दोष हो तो नौकरी या कार्य व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं। सूर्य यदि नीच में होकर राहु या शनि के साथ युति संबंध बना रहा हो तो पितृदोष अधिक होता है। किसी कुंडली में लग्नेश ग्रह यदि दुःस्थान (6, 8 या 12वें भाव) में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है। पितृयोग कारक ग्रह पर यदि त्रिक (6, 8,12) भावों के स्वामी की दृष्टि अथवा युति का संबंध भी हो जाए, तो अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि आदि अनिष्ट फल होते हैं। चंद्र राहु, चंद्र केतु, चंद्र बुध, चंद्र शनि आदि योग भी पितृ दोष की भाँति मातृ दोष कहलाते हैं।

इनमें चंद्र-राहु एवं सूर्य-राहु योगों को ग्रहण योग तथा बुध-राहु को जड़त्व योग कहते हैं। इन योगों के प्रभावस्वरूप भी भावेश की स्थिति अनुसार ही अशुभ फल प्रकट होते हैं। सामान्यतः चन्द्र-राहु आदि योगों के प्रभाव से माता अथवा पत्नी को कष्ट, मानसिक तनाव, आर्थिक परेशानियाँ, गुप्त रोग, भाई-बंधुओं से विरोध, अपने भी परायों जैसे व्यवहार रखें आदि फल घटित होते हैं। दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो, इसका राहु से दृष्टि या योग आदि का संबंध हो तो भी पितृदोष होता है। यदि आठवें या बारहवें भाव में गुरु-राहु का योग और पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तो पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान सुख में कमी रहती है। अष्टमेश पंचम भाव में तथा दशमेश अष्टम भाव में हो तो भी पितृदोष के कारण धन हानि अथवा संतान के कारण कष्ट होते हैं। यदि पंचमेश राहु के साथ त्रिक भावों में हो तथा पंचम में शनि आदि क्रूर ग्रह हों तो भी संतान सुख में कमी होती है। इस प्रकार राहु अथवा शनि के साथ मिलकर अनेक अनिष्टकारी योग बनते हैं, जो पितृ दोष की भाँति ही अशुभ फल प्रदान करते हैं। बृहत्पाराशर होरा शास्त्र में कुंडली में इस प्रकार के शापित योग कहे गए हैं।

इनमें पितृ दोष श्राप, भ्रातृ श्राप, मातृ श्राप, प्रेम श्राप आदि योग प्रमुख हैं। अशुभ पितृदोषों/योगों के प्रभाव स्वरूप जातक के स्वास्थ्य की हानि, सुख में कमी, आर्थिक संकट, आय में बरकत न होना, संतान कष्ट अथवा वंशवृद्धि में बाधा, विवाह में विलम्ब, गुप्त रोग, लाभ व उन्नति में बाधाएं, तनाव आदि अशुभ फल प्रकट होते हैं। यदि किसी जातक की जन्म कुंडली सूर्य-राहु, सूर्य-शनि आदि योगों के कारण पितृ दोष हो, तो उसके लिए नारायण बलि, नाग पूजा अपने दिवंगत पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्रह्म भोज, दानादि कर्म करवाने चाहिए।


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पितृदोष निवारण उपाय

- पितृदोष निवारण के लिए अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर सम्मानित करना चाहिए।

- पूर्वजों की मृत्यु तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान, पितृ तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करने चाहिए।

- जीवित माता-पिता एवं भाई-बहनों का भी आदर-सत्कार करना चाहिए।

- प्रत्येक अमावस्या को अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर कच्ची लस्सी, गंगाजल, थोड़े काले तिल, चीनी, चावल, जल, पुष्पादि चढ़ाते हुए ऊँ पितृभ्यः नमः मंत्र तथा पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ होगा।

- प्रत्येक संक्रांति, अमावस्या एवं रविवार को सूर्य देव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगाजल, शुद्ध जल डालकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अघ्र्य दें।

- श्राद्ध के अतिरिक्त इन दिनों गायों को चारा तथा कौए, कुत्तों को दाना एवं असहाय एवं भूखे लोगों को भोजन कराना चाहिए।

- हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है।

- इस धर्म में, ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अघ्र्य समर्पित करते हैं।

