तंत्र साधना: एक विवेचन

तंत्र साधना: एक विवेचन  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 9863 | अकतूबर 2015

तंत्र के सिद्धांत गुप्त रखे जाते हैं। गुरु शिष्य को गुप्त रूप से इसे समझाता था। कई विद्वानों ने इसे ज्ञान के क्षितिज का विकास माना है। भारत में ज्ञान की प्राचीनतम शाखाएं निगम और आगम कहलाती हैं। निगम वेदों पर आधारित है और आगम तंत्रों पर। तांत्रिक साहित्य का क्षेत्र काफी विस्तृत है। मुख्यतः इसे तीन भागों में बांटा गया है- ब्राह्मण तंत्र, बौद्ध तंत्र और जैन तंत्र। ब्राह्मण तंत्र की 3 शाखाएं हैं- वैष्णव आगम, शैव आगम, शाक्त आगम। बंगाल, उड़ीसा, कामरूप (असम) प्रदेश तंत्र साधनाओं के केंद्र रहे हैं। तांत्रिक क्रियाओं में मंत्रों का भी उपयोग किया जाता है। अतः तंत्र के साथ मंत्र आवश्यक है, जबकि मंत्र जाप अपने आप में स्वतंत्र इकाई है। तांत्रिक लोग हिमालय की उपत्यकाओं में तांत्रिक साधना करते थे। प्राचीन शिलालेखों एवं सिंधु घाटी की सभ्यताओं के अवशेषों में तांत्रिक योगियों के चित्र अंकित मिलते हैं। तिब्बत के मठों में तंत्र साधना केंद्रों का निर्माण किया जाता था। योग, दर्शन और तंत्र साधना का आपस में घनिष्ठ संबंध रहा है। तंत्र साधना में ‘कुंडलिनी जागरण’ का भी विशेष महत्व है। कंुडलिनी शक्ति का निवास मूलाधार चक्र में बताया गया है। यह मूलाधार चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले छोर में है, जिसे आधुनिक शरीर विज्ञान में गुदास्थि कहा जाता है।

तंत्र ग्रंथों में इसका जो उल्लेख मिलता है, उसमें कहा गया है कि यहां स्वयं भूलिंग है, जिसके 3) कुंडल मार कुंडलिनी शक्ति सोयी पड़ी है। हठ योग प्रदीपिका में कहा गया है कि इस शक्ति का निवास योनि स्थान में है। प्रत्येक व्यक्ति का शरीर उसके अपने अंगुल से 96 अंगुल होता है। मूलाधार चक्र इस शरीर के मध्य अर्थात् 48 वें अंगुल पर है। योगी या सिद्ध तांत्रिक जब इस शक्ति को जगा देता है, तब कुंडल खुल जाते हैं। बंधन समाप्त हो कर उध्र्वगति प्रारंभ हो जाती है। ऋग्वेद में इस शक्ति को वाक् कहा गया है। ‘यामल तंत्र’ में इसे ‘बागेश्वरी’ कहा गया है। ‘मिस्टीरियस कुंडलिनी’ पुस्तक में पश्चिम के परामनोवैज्ञानिक डाॅ. जान वुडरूफ ने लिखा है: यह महाशक्ति है। जब यह जाग जाती है, तब इसकी असीम ऊर्जा प्रस्फुटित होने लगती है। यह ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी से हो कर सहस्रार की ओर बढ़ने लगती है। सहस्रार का स्थान मस्तिष्क का ऊपरी भाग माना गया है। इसे शून्य चक्र भी कहते हैं। आधुनिक विज्ञान के अनुसार यह विचार शक्ति और शरीर का विकास करने वाली गिल्टियों का केंद्र है। सामान्य भाषा में कुंडलिनी शरीर में मूल शक्ति का सूक्ष्म अंग है, जो कुंडल के आकार में मूलाधार में सुषुम्ना नाड़ी के नीचे माना गया है।

वैदिक वांगमय के अनुसार यह शक्ति कुंडल पिंडों और अखिल ब्रह्मांड दोनों का आधार है। कुंडलिनी जागरण पर व्यक्ति में परोक्ष दर्शन शक्ति, त्रिकाल दर्शिता की अनुभूति एवं विशिष्ट इंद्रियातीत शक्ति जागृत हो उठती है। स्टैनफोर्ड अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने प्रसिद्ध भविष्यवक्ता यूरी गेलर को एक कमरे में बंद कर दिया। कमरे की दीवारों पर धातु की चादरें लगायी गयीं। इस कमरे में बाहर की रेडियो तरंगों, ध्वनि आदि का आना संभव नहीं था। बाहर किसी व्यक्ति ने कुछ शब्द चित्र बना दिये। कमरे में बंद यूरी गैलर ने वैसे ही शब्द चित्र बना दिये। यह यूरी गैलर की अतींद्रिय शक्ति का प्रमाण है कि मानव मन में असीम क्षमता और शक्ति विद्यमान हैं। सम्मोहन विद्या भी मन की असीम शक्ति का परिचायक है। योग दर्शन सूत्र के अनुसार आकाश में चमकने वाली विद्युत के समान मनुष्य के शरीर में भी जैविक विद्युत धारा प्रवाहित होती रहती है। तंत्र साधना का ही एक वाम मार्गी रूप अघोर साधना है। औघड़ की सिद्धियों एवं उसके चमत्कारों के संबंध में भी काफी सुना-पढ़ा जाता है। तांत्रिक साधना का सशक्त पक्ष परामनोविज्ञान पर आधारित है। अघोर का अर्थ है, जो संसारी नहीं है। घोर का अर्थ संसार है।

