रत्न जिज्ञासा समाधान

रत्न जिज्ञासा समाधान  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 13850 | अकतूबर 2007

प्रश्न: मुख्य रत्न नौ ही क्यों हैं जबकि अनेक प्रकार के और रत्न भी उपलब्ध हैं?

उत्तर: ब्रह्मांड में नौ ग्रह हैं जिनका महत्वपूर्ण प्रभाव जातक पर पड़ता है। इन ग्रहों से निकली रश्मियों को एकत्रित करने की क्षमता नवरत्नों में पाई जाती है, अतः ये रत्न ही प्रमुख रत्न हुए। अन्य रत्न अल्पमात्रा में इन रश्मियों को एकत्रित करने में सक्षम हैं, अतः वे उपरत्न कहलाए।

प्रश्न: रत्न, उपरत्न, कृत्रिम रत्न व रंगीन कांच में क्या अंतर है?

उत्तर: चारों में अंतर उनकी ग्रह रश्मियों को अवशोषित करने की क्षमता पर आधारित है। रत्न सब से अधिक रश्मियां ग्रहण करते हैं। उनके बाद उपरत्न और फिर कृत्रिम रत्न। रंगीन कांच न के बराबर रश्मियां ग्रहण करता है।

प्रश्न: क्या अच्छे रत्नों का प्रभाव अधिक होता है?

उत्तर: अच्छे रत्नों का प्रभाव निश्चय ही अधिक होता है क्योंकि ये रत्न रश्मियों को ज्यों की त्यों अवशोषित करने में सक्षम होते हैं। जैसे एक साफ शीशे के आरपार सब कुछ साफ-साफ दिखाई देता है और धुंधले शीशे के आरपार देखने में कठिनाई होती है।

प्रश्न: यदि कोई व्यक्ति अच्छा रत्न धारण करने में सक्षम नहीं हो तो क्या वह उपाय से वंचित रह जाएगा?

उत्तर: जैसे कोई गरीब व्यक्ति अपना डाॅक्टरी इलाज नहीं करा पाता है वैसे ही वैदिक रत्न धारण करने में असमर्थ व्यक्ति रत्न के उपाय से वंचित रह जाता है। जिस प्रकार डाॅक्टरी इलाज में भी कम मूल्य की दवाइयां होती हैं जिनका सेवन कर या फिर परहेज या संयम द्वारा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है, उसी प्रकार, रत्न के अभाव में जातक अन्य उपाय जैसे दान, व्रत, मंत्र जप आदि के द्वारा कष्ट का निवारण कर सकता है।

प्रश्न: क्या रत्न को धातु विशेष में पहनना आवश्यक है?

उत्तर: धातु रत्न की क्षमता को कम या अधिक कर देती है। अतः उपयुक्त धातु में ही रत्न धारण करना उचित है। जैसे नीलम, गोमेद व लहसुनिया पंचधातु में, मोती चांदी में, हीरा प्लैटिनम में व अन्य रत्न स्वर्ण में धारण करने चाहिए।

प्रश्न: रत्न खो जाए, टूट जाए या उसमें दरार आ जाए तो क्या करना चाहिए?

उत्तर: रत्न का टूटना या उसमें दरार आना अशुभ माना गया है। ऐसे में उपयुक्त ग्रह शांति करानी चाहिए और नया, बड़ा तथा अच्छी गुणवत्ता का रत्न धारण करना चाहिए। यदि रत्न खो जाए तो इसे शुभ माना गया है। ऐसे में समझना चाहिए कि ग्रह दोष दूर हुआ। रत्न का पाना अशुभ है। माना जाता है कि दूसरे के ग्रह कष्ट पाने वाले को प्राप्त हो रहे हैं।

प्रश्न: सवाए में रत्न पहनने का क्या अर्थ है?

उत्तर: सवाए में रत्न पहनने का अर्थ है उसका निर्दिष्ट भार से अधिक होना। यदि पांच रत्ती का रत्न बताया गया हो तो उससे अधिक अर्थात साढ़े पांच, छह या सात रत्ती का रत्न धारण करना चाहिए। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि केवल सवा पांच रत्ती का रत्न ही धारण करना है, पौने छह रत्ती का नहीं। पौने छह रत्ती का रत्न लगभग सवा पांच कैरेट और सवा पांच रत्ती का पौने पांच कैरेट के बराबर होता है। अतः पौना या सवाया मापक इकाई पर निर्भर करता है।

प्रश्न: कौन सा रत्न कब तक धारण करना चाहिए?

