राजस्थान में उदयपुर से लगभग
48 किमी की दूरी पर बनास
नदी के किनारे, रमणीय पहाड़ियों के
बीच प्रसिद्ध मंदिर नाथद्वारा अवस्थित
है। नाथद्वारा अर्थात भगवान का द्वार।
यहां गोवर्धन गिरिधारी श्रीकृष्ण श्याम
वर्ण की प्रतिमा में विराजमान हैं।
भगवान के इस रूप की एक झलक
पाने कि लिए पूरे वर्ष भक्तों की भीड़
लगी रहती है। ऐसा कहा जाता है
कि सम्राट अकबर की पत्नी ताज
बीबी ने भी इस मंदिर के दर्शन किए
थे।
नाथद्वारा वैष्णव संप्रदाय का प्रधान
पीठ है, भारत के प्रमुख वैष्णव पीठों में
यह एक है। यहां की स्थापना
के विषय में एक ऐतिहासिक
कथा का उल्लेख मिलता है।
नाथद्वारा में स्थापित काले
प्रस्तर की मूर्ति मूलतः मथुरा
में थी, औरंगजेब द्वारा मंदिरों
का विध्वंस किए जाने की
आशंका पर इस मूर्ति को
किसी सुरक्षित स्थान पर ले
जाया जाने लगा। कृष्ण की
यह प्रतिमा जब मेवाड़ भूमि में
पहुंची, तो जिस गाड़ी में यह
प्रतिमा ले जाई जा रही थी उसके
पहिए जमीन में धंस गए और किसी
भी प्रकार नहीं निकल पाए। इससे
यही माना गया कि श्रीनाथ जी की
इच्छा यहीं निवास करने की है। इस
प्रकार इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण
कर दिया गया।
श्रीनाथ जी की पूजा यहां बड़े ही
भक्तिभाव व विधिविधान के साथ होती
है। भगवान की यहां अबोध शिशु की
तरह देखभाल की जाती है। सुबह
होने के साथ ही उन्हें नहलाया जाता
है, नए वस्त्र पहनाए जाते हैं,
तरह-तरह के व्यंजनों का भोग
लगाया जाता है और लोरी देकर
सुलाया जाता है।
श्रीनाथ जी का विभिन्न प्रकार का
शृंगार होता है और जितनी देर शृंगार
होता है उतनी देर के लिए मंदिर के
कपाट बंद हो जाते हैं। शृंगार संपन्न
होने के बाद थोड़ी देर के लिए श्रीनाथ
जी के दर्शनों को कपाट खुलते हैं।
जिस समय जैसा शृंगार होता है उसी
भाव के पद गाये जाते हैं। यह दृश्य
बेहद दर्शनीय होता है। लोगों की
भीड़ भगवान श्रीनाथ की एक झलक
पा लेने के लिए उमड़ पड़ती है।
भगवान की एक झलक पाना उनके
लिए जीवन-मरण का प्रश्न हो जाता
है। दूर-दूर से आए लोग भगवान के
सभी रूपों का दर्शन कर ही
वहां से लौटते हैं। नाथद्वारा
में प्रतिवर्ष मंदिर पर लाखों
रुपए खर्च किए जाते हैं, और
चढ़ावा भी उसी मात्रा में चढ़ता
है। यहां घी संग्रह करने के
लिए जमीन के नीचे बहुत बड़ा
कुंड बना हुआ है, इसके ऊपर
जगह-जगह पर लोहे के
ढक्कन लगे हुए हैं, ऐसा
लगता है जैसे घी की नदी
यहां आकर रुक गई हो।
नाथद्वारा मंदिर के आसपास कई
छोटे-छोटे मंदिर हैं। नंदराज जी, माता
यशोदा और उद्धव जी के मंदिरों के
साथ कृष्ण की बाल लीलाओं को दर्शाने
वाले मंदिर यहां हैं। मीराबाई का मंदिर
भी यहां है। कृष्ण प्रेम में दीवानी मीरा
का शायद यही एकमात्र मंदिर है।
श्रीनाथजी के मंदिर के आसपास ही
श्री नवनीतलाल जी, विट्ठलनाथ जी,
कल्याण राय जी, मदनमोहन जी और
वनमाली जी के मंदिर भी हैं। श्रीनाथ
जी के मंदिर में हस्तलिखित
एवं मुद्रित ग्रंथों का एक
पुस्तकालय भी है। यहां नाथद्वारा
पीठ का एक विद्या विभाग भी
है जहां से संप्रदाय के ग्रंथों का
प्रकाशन होता है।
नाथद्वारा की पिछवानी पेंटिंग
बहुत प्रसिद्ध हैं जो मूलतः
श्रीकृष्ण को केंद्र में रखकर बनाई