- यदि किसी कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते हैं जिसे ‘श्राद्ध’ कहते हैं।

- प्रतिदिन ‘‘सर्प सूक्त” का पाठ भी कालसर्प योग में राहत देता है।

- ऊँ नमः शिवाय मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप करें, नाग पंचमी का व्रत करें, नाग प्रतिमा की अंगूठी पहनें। कालसर्प योग यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर नित्य पूजन करें। घर एवं दुकान में मोर पंख लगायें।

- ताजी मूली का दान करें। मुट्ठी भर कोयले के टुकड़े नदी या बहते हुए पानी में बहायें।

- सवा लाख महामृत्युंजय जप एवं राहु केतु के जप, अनुष्ठान आदि योग्य विद्धान से करवाने चाहिए।

- नारियल का फल बहते पानी में बहाना चाहिए। बहते पानी में मसूर की दाल डालनी चाहिए।

- पक्षियों को जौ के दाने खिलाने चाहिए।

- शिव उपासना एवं रूद्र सूक्त से अभिमंत्रित जल से स्नान करने से यह योग कम हो जाता है।

- सूर्य अथवा चन्द्र ग्रहण के दिन सात अनाजों से तुला दान करें।

- 72000 राहु मंत्र ‘‘ऊँ रां राहवे नमः” का जप करने से काल सर्प योग शांत होता है।

- राहु एवं केतु के नित्य 108 बार जप करने से भी यह योग शान्त होता है।

- राहु माता सरस्वती एवं केतु श्री गणेश की पूजा से भी प्रसन्न होते हैं।

- पुष्य नक्षत्र में महादेव पर जल एवं दुग्ध चढ़ाएं तथा रूद्र का जप एवं अभिषेक करें।

- हर सोमवार को दही से महादेव का ‘‘ऊँ हर-हर महादेव” कहते हुए अभिषेक करें।

- राहु-केतु की वस्तुओं का दान करें। राहु का रत्न गोमेद पहनें। चांदी का नाग बना कर उंगली में धारण करें।

- शिव लिंग पर तांबे का सर्प चढ़ायें। पारद के शिवलिंग बनवाकर घर में प्राण प्रतिष्ठा करवायें।

- लाल मसूर की दाल और कुछ पैसे प्रातःकाल सफाई करने वाले को दान करें। कुछ कोयले पानी में बहायें।

- नारायणबलि, नागबलि अथवा त्रिपिण्डी श्राद्ध करें इससे कुछ लाभ मिलता है। विश्व प्रसिद्ध तिरूपति बाला जी के पास काल हस्ती शिव मंदिर में भी कालसर्प योग शान्ति कराई जाती है। त्रयंबकेश्वर में व केदारनाथ में भी शान्ति कराई जाती है। गेहूं या उड़द के आटे की सर्प मूर्ति बनाकर एक साल तक पूजन करने और बाद में नदी में छोड़ देने तथा तत्पश्चात् नागबलि कराने से कालसर्प योग शान्त होता है।

- पितरों के मोक्ष का उपाय करें। श्राद्ध पक्ष में पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।

- कुलदेवता की पूजा-अर्चना नित्य करनी चाहिए।

- यदि वैवाहिक जीवन में बाधा आ रही हो तो जीवनसाथी के साथ सात शुक्रवार नियमित रूप से किसी देवी मंदिर में सात परिक्रमा लगाकर पान के पत्ते में मक्खन और मिश्री का प्रसाद रखें।


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- पति-पत्नी एक-एक सफेद फूल अथवा सफेद फूलों की माला देवी माँ के चरणों में चढ़ाएं।

- नाग योनि में पड़े पितरों के उद्धार तथा अपने हित के लिए नागपंचमी के दिन चांदी के नाग की पूजा करें।

- अपने शयन कक्ष में लाल रंग की चादर, तकिये का कवर तथा खिड़की दरवाजों में लाल रंग के ही पर्दों का उपयोग करें। हानि एवं हीन भावना से बचने हेतु हिजड़ों को वर्ष में एक या दो बार नवीन वस्त्र, फल, मिष्टान्न, सुगंधित तेल आदि का दान करें।