उत्तर: कुछ रत्न जीवनपर्यंत पहन सकते हैं, कुछ रत्नों को समयानुसार परिवर्तित करना चाहिए, और कुछ रत्न आपको बिल्कुल नहीं पहनने चाहिए। यह आपकी कुंडली में ग्रह स्थिति के अनुसार ही जाना जा सकता है। योगकारक या शुभस्थ ग्रहों के रत्न सर्वदा धारण किए जा सकते हैं। किंतु मारक या अशुभ स्थान में स्थित ग्रहों के रत्न धारण नहीं करने चाहिए। अन्य ग्रहों के रत्न दशानुसार धारण करने चाहिए।

प्रश्न: अंगूठी और लाॅकेट में रत्न धारण करने में क्या अंतर है?

उत्तर: मस्तिष्क के विशेष केंद्र बिंदु हमारी उंगलियों पर स्थित हैं। अतः उंगली विशेष में धारण करने से रत्न द्वारा एकत्रित रश्मियों का प्रभाव अधिक प्राप्त होता है। उतना प्रभाव रत्न को लाॅकेट में पहनने से नहीं मिलता। अतः लाॅकेट में लगभग दोगुने भार का रत्न पहनना चाहिए ताकि पूर्ण प्रभाव प्राप्त हो सके।

प्रश्न: क्या दूसरे के पहने हुए रत्न को धारण करना चाहिए?

उत्तर: दूसरे का पहना हुआ रत्न पहनना सर्वथा वर्जित है क्योंकि उसके माध्यम से पहले जातक के ग्रहों का शुभाशुभ प्रभाव भी, जो उसमें अवशोषित हो चुका होता है, दूसरे जातक पर पड़ सकता है। यदि पहनना ही हो, तो नजदीकी रिश्तेदार का पहना हुआ रत्न ही धारण करें, जैसे माता-पिता, पति या पत्नी का पहना हुआ रत्न, किसी अन्य का नहीं। ऐसे रत्न को भी धारण करने से पहले उसे पूरी तरह शुद्ध करा लें।

प्रश्न: क्या तप्त रत्न (Heated Stones) कम प्रभावशाली होते हैं?

उत्तर: रत्नों को गर्म करने से उसकी गुणवत्ता पर विशेष असर पड़ता है, अतः वे उतने प्रभावशाली नहीं रहते जितने कि प्राकृतिक।

प्रश्न: क्या छोटे-छोटे कई रत्न एक रत्न के बराबर होते हैं?

उत्तर: यह इस तथ्य के समानांतर है कि जैसे एक कमरे में सौ मोमबत्तियां जल रही हों और दूसरे कमरे में बड़ा बल्ब जला रहा हो। बड़े बल्ब की रोशनी सौ मोमबत्तियों की रोशनी से कहीं ज्यादा होगी। अतः एक बड़ा रत्न धारण करना ही उत्तम है।

प्रश्न: रत्न धारण करने के समय का क्या महत्व है?

उत्तर: रत्न में ग्रह के देवता का वास माना गया है। बिना देव के रत्न कांच के टुकड़े के बराबर होता है। रत्न धारण करते समय उसमें देवता का आवाहन किया जाता है। आवाहन से देव उस रत्न में बस जाएं इसके लिए उनका कर व होरा का समय चुना जाता है। अतः रत्न को प्रभावशाली बनाने के लिए उपयुक्त समय पर धारण करने का विशेष महत्व है। धारण करते समय ग्रह बल भी पूर्ण होना आवश्यक है।

प्रश्न: रत्न उतारने के नियम क्या हैं?

उत्तर: जिस प्रकार से हम किसी अतिथि का स्वागत करके उसे विदा करते हैं, उसी प्रकार से हमें रत्न धारण के समय उसमें देवता का वास मानकर धारण करना चाहिए और उसी प्रकार से उतारना चाहिए। उतारते समय इसकी धूप दीप द्वारा अर्चना करें, रत्न में स्थित देवता को विदा करें और तदुपरांत उसे सुरक्षित स्थान पर रखें।


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