‘अ’यहां नकारात्मक है। अघोरी शब्द का बिगड़ा रूप औघड़ है। इस संप्रदाय में वाराणसी के बाबा कीनाराम काफी प्रसिद्ध एवं चर्चित अघोरी हुए हैं। योगी गोरखनाथ, मत्स्येंद्रनाथ, चर्पटनाथ, जलंधरनाथ आदि नाथ संप्रदाय के योगियों ने तंत्र साधना के बल पर ही सिद्धियां प्राप्त कीं। दैवी और आध्यात्मिक शक्तियों के साथ-साथ प्रेत शक्तियां भी अनंत आकाश में विचरण करती हैं। तंत्र सिद्धियों द्वारा इन्हें वश में किया जाता है। यह भी समझ लेना चाहिए कि तांत्रिक सिद्धियां अनुशासन या आचार पर आधारित हैं, जैसे दिव्याचार, वीराचार, वामाचार और पश्याचार आदि। सामान्यतः सिद्धि का अर्थ किसी विशेष शक्ति को प्राप्त करना है। विभिन्न प्रकार की सिद्धियां: जनसामान्य में निम्न प्रकार की लोकप्रिय सिद्धियां प्रचलित हैं: (1) बेताल सिद्धि (2) यक्षिणी सिद्धि (3) कर्ण पिशाचिनी सिद्धि (4) काली सिद्धि (5) स्वप्न सिद्धि (6) शाबर तंत्र सिद्धि (7) आकाश गमन सिद्धि (8) सम्मोहन सिद्धि (9) वशीकरण सिद्धि (10) परकाया प्रवेश सिद्धि (11) अघोरी सिद्धि (12) भैरवसिद्धि (13) कुबेर सिद्धि (14) वाक् सिद्धि (15) मारण सिद्धि (16) त्राटक सिद्धि (17) जल गमन सिद्धि (18) अप्सरा सिद्धि (19) श्मशान सिद्धि (प्रेत सिद्धि) (20) दृष्टि बंध सिद्धि (21) आत्मरक्षा सिद्धि (22) उच्चाटन सिद्धि (23) छाया पुरुष सिद्धि (24) बगलामुखी सिद्धि (25)योग सिद्धि (26) कीलन-उत्कीलन सिद्धि और (27) सौंदर्य प्राप्ति सिद्धि।

‘कर्ण पिशाचिनी सिद्धि’ में अदृश्य शक्ति तांत्रिक के कान में पास बैठे व्यक्ति की भूत काल की घटनाएं बतला देती हैं। सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए सिद्धि से जुड़े प्रत्येक कार्य एवं वस्तुओं की पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है। अपूर्ण जानकारी और योग्य मार्गदर्शन के अभाव में सिद्धि प्राप्ति नहीं हो पाती है। मुहूर्त में ही, काल-नक्षत्र गणना के अनुसार ही, सिद्धि प्राप्ति के लिए साधना प्रारंभ की जानी चाहिए। इस कार्य में श्रद्धा, विश्वास, आस्था, आत्मविश्वास, धैर्य एवं एकाग्रता आदि गुणों की परम आवश्यकता है। सच्चे दृष्टांत: आठवीं शताब्दी में उड़ीसा का राजा इंद्रभूति था, जो स्वयं बड़ा तांत्रिक था। उसके पुत्र पद्मसंभव ने तिब्बत में तांत्रिक बौद्ध धर्म का प्रचार किया। उस काल में बंगाल, असम, कश्मीर और दक्षिण में तंत्र फल-फूल रहा था। आठवीं शताब्दी में ही यह चीन पहुंचा और बारहवीं शताब्दी में जापान। चीन में आज भी, साम्यवादी सरकार होने के बावजूद, गुप्त रूप से जादू-टोना, तंत्र विद्या आदि के प्रति लोगों की आस्था है।

कश्मीर के तंत्राचार्य अभिनव गुप्त बंगाल में तंत्र का प्रचार करने आये। बंगाल के तत्कालीन राजा वीरभद्र सेन ने अभिनव गुप्त से कोई चमत्कार दिखाने को कहा। अभिनव गुप्त ने अपने दोनों स्कंधों से जल और अग्नि की धारा प्रवाहित की और, अनेक रूप धर कर, चारों दिशाओं से उपदेश देने लगे। वह आकाश में उठे और जब वापस आये, तब बड़े जोरों से वर्षा होने लगी। पर नीचे खड़े दर्शकों में से केवल वे ही भीगे, जो भीगना चाहते थे। बाकी के लोग सूखे ही रहे। तंत्र सिद्धियां क्वांटम थ्योरी (सिद्धांत) पर भी आधारित हैं। प्रमात्रा सिद्धांत अदृश्य ऊर्जा को प्रमाणित करती है। सन् 1910 में डाॅ. जुंग ने लंदन में अपनी मानसिक शक्ति का प्रदर्शन किया था। इस शक्ति के कारण कमरे में वस्तुएं अपने आप चलने लगीं, मानो कोई भूचाल आ गया हो। डाॅजुंग ने इसी शक्ति के बल पर कई मानसिक रोगियों को आरोग्य लाभ दिया। मन की पूर्ण एकाग्रता से ही तंत्र साधना संभव है। इसके लिए दृढ़ संकल्प एवं आत्मसंयम आवश्यक है। वर्षों की अनवरत साधना से तंत्र सिद्धियां मिलती हैं।



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