भक्तों को आकर्षित करता वैष्णोदेवी मंदिर का वास्तु कुलदीप सलूजा पवित्र भारत भूमि का कण-कण देवी-देवताओं के चरण रज से पवित्र है। इसलिए भारत में हर जगह तीर्थ है। परंतु कुछ तीर्थ ऐसे हैं जो भारत ही नहीं पूरे विश्व धर्मपरायण लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हंै। इन तीर्थों के दर्शन हर वर्ष लाखों स्त्री पुरुष करते हैं, और वांछित फल पाते हैं। इनमें से ही एक तीर्थ है जम्मू के पास स्थित माता वैष्णो देवी का दरबार! यहां महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली तीन भव्य पिंडियों के रूप में विराजमान हैं। चाहे गर्मी हो, सर्दी हो या चाहे बरसात हो माता वैष्णोदेवी के दरबार में भक्तों का मेला हर समय लगा रहता है और खासकर नवरात्रों के समय तो भक्तों की भीड़ इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि इस दौरान मां के दर्शन करने के लिए भक्तों को तीन से चार दिन तक का इंतजार भी करना पड़ता है। यहां बच्चे, बूढ़े, जवान, नवविवाहित युगल सभी, माता के दर्शन करने आते हैं। आखिर ऐसा क्या आकर्षण है मां के इस मंदिर में? संपूर्ण भारत में मां के मंदिर तो और भी कई जगह हैं, पर मां के इस मंदिर के प्रति लोगों के आकर्षण का कारण क्या है? इसका कारण है इस मंदिर की संरचना का भारतीय वास्तुशास्त्र एवं चीनी फंेगशुई के सिद्धांतों के अनुरूप होना। भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में ऊंचाई होना और पश्चिम दिशा में ढलान व पानी का स्रोत होना अच्छा नहीं माना जाता है। अधिकांश धार्मिक स्थानों की बनावट में अलग-अलग ही क्यों न हो, समानताएं होती हैं। ऐसे स्थानों पर पूर्व की तुलना में पश्चिम में ढलान होती है और दक्षिण दिशा हमेशा उत्तर दिशा की तुलना में ऊंची रहती है जैसे उज्जैन के महाकालेश्वर और मंदसौर के पशुपतिनाथ मंदिर इत्यादि। जिस घर में पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्रोत होता है उसमें निवास करने वालों में धार्मिकता दूसरांे की तुलना में ज्यादा होती है। वास्तु के सिद्धांत त्रिकुट पर्वत पर स्थित मां का मंदिर पश्चिम मुखी है जो समुद्रतल से लगभग 4800 फीट ऊंचाई पर है। मंदिर के पीछे पूर्व दिशा में पर्वत काफी ऊंचाई और मंदिर के ठीक सामने पश्चिम दिशा में काफी गहराई लिए हुए है जहां त्रिकुट पर्वत का जल निरंतर बहता रहता है। मंदिर की उत्तर दिशा के ठीक अंतिम छोर पर पर्वत में एकदम उतार होने के कारण काफी गहराई है। उत्तर दिशा में यह विस्तृत गहराई पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ती गई है। भवन की दक्षिण दिशा में पर्वत काफी ऊंचाई लिए हुए है जहां दरबार से ढाई किलोमीटर दूर भैरव जी का मंदिर है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 6583 फुट है और यह ऊंचाई लगभग पश्चिम र्नैत्य तक है जहां पर हाथी मत्था है। गुफा का पुराना प्रवेश द्वार काफी संकरा है। इसके अंदर लग. भग दो गज तक लेटकर या काफी झुककर जाना, पड़ता है। उसके बाद लगभग बीस गज लंबी गुफा है। गुफा के अंदर टखनों की ऊंचाई तक शुद्ध जल प्रवाहित होता है जिसे चरण गंगा कहते हैं। वास्तु का सिद्ध ांत है कि जहां पूर्व में ऊंचाई हो और पश्चिम में निरंतर जल हो या जल का प्रवाह हो, वह स्थान धार्मिक रूप से ज्यादा प्रसिद्धि पाता है। वर्ष पूर्व प्रवेश द्वार संकरा होने के कारण दर्शनार्थियांे को आने जाने में काफी समय लगता था और अन्य यात्रियों को बहुत देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। फलस्वरूप सीमित संख्या में लोग दर्शन कर पाते थे। तब मंदिर के, उत्तर ईशान कोण वाले भाग में सन् 1977 में दो नई गुफाएं बनाई गईं। इनमें से एक से होकर लोग दर्शन करने अंदर जाते हैं और दूसरी से बाहर निकलते हैं। इन दोनों गुफाओं के फर्श का ढाल भी उत्तर दिशा की ओर ही है। इन दोनों ही गुफाआ ंे क े इस स्थान पर बन े हाने े के कारण इसकी वास्तु अनुकूलता बहुत बढ़ गई है। इसके फलस्वरूप मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है। इन गुफाओं के बनने के बाद इस स्थान पर दर्शन करने वालों की संख्या पहले की तुलना में कई गुना बढ़ गई है, और वैभव भी बहुत बढ़ गया है। फेंगषुई के सिद्धांत फेंगशुई का सिद्धांत है कि, जिस भवन के पीछे की ओर ऊंचाई हो, मध्य में भवन हो तथा आगे की ओर नीचा होकर जल हो, वह प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। इस सिद्धांत में किसी दिशा विशेष का महत्व नहीं होता है। इस प्रकार माता वैष्णोदेवी का दरबार वास्तु एवं फेंगशुई दोनों के सिद्धांतों के अनुकूल है। यही कारण है कि माता का यह दरबार विश्व भर में प्रसिद्ध है।