भूकंप के ज्योतिषीय कारण

भूकंप के ज्योतिषीय कारण  

तिलक राज
व्यूस : 5613 | अकतूबर 2007

वैवैज्ञानिकों के अनुसार भूमिगत सतहों में हलचल होने से भूकंप आते हैं। भूमि की टेक्टोनिक प्लेटों के खिसकने से भूकंप आते हैं। भूमि के अंदर से विभिन्न गैसों व ऊर्जा की तरंगों के रूप में बाहर आने से इन प्लेटों में हलचल होती है। प्राइमरी तरंगों की गति 6 से 7 मिलीमीटर प्रति सेकंड होती है और सेकंडरी तरंगों की गति 3.5 कि.मी. प्रति सेकंड होती है। ये तरंगें चट्टानों को इधर-उधर या ऊपर-नीचे खिसका देती हैं। भूकंप की तीव्रता इस बात पर निर्भर करती है कि उसका केंद्र भूमि की सतह से कितना नीचे है।

भूकंप विज्ञानी जिन्हें सिज्माॅलाॅजिस्ट कहा जाता है, भूमि की हलचल को रिकार्ड करने के लिए सिज्माॅग्राफ मशीन का प्रयोग करते हैं। उनके अनुसार भूमि पर प्रतिवर्ष 10 लाख भूकंप आते हैं। रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 2.5 तक होने पर आम आदमी को भूकंप का पता भी नहीं चलता लेकिन सिज्माॅमीटर बता देता है। तीव्रता 3.5 होने पर कुछ ही लोग इसे महसूस कर पाते हैं। तीव्रता 4.5 होने पर मामूली नुकसान हो सकते हैं। तीव्रता 6 होने पर काफी नुकसान हो सकते हैं। तीव्रता 7 या इससे अधिक होने पर बड़े पैमाने पर तबाही होती है। भूकंप का केंद्र पृथ्वी पर होने से कम तबाही देखी गई है। यही केंद्र जब समुद्र के नीचे होता है तो अधिक तबाही होती है।

समुद्र से उठने वाली तरंगंे जब तट की ओर आती हैं तो सुनामी कहलाती हैं। इन तरंगों की गति आम भूकंप की तरंगों की गति का दसवां हिस्सा ही होती है। इसलिए सुनामी की चेतावनी दी जा सकती है। भूकंप के कारण जानने के लिए भूमि की आंतरिक संरचना को समझना भी जरूरी है। पृथ्वी पर आने वाले भूकंप अंग्रेजी में मंतजीुनंाम और चंद्रमा पर आने वाले भूकंप डववदुनंाम कहलाते हैं। 1969 से 70 के बीच में चंद्रमा की सतह पर 5 जगह सिज्माॅग्राफ स्टेशन बनाए गए।


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प्रत्येक ने 600 से 3000 के बीच में मूनक्वेक ;डववदुनंामद्ध रिकार्ड किए जबकि चंद्रमा पर कोई टेक्टोनिक प्लेट या समुद्र नहीं है। रिक्टर पैमाने पर इनकी तीव्रता 2 आंकी गई। इस जानकारी का प्रयोग चंद्र की आंतरिक जानकारी के लिए किया गया। मंगल पर भी सिज्माॅग्राफ स्टेशन लगाया गया जहां पर एक साल में सिर्फ एक तरंग ही रिकार्ड की गई। भूवैज्ञानिक भूकंप की भविष्यवाणी करने का कोई कारगर उपकरण अभी तक विकसित नहीं कर पाए हैं। भूकंप के ज्योतिषीय कारण ढ़ूढने के लिए हम मेदिनीय ज्योतिष का सहारा लेते हैं। मंगल भूमि का कारक है।

शनि भूमि के अंदर से निकलने वाली वस्तुओं जैसे वायु व गैसों आदि का कारक है। राहु धरती कंपन करता है और तोड़ फोड़ का कारक है। इन ग्रहों का आपसी संबंध बनने पर बड़े भूकंप आते हैं। भूकंप के कुछ ज्योतिषीय कारण इस प्रकार हैं:

Û मंगल और शनि में पूर्ण दृष्टि संबंध या स्थान संबंध।

Û मंगल और शनि एक दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में आ जाएं।

Û शनि स्वराशि में हो।

Û मंगल तुला राशि में हो।

Û मंगल और शनि का अष्टम भाव से संबंध हो।

Û मंगल शनि के नक्षत्र में अर्थात पुष्य, अनुराधा व उत्तराभाद्रपद में हो।

Û शनि मंगल के नक्षत्र में अर्थात मृगशिरा, चित्रा व धनिष्ठा में हो।

Û ग्रहण से 3, 4, 5, 13, 16, 17, 28, 37, 48, 57, 71 व 78वें दिन भूकंप आते हैं। भूकंप के स्थान का निर्धारण करने के लिए कूर्मचक्र का सहारा लिया जाता है। कूर्मचक्र में कछुए की आकृति बनाकर उसे 27 नक्षत्रों में वर्गीकृत किया जाता है। आज के वैज्ञानिक ळच्ै अर्थात ळसवइंस च्वेपजपवदपदह ैंजमससपजमे की सहायता से जिस प्रकार से स्थान का निर्धारण करते हैं वही कार्य हमारे ज्योतिषी कूर्मचक्र द्वारा करते हैं।

