तृतीय विश्वयुद्ध !

तृतीय विश्वयुद्ध !  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 6556 | जुलाई 2017

सारा विष्व इन दिनों तृतीय विष्व युद्ध की आषंका से डरा हुआ है। संपूर्ण मानवता पर इन दिनों एक संभावित महायुद्ध के संकट के बादल छाए हुए हैं। प्राचीन जगत के कई वैज्ञानिकों और ज्योतिषियों ने तीसरे युद्ध के होने पर परमाणु और आणविक आयुधों से समस्त सभ्यता के पूरी तरह नष्ट होने की भविष्य वाणियां की थीं। इस संभावित युद्ध के परिणाम कितने घातक हो सकते हैं, इसकी कल्पना करना बहुत कठिन है।

वर्तमान में विष्व के प्रमुख राष्ट्राध्यक्षों के व्यवहार और बातचीत में जिस प्रकार की स्थिति सामने आ रही है, उसे देखकर लगता है कि तीसरा विष्व युद्ध मनुष्य के अधिक समीप है। कभी अमेरिका, कभी रूस, कभी उत्तरी कोरिया और कभी चीन से युद्ध को भड़काने वाले वक्तव्य सामने आने लगे हैं। कभी भी कहीं से कोई चिंगारी फूटने भर की देर है और सब कुछ खत्म करने वाला एक युद्ध छिड़ सकता है।

तीसरे विश्व युद्ध की नास्त्रेदमस की अचूक भविष्यवाणी

फ्रांस में 14 दिसंबर 1503 को फ्रांस में जन्मे नास्त्रेदमस ने तीसरे विश्व युद्ध की जो भविष्यवाणी की है वह बहुत ही डराने वाली है। दुनिया के सबसे प्रसिद्ध भविष्यवक्ता ने अपनी बातें दोहों में कहीं। नास्त्रेदमस ने हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने की भी भविष्यवाणी कर दी थी। अब तक आपदा, मौत, युद्ध और कयामत पर उनकी भविष्यवाणी काफी सटीक रही है। नास्त्रेदमस ने अपनी एक भविष्यवाणी में कहा है कि जब तृतीय युद्ध चल रहा होगा उस दौरान चीन के रासायनिक हमले से एशिया में तबाही और मौत का मंजर होगा, ऐसा अभी तक कहीं नहीं हुआ।

नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी के विश्लेषणों के अनुसार जब तृतीय विश्वयुद्ध चल रहा होगा उसी दौरान आकाश से आग का एक गोला पृथ्वी की ओर बढ़ेगा और हिंद महासागर में आग का एक तूफान खड़ा कर देगा। इस घटना से दुनिया के कई राष्ट्र जलमग्न हो जाएंगे।

आगे वे लिखते हैं - एक देश में जनक्रांति से नया नेता सत्ता संभालेगा (यह मिस्र में हो चुका है)। नया पोप दूसरे देश में बैठेगा (यह भी हो चुका है।) मंगोल (चीन) चर्च के खिलाफ युद्ध छेड़ेगा। (चीन का अमेरिका के खिलाफ छद्मयुद्ध तो जारी है ही)। नया धर्म (इस्लाम) चर्च के खिलाफ भारी मारकाट करते हुए इटली और फ्रांस तक जा पहुंचेगा तब तृतीय विष्व युद्ध शुरू होगा।


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युद्धों में क्या खो चुके हैं हम

1910 से अब तक लगभग 198 बड़े स्तर के युद्ध हो चुके हैं एवं 26 करोड़ व्यक्ति युद्ध की विभीषिका से काल कवलित हुए हैं। प्रति व्यक्ति मारने का खर्च प्रथम विश्व युद्ध की लागत 68 हजार रूपये से बढ़कर 15 करोड़ 50 लाख रुपये जा पहुंचा है। इतने पर भी युद्धोन्माद शांत नहीं हुआ है। इन दिनों परमाणु और आणविक शस्त्रों पर हो रहा खर्च 675 अरब डालर (5400 अरब रुपये) प्रतिवर्ष तक जा पहुंचा है। 20 वीं शताब्दी या कहें सभी समय का सबसे बड़ा और खूनी युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध था, जो लगभग 4-5 करोड़ लोगों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार था। प्रथम विश्व युद्ध भी खूनी था जिसमें 85 लाख सैनिकों की मृत्यु का अनुमान है तथा 1.3 करोड़ नागरिकों की मौत हुई। प्रथम विश्व युद्ध के अंत में लौटने वाले सैनिकों को भी महामारी का सामना करना पड़ा और यह संख्या 5-10 करोड़ लोगों तक पहुंच गयी। 20 वीं शताब्दी में होने वाले खूनी युद्धों में हताहत होने वाले रूसी नागरिकों की अनुमानित संख्या 90 लाख थी। यदि इन मानवीय और वित्तीय संसाधनों का प्रयोग संसार के विकास में किया गया होता तो निश्चित रूप से आज विश्व का प्रारूप बदल चुका होता।