- रविवार के दिन घर में विधि-विधान पूर्वक सूर्य यंत्र स्थापित करें। रोज इस यंत्र का पूजन विधि-विधान पूर्वक करें।

- सूर्य को रोज तांबे के लोटे में जल, उसमें लाल फूल, कुंकुम व चावल मिला कर अघ्र्य दें।

- ऊँ आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय, धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।। इस मंत्र का जप रोज करें। मंत्र जप करते समय अपना मुख पूर्व दिशा में रखें।

- पांच मुखी रूद्राक्ष धारण करें व रोज 12 ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें।

- बुजुर्गों का अपमान न करें तथा उनकी मदद का प्रयास करें।

- रविवार के दिन गाय को गेहूं व गुड़ खिलाएं। स्वयं घर से निकलते समय गुड़ खाएं।

- लग्न के अनुसार सोने में 5 रत्ती के ऊपर का माणिक्य रविवार के दिन विधि-विधान से धारण करें।

- भाई-बहनों का सत्कार आपको करते रहना चाहिए। धन, वस्त्र, भोजनादि से सेवा करते हुए समय-समय पर उनका आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।

- प्रत्येक अमावस्या के दिन अपन पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें और “ऊँ पितृभ्यः नमः” मंत्र का जाप करें। उसके बाद पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है।

- प्रत्येक संक्रांति, अमावस्या और रविवार के दिन सूर्यदेव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगाजल और शुद्ध जल मिलाकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अघ्र्य दें।

- प्रत्येक अमावस्या के दिन दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना चाहिए। पितृ स्तोत्र या पितृ सूक्त का पाठ करना चाहिए।

- त्रयोदशी को नीलकंठ स्तोत्र का पाठ करना, पंचमी तिथि को सर्पसूक्त पाठ, पूर्णमासी के दिन श्रीनारायण कवच का पाठ करने के बाद ब्राह्मणों को अपनी सामथ्र्य के अनुसार मिठाई तथा दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए। इससे भी पितृ दोष में कमी आती है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

- पितरों की शांति के लिए जो नियमित श्राद्ध किया जाता है उसके अतिरिक्त श्राद्ध के दिनों में गाय को चारा खिलाना चाहिए।

- कौओं, कुत्तों तथा भूखों को खाना खिलाना चाहिए। इससे शुभ फल मिलते हैं।

- श्राद्ध के दिनों में मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए।

- शराब तथा अंडे का भी त्याग करना चाहिए। सभी तामसिक वस्तुओं का सेवन छोड़ देना चाहिए और पराये अन्न से परहेज करना चाहिए।

- पीपल के वृक्ष पर मध्याह्न में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएँ।

- संध्या समय में दीप जलाएँ और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें। ब्राह्मण को भोजन कराएँ। इससे भी पितृ दोष की शांति होती है।

- सोमवार के दिन 21 पुष्प आक के लें, कच्ची लस्सी, बिल्व पत्र के साथ शिवजी की पूजा करें। ऐसा करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है।

- प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है।

- कुंडली में पितृ दोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है।

- ब्राह्मणों को गोदान, कुएं खुदवाना, पीपल तथा बरगद के पेड़ लगवाना, विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करना, पितरों के नाम पर अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला आदि बनवाने से भी लाभ मिलता है।

- पीपल के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है।

- इसके साथ ही सोमवती अमावस्या को दूध की खीर बना, पितरों को अर्पित करने से भी इस दोष में कमी होती है।

- प्रत्येक अमावस्या को एक ब्राह्मण को भोजन कराने व दक्षिणा, वस्त्र भेंट करने से पितृ दोष कम होता है।

- प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आह्नान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी लाभ मिलता है।

- सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है।

- सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कुंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है।

- पिता का आदर करने, उनके चरण स्पर्श करने, पितातुल्य सभी मनुष्यों को आदर देने से सूर्य मजबूत होता है।

- सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है।

- सूर्य को मजबूत करने के लिए माणिक भी पहना जाता है, मगर यह कुंडली में सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है।

- पितृदोष होने से जातक को श्रम अधिक करना पड़ता है, फल कम व देर से मिलता है। अतः इस हेतु मानसिक तैयारी करना व परिश्रम की आदत डालना श्रेयस्कर रहता है।


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