भूकंप से हानि: चित्र 7, 8, 9, 10 भूकंप से जान व माल की हानि होने के साथ-साथ पीने के पानी की कमी, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, विश्व से संपर्क कट जाना आदि कष्ट होते हैं।

भूकंप के प्राकृतिक लक्षण:

Û भूकंप से 6 से 78 दिन पूर्व चींटियां लाखों की संख्या में भूमि से निकल कर पेड़ों, चट्टानों व पहाड़ों पर चढ़ती हंै।

Û कुत्ते 2 घंटे से 2 हफ्ते पहले बेतरतीब भौंकते व भागते हैं।

Û गहरी काली बड़ी चींटियां 6 घंटे पहले स्थान त्याग कर अंडे लेकर भागती हैं। Û चूहे 12 से 36 घंटे पूर्व बिलों से निकल कर भागते हैं।

Û बंदरों का उत्पात बढ़ जाता है।


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Û गाय रोने व रंभाने लग जाती है। भूकंप की पुनरावृत्ति: एक भूकंप से दूसरे भूकंप में अंतराल 3,5,7,13,15,17,34 व 45 दिन का होता है। 26 जनवरी 2001 को भुज में प्रातः 08.46 पर आए भूकंप की कुंडली इस प्रकार है: भुज की कुंडली का अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि मंगल की आठवीं दृष्टि शनि पर पड़ रही है।

लग्नेश शनि चतुर्थ भाव में वृष राशि में गुरु के साथ है और मंगल नवम भाव में तुला राशि मंे है। अष्टमेश बुध लग्न में शुक्र के साथ शनि की कुंभ राशि में है। राहु पंचम भाव में मिथुन राशि में है। कुंभ लग्न के लिए सूर्य और गुरु मारक हैं। मारक गुरु की दृष्टि अष्टम भाव पर है।

त्रिकोण में पाप ग्रह त्रिकोण को पीड़ित कर रहे हैं। प्रथम भाव के पीड़ित होने से स्थान का स्वरूप ही बदल गया। पंचम भाव के पीड़ित होने से आबादी का नुकसान हुआ। नवम भाव के पीड़ित होने से उन्नति में बाधा आई। चतुर्थ भाव पर मंगल की दृष्टि पड़ने से आवास की समस्या उत्पन्न हुई। मारक सूर्य के द्वादश भाव में होने से खर्चों का बोझ बढ़ा।

उस समय की कुंडली के हिसाब से मंगल की महादशा में शनि की अंतर्दशा चल रही थी और राहु की प्रत्यंतर दशा में शनि की ही सूक्ष्म दशा थी। अब प्रश्न यह उठता है कि भूकंप का प्रकोप भुज पर ही सर्वाधिक क्यों हुआ? दिल्ली या किसी अन्य स्थान पर क्यों नहीं? इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए दिल्ली और भुज की उस समय की नवांश कुंडलियों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं। दोनों नवांश कुंडलियों का अध्ययन करने पर पाते हैं

कि भुज में राशि का प्रथम नवांश और दिल्ली में राशि का चतुर्थ नवांश था। प्रथम नवांश शुभ नहीं माना जाता। भुज की नवांश कुंडली में मंगल के अष्टम भाव और शनि के चतुर्थ भाव में आने से ही भूकंप का सर्वाधिक असर भुज पर हुआ। नवांश कुंडली में सूर्य उच्च का होने पर भी अच्छे फल नहीं दे पाया। क्योंकि सप्तम भाव में राहु के साथ होने से सूर्य को ग्रहण सा लग गया, इसी कारण पड़ोसी राज्यों और विदेशों से सहायता पहुंचने में देरी हुई और व्यापक जन-हानि हुई।

मारक गुरु भी रोग स्थान में था, दिल्ली की नवांश कुंडली में सूर्य और राहु चतुर्थ भाव में हैं, जिससे लोगों में भय तो व्याप्त हुआ, पर जान-माल का कोई नुकसान नहीं हुआ। नौवें भाव में चंद्र हो, तो पंचम भाव के ग्रह भी सहायता पहुंचाते हैं। शनि स्वराशि में लग्न में आ गया। इस कारण दिल्ली में कोई नुकसान नहीं हुआ। इस प्रकार हम देखते हैं

कि मंगल, शनि और अष्टम भाव का संबंध भूकंप का कारण बना। भुज के भूकंप के बाद 2001 से 2005 के बीच में विश्व में आए कुछ बड़े भूकंप: इन सभी बड़े भूकंपों का अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि उन तारीखों में मंगल व शनि का दृष्टि या राशि संबंध बन रहा था या वे एक दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में थे।



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