जाती हैं और इनमें सुनहरे रंग
का प्रयोग किया जाता है।
राजस्थानी कला एवं शिल्प का
सुंदर नमूना प्रस्तुत करती हाथ
से बनी कलाकृतियां बरबस ही
सबको सम्मोहित कर लेती हैं।
हाथ से बने हुए सोने एवं चांदी
के गहनों, कागज, रुई व सिल्क
से बनी कलाकृतियों में पूरी राजस्थानी
संस्कृति की झलक दिखाई देती है।
आसपास के दर्शनीय स्थल
एकलिंगजी: उदयपुर से नाथद्वारा
जाते समय मार्ग में एकलिंगजी का
विशाल मंदिर आता है। यह मंदिर
लगभग एक हजार साल पुराना है।
एकलिंगजी मेवाड़ के राजाओं के
आराध्यदेव हैं। यहां पर चतुर्मुख
शिवलिंग स्थापित है। यहां प्रतिदिन
विभिन्न रत्नों से एकलिंगजी का शृंगार
किया जाता है। राजस्थान का यह
प्रसिद्ध शिव मंदिर है। यहां दूर-दूर
से लोग दर्शनार्थ आते हैं।
कांकरोली: नाथद्वारा से 11 मील
की दूरी पर बल्लभ संप्रदाय के सात
उपपीठों में प्रमुख पीठ कांकरोली है।
यहां द्वारिकाधीश जी का मुख्य मंदिर
है।
श्री रूपनारायणजी: नाथद्वारा से
यहां बस का मार्ग है। यहां श्री रामचंद्र
जी रूपनारायण के नाम से प्रसिद्ध
हैं। कहा जाता है कि महाराणा उदयपुर
यहां नित्य दर्शन करने आते थे और
यहां पुजारी उन्हंे भगवान की धारण
की हुई माला प्रसाद रूप में देता था।
एक दिन महाराणा के आने में देर हुई
तो पुजारी प्रसादी माला स्वयं ग्रहण
कर भगवान को शयन करा ही रहा
था कि महाराजा पधार गए। संकोचवश
पुजारी ने अपनी पहनी माला छिपाकर
अपने गले से निकाली और महाराजा
को पहना दी, किंतु माला में पुजारी
का श्वेत केश रह गया। उसे देखकर
महाराणा ने पूछा कि प्रभु के केश
श्वेत कैसे होने लगे, क्या वे वृद्ध हो
गए हैं? भयवश पुजारी ने हां तो कह
दी, लेकिन सारी रात पुजारी को नींद
नहीं आई। वह रात भर रोता रहा और
भगवान से प्रार्थना करता रहा कि
उसकी लाज रख लें। भक्तवत्सल
भगवान ने सचमुच भक्त की पुकार
सुनी और उनके कुछ केश श्वेत हो
गए। अगले दिन महाराणा दर्शन करने
आए, तो उन्हें लगा कि श्वेत केश
ऊपर से चिपकाए गए हैं। उन्होंने
संदेह दूर करने के लिए एक केश
उखाड़ा, तो एक बूंद रक्त भी साथ ही
निकला। उसी रात महाराणा को स्वप्न
हुआ कि कोई राणा गद्दी पर बैठने
के पश्चात रूपनारायण जी के दर्शन
नहीं कर सकेगा। यही कारण है
कि गद्दी पर बैठने से पूर्व युवराज
यहां दर्शन को जाया करते हैं।
चिŸाौड़गढ़: चिŸाौड़ भारत का
प्रसिद्ध सांस्कृतिक तीर्थ है, मातृभूमि
के गौरव के लिए वीरों के रक्त से
सिंचित इस भूमि में त्याग व धर्म
का पावन संदेश मिलता है। चिŸाौड़
का दुर्ग स्टेशन से तीन मील दूर
हैं। दुर्ग के भीतर महाराणा प्रताप
का जन्म स्थल, रानी पùिनी,
पन्नाधाय व मीराबाई के महल,
जटाशंकर महादेव का मंदिर, गोमुख
कुंड, कालिका माता का मंदिर,
गिरिधर गोपाल, श्री चतुर्भुज
रघुनाथजी का मंदिर आदि दर्शनीय
स्थान हैं।
कब जाएं?: यहां वर्ष भर कभी भी
जाया जा सकता है, लेकिन अक्तूबर
से मार्च का समय सबसे उŸाम रहता
है।
कैसे जाएं/कहां ठहरें: निकटतम
हवाई अड्डा उदयपुर है। यहां से
बस या टैक्सी से आसानी से जाया
जा सकता है। देश के विभिन्न शहरों
से नाथद्वारा के लिए अच्छी बस सुविधा
उपलब्ध है। यहां रहने के लिए अनेक
धर्मशालाएं एवं होटल उचित दर पर
मिल जाते हैं।