ज्योतिष के सापेक्ष में ग्रहों की भूमिका

ऐसा देखा गया है कि जब भी ब्रह्मांड में संतुलन बिगड़ता है तो वह किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर भी दिखाई पड़ता है। जब भी अधिकांश ग्रह एक ओर आ जाते हैं तो गुरुत्वाकर्षण के कारण असंतुलन हो जाता है, जिससे मानव मस्तिष्क पर भी पूर्ण प्रभाव पड़ता है। इसके कारण मानव आक्रामक रूप धारण कर लेता है और उसकी सोचने की क्षमता कम हो जाती है। इसका प्रभाव जब देश प्रमुख पर पड़ता है तो युद्ध में परिवर्तित हो जाता है।

ग्रहों का असर अतिसूक्ष्म होता है जिसको किसी यंत्र द्वारा नहीं मापा जा सकता, लेकिन इसका प्रभाव उदाहरण के रूप में समुद्र द्वारा ले सकते हैं। जब भी चंद्रमा चतुर्थ व दशम भाव में आता है उसके गुरुत्वाकर्षण के कारण समुद्र में ज्वार भाटे आते हैं। जब अमावस्या के दिन चंद्रमा के साथ सूर्य का भी मेल हो जाता है तो उसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है। ग्रहण पर गुरुत्वाकर्षण प्रभाव और अधिक हो जाता है जब चंद्रमा व सूर्य के साथ राहु या केतु भी साथ आ जाते हैं। इसी प्रकार जब कई ग्रह एक ओर हो जाते हैं तो ये भूकंप व अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण बनते हैं। इस वर्ष 18 नवंबर 2017 को 7 ग्रह 70 अंश के अंदर होंगे और 3 दिसंबर 2017 को भी 6 ग्रह केतु से राहु के मध्य 70 अंष के कोण में आ रहे हैं, जबकि चंद्रमा उनके सामने स्थित होगा।

इस ग्रह स्थिति के कारण बड़े भूकंप के असार बन रहे हैं जिसका रिक्टर स्केल पर माप 8.0 या अधिक हो सकता है। यह भूकंप 3 दिसंबर 2017 या 1-2 दिन आगे पीछे हो सकता है। इसका केंद्र देखने के लिए राहु व केतु से ग्रहों की स्थिति को देखना चाहिए।

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चूंकि सभी ग्रह केतु से राहु के मध्य हैं अर्थात चंद्रमा से नीचे होंगे, अतः उनका प्रभाव उत्तरी क्षेत्र में लगभग 300-400 अक्षांश पर पड़ेगा। अतः 3 दिसंबर 2017 के आसपास उत्तरी क्षेत्र में भारी भूकंप की संभावना बन रही है।

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इस प्रकार की ग्रह स्थिति के बाद लगभग 6 मास के अंतराल में प्रायः युद्ध की भी स्थिति बन जाती है अतः 2018 के मध्य में भारी युद्ध के भी लक्षण बन रहे हैं। कुछ इसी प्रकार की ग्रह स्थिति कारगिल युद्ध (मई 1999 से जुलाई 1999) के मध्य बनी थी जब मार्च 99 में मंगल को छोड़ सभी 6 ग्रह केतु से राहु के मध्य आ गये थे। भारत-चीन युद्ध (20 अक्तूबर 1962 से 20 नवंबर 1962) से पहले भी 5 फरवरी 1962 में 8 ग्रह एकत्रित हुए थे जिसके परिणामस्वरूप उस समय भी एक बहुत बड़ा भूकंप इरान में आया था जिसमें 12000 से अधिक मौत हुई थी।

प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध के समय भी इसी प्रकार अनेक ग्रह कोणीय स्थिति में आए थे। 23 जुलाई 1914 में भी एक बार यही ग्रह स्थिति बनी थी। 13 जुलाई 1942 को दूसरे विश्वयुद्ध के समय 7 ग्रह 70 अंश के कोण में आ गये थे जिसके कारण द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम भयावह रहे।

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इस सब को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि 18 नवंबर 2017 से युद्ध के बादल मंडराने लगेंगे और प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ युद्ध होने की संभावना भी बन रही है। 2018 और 2019 में भी कुछ इसी प्रकार की ग्रह स्थिति पुनः बनने वाली है अतः निकट भ्ािवष्य में भूकंप, प्राकृतिक आपदाओं और युद्ध की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता। किन देशों के बीच में युद्ध होगा? कौन इसे जीतेगा यह कहना मुश्किल है।


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